Author Topic: Uttarakhand Suffering From Disaster - दैवीय आपदाओं से जूझता उत्तराखण्ड  (Read 70714 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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फिर गरजा वरुणावत, दहशत
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तीन दिन तक लगातार बारिश के बाद वरुणावत का भूस्खलन जोन फिर सक्रिय हो गया। सोमवार सुबह पर्वत से भारी मलबा व पत्थर गिरने से नगर क्षेत्र में दहशत फैल गई। हालांकि इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन बफर जोन में रहने वाले लोगों में दहशत का माहौल बना रहा। पर्वत के तांबाखाणी सुरंग की ओर के हिस्से पर भी मलबा गिर रहा है। उधर, पत्थर गिरने की सूचना पर प्रशासनिक अधिकारियों ने भी बफर जोन का जायजा लिया।

बता दें कि वरुणावत पर्वत से 24 सितंबर 2003 को ही भूस्खलन शुरू हुआ था। इसके बाद ट्रीटमेंट के नाम पर करीब पचास करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन अब भी पर्वत से जब-तब पत्थरों के गिरने का सिलसिला जारी है। सोमवार सुबह पर्वत से नौ बजे मस्जिद मोहल्ला व बस स्टैंड की ओर पत्थर गिरने से अफरा-तफरी मच गई। सूचना पर एसपी अरुण मोहन जोशी, एसडीएम एसएल सेमवाल व आपदा विशेषज्ञ देवेंद्र पेटवाल ने बफर जोन का जायजा लिया। हालांकि पत्थर गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इससे वरुणावत की तलहटी में रहने वाले लोग काफी घबरा गये हैं। उधर, पहाड़ी के तांबाखाणी हिस्से से भी मलबा गिरना जारी है। इससे गंगोत्री राजमार्ग पर सुरंग के जरिये ही आवागमन हो रहा है।

इस संबंध में जिलाधिकारी डॉ. हेमलता ढौंडियाल ने बताया कि पत्थर गिरने से किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि एहतियात के तौर पर सभी जगह नजर रखी जा रही है।

नहीं हुआ 'सूट ट्रीटमेंट'

उत्तारकाशी: वरुणावत ट्रीटमेंट के कार्य में सूट ट्रीटमेंट भी शामिल है। इसके लिये पहले पहाड़ी पर फंसे लूज मलबे को हटाया जाना था, लेकिन बफर जोन खाली न होने के कारण सूट ट्रीटमेंट का कार्य अभी तक नहीं हो सका है। करीब 17 करोड़ की लागत वाले इस कार्य के न होने से अब भी पहाड़ी पर फंसे मलबे के कारण खतरा बना हुआ है।

वरुणावत भूस्खलन, एक नजर-

-24 सितंबर 2003 को पहाड़ी के शीर्ष से रामलीला ग्राउंड की ओर भूस्खलन शुरू

-15 दिन तक लगातार भूस्खलन से तीस करोड़ रुपये की संपत्तिजमींदोज

-केंद्र सरकार की ओर से प्रभवितों की मदद व पहाड़ी के ट्रीटमेंट के लिये 250 करोड़ रुपये का पैकेज घोषित

-2 मई 2004 को टीएचडीसी के डिजाइन पर श्रृंग कंस्ट्रक्शन कंपनी ने ट्रीटमेंट कार्य शुरू किया

-चार वर्ष तक कई बार ट्रीटमेंट कार्य की अवधि बढ़ाई गई

-वर्ष 2008 में सूट ट्रीटमेंट को छोड़ शेष सभी कार्य लगभग पूरे

-मार्च 2008 में ही तांबाखाणी हिस्से में भूस्खलन से निजात पाने के लिये सुरंग का निर्माण पूरा

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दशज्यूला व चोपड़ा में गहराया खाद्यान्न संकट
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ढाई माह पूर्व हुई भारी बारिश से बंद मोटरमार्ग अभी तक नहीं खुला

चोपड़ा(रुद्रप्रयाग), निज प्रतिनिधि : जिले के दशज्यूला व चोपड़ा क्षेत्र में विगत ढाई माह से खाद्यान्न का संकट बना है। क्षेत्र को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग-काण्डई-कुरझण मोटरमार्ग के जगह-जगह क्षतिग्रस्त होने से लोगों के सम्मुख भारी दिक्कतें पैदा हो गई हैं। वहीं संबंधित विभाग अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

