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Are you Happy with development taken place during these 10 Yrs in Uttarakhand?

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Voting closed: August 06, 2013, 12:06:19 PM

Author Topic: Uttarakhand now one Decade Old- दस साल का हुआ उत्तराखण्ड, आइये करें आंकलन  (Read 28842 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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bhishma kukreti to Extreme_Uttran.
show details Nov 13 (1 day ago)
frombhishma kukreti <bckukreti@gmail.com>

                                             
Need for Pavitr Pahadi Andolan
Thanks for raising such vital and important issue in the forum
The biggest problem of many issues which, are not being tackled by the way it had to be.
After Uttarakhand   formation, everybody became lethargic that government will do every work   including cleaning of houses in villages.
The biggest irony is   that the Uttarakhand andolan would have evolved with newer sphere and   shape. however, Uttarakhand movement stopped just after formation of new   state . While, there is always need of continuation of same movement in   other shape to find the ways and means for better state or concept ,   which did not happen in case of Uttarakhand, Chhatishgarh or Jharkhand.
There   is a specific need of Pavitr Pahadi Andolan to fulfill the dream of   Uttarakhand movement seen by people before formation of Uttarakhand
This Pavitr Andolan should be free from beaten path, away from the negative shadow of
UttarpradeshIsm[/u][/b], far away from mentality of plains but innovative, creative , ingenious but indigenous, and fit for hills of uttarakhand.[/font][/size]
There is urgent need of Pavitr Pahadi Andolan (  together as in pahad ) for and within and for  migrated Uttarakhandi as before formation of the state .
2010/11/9 M S Mehta <msmehta@merapahad.com>         
10 Yrs of Uttarakhand - यानी एक दसक का उत्तराखंड![/b][/u]

  दोस्तों,

तो आज उत्तराखंड हुवा पूरे दस साल यानी एक दसक का   उत्तराखंड! हार्दिक शुभकामनाये आप सब को इस अवसर पर और नमन उन शहीदों को   जिन्होंने राज्य निर्माण में अपनी प्राणों की आहुति दी!

सवाल आज भी   वही, समस्याए आज भी जिनके लिए राज्य का निर्माण किया गया था! क्या यह १०   साल का उत्तराखंड अभी एक बच्चे के तरह चलने लायक हुवा! मुझे लगता
नही  फिर भीआपकी राय आमंत्रित है!  रिपोर्ट देखिये
 
http://www.merapahadforum.com/development-issues-of-uttarakhand/uttarakhand-now-one-decade-old/
 
We solicit your views.

Regards,


एम् एस मेहता

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Now Honorable CM Says this :

