Author Topic: Uttarakhand In High Earth Quake Zone-उत्तराखंड अति स्वेदन भूकंप जोन में  (Read 20132 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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देहराूदन, नैनीताल, बागेश्वर भूकंप की दृष्टि से असुरक्षित
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कोलंबिया यूनिवर्सिटी में सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रो. डब्लूडी लेम फिन ने एवोलेशन इन सलेक्शन एंड एप्लीकेशन ऑफ ग्राउंड मोशन फोर डिजाइन पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भूकंपरोधी तकनीक, क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और वहां आए सात बार के भूकंप का विश्लेषण कर डिजायन की जानी चाहिए। उन्होंने भूकंप की कुछ तकनीकों को विस्तार से समझाया।

आईआईटी रुड़की के अर्थक्वेक डिपार्टमेंट के प्रो. सरन स्वामी ने अर्थक्वेक रेजीस्टेंट ऑफ फाउंडेशन पर शोध प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि मकान की बुनियाद भूकंपरोधी तकनीक पर निर्मित होनी चाहिए। अर्थक्वेक इंजीनियरिंग पर 14वीं सिम्पोजियम के तहत देश विदेश से आए वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। जिसमें दूसरे दिन आठ सत्रों में 59 शोध प्रस्तुत किए गए। नोरसार नोरवे के डॉ. डोमिनिक लांग ने बताया कि देहरादून में 44 स्कूल और 39 हॉस्पिटल भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील हैं। डीएमएमसी देहरादून के डॉ. गिरीश ने बताया कि नैनीताल और बागेश्वर में बन रही मल्टी स्टोरी बिल्डिंग भूकंप की दृष्टि से सुरक्षित नहीं हैं। उन्होंने उत्तराखंड पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट प्रस्तुत की। आईआईटी मुंबई के प्रो. रवि सिंहा ने डिजास्टर मैनेजमेंट पर शोध प्रस्तुत करते हुए कहा कि मुंबई भूकंप, बाढ़ की दृष्टि से संवेदनशील है। प्रो. रवि सिंहा ने बताया कि गोरखपुर सिटी मैग्नीट्यूड भूकंप के 6.8 और 8.1 के झटके झेल पाने की स्थिति में नहीं है। आईआईटी दिल्ली के प्रो. टीके दत्ता ने 'चैलेंजिंग ऑफ परर्फोमेंस बेसड सीस्मिक (भूकंप से उत्पन्न) डिजाइन' पर प्रस्तुत अपने शोध में भूकंपरोधी तकनीक पर निर्मित बिल्डिंग डिजाइन करने की आवश्यकता बताई।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7048461.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तराखंड में भूकंप सुरक्षा को संसाधनों का अभाव
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भूकंप के लिए संवेदनशीन जोन-4 तथा जोन-5 में आने वाले उत्तराखंड में भूकंप सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं दिखाई देते। जापान जैसे किसी तीव्र भूकंप की आहट ही यहां लोगों को सिहरा देती है।

उत्तराखंड में भूकंप जैसी घटनाओं पर नजर रखने, आपदा प्रबंधन तथा न्यूनीकरण के लिए आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस केंद्र का बजट सालाना एक करोड़ से कम का है। इससे केंद्र के कर्मचारियों का वेतन भी किसी तरह निकल पाता है।

बचाव कार्यो तथा भूकंपरोधी भवन निर्माण को लेकर लाख कोशिश करने के बाद भी लोगों में जागरूकता नहीं लाई जा सकी है। हां केंद्र द्वारा कुछ लोगों को भूकंप आने की स्थिति में राहत एवं बचाव कार्यो को प्रशिक्षण जरूर दिया जा रहा है।

केंद्र ने नैनीताल, मसूरी तथा देहरादून जैसे शहरों में रिक्टर स्केल पर छह से अधिक पैमाने के भूकंप आने की स्थिति में बेतहाशा नुकसान होने का अनुमान पहले ही जता दिया है।