विगत 23 जून को भारी बारिश के चलते दशज्यूला व चोपड़ा क्षेत्र को यातायात से जोड़ने वाला रुद्रप्रयाग-चोपड़ा-काण्डई-कुरझण मोटरमार्ग कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो गया था। तब से अभी तक लगभग ढाई माह का समय बीत चुका है , लेकिन मार्ग की हालत जस की तस है जिसके चलते क्षेत्र के डेढ़ दर्जन से भी अधिक गांवों में हालत लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। खासकर खाद्यान्न व रसोई गैस का संकट गहराता जा रहा है। आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बंद पड़ी हुई है। जनरल मर्चेट की दुकानें भी खाली पड़ी हुई हैं, जिससे व्यापारियों का रोजगार भी बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। क्षेत्र के लोग किसी तरह पैदल ही पांच से छह किमी दूर रतूड़ा व चोपता बाजार से पीठ पर रोजमर्रा का सामान ले जा रहे हैं।

स्थानीय व्यापारी चोपड़ा राजेन्द्र पुरोहित, भारत भूषण, गजेन्द्र सिंह व विजय सिंह का कहना है कि खाद्यान्न व अन्य आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बंद पड़ी है जिससे उनका रोजगार ठप पड़ गया है। वहीं लोनिवि रुद्रप्रयाग के ईई राजेश पंत का कहना है कि मार्ग को सुचारु करने के प्रयास जारी हैं।

चोपड़ा व दशज्यूला क्षेत्र की प्रभावित ग्राम पंचायत-

गंधारी, चापड़, डुंग्री, देवलक, पाली, चापेड़ा, क्वली, कुरझण, काण्डई, धारकोट, जग्गी काण्डई, बेंजी काण्डई, वनथापला, महड़ काण्डई, थपलगांव, पाली, सणगूं, गडमिल, टेमना व जोंदला सहित अन्य।

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सत्यदेव सिंह नेगी

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उत्तराखंड में बाढ़ की मार
उत्तराखंड बाढ़ के कहर से कराह रहा है।
टिहरी डैम में जलस्तर में लगातार इजाफा और भारी बारिश ने उत्तराखंड में कहर बरपा रखा है।
डैम का जलस्तर 832 मीटर को पार कर चुका है। आसपास के चालीस गांवों पर मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं। टिहरी के उप्पू गांव के लोग जल समाधि की धमकी दे रहे हैं।
देहरादून, हरिद्वार, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, उधमसिंह नगर, चंपावत, पिथौरागढ़, नैनीताल और अल्मोड़ा के लाखों लोग बाढ़ से पीड़ित हैं। इन इलाकों में चारों ओर सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा है।
भारी बारिश से कई सड़कें टूट चुकी हैं, जिससे दिल्ली-नैनीताल, दिल्ली-हरिद्वार वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात ठप हो गया है।
उत्तराखंड में पिछले कई दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही है, जिससे कई सड़कें धंस गई हैं। कई जिलों में अनाज की आपूर्ति भी ठप हो गई है।
http://www.samaylive.com/regional-hindi/uttarakhand-hindi/99337.html

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टिहरी के 40 गांवों को बाढ़ का ख़तरा
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 टिहरी के 40 गांवों को बाढ़ का ख़तरा

उत्तराखंड में टिहरी डैम के पानी का स्तर 832 मीटर को पार कर चुका है।

बाढ़ की वजह से डैम का पानी लगातार बढ़ रहा है। इलाके में बाढ़ के कारण 40 गांवों का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मंगलवार को बाढ़ से प्रभावित उत्तराखंड के दौरे पर हैं।

उधर बाढ़ से प्रभावित टिहरी के उप्पू गांव के लोगों ने प्रशासन के बेरुखे रवैये से परेशान होकर जल समाधि लेने की धमकी दी है। डिहरी डैम का जलस्तर 832 मीटर के स्तर को छूने के बाद भी इलाके के कई गांवों का पुनर्वास नहीं हो पाया है। गांववालों के मुताबिक उनकी ज़मीन, मकान वगैरह सब कुछ टिहरी डैम झील में समा गए हैं। उनका कहना है कि इसके बाद भी प्रशासन उनके लिये कुछ नहीं कर रहा है।