Do you agree with this?
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          सीएम ने उपलब्धियां गिनाई, गवर्नर ने जमीन दिखाईदेहरादून, जागरण संवाददाता। राज्य स्थापना व्याख्यानमाला के तहत टाटा   समूह के चेयरमैन रतन नवल टाटा के व्याख्यान से पूर्व राज्य के मुखिया डा.   रमेश पोखरियाल निशंक ने दस वर्ष की अल्प आयु में राज्य द्वारा हासिल की गई   उपलब्धियां गिनाई, तो राज्यपाल माग्र्रेट आल्वा ने इस लंबी अवधि के बाद भी   मूलभूत सुविधाओं से जुड़े जनहित के कई अनसुलझे सवाल उठाकर सभी को जमीनी   हकीकत से रूबरू कराया।
 राज्य स्थापना व्याख्यानमाला के दौरान टाटा समूह के चेयरमैन रतन नवल   टाटा '21वीं सदी: संभावनाएं व चुनौतियां' विषय पर बोले। इससे पूर्व   मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक व राज्यपाल माग्र्रेट आल्वा के संबोधन   कहीं न कहीं राज्य के मौजूदा आर्थिक व सामाजिक हालात की समीक्षा के लिहाज   से एक-दूसरे के पूरक नजर आए। मुख्यमंत्री का संबोधन जहां छोटे से अरसे में   राज्य द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों से परिपूर्ण था। वहीं, राज्यपाल के   संबोधन में राज्य गठन के दस साल बाद भी जनता की अधूरे सपनों का समावेश रहा।   
 मुख्यमंत्री डा. निशंक ने कहा कि वर्ष 2000 में 2.9 प्रतिशत विकास दर   वाले नवोदित राज्य ने 2009 तक आते-आते 9.41 प्रतिशत की विकास दर हासिल की   है। योजना आयोग के सर्वे में भी विकास दर की गति के मामले में उत्ताराखंड   अव्वल आया है। इसी तरह प्रदेश की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय भी इन दस सालों   में 14300 रुपये से बढ़कर 42 हजार रुपये तक पहुंच चुकी है। राज्य की यह   प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है। उन्होंने कहा कि कर राजस्व   के मामले में भी राज्य 165 करोड़ रुपये बढ़कर 3000 करोड़ रुपये तक पहुंच   चुका है।
 डा. निशंक ने श्री रतन टाटा से ऐसे नवोदित राज्य के विकास में   मैनेजमेंट गुरू की भूमिका निभाने का आग्रह किया। उधर, राज्यपाल माग्र्रेट   आल्वा ने इन उपलब्धियों की सराहना करते हुए राज्य के जमीनी हालात की ओर   फोकस किया। श्रीमती आल्वा ने बताया कि राज्य गठन के वक्त उत्ताराखंड को   बिजली के मामले में सरप्लस स्टेट का दर्जा हासिल था, लेकिन आज डेफिसिट   स्टेट बन गया है। गांव व शहर और पहाड़ व मैदान के बीच एक गहरी 'खाई' आज भी   मौजूद है। दूरस्थ पर्वतीय इलाकों में लोगों को आज भी मूलभूत सुविधाएं   मयस्सर नहीं।
 गांव-गांव में स्कूल हैं, लेकिन शिक्षक नहीं। पहाड़ में अस्पताल हैं,   लेकिन डाक्टर वहां जाना नहीं चाहते। सुदूरवर्ती इलाकों में गांव हैं, लेकिन   सड़क नहीं। लोग शिक्षित हो रहे हैं, लेकिन गुणवत्ता सुधार की गुंजाईश बाकी   है। यह तमाम चुनौतियां हैं, जिनसे इस युवा राज्य को निपटना है। जाहिर है   इसके लिए सुप्रशिक्षित मैनपावर की कमी को भी पूरा करना होगा।
   
Source : http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6909699.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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                रसोई गैस एजेंसी पर हंगामा
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 घनसाली,  निज प्रतिनिधि : चार माह से गैस किल्लत से जूझ रहे घनसाली वासियों ने  एजेंसी में पहुंचकर जमकर हंगामा काटा तथा विभाग के खिलाफ प्रदर्शन किया।  उन्होंने एक सप्ताह के भीतर रसोई गैस उपलब्ध न होने पर आंदोलन की चेतावनी  दी है।

विदित हो कि विकासखंड भिलंगना में लोग पिछले चार माह से रसोई गैस की  किल्लत से जूझ हैं। गैस न मिलने से लोग एक बार फिर ईधन के लिए जंगलों की  ओर रुख कर रहे हैं। लोग सिलेंडर लेकर एजेंसी में आते हैं, लेकिन हर बार  उन्हें खाली हाथ वापस लौटना पड़ रहा है। दीपावली में रसोई गैस उपलब्ध न  होने के कारण उपभोक्ताओं ने एजेंसी में तोड़फोड़ भी की थी, लेकिन उसके बाद  भी विभाग ने गैस उपलब्ध नहीं करवाई।
 नाराज लोगों ने मंगलवार को पुन: गैस  एजेंसी में पहुंचकर हंगामा काटा और एजेंसी के खिलाफ प्रदर्शन किया।  ग्रामीणों का आरोप है कि होटलों में तो धड़ल्ले से घरेलू गैस का उपयोग किया  जा रहा है लेकिन उपभोक्ताओं को इससे वंचित रखा जा रहा है।