सन् 1991 तथा 1999 में आए हाल के भूकंपों की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर पांच से छह के बीच आंकी गई थी। इसके बावजूद 1991 के भूकंप ने उत्तरकाशी क्षेत्र में तथा 1999 के भूकंप ने चमोली क्षेत्र में कहर ढा दिया था।

केंद्र के अधिशासी निदेशक पियूष रौतेला ने स्वीकार किया कि बजट का अभाव बड़ी समस्या है। फिलहाल बचाव के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7436427.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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ब्लास्टिंग से खोखले हो रहे पहाड़



गढ़वाल: दुनिया के कई हिस्सों में आई प्राकृतिक आपदा के बाद एक बार फिर प्रकृति से छेड़खानी के दुष्परिणामों की अवधारणा को बल मिला है। सुनामी और भूकंप के बाद विशेषज्ञ इसके कारणों और प्रभाव का मूल्यांकन कर रहे हैं। प्रकृति से हो रही अत्यधिक छेड़खानी के कारण आपदा के दुष्प्रभाव लगातार बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में भी हो रही ब्लास्टिंग से दुष्परिणाम हो सकते हैं।

भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील जोन में होने के बावजूद उत्तरकाशी जनपद में निर्माण कार्यो में संवेदनहीनता दिख रही है। परियोजना के निर्माण में मानकों को ताक पर रखकर लगातार विस्फोटकों का बेतरतीब इस्तेमाल किया जा रहा है। वर्ष 1991 में उत्तरकाशी में उत्तरकाशी भूकंप की विभिषिका झेल चुका है। इसके बाद वर्ष 2003 में वरुणावत त्रासदी और बीते वर्ष सितंबर माह में जमीन धंसने का सिलसिला एक माह तक चलता रहा। वहीं, पौड़ी में एक भी ऐसी सड़क नहीं है, जिस पर डायनामाइट का इस्तेमाल न हुआ हो। वहीं, सीमांत जिला चमोली में निर्माण के नाम पर जगह-जगह हो रहे विस्फोट किसी बडे़ खतरे का बुलावा है।

भूकंप की दृष्टि से जोन 5 में आने वाले जनपद चमोली में गत कुछ वर्षो से निर्माण के नाम पर अलग-अलग स्थानों में धमाके किए जा रहे हैं। वहीं, रुद्रप्रयाग में मोटर मार्ग निर्माण के साथ ही जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में बडे़ पैमाने पर विस्फोटक का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि मोटर चौड़ीकरण के दौरान भी सीमा सड़क संगठन द्वारा विस्फोटक का प्रयोग हो रहा है, ऐसे में पहाड़ियों का दरकना व कमजोर हो रही हैं।

श्रीनगर गढ़वाल: पहाड़ों पर हो रहे विस्फोटों को बेहद हानिकारक बताते हुए इन पर रोक लगाने की मांग करते हैं। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रो. राजेंद्र सिंह राणा और डा. एसपी सती के अनुसार राज्य की अधिकांश पहाड़ियां कमजोर शैलों से बनी है। विस्फोट होने से इनमें नई दरारें बनती हैं और पुरानी दरारें बड़ी हो जाती है। इस समय भूकंप या बारिश होने पर इन फॉल्ट जोन की दरारों में पानी भरने से भूस्खलन का खतरा भी बढ़ जाता है।


नई टिहरी: जनपद में आए दिन मोटर मार्गो के क्षतिग्रस्त होने के पीछे निर्माण कार्यो के उपयोग में जहां ब्लास्टिंग की भूमिका कम नहीं है वहीं भूकंप के लिहाज से भी इसका प्रयोग कम नुकसान दायक नहीं है। 
Source Dainik jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Quake hits parts of Chamoli, Rudraprayag, no casualty
« Reply #23 on: March 15, 2011, 12:06:11 AM »
Quake hits parts of Chamoli, Rudraprayag, no casualty