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सोलानी नदी की बाढ़ में डूबा लक्सर
                                सोलानी नदी की बाढ़ में डूबा लक्सर                                                                                                                                           पानी के तेज बहाव के कारण सोमवार को हरिद्वार-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग को रुड़की के पास बंद कर दिया गया है।
हरिद्वार  के लक्सर, रयासी और गंगदासपुर क्षेत्रों में पानी भर गया है। गंगदासपुर  इलाके में सेना की मदद से 500 लोगों को निकाला गया है। सड़क पर पानी आने से  हरिद्वार-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग को रुड़की के पास बंद करना पड़ा है।  देहरादून से जाने वाली करीब आधा दर्जन ट्रेनों को भी निरस्त कर दिया गया  है। लक्सर में सोमवार को सोलानी नदी ने जबरदस्त कहर बरपाया।

सोमवार  तड़के गंगा की सहायक नदी सोलानी का पानी लक्सर के सौ से भी अधिक गांवों में  घुस गया। लक्सर का मुख्य बाजार भी जलमग्न हो गया। सोलानी की बाढ़ में जहां  सैकड़ों मवेशी बह गए हैं वहीं दर्जनों लोग लापता हैं। बाढ़ पीड़ितों को  सुरक्षित निकालने के लिए 80 बोट लगाई गई हैं। बचाव कार्य में जुटी सेना,  पीएसी व स्थानीय प्रशासन की टीमें अब तक छह हजार से भी अधिक  लोगों को  राहत शिविरों में पहुंचा चुकी हैं। इसके बावजूद हजारों ग्रामीण फंसे हुए  हैं। हरिद्वार में गंगा खतरे के निशान से आधा मीटर ऊपर बह रही है। टिहरी  बांध से छोड़ा गया पानी देर शाम तक यहां नहीं पहुंचा था। उधर पीपलकोटी के  पास बदरीनाथ राजमार्ग पर पत्थर गिरने से आईटीबीपी के जवानों समेत दस लोग  बुरी तरह जख्मी हो गए जबकि एक साधु की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।

हरिद्वार  में सोमवार को गंगा का जलस्तर कुछ घट गया। इसके बावजूद लोग टिहरी बांध से  पानी छोड़े जाने को लेकर सहमे रहे। भीमगौडा क्षेत्र में हजारों लोगों की  भीड़ बाढ़ की सूचना के लिए पहुंच गई। पथरी पावर हाउस में सिल्ट आने से  प्लांट बंद करना पड़ा। देर शाम तक टिहरी बांध का पानी हरिद्वार तक नहीं  पहुंचा था। लक्सर में डीएम, एसएसपी सहित कई आधिकारी राहत एवं बचाव कार्यों  में जुटे हुए हैं। सीमली, शिवपुरी, केशवनगर क्षेत्र भी बाढ़ की चपेट में आ  गए। लक्सर रेलवे स्टेशन पर भी ट्रैक पर दो से ढाई फीट पानी आ जाने से  ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया।

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टिहरी बांध सेना के हवाले                                                                              21/09/2010 04:00:00                                                                                                                                                                                                                                                                           फोंट साईज:         Decrease font         Enlarge font                                                                                                                     टिहरी बांध सेना के हवाले                                                                                                                                           टिहरी बांध की सुरक्षा अब सेना करेगी, सेना इसके साथ ही हरिद्वार में आई भीषण बाढ़ में राहत कार्य में भी हाथ बंटाएगी।
हालांकि  बांध की सुरक्षा का जिम्मा फिलहाल सीआईएसएफ के पास है, मगर आतंकी हमले के  अंदेशे को देखते हुए केंद्र सरकार ने सेना को भी वहां तैनात करने का फैसला  किया है। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निवास  (सात-रेसकोर्स) पर हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में इस आशय का निर्णय लिया गया।  बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार आपदा से जूझ रहे उत्तराखंड  की हरसंभव मदद करेगी।