जनप्रतिनिधियों का कहना
घनसाली: पूर्व ब्लाक प्रमुख धनीलाल शाह, लक्ष्मी प्रसाद जोशी, जसवीर  नेगी, विकास सेमवाल आदि का कहना है कि इस समस्या को लेकर प्रशासन तथा गैस  एजेंसी के अधिकारियों को भी कई बार लिखित व मौखिक रूप से अवगत कराया जा  चुका है, लेकिन वह इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। उन्होंने शीघ्र गैस  उपलब्ध न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
घनसाली में मांग व आपूर्ति की स्थिति
मांग- 7500 सिलेंडर प्रतिमाह
घरेलू कनेक्शन- 2100
वर्तमान में आपूर्ति हो रही- 3750
व्यवसायिक कनेक्शन- 87
पूर्ति विभाग का कहना
घनसाली: जिलापूर्ति अधिकारी निधि रावत का कहना है कि प्लांट से लगातार  गैस की आपूर्ति कम होने से यह परेशानी पैदा हो रही है। शीघ्र ही गैस  आपूर्ति सुचारू की जाएगी तथा होटलों में रसोई गैस का उपयोग करने वालों के  खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
   
       
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6910216.html

विनोद सिंह गढ़िया

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अमर उजाला’ में प्रकाशित हो रही दस वर्ष का उत्तराखंड सीरिज पर एक पाठक ने प्रदेश के विकास पुरुषों के नाम एक पाती लिखी है। जिसे मैं फोरम के माध्यम से आप तक हू-ब- हू पहुंचा रहा हूँ।

विनोद सिंह गढ़िया

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दस बरस बाद भी हैं आधे-अधूरे हैं सपने

अपना राज्य बने हुए भले ही दस साल पूरे हो गए हैं, लेकिन पर्वतीय राज्य को लेकर जो सपने हमने देखे थे वे अभी अधूरे हैं। उत्तराखंड के मूर्त रूप में आने से पहले जब इसकी रूपरेखा तैयार की जा रही थी, उसी समय ही गैरसैंण को राजधानी बनाने पर विचार हो चुका था। लेकिन, लोगों की भावनाओं और जरूरतों पर राजनीतिक सत्ता इस कदर हावी हो गई कि राज्य बनने केसमय देखे गए सपने अभी तक पूरे नहीं हो सके।
सिर्फ देहरादून और आसपास केक्षेत्र पर ध्यान देने से राज्य के विकास की परिकल्पना नहीं की जा सकती। इस बात को इतने वर्षों में कोई भी सत्ताधारी पार्टी नहीं समझ सकी। हिमाचल और नेपाल केतराई वाले क्षेत्रों में जाकर देखें तो पता चलता है कि स्थिति क्या है। उत्तराखंड के लोगों को अपने राज्य की राजधानी तक पहुंचने के बजाए पास के प्रदेशों में जाना संतोषप्रद लगता है। कुमाऊं में तो अभी ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहां से देहरादून की अपेक्षा लखनऊ जाना अधिक सरल है। देहरादून को एक विकसित शहर की तरह बनाए रखा जाए। लेकिन, प्रदेश की राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिए। विकास केनाम पर इन क्षेत्रों में सिर्फ दयाभाव दिखाया जाता है। जब तक सत्ता में बैठे लोग यहां आकर प्रत्यक्ष रूप से लोगों का हाल नहीं जानेंगे, तब तक उनकी वास्तविकता समझ में नहीं आएगी। जब से उत्तराखंड अस्तित्व में आया और देहरादून को राजधानी के रूप में विकसित किया जाने लगा। यहां पर माफिया की भरमार होने लगी। दूसरे प्रदेशों से अपराध कर लोग यहां पनाह लेने लगे हैं। विकास की अंधी दौड़ में यहां की प्राकृतिक छटा को भी नुकसान पहुंचाने में भी लोग नहीं हिचक रहे हैं।
एक साहित्यकार के नाते मेरा मानना है कि अभी इस दिशा में भी उत्तराखंड में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। कांग्रेस के शासनकाल में साहित्य के विकास के लिए एक समिति का गठन जरूर किया गया था, लेकिन वह भी सिर्फ कामचलाऊ थी। उसके नाम पर पैसे का केवल दुरुपयोग ही हुआ। उत्तराखंड में साहित्य संरक्षण और संवर्धन केलिए साहित्य अकादमी की स्थापना की जाना चाहिए। वह ऐसी अकादमी हो जिस पर किसी भी मंत्रिमंडल के फेरबदल पर असर न पड़े। उसका अलग कोष हो, ताकि अपना निर्णय खुद ले सके।
 
