Uttarakhand > Development Issues - उत्तराखण्ड के विकास से संबंधित मुद्दे !

Uttarakhand Education System - उत्तराखण्ड की शिक्षा प्रणाली

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पंकज सिंह महर:

--- Quote from: H. Pant on April 21, 2008, 02:50:24 PM ---पंकज दा! जो बच्चे अभाव में रहते हैं हम उनकी किस तरह मदद कर सकते है?
छोटे पैमाने पर एक-दो बच्चों को लेकर उनकी पढाई की जिम्मेदारी तो ली जा सकती है... लेकिन उन्हें identify करना और सहायता करने का काम हम लोगों को अपने-2 गांव से ही शुरू करना पडेगा.

अन्य लोगों के विचारों को जानने की भी उत्सुकता है...

--- End quote ---

हेम दा, अभी जो कार्यक्रम हुआ, पहाड़ का, उसमें UANA द्वारा जो सहायता दी गई थी, उसे मेधावी बच्चों में बांटा गया। मै यह नहीं कहता कि मेधावी बच्चों को यह नहीं दिया जाना चाहिये, मेरा तो यह कहना है कि हम(CU-MU) भी उसी धारा में क्यों बह रहे हैं? कम से कम हमें (क्योंकि हम कहते हैं कि हम उत्तराखण्ड को करीब से जानते हैं) तो यह सहायता उन गरीब, पिछड़े लोगों को देनी चाहिये।  जहां तक identify  करने की बात है तो जब हम असली उत्तराखण्ड में जायेंगे तो अपने आप हमें यह मिल जायेंगे। जिला मुख्यालय या बड़े शहर ही उत्तराखण्ड नहीं हैं, पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा पर काली नदी के किनारे के जो गांव हैं वहां पर आज भी लोगों के पास खाना बनाने के लिये मात्र एक ही एल्युमिनियम की पतीली है भात बनाने के बाद वह उसे पत्तो में खाली करके दाल बनाते हैं।
      हम असली उत्तराखण्ड में जब पहुचेंगे तो बुनियादी सुविधाओं से वंचित और साधनों की कमी के कारण अंधविश्वास पर मजबूरी में जी रहा गरीब आपको हर जगह मिल जायेगा।

हेम पन्त:
पंकज दा! मैं आपसे सहमत हूँ.
हम लोगों को अपना रास्ता खुद बनाना है. किसी लीक पर चल कर उत्तराखण्ड का हम कोई खास भला नहीं कर सकते. विकास के उजाले से दूर उत़्तराखण्ड के पिछडे इलाके के लोगों को हम कुछ मदद कर पाये तो ही ग्रुप्स के उद्देश्यों की पूर्ति होगी.

पंकज सिंह महर:
पांच माह से नहीं हुए शिक्षकों के दर्शन

घनसाली (टिहरी गढ़वाल)। सरकार भले ही शिक्षा में गुणात्मक सुधार के बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है, इसका जीता-जागता उदाहरण घनसाली तहसील का जूनियर हाईस्कूल कोपड़धार है, जहां पांच माह से शिक्षक नदारद है, बावजूद इसके अनुपस्थित शिक्षकों को वेतन बराबर मिल रहा है। विद्यालय में जूनियर स्तर का मात्र एक शिक्षक ही तैनात है।
वर्ष 2006 में उच्चीकृत हुए विद्यालय में दो शिक्षिकाएं अक्टूबर 2007 में नियुक्त की गईं थी, लेकिन नियुक्ति के मात्र आधा माह बाद से अब तक शिक्षिकाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है। खास बात यह है कि शिक्षिकाओं के अनुपस्थित रहने के बाद भी विभाग इन पर मेहरबान है और विद्यालय से इनको तनख्वाह बराबर मिल रही है। इस संबंध में अभिभावकों ने कई बार शिक्षा मंत्री व विभाग को अवगत कराया लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। जिला पंचायत सदस्य रतन सिंह रावत, प्रधान कमललाल, तारादत्त पैन्यूली, पूर्व प्रधान रामेश्वर प्रसाद लसियाल का कहना है कि पिछले पांच माह से शिक्षिकाओं के अनुपस्थित रहने से छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। इस संबंध में उन्होंने शिक्षामंत्री, अपर शिक्षा सचिव को ज्ञापन दिया। उन्होंने लापरवाह शिक्षकों का शीघ्र तबादला करने की मांग की है। तहसीलदार घनसाली एमएल भैंतवाल का कहना है कि उन्होंने दो बार विद्यालय का निरीक्षण किया और उक्त शिक्षिकाएं अनुपस्थित पाईं, जिस पर उन्होंने शिक्षा विभाग को रिपोर्ट भेज दी है।

