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Author Topic: Uttarakhand now one Decade Old- दस साल का हुआ उत्तराखण्ड, आइये करें आंकलन  (Read 28168 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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उत्तराखंड बनने के बाद नहीं आए डाक्टर साहब
Story Update : Monday, November 08, 2010    12:01 AM
 

बागेश्वर। राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय खाती गांव॒ में उत्तराखंड बनने के बाद से ही डाक्टर का पद खाली पड़ा है। डाक्टर न होने से हजारों लोग छुटपुट इलाज के लिए॒ भी ६५ किमी दूर जिला मुख्यालय या फिर १६ किमी दूर बेरीनाग-पिथौरागढ़॒ जाते हैं। क्षेत्र के विभिन्न॒ संगठनों से जुड़े लोगों ने डाक्टर की तैनाती नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
दस साल पहले राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय खाती गांव॒ में डाक्टर का तबादला क्या हुआ फिर कोई लौटकर ही नहीं आया। ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में डाक्टर नहीं होने से क्षेत्र के रोगियों को यहां जिला मुख्यालय या फिर बेरीनाग॒ पिथौरागढ़॒ ले जाना पड़ रहा है। वर्ष २००४ में ५६ लाख रुपये की लागत से अस्पताल भवन बन गया था। स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री बलवंत भौर्याल॒ को भी इस संबंध में कई बार बता दिया गया है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि डाक्टरों की शीघ्र तैनाती नहीं हुई तो आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। चेतावनी देने वालों में क्षेत्र पंचायत सदस्य पुष्पा देवी, युवक मंगल दल के अध्यक्ष पंकज डसीला, राजेंद्र खाती, अनिल रौतेला॒ तथा एमएस भौर्याल॒ आदि शामिल हैं। इधर स्वास्थ्य चिकित्सा शिक्षा मंत्री भौर्याल॒ ने कहा कि अस्पताल में शीघ्र डाक्टर की तैनाती की जाएगी।

http://www.amarujala.com/city/Bagrswar/Bagrswar-6387-114.html
 

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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कल हमारे माननीय मुख्यमंत्री साब का व्यान देखा था टी बी में!

लगता है निशंक साहब बहुत खुश है राज्य के अब तक के विकास में, कहते है हमारा ग्रोथ २% से ९% तक पहुच गया और राज्य देश का तीसरे नंबर में आ गया!

हे भगवन धरातल पर कुछ नहीं दिखता !

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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dosto kya vikash ka aankalan karain in 10 saalon main abhi pradesh ki rajdhaani hi nischit nahi hui, palayan bada hai,pahadon main koi udyog nahi khula hai, kewal mukhya mantri ji aur unaki media kahati hai ki vikash hua hai, han agar vikash hua hai to rajnitik partiyun ka (Uttarakhand min ki partiyun ka uday ho gaya hai), rajnetao ka pahale bidayak roadways ki bus main safar karate the lekin ab Scorpiyo main ghumate hain aur vikash hua hai thekedaaron ka, bhumafiyon ka aam aadami jahan tha wahi hai..........

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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I think one decade not a less time for any state to develop but for Uttarakhand these 10 yrs have been quite unproductive. Most of the period of these 10 yrs, there was fight for chair of CM. 05 Chief Ministers ruled over here. The following crucial issues were remained standstill:

1.   Employment : One of the prime objective of formation of Uttarakhand state was to generate employment sources in hill areas but there no progress on this front. Youth of the state are still moving in other states in search of job. There was no industrial policy formed for the hill areas inspited ample sources of tourism etc. Most of the period, we saw agitation at every street of the hills. Whatsoever, job opening there in Govt Sector, the nepotism was prevailing over there.

2.   Tourism – Uttarakhand state enough sources of tourism but the progress was seen.

3.   Migrated Uttarakhandi were not connected : If we other states like Gujrat, Punjab etc, their state Govt approach to the migrated people from their state to invest in their home state which brings many sources of employment. In Uttarakhand case, there was no such move ever made by the Govt.

