उत्तराखंड मूल के क्रिकेट खिलाड़ी देश भर में धूम मचा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां आज तक क्रिकेट का बुनियादी ढांचा तक खड़ा नहीं हो पाया है. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, आइपीएल के पहले शतकवीर पीयूष पांडे, दिल्ली के आइपीएल खिलाड़ी उन्मुक्त चंद के साथ ही दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पंजाब समेत अनेक राज्यों की टीमों में उत्तराखंड मूल के खिलाड़ी खेल रहे हैं, लेकिन विडंबना देखिए कि उत्तराखंड की क्रिकेट अकादमियों को अब तक बीसीसीआइ की मान्यता नहीं मिल पाई है.
राज्य में क्रिकेट की एक मान्यता प्राप्त एसोसिएशन तक नहीं है. इसलिए उत्तराखंड की टीम रणजी ट्राफी जैसी क्रिकेट सीरीज तक में भाग लेने से वंचित है. काफी समय से बीसीसीआइ के अधिकारी उत्तराखंड का दौरा कर आश्वस्त कर रहे हैं, लेकिन यह भी हवाई वायदों से ज्यादा कुछ नहीं है.
महेंद्र सिंह धोनी मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के ल्वाली गांव के हैं तो पीयूष पांडे बागेश्वर और उन्मुक्त चंद पिथौरागढ़ से ताल्लुक रखते हैं. गढ़वाल एक्सप्रेस के नाम से विख्यात यहीं के पवन सुयाल दिल्ली से और राबिन बिष्ट राजस्थान से रणजी के लिए खेलते हैं.
मगर उत्तराखंड की यह क्रिकेट पौध अपने गृह राज्य से नहीं खेल सकती क्योंकि भाजपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेता भी अपनी-अपनी एसोसिएशन लेकर क्रिकेट के खैरख्वाह होने का दावा कर रहे हैं. सबको अपनी दुकान चलानी है और सब बीसीसीआइ की राज्य एसोसिएशन से संबद्धता की राह में रोड़ा बने हुए हैं. नतीजतन यहां क्रिकेट एसोसिएशन की मान्यता सियासत की भेंट चढ़ गई है.
इस सबके बावजूद राज्य के क्रिकेट-प्रेमी खिलड़ियों ने हार नहीं मानी है. उनका संघर्ष जारी है और राज्य के युवाओं की क्रिकेट के प्रति दीवानगी साफ नजर आती है. मैदानों की तो बात ही जाने दीजिए, यहां पहाड़ों पर भी आपको अगर कोई खेल दिखाई देगा तो वह क्रिकेट ही है.
क्रिकेट के लिए यहां लोगों के जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कई बार दूरदराज क्षेत्रों में आयोजित स्थानीय क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाली टीमों की संख्या 100 के आंकडे़ को पार कर जाती है. इस समय राज्य के 20 से अधिक खिलाड़ी दूसरे राज्यों की टीमों से जूनियर व सीनियर क्रिकेट टीम में खेल रहे हैं.
लड़के ही नहीं, उत्तराखंड की लड़कियां भी क्रिकेट में नाम कमा रही हैं. अल्मोड़ा की एकता बिष्ट राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य हैं और इस समय ऑस्ट्रेलिया के साथ विशाखापत्तनम में श्रृंखला खेल रही हैं. अकेले पंजाब की महिला क्रिकेट टीम में उत्तराखंड की चार लड़कियां खेल रही हैं.
इन उपलब्धियों के बावजूद यहां के युवा उत्तराखंड टीम से क्यों नहीं खेल सकते? वे दूसरे राज्यों में जाकर खेलने को विवश क्यों हैं? इस राज्य में क्रिकेट की शुरुआत 1937 में देहरादून से डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के गठन के साथ हुई. फिर यह एसोसिएशन पहले देहरादून और बाद में नैनीताल में गठित की गई.