पंकज सिंह महर:
एक मात्र प्रवक्ता के सहारे चल रहा है राजकीय इंटर कालेज कर्मी

कपकोट (बागेश्वर)। मल्ला दानपुर क्षेत्र का राजकीय इंटर कालेज कर्मी शासन प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होकर रह गया है। प्रवक्ताओं की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। अभिभावक संघ ने प्रवक्ताओं की तैनाती न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
       राजकीय इंटर कालेज कर्मी में प्रवक्ताओं के दस पद सृजित है लेकिन वर्तमान में मात्र एक प्रवक्ता तैनात है। वह पढ़ाई के साथ साथ प्रधानाचार्य का भी अतिरिक्त कार्य देख रहे है। विद्यालय में प्रवक्ताओं की नियुक्ति न होने के कारण बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। पढ़ाई न होने के कारण बच्चों ने विद्यालय जाना छोड़ दिया है। विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी आदि विषयों के प्रवक्ताओं के पद रिक्त है। प्रवक्ताओं के पद रिक्त होने के कारण प्रतिवर्ष विद्यालय का परीक्षाफल गिरता जा रहा है। यही हाल हाई स्कूल की कक्षाओं का भी है। सहायक अध्यापक के 12 पद सृजित है जिनमें से मात्र 8 अध्यापक तैनात है शेष गणित, सामान्य अध्ययन, व्यायाम, कला विषयों के पद रिक्त चल रहे है। कार्यालय में भी कर्मचारियों का टोटा है। विद्यालय में प्रवर सहायक, अवर सहायक के एक एक व चतुर्थ श्रेणी के चार पद रिक्त चल रहे है। शिक्षक अभिभावक संघ व ग्रामीणों ने गत दिवस आम बैठक करते हुए विद्यालय में व्याप्त अव्यवस्थाओं पर गहरी नाराजी व्यक्त की। विद्यालय में प्रवक्ताओं व अध्यापकों के पद रिक्त होने के साथ साथ भवनों की हालत भी दयनीय बनी हुई है जिस कारण कभी भी दुर्घटना हो सकती है। वर्ष 1948 में निर्मित इन विद्यालय भवनों की हालत में सुधार का कोई उपाय नहीं किया गया है। बैठक में संगठन व ग्रामीणों ने शासन प्रशासन पर राइंका कर्मी की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी कि यदि समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Situation is similiar in other remote areas. Nobody is there to take the note of such condition.


--- Quote from: पंकज सिंह महर on April 28, 2008, 01:08:39 PM ---एक मात्र प्रवक्ता के सहारे चल रहा है राजकीय इंटर कालेज कर्मी

कपकोट (बागेश्वर)। मल्ला दानपुर क्षेत्र का राजकीय इंटर कालेज कर्मी शासन प्रशासन की उपेक्षा का शिकार होकर रह गया है। प्रवक्ताओं की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। अभिभावक संघ ने प्रवक्ताओं की तैनाती न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
       राजकीय इंटर कालेज कर्मी में प्रवक्ताओं के दस पद सृजित है लेकिन वर्तमान में मात्र एक प्रवक्ता तैनात है। वह पढ़ाई के साथ साथ प्रधानाचार्य का भी अतिरिक्त कार्य देख रहे है। विद्यालय में प्रवक्ताओं की नियुक्ति न होने के कारण बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है। पढ़ाई न होने के कारण बच्चों ने विद्यालय जाना छोड़ दिया है। विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी आदि विषयों के प्रवक्ताओं के पद रिक्त है। प्रवक्ताओं के पद रिक्त होने के कारण प्रतिवर्ष विद्यालय का परीक्षाफल गिरता जा रहा है। यही हाल हाई स्कूल की कक्षाओं का भी है। सहायक अध्यापक के 12 पद सृजित है जिनमें से मात्र 8 अध्यापक तैनात है शेष गणित, सामान्य अध्ययन, व्यायाम, कला विषयों के पद रिक्त चल रहे है। कार्यालय में भी कर्मचारियों का टोटा है। विद्यालय में प्रवर सहायक, अवर सहायक के एक एक व चतुर्थ श्रेणी के चार पद रिक्त चल रहे है। शिक्षक अभिभावक संघ व ग्रामीणों ने गत दिवस आम बैठक करते हुए विद्यालय में व्याप्त अव्यवस्थाओं पर गहरी नाराजी व्यक्त की। विद्यालय में प्रवक्ताओं व अध्यापकों के पद रिक्त होने के साथ साथ भवनों की हालत भी दयनीय बनी हुई है जिस कारण कभी भी दुर्घटना हो सकती है। वर्ष 1948 में निर्मित इन विद्यालय भवनों की हालत में सुधार का कोई उपाय नहीं किया गया है। बैठक में संगठन व ग्रामीणों ने शासन प्रशासन पर राइंका कर्मी की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी कि यदि समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो आंदोलन किया जाएगा।

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