4.   The Capital issue is standstill.


IN nutshell, nothing has been changed.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्‍तराखंड : निराशा के निर्माण का दशक
 
 उत्‍तराखंड : निराशा के निर्माण का दशक       Sunday, 07 November 2010 18:28 दीपक आजाद भड़ास4मीडिया - प्रिंट   E-mail Print PDF     नीड़ नहीं, निराशा के निर्माण का दशक, यह कहना है 15 अगस्त, 1947 को मुल्क की आजादी के संग अपना सफर शुरू करने वाले युगवाणी पत्र का। साप्ताहिक से मासिक पत्र के रूप में अपने दस साल पूरे करने जा रही इस पत्रिका ने एक राज्य के रूप में उत्तराखंड की दस वर्ष की यात्रा का विश्लेषण इस तरह किया है। कुछ ऐसा ही तहलका ने भी निराशा के भाव प्रकट किए हैं।
ये बताते हैं, जिन उम्मीदों की रोशनी लिये यह राज्य बना था, वह विवेकहीन राजनीतिकों का अखाड़ा बनकर रह गया है। सीमित संसाधनों से चलने वाले इन पत्रों का यह आकलन उन बड़े़ मीडिया घरानों की गुलाबी तस्वीरों से जुदा है, जो वे अपने पन्नों पर साया करते हैं।
देहरादून से प्रकाशित युगवाणी अपने संपादकीय में कहता है,‘ उत्तराखंड अपने जन्म की दसवीं वर्षगांठ मना रहा है। अपने सपनों के राज्य से कहीं बहुत दूर। एक खतरा और बढ़ गया है। बांध निर्माण के बहाने नये मालिक भीतर आ गए हैं। नागरिकों को अपनी जमीन पर बुनियादी हक हासिल  नहीं हो पाते हैं और उद्योग के नाम पर बड़े उद्योग घराने आराम से हर कहीं कानून से उपर उठकर काबिज हो जाते हैं।'
'नीड़ नहीं, निराशा के निर्माण का दशक' शीर्षक से पत्रिका के मुख्य आलेख में वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चंद्र जुगरान कहते हैं, 'इन दस सालों में हम  अपनी उद्यमी छवि नहीं गढ़ पाए और अविभाजित उत्तर प्रदेश की कार्बन कॉपी बनकर रह गए। अब तक का तजुर्बा तो यही कह रहा है कि हमने नए राज्य में नेतृत्व नहीं, सिर्फ नेता तैयार किए और उसी अनुपात में उनके भ्रष्ट चाटुकारों की एक पूरी फौज। इन गारे-घंतरों से पटी कच्ची नींव पर किले का ख्वाब देखें तो भला कैसे?'
राज्य आंदोलनकारी पत्रकार जय प्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं, कैसे एक के बाद एक सरकारों ने चपरासी व क्लर्की की कुर्सी थमाकर जनता की बेहतरी के लिए मरने-खपने को तैयार रहने वाले आंदोलनकारी ताकतों को भिखारी बना दिया। ऐसे लोग सरकारी नौकरी बजा रहे हैं और जनता की आवाज कहीं गुम सी हो गई है। जगमोहन रातैला, योजनाकारों के विवेक पर सवाल खड़ा करते हैं तो रजपाल बिष्ट एक दशक बाद भी गैरसैंण को राज्य की राजधानी न बनाए जाने पर पृथक राज्य की अवधारणा के नेपथ्य में धकेले जाने को इंगित करते हैं। पत्रिका के संपादक संजय कोठियाल हैं। उत्तराखंड को समझने के लिए यह एक जरूरी पत्रिका है। हालांकि कुछ किन्तु-परंतु की गुजाइश हर कहीं होती है।
अपनी जनसरोकारी पत्रकारिता के लिए जाने जाने वाले 'तहलका' ने भी दस साल के इस राज्य की विभिन्न पहलुओं से पड़ताल की है। तहलका कहता है, ''राज्य के दस साल की यात्रा को कतई आशाजनक नहीं कहा जा सकता है। इन दस साल में सरकारों और उसके तंत्र को चलाने वालों पर आम आदमी का भरोसा कम होता गया है। राज्य में एक विशिष्ट शासक वर्ग पैदा हो गया है, जो अब आम जन की नाराजगियों के लिए संवेदनहीनता की सीमा को पार कर 'जनता की कौन परवाह करता है' या 'जनता तो कहती है रहती है' की बेशर्मी तक पहुंच चुका है। यह बेशर्मी जारी रही तो राज्य को ले डूबेगी।''