प्रस्ुतति : पंकज प्रसू
http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From : Editor (Regional Reporter)

नौ नवंबर 2010 की मध्यरात्रि को भारत के नक्शे पर आया उŸाराखंड राज्य 10 वर्ष का हो गया। दहाई अंक पार कर
जाने का यह अवसर इस राज्य की राजनैतिक इच्छाशक्ति के मजबूत होने का अवसर होना चाहिए था, लेकिन अफसोस कि
ऐसी इच्छाशक्ति जैसा कुछ आज भी नहीं दिखाई देता। किसी भी बच्चे के 10 वर्ष का हो जाने तक का समय उसके
पालनहार और उसके आस-पास के अन्य लोगों के लिए सुखदाई होता है। बावजूद इसके कि उसके बड़े होने में कई
परेशानियां भी पालनहार भुगतते हैं।
10 वर्ष के उŸाराखंड को उसका वास्तविक स्वरूप आज भी नहीं मिल पाया। योजना आयोग ने इसे उदीयमान प्रदेश
बताया है। इस राज्य में निवेश की संभावना भी जताई है, लेकिन क्या करोड़ों का बजट पा लेना और यहां के भूगोल,
इतिहास, सभ्यता, वर्तमान को दरकिनार कर कोई भी ढांचा खड़ा कर लेना ही इस राज्य के विकास का पैमाना बन सकता
है?
10 वर्षों में भी उŸाराखंड के नीतिगत फैसले क्यों नहीं हो पाए हैं? विशुह् रूप से इस राज्य की आजीविका का स्रोत
वर्षों से कृषि और पशुपालन रहा है। जिसके लिए भूमि बंदोबस्त सबसे जरूरी मुद्दा यहां के योजनाकारों व राजनेताओं के
लिए होना चाहिए था। लेकिन इस दिशा में कोई सोचना भी नहीं चाहता। आज भी भूमि बंदोबस्त का न हो पाना यहां की
नौकरशाही व अफसरशाही की नीतियों को स्पष्ट करता है।
प्राकृतिक संसाधनों से लबरेज इस राज्य में संसाधनों का दुरुपयोग और दोहन खुले हाथों से हुआ है। जीवन के लिए
सबसे जरूरी संसाधन माना जाने वाला जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जिस पर विद्युत बनाने की गैर जरूरी तकनीकियों
को प्रश्रय दिया गया। विद्युत बनाना जरूरी है, लेकिन जब बिना नुकसान पाए ही ≈र्जा तैयार करने के प्रारूप हमारे पास
थे, उसके बावजूद हमने पहाड़ों को नेस्तनाबूद करने के तरीकों की ओर रुख किया है। जबकि गडोरा जैसे ≈र्जा उत्पन्न
करने के मॉडल इस राज्य के पास थे। फिर भी घने जंगलों के कटने, हजारों की आबादी को विस्थापित करने, सैंकड़ों गांवों
के ग्रामीणों को तिल-तिल मरने या गांव छोड़ने के लिए मजबूर करने के गैर जरूरी तरीकों को तवज्जा़े दी गई। मुआवजे
के नाम पर यहां के भोले-भाले ग्रामीणों को लालची बनाया गया है। यही नहीं आने वाली पीढ़ियों को उनकी पैतृक संपŸिा
से चंद रुपए देकर बेदखल कर दिया गया है।
यहां का युवा पढ़-लिखकर यहां के संसाधनों से आजीविका नहीं कमाना चाहता। वह जड़ी-बूटियों, कृषि या
पशुपालन को अपनी आजीविका का स्रोत नहीं बना सकता। वह इंजीनियर बनकर यहां के निर्माण का साझीदार नहीं हो
सकता। वह डॉक्टर बनकर पहाड़ की तरफ मुड़कर भी नहीं देखना चाहता। एक शिक्षक भी गांव में नहीं रहना चाहता। यहां
का युवा तो किसी तरह भारत के महानगरों में दिन-रात की नौकरी करना पसंद करता है। होटलों में बरतन धोना स्वीकार
करता है। ओवरटाइम करता है, लेकिन उŸाराखंड में रहकर स्वावलंबी नहीं बन पाता। हां! उŸाराखंड में रहने वाला युवा
ठेकेदारी का ख्वाब जरूर पाल रहा है, राजनीति में आना चाहता है, जहां से उसे ठेके मिल सकें।
उŸाराखंड की धरती पर पंतनगर जैसा कृषि विश्वविद्यालय होने के बावजूद आज तक उŸाराखंड के पहाड़ी परिक्षेत्र में
बेहतर कृषि के लिए कोई प्रयोगशाला या प्रÿिया तैयार नहीं हो पाई है, जिससे यहां का युवा अपने खेतों को लहलहाने के
लिए आगे आ सके। बच्चा जब स्वयं चलने फिरने से लेकर कपड़े पहनना सीख जाता है और अपने पैरों पर खड़ा हो जाता
है, तो उसके स्वावलंबन पर उसके पालनहार, सगे-संबंधी, नातेदार-रिश्तेदार सभी फूले नहीं समाते, लेकिन उŸाराखंड के
निवासी आज भी अपने विकास का रास्ता मैदान में ही ढूंढ रहे हैं।
स्थायित्व पाने की दशाओं को तो राज्य पूरा कर ही नहीं पाया है। राजधानी जैसे मसलों पर भ्रम की स्थितियां बनी हुई
हैं। आज भी राज्य व राज्य की जनता भ्रमित है। राजनेता पूर्वाग्रहों के साथ राजनीति कर रहे हैं। भ्रम और पूर्वाग्रह किसी भी
व्यक्ति, समाज और राज्य को विकास नहीं दे सकते।
10 वर्ष पूरे कर जाने का समय उत्सव मनाने के लिए पर्याप्त है, लेकिन बीती बरसात उŸाराखंड को इतने बड़े घाव दे
गई है, जिन्हें भरने में 10 साल और लग सकते हैं, लेकिन क्या इस राज्य के हुक्मरानों ने इस त्रासदी से कुछ सबक लिया
है? हमारे योजनाकार क्या अब सोच पाएंगे कि इस कदर भौगोलिक सुंदरता लिए क्षेत्र की संवेदना से मेल खाती निर्माण
शैली कैसे तैयार की जा सके? यहां के नौजवान को उसके हक-हकूकों के साथ कैसे रोजगार दिलाया जा सके? इस राज्य
के पशुपालन और कृषि को कैसे बचाया जा सके? सबसे अधिक यह कि इस राज्य को जनविहीन होने से कैसे रोका जा
सके? यह राज्य बेहद सुंदर है। जिसे समृह् किए जाने का स्वप्न आज भी पूरा किया जा सकता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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From : Regional Rporter.