A slight intensity earthquake of 3.3 magnitude on the Richter scale on Monday jolted parts of Chamoli and Rudraprayag districts in Uttarakhand where people rushed out of their houses , a top Met department official said.
The quake parts of the two districts at 1431 hours with its epicentre at 30.5 degree North and 79.1 degree East, said Anand Shamra, Director of Met Department.
As the quake hit, people living in Chamoli, Gopeshwar, Karnprayag, Rudraprayag and Ukhimath rushed out of their houses However, no loss of life or property has been reported from anywhere.
The area had suffered a major earthquake in 1999 when nearly 100 people were killed and hundreds rendered homeless.
http://www.indianexpress.com/news/quake-hits-parts-of-chamoli-rudraprayag-no-casualty/762283/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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चमोली में भूकंप के झटके, जान-माल के नुकसान की खबर नहीं 
 
जापान में आए भूकंप और सूनामी के बाद अब उत्तराखंड के चमोली में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 3.3 मापी गई है. हालांकि जानमाल के किसी नुकसान की सूचना नहीं है. भूकंप का झटका महसूस करने के बाद लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल गए.
मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने बताया कि दोनों जिलों के कुछ हिस्से में भूकंप का झटका अपराह्न दो बजकर 31 मिनट पर आया. इसका केंद्र 30.5 डिग्री उत्तर और 79.1 डिग्री पूर्व में था. भूकंप का झटका आने के तुरंत बाद चमोली, गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग और उखीमठ में रहने वाले लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकल गए. हालांकि, कहीं से भी किसी के हताहत होने और संपत्ति को नुकसान पहुंचने का समाचार नहीं मिला है. इस इलाके में 1999 में भूकंप का जोरदार झटका आया था जिसमें करीब 100 लोगों की मृत्यु हो गई थी और सैकड़ों लोग बेघर हो गए थे. इससे पहले 26 जनवरी को हरियाणा-उत्तरप्रदेश सीमा पर हल्का भूकंप आया था जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 3.2 मापी गई थी. 19 जनवरी को भी दक्षिण पश्चिम पाकिस्तान में केंद्रित 7.4 तीव्रता का भूकंप आया था जिसे दिल्ली, राजस्थान और पश्चिमी उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा में भी महसूस किया गया था. वहीं 4 फरवरी को पूर्वोत्तर के अनेक हिस्सों में भूकंप के झटके महसूस किये थे जिनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.4 मापी गयी थी.
 
http://220.226.193.61/story.php/content/view/52510/9/76/Earthquake-in-Chamoli.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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भूकंप के झटकों पर भारी पड़ सकती है लापरवाही