नेतृत्व व नौकरशाही के सवाल पर तहलका में ही पृथक राज्य गठन का आधार बनी कौशिक कमेटी के सचिव रहे और बाद में राज्य के मुख्य सचिव से होते हुए मुख्य सूचना आयुक्त के पद से मुक्त हुए डॉ आर एस टोलिया जो कहते हैं उस पर गौर करने की कई वजहें हैं। जैसे वे राज्य के अहम ओहदों पर रहे और वे इस पृथक राज्य के उस हिस्से पिथारौगढ़ के मूल निवासी हैं, जिसके लिए आज भी देहरादून की यात्रा उतनी ही मुश्किल है, जितनी लखनऊ या दिल्ली की। टोलिया कहते हैं, 'यदि पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा को नए राज्य के गठन का आधार माना जाय तो ये दस साल एक बड़ी सीमा तक असपफलता के ही वर्ष कहे जाएंगे।' डॉ टोलिया राजनीतिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच गंभीर संवादहीनता व आने वाले दिनों में गंभीर वित्तीय संकट की ओर इशारा करते हैं।
जागरण समूह का टेबलायड अखबार 'आई नेक्स्ट' के कुणाल वर्मा राज्य में पॉवर प्रोजेक्ट को लेकर हो रही राजनीति पर सवाल उठाते हुए एक रिपोर्ट में कहते हैं, 'यह विकास की कड़वी सच्चाई है, जिसमें ख्वाबों के आशियानों के उजड़ने का दर्द है। पलायन की राह है। बर्बादी का दंश है। सरकार की अदूरदर्शिता और पर्यावरण संरक्षण की राजनीति है। साथ ही एक ऐसा सवाल जो उत्तराखंड की युवा पीढ़ी सरकार से पूछ रही है। क्या यही विकास का सच है?‘
इन निराशाजनक कतरनों से सवाल उठता है क्या इन दस वर्षों में उत्तराखंड अपनी राह भटक गया है? जैसे कुछ लोग इसके गठन के समय ही आशंकाएं जाहिर कर रहे थे। और क्या अपनी विषम भौगोलिकता के चलते यह हिमालयी राज्य भविष्य में दिल्ली के लिए नई चुनौती बनने जा रहा है?
बड़े अखबारों से इतर इस हिमालयी राज्य में क्या कुछ लिखा और सोचा जा रहा है, उससे उत्तराखंड की सीमाओं से बाहर लोगों को समझना जरूरी है। यह उन समूहों के लिए भी उतना ही जरूरी है जो तेलंगाना से लेकर गोरखालैंड व बुंदेलखंड तक अलग राज्य की लड़ाई लड़ रहे हैं। ताकि पता चल सके कि छोटे राज्य जरूरी नहीं कि विकास की गारंटी लिए ही पैदा होते हैं।
लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.    Comments (2)Add Comment  feedSubscribe to this comment's feed     ...
written by mayank rai, November 07, 2010
  deepak bhai ap senior journlist ho ye sabko pta hai such likhna vastav me aj k ghor arthvadi yug me muskil hai .kbhi kisi ka pressure to kbhi kisi ka .lekin mudda to hao ki pahad ke vikas ko lekar akhir kia kya gya .kas in 10 years me koi positive pahal hui hoti to pahad ki hariyali aur bhi damkti .       ...
written by ajay, November 07, 2010
  ये वही युगवाणी है जिसके मालिकों ने इसी उत्तराखंड में कुछ अरसा पहले एक मुख्यमंत्री कोष से मोटी धनराशि सहायता के रूप में वसूल की है। आर.टी.आई. में इसका खुलासा हो चुका है। ताज्जुब है कि एक मुख्यमंत्री से सहायता के नाम पर धन बटोरने वाले अब खुद को निष्पक्ष दर्शाने के लिए कीचड भी उछालने लगे हैं.... कुछ तो शर्म करो। पत्रकारिता को वसूली का जरिया तो मत ही बनाओं।      http://bhadas4media.com/print/7264-2010-11-07-12-58-20.html