हेम कांडपाल

उŸाराखण्ड राज्य आन्दोलन के शहीदों की शहादत
व आम जनता, शिक्षक-कर्मचारी, पूर्व सैनिकों, व्यापारियों,
छात्रों तथा मातृशक्ति के सामूहिक संघर्ष के फलस्वरुप 9
नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आए उŸाराखण्ड राज्य
निर्माण की पृष्ठभूमि में जन आन्दोलनों का एक लम्बा ÿान्तिकारी इतिहास रहा है। यह बात दीगर है कि राज्य बनने के नौ वर्ष बाद भी आम जनता मूलभूत जनसमस्याओं से जूझते हुए खुद को ठगा सा महसूस कर रही है। हालांकि आजादी के महज पांच वर्ष बाद ही पृथक राज्य की मांग के लिए सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, परन्तु इस दिशा में निर्णायक मोड़ 1994 के ऐतिहासिक आन्दोलन के बाद ही आया। 17 जून 1994 को मुलायम सिंह यादव की सरकार के शिक्षण संस्थाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की। उŸाराखण्ड में इस अध्ािसूचना के विरोध्ा से शुरु हुआ आन्दोलन राज्य आन्दोलन की मांग पर केन्द्रित हो गया। 1 सितम्बर 1994 को खटीमा में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाई। जिसमें सात लोग शहीद हो गए। खटीमा कांड के विरोध्ा में 2 सितम्बर को मसूरी में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा चलाई गई, जिसमें सात अन्य आन्दोलनकारी शहीद हुए। राज्य की मां ग को ले क र रै ल ी मे ं जा रहे आन्दोलनकारियों पर दो अक्टूबर की रात से सुबह तक निरंकुश पुलिस द्वारा किए गए बर्बर अत्याचार, महिलाओं के साथ अभद्रता, बलात्कार व जघन्य गोली कांड में