देहरादून की डिस्ट्रिक्ट लीग को इस साल 61 साल पूरे हो गए हैं, जबकि नैनीताल की क्रिकेट लीग भी लगातार आयोजित होती रही है. भारतीय टीम के कई सितारे इससे पूर्व देहरादून में आयोजित होने वाले गोल्ड कप में खेल चुके हैं. खुद भारत के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दो बार गोल्ड कप में झारखंड की टीम से भाग लिया है.
इसके अलावा आर.पी. सिंह, सौरभ तिवारी, मोहम्मद कैफ, वीरेंद्र सहवाग, संजीव शर्मा, अजय शर्मा, विजय दाहिया, सौरभ तिवारी, जोगेंद्र शर्मा, रितेंदर सोढ़ी आदि भी इसमें भाग ले चुके हैं.
राज्य के क्लबों और एसोसिएशनों से जुड़े खिलाड़ी इस समय पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और दिल्ली जैसे राज्यों से खेल रहे हैं. यह सिर्फ बीसीसीआइ की मान्यता न मिलने के कारण है कि इन खिलाड़ियों को दूसरे राज्यों से खेलना पड़ रहा है.
बीसीसीआइ से मान्यता के सवाल पर दोनों प्रमुख एसोसिएशनों का रुख अलग है. उत्तराचंल क्रिकेट एसोसिएशन (यूसीए) के सचिव चंद्र्रकांत आर्य कहते हैं कि सन् 2000 में हमने रजिस्ट्रेशन के साथ बीसीसीआइ में मान्यता के लिए आवेदन किया था जिसके बाद 2001 में रत्नाकर शेट्टी, शरद दिवाकर और शिवलाल यादव की तीन सदस्यीय एफलिएशन कमेटी ने देहरादून का दौरा भी किया था.
2004 में दोबारा दौरा हुआ, लेकिन नए राज्यों को मान्यता देने के सवाल पर बीसीसीआइ में ही आपसी मतभेद थे. साथ ही वह यह चाहती है कि हम एक दूसरे एसोसिएशन (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) को भी थोड़ा प्रतिनिधित्व दें.
2011 में बीसीसीआइ की गवर्निंग काउंसिल ने इस मामले को सितंबर, 2012 तक के लिए टाल दिया. आर्य को उम्मीद है कि तब तक मान्यता मिल जाएगी. लेकिन दूसरी ओर क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के सचिव पी.सी. वर्मा का कहना है कि उन्होंने मान्यता के सवाल पर सीधे शशांक मनोहर से बात की थी, लेकिन यह सब बीसीसीआइ की बहानेबाजी है. वह जब चाहेगी, तभी मान्यता मिलेगी.
राज्य की दूसरी चार एसोसिएशनों को तो बीसीसीआइ पहले ही टरका चुकी है. मान्यता के सवाल पर 2009 में मुंबई और 2010 में दिल्ली में हुई बैठकों में भी इन दोनों एसोसिएशनों को ही बुलाया गया. लेकिन यूसीए का मानना है कि उसका दावा ज्यादा मजबूत है. आर्य कहते हैं, ‘यूसीए इकलौती ऐसी एसोसिएशन है, जिसके पास पूरे राज्य में अपनी बॉडी है. हम बीसीसीआइ की गाइडलाइन के मुताबिक ही काम करते हैं.’
बीसीसीआइ के कहने पर यूसीए ने सीनियर लेबल क्रिकेट बंद कर अब अंडर 14, 16, 19 और 22 पर फोकस करना शुरू कर दिया है. बकौल आर्य बीसीसीआइ सबसे अधिक पत्र व्यवहार भी उनसे ही करती है. लेकिन सीएयू के सचिव वर्मा भी बीसीसीआइ के पत्र दिखाते हैं.
इस धकमपेल से साफ जाहिर है कि उत्तराखंड के सितारे दुनिया के क्रिकेट के आकाश में चाहे जितनी चमक बिखेर रहे हों, यहां बीसीसीआइ से मान्यता की डगर अभी मुश्किल है.
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