Jagmohan Azad

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सबका हित’ हमारा ‘मिशन’. डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक
 
 
मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने राज्य गठन की दसवीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर जारी अपने संदेश में प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई देते हुए आह्वान किया है कि इस पावन अवसर पर हम सब मिलकर राज्य आन्दोलनकारियों के सपनों के अनुरूप उत्तराखण्ड को देश का आदर्श राज्य बनाने का अपना संकल्प दोहराएं। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने दैवीय आपदा में मृत लोगों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की है। उन्होंने दैवीय आपदा में मृत लोगो को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सरकार ने इस वर्ष राज्य गठन कार्यक्रम को सादगी पूर्ण मनाने का निर्णय लिया है।
      मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने कहा कि राज्य गठन का मकसद इस क्षेत्र की विशिष्ट पहचान के अनुरूप राज्य का समग्र विकास करना था। इन उद्देश्यों में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने तथा मातृशक्ति व सभी वर्गों को उचित सम्मान देना शामिल था। इन्ही जनभावनाओं का सम्मान करते हुए तत्कालीन केन्द्र सरकार ने देश के 27वें राज्य के रूप में उत्तराखण्ड का गठन किया। राज्य गठन के उद्देश्यों और शहीदों के सपनों को मूर्त रूप देने के लिए कृत संकल्प हमारी सरकार ने जन कल्याणकारी कार्यक्रमों की पहल और तेज कर दी गई है। राज्य आन्दोलनकारियों के योगदान के प्रति कृतज्ञता अर्पित करने के लिए हमने उनके लिए कई योजनाएं शुरू की है। ‘सबका हित’ हमारा ‘मिशन’ है, जनता को ‘बुनियादी सुविधाएं’ उपलब्ध कराना हमारा ‘संकल्प’ है। ‘विजन 2020’ की परिकल्पना के अंतर्गत हमने प्रदेश के सर्वांगीण विकास की रूपरेखा निर्धारित की है। उन्होंने कहा कि समाज के अन्तिम छोर तक के व्यक्ति को विकास योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए शासन-प्रशासन तंत्र को चुस्त-दुरूस्त बनाने के लिए नई कार्य संस्कृति विकसित की है। शहरों एवं गांवों में बिजली और पानी की र्’ध आपूर्ति हो, दफ्तरों में कर्मचारी-अधिकारी, स्कूलों में अध्यापक तथा अस्पतालों में चिकित्सकों की उपस्थिति शत-प्रतिशत रहे, इस मिशन में हमने पूरे प्रदेश में व्यापक अभियान शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि अच्छा कार्य करने वाले कार्मिकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, और लापरवाही बरतने वाले कार्मिकों के विरूद्ध कठोर कार्रवाई भी की जा रही है।
      मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने कहा कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद भी नवोदित राज्य उत्तराखण्ड ने इतने कम समय में विकास के नये आयाम स्थापित किये हैं। पृथक उत्तराखण्ड राज्य गठन के समय सेे अब तक प्रदेश ने अवस्थापना एवं सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। नवोदित राज्यों में तो उत्तराखण्ड शीर्षस्थ है ही, राष्ट्रीय स्तर के विकास सूचकांक में भी उत्तराखण्ड कई क्षेत्रों में अग्रणी है। राज्य सरकार पूरे समर्पण और संकल्प के साथ प्रदेश के विकास में जुटी हुई है। 10 साल के इस नवोदित राज्य ने अपने 65 प्रतिशत वन और दुरूह भौगोलिकता के बावजूद राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास दर में देश में तीसरा शीर्षस्थ राज्य होने का गौरव हासिल किया है। प्रदेश की विकास दर राज्य बनने के समय 2.9 प्रतिशत थी। विकास दर में 3 गुना से अधिक वृद्धि करते हुए प्रदेश ने 9.5 प्रतिशत वृद्धि दर हासिल की है। आम आदमी का जीवन स्तर ऊंचा उठाने और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को प्रभावी तरीके से संचालित करने के फलस्वरूप राज्य ने बीस सूत्री कार्यक्रम में देश में प्रथम स्थान हासिल किया है। केन्द्रीय योजना आयोग के अध्ययन के अनुसार घरेलू पर्यटकों की संख्या की दृष्टि से हिमालयी राज्यों में उत्तराखण्ड प्रथम स्थान पर तथा देश के समस्त राज्यों में सातवें स्थान पर है। उत्तराखण्ड पूरे देश व दुनिया को प्राण वायु देता है साथ ही प्रदेश का 65 प्रतिशत भूभाग वन क्षेत्र है। राज्य सरकार ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कार्य किए हैं, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर योजना आयोग द्वारा भी सराहा गया है और योजना आयोग द्वारा अपने सर्वेक्षण में देश में बेहतर पर्यावरण संरक्षण के लिए उत्तराखण्ड को प्रथम स्थान पर रखा गया है।
 