पंकज त्यागी, ओमपाल, रामगोपाल, अतुल त्यागी,
सूर्यप्रकाश थपलियाल, राजेश लखेडा़ , राजेश नेगी, रवीन्द्र
रावत, अशोक कुमार, सतेन्द्र चौहान व गिरीश भद्री सहित
कुल ग्यारह लोग शहीद हो गए।

इस घटना के बाद तो जैसे पूरे उŸाराखण्ड में भूचाल सा आ गया। उŸोजित उŸाराखण्ड वासी इस घटना के विरोध्ा व राज्य की मांग को लेकर सपरिवार सड़कों पर उतर आए। उŸाराखण्ड की जनता ने इस घटना के लिए मुज∂फरनगर के तत्कालीन डी.एम. अंनत कुमार व पुलिस अध्ािकारी बुआ सिंह को जिम्मेदार मानते हुए कठोर सजा देने की मांग की। 10 नवम्बर 1995 को श्रीयंत्र टापू पर आन्दोलन के दौरान यशोध्ार बेंजवाल व राजेश रावत शहीद हुु ए, जबकि अन्य आन्दोलनकारियों की पानी की तेज ध्ाार में बहने से बचा लिया गया। 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रध्ाानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने लालकिले की प्राचीर से उŸाराखण्ड के गठन की घोषणा की। 24 अप्रैल 1997 को प्रदेश की मायावती सरकार ने अलग राज्य का प्रस्ताव तीसरी बार केन्द्र को भेजा।

15 अगस्त 1997 को प्रध्ाानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने लालकिले की प्राचीर से राज्य गठन का आश्वासन दिया। 3 अगस्त 1998 को भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के मंत्रीमंडल ने राज्य गठन को मंजूरी दी। 7 दिसम्बर 1999 को भाजपा सरकार ने पुनः सŸाा में आने

