From : Regional Rporter.
हेम कांडपाल
उŸाराखण्ड राज्य आन्दोलन के शहीदों की शहादत
व आम जनता, शिक्षक-कर्मचारी, पूर्व सैनिकों, व्यापारियों,
छात्रों तथा मातृशक्ति के सामूहिक संघर्ष के फलस्वरुप 9
नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आए उŸाराखण्ड राज्य
निर्माण की पृष्ठभूमि में जन आन्दोलनों का एक लम्बा ÿान्तिकारी इतिहास रहा है। यह बात दीगर है कि राज्य बनने के नौ वर्ष बाद भी आम जनता मूलभूत जनसमस्याओं से जूझते हुए खुद को ठगा सा महसूस कर रही है। हालांकि आजादी के महज पांच वर्ष बाद ही पृथक राज्य की मांग के लिए सुगबुगाहट शुरू हो गई थी, परन्तु इस दिशा में निर्णायक मोड़ 1994 के ऐतिहासिक आन्दोलन के बाद ही आया। 17 जून 1994 को मुलायम सिंह यादव की सरकार के शिक्षण संस्थाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण की शुरुआत की। उŸाराखण्ड में इस अध्ािसूचना के विरोध्ा से शुरु हुआ आन्दोलन राज्य आन्दोलन की मांग पर केन्द्रित हो गया। 1 सितम्बर 1994 को खटीमा में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाई। जिसमें सात लोग शहीद हो गए। खटीमा कांड के विरोध्ा में 2 सितम्बर को मसूरी में हुए प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा चलाई गई, जिसमें सात अन्य आन्दोलनकारी शहीद हुए। राज्य की मां ग को ले क र रै ल ी मे ं जा रहे आन्दोलनकारियों पर दो अक्टूबर की रात से सुबह तक निरंकुश पुलिस द्वारा किए गए बर्बर अत्याचार, महिलाओं के साथ अभद्रता, बलात्कार व जघन्य गोली कांड में
पंकज त्यागी, ओमपाल, रामगोपाल, अतुल त्यागी,
सूर्यप्रकाश थपलियाल, राजेश लखेडा़ , राजेश नेगी, रवीन्द्र
रावत, अशोक कुमार, सतेन्द्र चौहान व गिरीश भद्री सहित
कुल ग्यारह लोग शहीद हो गए।
इस घटना के बाद तो जैसे पूरे उŸाराखण्ड में भूचाल सा आ गया। उŸोजित उŸाराखण्ड वासी इस घटना के विरोध्ा व राज्य की मांग को लेकर सपरिवार सड़कों पर उतर आए। उŸाराखण्ड की जनता ने इस घटना के लिए मुज∂फरनगर के तत्कालीन डी.एम. अंनत कुमार व पुलिस अध्ािकारी बुआ सिंह को जिम्मेदार मानते हुए कठोर सजा देने की मांग की। 10 नवम्बर 1995 को श्रीयंत्र टापू पर आन्दोलन के दौरान यशोध्ार बेंजवाल व राजेश रावत शहीद हुु ए, जबकि अन्य आन्दोलनकारियों की पानी की तेज ध्ाार में बहने से बचा लिया गया। 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रध्ाानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने लालकिले की प्राचीर से उŸाराखण्ड के गठन की घोषणा की। 24 अप्रैल 1997 को प्रदेश की मायावती सरकार ने अलग राज्य का प्रस्ताव तीसरी बार केन्द्र को भेजा।
15 अगस्त 1997 को प्रध्ाानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने लालकिले की प्राचीर से राज्य गठन का आश्वासन दिया। 3 अगस्त 1998 को भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के मंत्रीमंडल ने राज्य गठन को मंजूरी दी। 7 दिसम्बर 1999 को भाजपा सरकार ने पुनः सŸाा में आने