 
केन्द्रीय योजना आयोग से उत्तराखण्ड राज्य के लिए लगातार बढ़ी हुई वार्षिक योजना स्वीकृत कराने में सरकार ने सफलता प्राप्त की है। वर्ष 2001-02 में योजना का आकार रूपये 1050 करोड़ था, जो वित्तीय वर्ष 2010-11 में बढ़कर रूपये 6800 करोड़ हो गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्य को 360 करोड़ रूपये की अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता भी मिली है। प्रदेश सरकार के सुदृढ़ वित्तीय प्रबन्धन से प्रभावित होकर तेरहवें वित्त आयोग से वर्ष 2010 में 1000 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रोत्साहन के रूप में मंजूर की गई है। राज्य गठन के समय लगभग 15 हजार रूपये प्रति व्यक्ति वार्षिक आय थी, जो वर्तमान में बढ़कर लगभग 42 हजार रूपये प्रति व्यक्ति हो गई है। राज्य बनने के बाद इन दस वर्षों में राज्य ने अपने राजस्व में अभूतपूर्व वृद्धि की है। राज्य गठन के समय जहां राजस्व प्राप्ति लगभग 200 करोड़ रूपये थी, वह आज बढ़कर 11342.45 करोड़ रूपये हो गई है। राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य मार्ग, मुख्य जिला मार्ग, ग्रामीण मोटर मार्ग, ग्रामीण हल्का वाहन मार्ग सहित वर्ष 2001-02 में कुल 982 किलोमीटर सडकें निर्मित थी। दस वर्षों में 21886 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया गया। सड़कों के लिए वर्ष 2001-02 में 170.16 करोड़ रूपये धनराशि का बजट स्वीकृत था, जबकि वर्ष 2010-11 तक 442.76 करोड़ रूपये की व्यवस्था की गई है। राज्य सरकार के प्रयासों से प्रदेश के स्कूलों में शत-प्रतिशत नामांकन सुनिश्चित किया गया है। जिसे राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है।
उत्तराखण्ड में प्रचुर मात्रा में जड़ी-बूटियां, सगंध पादप, फलदार वृक्ष हैं। जिनके बेहतर दोहन से बेमौसमी सब्जी, फल, फूल आदि क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि की गई है। जड़ी-बूटी की खेती के लिए इसकी लागत मूल्य का 50 प्रतिशत, अधिकतम एक लाख रूपये अनुदान की व्यवस्था है। जड़ी-बूटी को आमदनी का मजबूत जरिया बनाने के लिए ‘बागवानी विकास परिषद’ का गठन किया है। राज्य सरकार ऊर्जा के क्षेत्र में राज्य को आत्म निर्भर बनाने के लिए वचनबद्ध है। वर्ष 2001-02 में 997 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन बढ़कर वर्ष 2010-11 में 3100 मेगावाट है। 35 सालों से लम्बित बहुउद्देशीय जमरानी बांध परियोजना के लिए भी प्रभावी पहल की गई है। लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना पर भी कार्य शुरू किया गया है। हिमाचल प्रदेश के सहयोग से किशाऊ बांध परियोजना के लिए प्रभावी पहल की है। राज्य सरकार गांव-गांव, घर-घर रोशन करने के लिए कृतसंकल्प है। इस दिशा में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की गई है। राज्य गठन के समय जहां 12563 (79ः) गांवों में बिजली थी, वहीं वर्ष 2010-11 में यह बढ़कर 15545 (98.6ः) गांवों तक पहुंच गई है। इसी तरह 16667 ऊर्जीकृत टयूबवेल/पम्पसेट अब वर्ष 2010-11 में बढ़कर 22277 हो गये हैं। राज्य गठन के समय 7240 ग्रामीण पेयजल योजनाएं, 112 नलकूप, 10282 हैण्डपम्प, 63 नगरीय पेयजल तथा 44 पम्पिंग योजनाएं थी। दस वर्षों में 1547 ग्रामीण पेयजल योजनाओं का कार्य पूर्ण तथा 23 ग्रामीण पेयजल योजनाओं का कार्य प्रगति पर है। पेयजल योजनाओं के लिए राज्य गठन के समय 96.57 करोड़ रूपये की धनराशि थी, जो वर्ष 2010-11 में बढ़कर 421.58 करोड़ रूपये हो गई है। प्रदेश को शिक्षा हब बनाने की दिशा में भी सरकार ने सार्थक पहल शुरू की है। आज प्रदेश में एन.आई.टी. श्रीनगर, आई.आई.एम. काशीपुर, एम्स, आयुर्वेद विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना हो रही है। इसके साथ ही राज्य गठन के समय प्राथमिक विद्यालय 13594 थे, जो वर्ष 2010 में 15644 हो गये। इसी प्रकार राज्य गठन के समय उच्च प्राथमिक विद्यालय 3461 थे, जो वर्ष 2010 में 4295, राज्य गठन के समय हाई स्कूल 674 थे, जो वर्ष 2010 में 1099, राज्य गठन के समय में इंटरमीडिएट स्कूल 879 थे, जो वर्ष 2010 में 1371 हो गये है। देश दुनिया के नामी-गिरामी उद्योग उत्तराखण्ड में स्थापित हुए है। उत्तराखण्ड की ऑटो मोबाइल हब व फार्मा सिटी के रूप में पहचान बन रही है। युवाओं को रोजगार से जोड़ने की प्रभावी पहल की गई है। राज्य गठन के समय औद्योगिक प्रगति दर 1.9 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 26 प्रतिशत हो गयी है।                                 
 