भवन निर्माण में मानकों की हो रही है अनदेखी
ड्ड   इसे लेकर आमजन में भी है जागरूकता का अभाव
ड्ड   बायलॉज के अनुसार भवनों का भूकंपरोधी जरूरी
ड्ड   ९० प्रतिशत से अधिक निर्माणों में अनुपालन नहीं
ड्ड   पांच से अधिक का भूकंप हो सकता है विनाशकारी
रुड़की। शहर और आसपास के क्षेत्रों में मानकों की अनदेखी कर अंधाधुंध भवन निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। इसे लेकर जहां आमजन में जागरूकता का अभाव है। वहीं मानकों के अनुपालन में प्रशासन की ओर से भी हीलाहवाली की जा रही है। नतीजतन भूकंप के झटकों पर प्रशासन की यह लापरवाही भारी पड़ सकती है। आईआईटी वैज्ञानिकों की मानें तो ९० प्रतिशत से अधिक भवनों में मानकों की अनदेखी की जा रही है, जो भविष्य में खतरनाक साबित हो सकती है।
जापान में भूकंप और सुनामी से हुई तबाही के बाद अपने देश में भी अर्थक्वेक वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही है। बीते रोज चमोली से लगभग ५० किमी. पश्चिम में तीन से अधिक तीव्रता के आए भूकंप ने प्रदेश सरकार के साथ आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। लेकिन, मानकों की अनदेखी कर बेतरतीब भवन निर्माण के आगे आईआईटी वैज्ञानिक भी बेबस नजर आ रहे हैं। आईआईटी वैज्ञानिकों के अनुसार देश में भी आठ मैग्रीट्यूड से अधिक तीव्रता के भूकंप कई बार आए हैं, लेकिन उस दौरान इतनी क्षति नहीं हुई। पर आज उसकी आधी की तीव्रता भी खतरनाक साबित हो सकती है।
आईआईटी अर्थक्वेक इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष प्रो. एचआर वासन और अर्थक्वेक साइंस के प्रो. आर.बालागन के अनुसार भारत में ९० प्रतिशत से अधिक भवनों में भूकंपरोधी तकनीक का उपयोग नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि भुज में आए भूकंप के बाद सरकार ने इस दिशा में पहल की। साथ ही सभी राज्यों में भवन निर्माण से पहले नक्शा पास कराने और उसे अर्थक्वेक साइंटिस्ट यानी सिविल इंजीनियर से अप्रूव्ड कराने पर बल दिया।
लेकिन, इसके बाद भी आमजन में जागरूकता की कमी और प्रशासन की हीलाहवाली इस पर भारी पड़ रही है और आज भी बिना अर्थक्वेक रेजिडेंस के ही भवन निर्माण किए जा रहे हैं, जो पांच तीव्रता के भूकंप झटके भी सहन नहीं कर सकते।

http://www.amarujala.com/state/Uttrakhand/13105-2.html

सुधीर चतुर्वेदी

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जापान में भूकंप से उत्तराखंडवासियों के जख्म हुए हरे (Mar 11/11 News from Dainik Jagran)
जागरण कार्यालय, चम्पावत:

शुक्रवार को जापान में आए 8.8 तीव्रता के भूकंप और सुनामी से उत्तराखंडवासियों के जख्म हरे हो गए हैं। हालांकि पिछले तेरह सालों से यहां के पहाड़ खामोश हैं, लेकिन चार व पांच जोन में आने वाले इस सूबे में कब खतरे की घंटी बज जाय कुछ कहा नहीं जा सकता है।

सूबे में भूकंपों का इतिहास काफी पुराना है। आंकड़ों के अनुसार 2 जुलाई 1832 को जिले के लोहाघाट में 6 तीव्रता का रिकार्ड किया गया पहला भूकंप था। उसके बाद वर्ष 1999 तक करीब 11 बार बडे़ भूकंप से यह धरती डोल चुकी है। जिसमें जान और माल का काफी नुकसान हुआ था। हालांकि छोटे भूकंप सैकड़ों बार पहाड़ की धरती को हिला चुके हैं। लोहाघाट में आए भूकंपों से आई जनहानि का ब्यौरा तो नहीं है, लेकिन 1980 में नैनीताल में 151 लोग मलबे में दब गए थे और नैनी झील का एक बड़ा हिस्सा मैदान में तब्दील हो गया था। जिसे फ्लैट के नाम से जाना जाता है। 20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी व टिहरी में तथा 29 मार्च 1999 को चमोली में आए भूकंपों ने सैकड़ों लोगों को काल कलवित किया और करोड़ों का नुकसान हुआ। 11 मार्च को जापान में आए भूकंप की तबाही ने एक बार फिर उत्तराखंड के जख्मों को हरा कर दिया है। दरअसल चार और पांच जोन में बसे इस राज्य में लंबे समय से धरती का न डोलना विशेषज्ञ खतरे का संकेत बताते हैं।

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स्थान तीव्रता वर्ष

लोहाघाट 6 2 जुलाई 1832

लोहाघाट 6 30 मई 1833

लोहाघाट 7 14 मई 1835 नैनीताल 6 25 जुलाई 1869

धारचूला 7.5 28 अक्टूबर 1916

बजांग 6 5 मार्च 1935

अल्मोड़ा 6.5 5 जून 1945

कपकोट 6 27 जून 1966

सेराघाट 6.5 29 जुलाई 1980

उत्तरकाशी 7.7 20 अक्टूबर 1991

चमोली 6.8 29 मार्च 1999

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand is in high earthquake zone.