पर राज्य विध्ोयक को मंजूरी दी। इसके बाद 1 अगस्त 2000 को लोकसभा ने 10 अगस्त को राज्य सभा में विध्ोयक को स्वीकृति प्रदान की। राष्टन्न्पति द्वारा 28 अगस्त 2000 को राज्य गठन की अध्ािसूचना जारी की गई, 9 नवम्बर 2000 को पृथक उŸारांचल राज्य अस्तित्व में आया। इसी तिथि को राज्य के पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला
ने नित्यानन्द स्वामी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई,
जबकि 10 नवम्बर को अशोक ए. देसाई ने नैनीताल में
उच्च न्यायालय के न्यायाध्ाीश की शपथ ली।
राज्य आन्दोलन के दौरान खटीमा, मसूरी, श्रीयंत्र
टापू व मुज∂फरनगर के शहीदों के अलावा कई अन्य
आन्दोलनकारी भी शहीद हुए, जिनमें कोटद्वार में राकेश
देवरानी व पृथ्वी सिंह बिष्ट नैनीताल में, प्रताप सिंह बिष्ट
Ωषिकेश में, सूर्य प्रकाश पौड़ी में, जोगासिंह दुग्गल,
विद्यादŸा, जीत सिंह गुरुंग, विजयानन्द जुयाल व नवीन
बहुगुणा तथा ≈खीमठ में अशोक कुमार सहित कुल 43
आन्दोलनकारी शहीद हुए।
राज्य प्राप्ति के बाद भी शहादत का सिलसिला जारी
है। पहले उŸाराखण्डवासी राज्य निर्माण की लड़ाई लड़
रहे थे। अब राज्य की स्थाई राजध्ाानी गैरसैंण में बनाने को
लेकर आन्दोलित है। इसी मांग को लेकर बेनीताल
;चमोलीद्ध में आमरण अनशन के दौरान शहीद बाबा मोहन
उŸाराखण्डी ने 9 अगस्त 2004 को अपने प्राणों का उत्सर्ग
किया। बाबा की शहादत के बाद महिला मंच के तत्वावध्ाान
में 25 सितम्बर से ÿमिक व 2 अक्टूबर से आमरण
अनशन, ध्ारना-प्रदर्शन व बन्द का सिलसिला चला।
उŸारांचल राज्य की राजध्ाानी कहां और कब बनेगी? यह
तो आने वाला समय ही बताएगा, परन्तु फिलहाल राज्य
बनने के 10 वर्ष बाद भी आदर्श राज्य का आम जनता का
सपना तार-तार होता नजर आ रहा है। जनता के हित-लाभांे
से जुड़े अहं मुद्दे हाशिए पर चले गए, विकास और
रोजगार की दिशा में कुछ होता नहीं दिख रहा है। भ्रष्टाचार
और कमीशनखोरी की प्रवृŸिा बेलगाम बढ़ रही है। राजस्व
बढ़ोतरी के नाम पर देशी-अंग्रेजी शराब के ठेके गांव-गांव
तक पहुंचा दिए गए हैं। Ωषि-मुनियों की तपोभूमि में
माफिया संस्कृति को बढ़ावा देने का षड्यंत्र चल रहा है।
जनाध्ाार विहीन कुछ छुुटभैय्या नेता प्रान्तीय पदाध्ािकारी
बन गए हैं और कुछ सरकारी बंगलों, कारों व लाल बŸाी
में घूमते हुए अपनी सरकारों के गुणगान में मशगूल हो गए,
परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में निराश आम उŸाराखण्डी
अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। लोगों का कहना है
कि राज्य तो बन गया है, परन्तु उŸाराखण्ड के शहीदों के
सपनों का राज्य बनना अभी बाकी है। राज्य बनने के दस
वर्ष बाद भी मूलभूत समस्याओं से जूझते आम उŸाराखण्डी
अपने अध्ािकारों की लड़ाई के लिए एक और संघर्ष की
उध्ोड़बुन में जुटते दिखाई दे रहे हैं।
उŸाराखण्ड राज्य आन्दोलन के शहीदों को शत् शत्
नमन।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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If we look back and make analysis of 10 yrs of Uttarakhand in terms of development. Its only gives a lot pain, dis-appointment on the progress. The objective behind formation of Uttarakhand state was fast development of hills and to generate enough sources of employment thereby mitigating the high rate of migration from hills. Unfortunately, nothing such could happen because of direction less development policy and lack of vision to keep the state in the track of development.

There have been innumerable of great personalities coming from the soil of high hills of Uttarakhand but so far we have able to see Administrative like Narendra Modi (Gujrat), Nitish Kumar (Bihar) and Late Mr Parmar of Himanchal.

Uttarakhand is now only hoping for such a person who would be known as “Himalaya Developer… Vikas Purush.

Devbhoomi,Uttarakhand

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मंहगाई रोकने मे सरकार असफल
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केंद्र सरकार ने अपने जनविरोधी नीतियों के कारण आम आदमीं को भूखमरी के कगार पर ला दिया है। यह बात भाकपा मा‌र्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी के उत्तराखंड प्रभारी राजा बहुगुणा ने जिला कमेटी की बैठक को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मजदूरों और किसानों को आंदोलन तेज करना होगा। इस अवसर पर गिरिजा पाठक, बहादुर सिंह जंगी, केके बोरा, मानसिंह पाल, आनंद सिंह सिजवाली समेत पार्टी के कई वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7186851.html

Anil Arya / अनिल आर्य

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 अमर उजाला द्वारा प्रकाशित "उत्तराखंड उदय" - एक दशक की यात्रा (२००० से २०१०), यह किताब कल ही मैंने खरीदी है और मुझे उत्तराखंड प्रेमियों के लिए ये पुस्तक काफी उपयोगी लग रही है. The most valuable things are history since 1815 & latest updated important contact details. Pt. G.B. Pant & Pt. Nehru’s picture in a holi occasion is also available. I recommend this book to all Uttarakhand lovers.    

 

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