राज्य गठन के समय पंूजी निवेश 95 करोड़ रूपये था, जो अब बढ़कर 26,000 करोड़ रूपये हो गया है। पंतनगर, हरिद्वार, सितारगंज एवं सेलार्कुइं में कई औद्योगिक आस्थान स्थापित हुए है। पहली बार विशेष पर्वतीय औद्योगिक प्रोत्साहन नीति लागू की गई है। राज्य गठन के समय 4202 लोगों को रोजगार के अवसर। इन दस वर्षों में लगभग 91443 लोगो को रोजगार के अवसर मिले है। उत्तराखण्ड राज्य में इन दस वर्षों में क्रांतिकारी बदलाव आया है। दूरस्थ क्षेत्रों में डॉक्टरों की तैनाती की गई है। श्रीनगर बेस चिकित्सालय को मेडिकल कालेज बनाया गया है। हल्द्वानी फॉरेस्ट ट्रस्ट मेडिकल कॉलेज का राजकीकरण कर दिया गया है। अल्मोड़ा तथा देहरादून में भी मेडिकल कॉलेज प्रस्तावित हैं। राज्य गठन के समय 1525 उपकेन्द्र, 23 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 235 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र थे। जो अब बढ़कर 1847 उपकेन्द्र, 55 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, 255 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र हो गये है। प्रदेश का पहला बी.एससी. नर्सिंग कालेज भी देहरादून में शुरू हो गया है। पौड़ी, अल्मोड़ा, टिहरी तथा पिथौरागढ़ में भी नर्सिंंग कालेज की स्थापना की कार्यवाही चल रही है। उत्तराखण्ड का 65 प्रतिशत भू भाग वनाच्छादित है। इनमें विभिन्न राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव विहार हैं। राज्य गठन के बाद प्रदेश में सघन वृक्षारोपण करकेे हरित आवरण में वृद्धि की गई है। वृक्षारोपण में औषधीय व सगंध पादपों पर भी जोर दिया गया है। नक्षत्र व बद्रीश वन वाटिका की प्रभावी पहल की गई है। राज्य गठन के समय 6839 वन पंचायतें गठित थी, जो आज बढ़कर 12079 हो गई हैं। राज्य सरकार के प्रयासों से कैम्पा योजना के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिए 830 करोड़ रुपये स्वीकृत। बाघों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा बाघ संरक्षण का कार्यक्रम शुरु किया गया, जिसके लिए देश के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी श्री महेन्द्र सिंह धोनी को ब्रांड एम्बेसडर नामित किया गया।
राज्य सरकार ने हवाई सेवा से पर्यटन स्थलों को जोड़ा है। हैली टूरिज्म को भी प्रोत्साहित किया गया है। राज्य गठन के समय पर्यटन अवस्थापना सुविधाओं के लिए मात्र 34.76 करोड रूपये धनराशि की व्यवस्था थी। जो अब बढ़कर 111.23 करोड़ रूपये हो गई है। राज्य बनने पर जहां देशी पर्यटकों की संख्या एक करोड़ 05 लाख थी, वहीं यह संख्या बढ़कर अब तक 2 करोड़ 31 लाख हो गई है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में शुरू की गई वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना में तब मात्र 62 उद्यमियों को लाभान्वित किया गया था, जिनकी संख्या अब बढ़कर 3147 हो गई है। वर्ष 2001-02 में जहां विदेशी पर्यटकों की संख्या 55 हजार थी, वहीं यह संख्या बढ़कर अब तक एक लाख़ 18 हजार हो गई है। पहली बार लगभग 21 हजार नौकरियों के द्वार वर्ष 2010 में स्थानीय बेरोजगारों के लिए खोले गये हैं, जिनमें 12 हजार समूह ‘ग’, 4 हजार शिक्षक तथा 490 विभिन्न औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में अनुदेशक के पद शामिल हैं। उत्तर प्रदेश से आने वाले 4 हजार पुलिस कर्मियों के स्थान पर स्थानीय चार हजार नौजवानों की भर्ती की जायेगी।
राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाखों की संख्या में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार-स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न विभागों में होने वाली समूह ‘ग’ की भर्ती के लिए अब राज्य के सेवायोजन कार्यालय में पंजीकरण अनिवार्य। समूह ‘ग’ के कई पद लोक सेवा आयोग की परिधि से बाहर। चयन प्रक्रिया में मुख्यतः उत्तराखण्ड की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भौगोलिक परिवेश से सम्बन्धित जानकारी की अनिवार्य। सरकार ने वर्षों से लंबित परिसम्पत्तियों के बंटवारे के सर्वमान्य समाधान के लिए पहली बार उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से बैठक करके लम्बित प्रकरणों के निस्तारण हेतु प्रभावी कार्रवाई की है। परिसम्पत्तियों के बंटवारे में गतिरोध खत्म होने के साथ ही राज्य में 4000 पुलिस कर्मियों के लिए भर्ती के रास्ते खुले है। पेंशनधारियों हेतु उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश को 1545 करोड़ रूपये देने के लिए सहमत हुई है। वर्ष 2010 में प्रारम्भ स्मार्ट हेल्थ कार्ड योजना के अन्तर्गत प्रदेश के सभी राजकीय कर्मचारियों तथा अवकाश प्राप्त कर्मचारियों को चिकित्सा प्रतिपूर्ति की सुविधा निजी क्षेत्र की सहभागिता से क्रियान्वित की जायेगी।
       