People must be educated about protection during such calamities. Houses should be constructed keeping in mind the same.

जापान में भूकंप से उत्तराखंडवासियों के जख्म हुए हरे (Mar 11/11 News from Dainik Jagran)
जागरण कार्यालय, चम्पावत:

शुक्रवार को जापान में आए 8.8 तीव्रता के भूकंप और सुनामी से उत्तराखंडवासियों के जख्म हरे हो गए हैं। हालांकि पिछले तेरह सालों से यहां के पहाड़ खामोश हैं, लेकिन चार व पांच जोन में आने वाले इस सूबे में कब खतरे की घंटी बज जाय कुछ कहा नहीं जा सकता है।

सूबे में भूकंपों का इतिहास काफी पुराना है। आंकड़ों के अनुसार 2 जुलाई 1832 को जिले के लोहाघाट में 6 तीव्रता का रिकार्ड किया गया पहला भूकंप था। उसके बाद वर्ष 1999 तक करीब 11 बार बडे़ भूकंप से यह धरती डोल चुकी है। जिसमें जान और माल का काफी नुकसान हुआ था। हालांकि छोटे भूकंप सैकड़ों बार पहाड़ की धरती को हिला चुके हैं। लोहाघाट में आए भूकंपों से आई जनहानि का ब्यौरा तो नहीं है, लेकिन 1980 में नैनीताल में 151 लोग मलबे में दब गए थे और नैनी झील का एक बड़ा हिस्सा मैदान में तब्दील हो गया था। जिसे फ्लैट के नाम से जाना जाता है। 20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी व टिहरी में तथा 29 मार्च 1999 को चमोली में आए भूकंपों ने सैकड़ों लोगों को काल कलवित किया और करोड़ों का नुकसान हुआ। 11 मार्च को जापान में आए भूकंप की तबाही ने एक बार फिर उत्तराखंड के जख्मों को हरा कर दिया है। दरअसल चार और पांच जोन में बसे इस राज्य में लंबे समय से धरती का न डोलना विशेषज्ञ खतरे का संकेत बताते हैं।

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स्थान तीव्रता वर्ष

लोहाघाट 6 2 जुलाई 1832

लोहाघाट 6 30 मई 1833

लोहाघाट 7 14 मई 1835 नैनीताल 6 25 जुलाई 1869

धारचूला 7.5 28 अक्टूबर 1916

बजांग 6 5 मार्च 1935

अल्मोड़ा 6.5 5 जून 1945

कपकोट 6 27 जून 1966

सेराघाट 6.5 29 जुलाई 1980

उत्तरकाशी 7.7 20 अक्टूबर 1991

चमोली 6.8 29 मार्च 1999


Anil Arya / अनिल आर्य

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धारचूला में भूकंप के
झटके से दहशत
धारचूला (पिथौरागढ़)। धारचूला और आसपास के इलाकों में बुधवार सुबह 7.47 पर भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। इसका आभास होते ही डरकर लोग घरों से बाहर निकल आए। भूकंप से किसी नुकसान की सूचना नहीं है। मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डा.आनंद शर्मा ने बताया कि भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 2.5 आंकी गई है।
http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

Devbhoomi,Uttarakhand

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भूकंप के विनाश को बुलावा दे रहा विकास

   



भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र होने के बावजूद जिले में बहुमंजिला इमारतों का निर्माण बदस्तूर जारी है। भूकंपरोधी तकनीक और भवन निर्माण के जरूरी मानकों को ताक पर रखकर बन रहे कंक्रीट के ढांचे, कभी भी कहर बरपा सकते हैं।


