Uttarakhand > Development Issues - उत्तराखण्ड के विकास से संबंधित मुद्दे !

Uttarakhand Education System - उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

These are the factors increasing migration.


--- Quote from: M S Mehta on April 10, 2008, 07:32:28 PM ---
New from INdia tv.

ALERT VIEWER (07-04-2008)

school is being run on a burial since the past 9 years in Almora of Uttarakhand. Website: http://www.indiatvnews.com Alert Viewer Ramadas gets a 21" colour television from India TV for showing us how a government school is being run on a burial since the past 9 years in Almora of Uttarakhand.
Website: http://www.indiatvnews.com



http://www.youtube.com/watch?v=auVDrha9_hY





--- End quote ---

पंकज सिंह महर:
साथियो,
        उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था तो जैसी भी है, है। लेकिन मैंने एक चीज यह भी देखी है कि गरीब लोग अपने बच्चों को पढ़्ने के लिये नहीं बल्कि खाना खिलाने के लिये स्कूल भेजते हैं, ताकि उनका बच्चा एक वक्त का खाना तो भरपेट खा सके।  खासतौर से अनुसूचित जाति के लोग बच्चों को खाने के अलावा वजीफा पाने के लिये प्राइमरी स्कूल भेजते हैं और जिस कक्षा के बाद वजीफा मिलना बंद हो जाता है, वह उसका स्कूल छुड़वा देते हैं।
      मैने कई बार इन गरीब लोगों को अपने बच्चे को फेल कर देने की गुहार अध्यापकों से करते देखा है। ताकि उस बच्चे को एक साल और वजीफा मिल सके या उसका एक समय का खाना बच सके। कई लोग तो ऎसे हैं, जिनके पास खाने के लिये नहीं है तो वह अपने बच्चे को स्कूल भेज देते है (वह भी किसी और से पुराने कपड़े मांगकर, क्योंकि स्कूल ड्रेस में जाना जरुरी है) ताकि कम से कम उसका बच्चा तो एक समय भरपेट खाना खा सके।


       ??? कुछ दिनों पहले मैंने अपनी संस्था (CREATIVE UTTARAKHAND)  को मेधावी छात्रों को पुरस्कृत करते देखा तो यह अहसास हुआ कि जो साधन संपन्न हैं, उनको सारी सुविधायें प्राप्त हैं, लेकिन उस गरी़ब बच्चे की सुध लेने वाला कोई नहीं जिसके पास स्कूल जाने के लिये ड्रेस नहीं है, खाने के लिये अनाज नहीं है। वह बच्चा शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूल नहीं जाता....वह एक जून का खाना खाने के लिये स्कूल जाता है।
     तो क्या सहायता की जरुरत इन गरीब बच्चों को है या अंग्रेजी स्कूलों में पढ़्ने वाले ९०% अंक प्राप्त करने वाले, ए०सी० कार में स्कूल जाने वाले मेधावी बच्चों को.......?   ???

हेम पन्त:
पंकज दा! आपने पहाड के सरकारी स्कूलों में होने वाली शिक्षा की सच्चाई उजागर कर दी आज यहाँ पर. मैने अपने गांव में बच्चों को बस्ते के अन्दर 'थाली' ले जाते हुये देखा है.

स्कूल जाकर भी बच्चों का ध्यान पढाई में न होकर खाने पर तथा उसे बनाने की तैयारियों पर होता है. कुछ जगहों पर यह भी देखा गया है कि खाना बनाने के लिये बच्चों से श्रम करवाया जाता है.

इस राशन की सप्लाई में होने वाली धांधली तो एक अलग ही मुद्दा है.

पंकज सिंह महर:
हेम दा,
      बच्चों का ध्यान तो खाने पर ही अटक गया है और अध्यापकों का भी ध्यान पढ़ाने के बजाय खाना बनवाने पर ही अटक गया है। क्योंकि अध्यापक को सबसे पहले खाना बनवाने की जुगत जमानी पड़ती है कि भोजन बनाने वाली आई कि नहीं, दाल है कि नहीं, चावल है कि नहीं, गैस है कि नहीं......।
       डर भी है क्योंकि आज स्कूल से जब बच्चा घर आता है तो अभिभावक यह नहीं पूछते कि आज स्कूल में क्या पढा़या, बल्कि यह पूछा जाता है कि आज स्कूल में क्या खाया?

हेम पन्त:
पंकज दा! जो बच्चे अभाव में रहते हैं हम उनकी किस तरह मदद कर सकते है?
छोटे पैमाने पर एक-दो बच्चों को लेकर उनकी पढाई की जिम्मेदारी तो ली जा सकती है... लेकिन उन्हें identify करना और सहायता करने का काम हम लोगों को अपने-2 गांव से ही शुरू करना पडेगा.

अन्य लोगों के विचारों को जानने की भी उत्सुकता है...

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