 
सरकारी भर्तियों में किसी भी प्रकार की अनियमितता को रोकने के लिए कारगर कदम उठाये गये हैं। पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई है। समूह ‘ग’ के पदों में साक्षात्कार की व्यवस्था को समाप्त किया गया है। अभ्यर्थियों को लिखित परीक्षा में उत्तर शीट की कार्बन प्रति परीक्षा के पश्चात अपने साथ ले जाने की अनुमति भी दी गई है। राज्य सरकार द्वारा किसानों के लिए खाद, बीज, कृषि उपकरण आदि के क्रय पर 50 से 90 प्रतिशत छूट की योजनाएं चलाई गयी हैं। गांव-गांव कृषक रथ के जरिये किसानों की समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। गांवों के समग्र विकास को प्रतिबद्ध राज्य सरकार ने इस दिशा में नायाब पहल करते हुए यह अभिनव ‘अटल आदर्श ग्राम योजना’ शुरू की है। इस योजना में ग्राम स्तर पर समस्त अवस्थापना सुविधाएं, मसलन बिजली, पानी, चिकित्सा स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल आदि मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करायी जायेगी। व्यापारियों की विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु व्यापार मित्र का गठन किया गया है। वैट प्रणाली में सरलीकरण किये जाने के कारण वर्ष 2008-09 में कुल व्यापारी 82619 पंजीकृत थे, जिनकी संख्या वर्ष 2009-2010 में माह जनवरी, 2010 तक बढ़कर 95303 व्यापारी पंजीकृत हुए है।
राज्य आन्दोलन में भी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी निभायी है। राज्य सरकार ने पहली बार महिलाओं को सम्मान देते हुए पंचायत स्तर पर उन्हें 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की है। नन्दादेवी कन्या योजना शुरू की गई है, जिसमें समाज की बालिकाओं की स्थिति में समानता लाने, कन्या भ्रूण हत्या रोकने तथा बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन हेतु बी.पी.एल. परिवारों को जन्म के उपरान्त बालिका के पक्ष में 5000 रुपये की धनराशि जमा करने की व्यवस्था की गई है। गौरा देवी कन्याधन योजना के तहत सरकार ने बी.पी.एल. परिवार की इंटरमीडिएट उत्तीर्ण बालिकाओं को 25 हजार रुपये की एफ.डी. देने का निर्णय लिया है। इससे बालिकाओं को उच्च शिक्षा में मदद मिलेगी। उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है, जिसनें अपने पूर्व सैनिकों का अभूतपूर्व सम्मान दिया है। सैनिकों, भूतपूर्व सैनिकों तथा उनके परिजनों को पूर्ण सम्मान प्रदान करने के उद्देश्य से अनूठी पहल शुरू की गई है। सेवानिवृत्त सैनिकों को दिये जाने वाली धनराशि में कई गुना वृद्धि। ‘जय जवान आवास योजना’ भी शुरू। इसके तहत बनने वाले आवास के लिए निःशुल्क भूमि देने का निर्णय लिया गया है। पर्यावरण संरक्षण में भूतपूर्व सैनिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने एवं उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने के लिये राज्य में चार इको टॉस्क फोर्स का गठन ।
जगमोहन आजाद

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सवा साल से बूंद-बूंद को तरस रहे 500 परिवार
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मदकोट (पिथौरागढ़): वर्ष 2009 की बरसात में क्षतिग्रस्त बल्थी की पेयजल लाइन की अभी तक मरम्मत नहीं होने से गांव के 500 से अधिक परिवार पानी के लिए तरस रहे हैं। विभाग सहित मंत्रियों से तक की गई फरियाद भी काम नहीं आयी। लिहाजा ग्रामीणों को तीन किमी दूर से पानी लाकर प्यास बुझानी पड़ रही है।