उत्तरकाशी में वर्ष 1991 में आये भूकंप को शायद ही कोई भूला सका हो, लेकिन इससे किसी ने सबक नहीं लिया। भूकंपीय दृष्टि से जोन चार व पांच में शामिल जनपद के हर नगरीय क्षेत्र में ऊंची होती इमारतें, भूकंपरोधी तकनीक अपनाने जैसी बातों का मखौल उड़ा रही हैं। जिला मुख्यालय के विनियमित क्षेत्र में ही स्थिति बेहद नाजुक है। भवन निर्माण के लिये नक्शा पास करवाना पड़ता है। इसके लिये कुछ मानक रखे गये हैं, लेकिन इनका किस तरह से पालन होता है।

इसका अंदाजा नगर क्षेत्र की स्थिति को देखकर लगाया जा सकता है। हालात बेकाबू होने के बावजूद विनियमित क्षेत्र प्राधिकरण या भवन निर्माण के लिये एनओसी जारी करने वाली नगर पालिका ने अभी तक किसी भी गलत निर्माण के खिलाफ कार्यवाही नहीं की है। ग्रामीण क्षेत्रों में विनियमित क्षेत्र की तरह भवन निर्माण पर कोई निगरानी नहीं है। इसके चलते उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में शहर का रूप ले रहे जोशियाड़ा की स्थिति और भी खराब हो चली है। यहां ऊंची इमारतों की घनी बस्तियां देखने में खौफ पैदा करती हैं।

इनके बीच मानकों के अनुरूप ना तो दूरी छोड़ी गई है और ना ही प्लाट पर खाली जगह। यही स्थिति नगर पंचायत बड़कोट, ग्रामीण क्षेत्र चिन्यालीसौड़, नौगांव व पुरोला की भी है। इस संबंध में जिला आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ देवेंद्र पेटवाल बताते हैं कि आपदा न्यूनीकरण केंद्र की ओर से इस दिशा में प्रचार प्रसार किया जा रहा है, लेकिन स्थिति काबू होने में समय लगेगा।


इसके लिये जागरुकता बेहद जरूरी है। जिला भूगर्भ विशेषज्ञ प्रदीप सेमवाल बताते हैं कि भूगर्भ में सैंज गांव के निकट से मेन सेंट्रल थ्रस्ट गुजरता है, जबकि धरासू के निकट से नार्थ अल्मोड़ा सेंट्रल थ्रस्ट गुजरता है। ये दोनों बड़े थ्रस्ट जोन कभी भी सक्रिय हो सकते हैं। इसके चलते बड़े भूकंप की स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसी स्थिति में भवन निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक के मानकों को अनदेखा करना घातक होगा।

भूकंपरोधी तकनीक के मानक (पर्वतीय क्षेत्र)
-भवन की ऊंचाई 12 मीटर से अधिक ना हो
-दो भवनों के बीच न्यूनतम तीन मीटर की दूरी
-प्लाट के साठ फीसदी हिस्से पर ही निर्माण हो
-भवन में नींव पर्याप्त गहरी मजबूत बनाई जाए
-भवन के बिम व कालम आरसीसी के बने हों
-हर जोड़ पर मानक के अनुरूप सरिया का उपयोग

'जिला मुख्यालय के विनियमित क्षेत्र में प्राधिकरण के तहत भवन निर्माण पर सख्ती से नजर रखी जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिये अभी तक इस तरह का कोई विधिक प्रावधान नहीं हुआ है। आपदा प्रबंध एवं न्यूनीकरण केंद्र की ओर से तहसील स्तर पर भी भूकंपरोधी भवन निर्माण के लिये लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है'- नवनीत पांडे, एडीएम, उत्तरकाशी।


Source dainik jagran

   

 

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