पर राज्य विध्ोयक को मंजूरी दी। इसके बाद 1 अगस्त 2000 को लोकसभा ने 10 अगस्त को राज्य सभा में विध्ोयक को स्वीकृति प्रदान की। राष्टन्न्पति द्वारा 28 अगस्त 2000 को राज्य गठन की अध्ािसूचना जारी की गई, 9 नवम्बर 2000 को पृथक उŸारांचल राज्य अस्तित्व में आया। इसी तिथि को राज्य के पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला
ने नित्यानन्द स्वामी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई,
जबकि 10 नवम्बर को अशोक ए. देसाई ने नैनीताल में
उच्च न्यायालय के न्यायाध्ाीश की शपथ ली।
राज्य आन्दोलन के दौरान खटीमा, मसूरी, श्रीयंत्र
टापू व मुज∂फरनगर के शहीदों के अलावा कई अन्य
आन्दोलनकारी भी शहीद हुए, जिनमें कोटद्वार में राकेश
देवरानी व पृथ्वी सिंह बिष्ट नैनीताल में, प्रताप सिंह बिष्ट
Ωषिकेश में, सूर्य प्रकाश पौड़ी में, जोगासिंह दुग्गल,
विद्यादŸा, जीत सिंह गुरुंग, विजयानन्द जुयाल व नवीन
बहुगुणा तथा ≈खीमठ में अशोक कुमार सहित कुल 43
आन्दोलनकारी शहीद हुए।
राज्य प्राप्ति के बाद भी शहादत का सिलसिला जारी
है। पहले उŸाराखण्डवासी राज्य निर्माण की लड़ाई लड़
रहे थे। अब राज्य की स्थाई राजध्ाानी गैरसैंण में बनाने को
लेकर आन्दोलित है। इसी मांग को लेकर बेनीताल
;चमोलीद्ध में आमरण अनशन के दौरान शहीद बाबा मोहन
उŸाराखण्डी ने 9 अगस्त 2004 को अपने प्राणों का उत्सर्ग
किया। बाबा की शहादत के बाद महिला मंच के तत्वावध्ाान
में 25 सितम्बर से ÿमिक व 2 अक्टूबर से आमरण
अनशन, ध्ारना-प्रदर्शन व बन्द का सिलसिला चला।
उŸारांचल राज्य की राजध्ाानी कहां और कब बनेगी? यह
तो आने वाला समय ही बताएगा, परन्तु फिलहाल राज्य
बनने के 10 वर्ष बाद भी आदर्श राज्य का आम जनता का
सपना तार-तार होता नजर आ रहा है। जनता के हित-लाभांे
से जुड़े अहं मुद्दे हाशिए पर चले गए, विकास और
रोजगार की दिशा में कुछ होता नहीं दिख रहा है। भ्रष्टाचार
और कमीशनखोरी की प्रवृŸिा बेलगाम बढ़ रही है। राजस्व
बढ़ोतरी के नाम पर देशी-अंग्रेजी शराब के ठेके गांव-गांव
तक पहुंचा दिए गए हैं। Ωषि-मुनियों की तपोभूमि में
माफिया संस्कृति को बढ़ावा देने का षड्यंत्र चल रहा है।
जनाध्ाार विहीन कुछ छुुटभैय्या नेता प्रान्तीय पदाध्ािकारी
बन गए हैं और कुछ सरकारी बंगलों, कारों व लाल बŸाी
में घूमते हुए अपनी सरकारों के गुणगान में मशगूल हो गए,
परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में निराश आम उŸाराखण्डी
अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। लोगों का कहना है
कि राज्य तो बन गया है, परन्तु उŸाराखण्ड के शहीदों के
सपनों का राज्य बनना अभी बाकी है। राज्य बनने के दस
वर्ष बाद भी मूलभूत समस्याओं से जूझते आम उŸाराखण्डी
अपने अध्ािकारों की लड़ाई के लिए एक और संघर्ष की
उध्ोड़बुन में जुटते दिखाई दे रहे हैं।
उŸाराखण्ड राज्य आन्दोलन के शहीदों को शत् शत्
नमन।