तहसील मुनस्यारी के गोरीछाल क्षेत्र में स्थित सबसे बड़े बल्थी गांव में सवा साल से पेयजल संकट बना हुआ है। वर्ष 2009 के अगस्त माह में अतिवृष्टि से बल्थी की पेयजल लाइन ध्वस्त हो गयी। इसे आपदा में दर्शाया गया। इस वर्ष की वर्षा बल्थी गांव में कहर बन कर टूटी। उल्लेखनीय है कि बल्थी गांव तहसील का सर्वाधिक उपजाऊ गांव माना जाता है। गांव में 500 से अधिक परिवार निवास करते हैं। गांव में माल्टा, संतरा, सेव, राजमा, आलू के अलावा धान और गेहूं की अच्छी उपज होती है। इस गांव के ग्रामीणों को सवा साल से पेयजल नसीब नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार पिछले वर्ष इसे दैवीय आपदा मानते हुए प्रस्ताव तैयार किये गए थे। आपदा मद से क्षेत्र में तमाम कार्य हुए, परन्तु पेयजल लाइन की मरम्मत नहीं की गयी। इस वर्ष की आपदा से अब पेयजल लाइन का नामोनिशान नहीं रह गया है। अभी तक तो गांव के आसपास कुछ जल स्रोत थे, जो अब सूखने लगे हैं। ठंड बढ़ने के साथ ग्रामीणों को अब तीन किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ रहा है। ग्रामीणों का अधिकांश समय पानी जुटाने में बीत रहा है। इससे नाराज ग्रामीणों ने पेयजल लाइन की मरम्मत शीघ्र नहीं होने पर सड़क पर उतरने की चेतावनी दी।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6886584.html

क्या आंकलन करें ये सब किसी को दिखाई नहीं दे रहा है की क्या हो रहा है,राजनीति के उन कुकर्मों की आँखों मैं तो नेता नाम की काली पट्टी बंधी हुयी है

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नहीं बना सपनों का उत्तराखंड
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अस्कोट: उत्तराखंड राज्य में अग्रणी भूमिका निभाने वाले उक्रांद नेता काशी सिंह ऐरी पृथक राज्य के दस साल के सफर पर खिन्नता प्रकट करते है। उन्होंने कहा कि जिस अवधारणा को लेकर उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई उस अवधारणा के अनुसार यहां काबिज सरकारों द्वारा एक ठोस कार्ययोजना बनाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया। नए राज्य में भी शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं हुआ।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6886456.html

बंध आँखों से सपने देखने का नतीजा यही होता है ,और सायद बनेगा भी नहीं

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पन्द्रह वर्ष से मुआवजे को भटक रहे हैं काश्तकार
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जिला मुख्यालय से सटी ग्राम पंचायत दरमोला के काश्तकारों को पन्द्रह वर्ष बाद भी रतनपुर-स्वीली-चौरास मोटर मार्ग से गदेरा नामक तोक में क्षतिग्रस्त भूमि एवं फसल का मुआवजा अभी तक नहीं मिल पाया है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि दो सप्ताह के अन्दर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो उन्हें मजबूरन न्यायालय के दरवाजे खटखटाने पडें़गे।

वर्ष 1994-95 में रतनपुर-स्वीली-चौरास मोटर मार्ग का निर्माण शुरू किया गया था। इस दौरान ग्राम पंचायत दरमोला के गदेरा नामक तोक में काश्तकारों की 50 नाली सिंचित कृषि भूमि सड़क के लिए कटिंग तथा मलबे से दब गई थी, लेकिन लोनिवि विभाग अभी तक काश्तकारों के मुआवजे का भुगतान नहीं कर पाया है जिससे काश्तकारों में भारी आक्रोश है।

ग्रामीणों का कहना कि इस संबंध में विभाग को कई बार लिखित व मौखिक रुप से अवगत भी कराया जा चुका है, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं हो पाई है। पूर्व सिंचाई मंत्री मातबर सिंह कंडारी के क्षेत्र भ्रमण के दौरान उन्हे भी लिखित रूप से इस संबंध में अवगत कराया गया था, जिस पर उन्होंने संबंधित विभाग को तत्काल कार्यवाही करने के निर्देश दिए थे, लेकिन विभाग द्वारा उस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। ग्रामीण एनएस कपरवान, अवतार सिंह, राजेन्द्र सिंह, वीर सिंह, मनवर सिंह, बुद्धि सिंह, रघुवीर सिंह, मोहन सिंह, पुष्कर सिंह, बलवीर सिंह का कहना है कि यदि दो सप्ताह के अन्दर मुआवजा भुगतान के संबंध कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो उन्हें मजबूरन न्यायालय की शरण लेनी होगी।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6882494.html

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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सबी सदस्यों को राज्य स्थापना दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये!

अमर शहीदों को शर्धांजलि जिन्होंने उत्तराखंड राज्य के लिए अपने प्राण निछावर किये! लेकिन दुःख हुवा शाहीदो का सपनो का राज्य अभी भी नहीं बन पाया!

खूब लूट है उत्तराखंड!


जगमोहन जी आप चिंता मत करो!

हमारे मुख्या मंत्री को शीघ्र नोबल पुरूस्कार मिलेगा !


 

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