सूत्रों के मुताबिक वरिष्ठ नेता लालकृष्ण  आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से उनके  आवास पर मुलाकात की। सूत्रों ने बताया कि बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री का  ध्यान खासकर टिहरी बांध की सुरक्षा की ओर दिलाया गया। इस पर प्रधानमंत्री  ने टिहरी बांध की सुरक्षा के लिए सेना तैनात करने की बात कही। इसके साथ ही  भूस्खलन, बाढ़ तथा चारधाम यात्रा में फंसे श्रद्धालुओं को सुरक्षित स्थान  तक पहुंचाने के लिए चार हेलीकाप्टर उपलब्ध कराने का आदेश दिया।

इस  बीच प्रदेश के मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने सोमवार को बताया कि सेना के दो  एमआई-17 व दो चेतक हेलीकॉप्टर राज्य सरकार को प्राप्त हो चुके हैं। इनका  उपयोग प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री वितरण में किया जाएगा। ध्यान  रहे मौसम सुधरने के बावजूद प्रदेश में स्थिति अभी सामान्य नहीं हो पाई है।  मुख्य सचिव ने सचिवालय में आहूत बैठक में कहा कि राज्य सरकार के पास आपदा  प्रभावितों को खाद्यान्न पहुंचाने के लिए पर्याप्त खाद्यान्न है, पर सडक़ों  के क्षतिग्रस्त होने से प्रभावितों तक राहत सामग्री नहीं पहुंच पा रही है। 

मगर अब सेना के हेलीकॉप्टर उपलब्ध होने से राहत सामग्री वितरण में  तेजी आएगी। उन्होंने लोक निर्माण विभाग को निर्देश दिया कि प्रभावित  क्षेत्रों तक खाद्यान्न पहुंचाने के लिए क्षतिग्रस्त सडक़ों की मरम्मत के  काम में तेजी लाएं, ताकि राहत सामग्री पहुंचाने में परेशानी न हो। सडक़ें  अवरुद्ध होने से अब तक प्रभावित लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने में भारी  परेशानी हो रही है।

मुख्य सचिव कुमार ने राज्य के समस्त  जिलाधिकारियों को भी निर्देश दिए कि प्रभावित क्षेत्रों में वांछित  सामग्री की मांग तत्काल मंडलायुक्तों से करें। उन्होंने कहा कि एक-एक  एमआई-17 और चेतक हेलीकॉप्टर क्रमश; देहरादून व पंतनगर में तैनात रहेंगे।  मुख्य सचिव ने पैदल मार्गों की मरम्मत करने तथा दैवीय आपदा से प्रभावित  लोगों के तत्काल पुनर्वास करने के निर्देश भी दिए। सीएम के प्रमुख सचिव  डी.के. कोटिया ने कहा कि राहत कार्यों में धन की कमी आड़े नहीं आने दी  जाएगी।


http://www.samaylive.com/regional-hindi/uttarakhand-hindi/99160.html


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रानीखेत क्षेत्र में 304 परिवारों ने छोड़ा घर
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रानीखेत: आपदा के कारण घर से बेघर हुए परिवारों की चिंता व संकट कम नहीं हो पा रहा है। यत्र-तत्र शरण लिए लोगों को समक्ष भोजन व्यवस्था की परेशानी भी उठानी पड़ रही है। फिलहाल संकट में आए लोग अपनी ही स्तर से भोजन व्यवस्था कर रहे हैं। अधिकारी दूर गांवों में अभी नहीं पहुंच पाए हैं। बड़ी आपदा में गांव महज पटवारी के जिम्मे हैं।

भारी बरसात से अकेले रानीखेत तहसील में करीब 4 दर्जन से अधिक गांवों में भूस्खलन ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है। इन गांवों से खतरे को देखते हुए करीब 304 परिवार सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किए गए हैं। अब तक के आकलन के अनुसार तहसील अंतर्गत अब तक 3 दर्जन मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए जबकि इतने दर्जन भवन क्षतिग्रस्त होने से अब रहने लायक नहीं रहे और क्षतिग्रस्त मकानों की संख्या 155 से ऊपर पहुंच चुकी है। अभी क्षति के आकलन का सिलसिला जारी है। इसके अलावा स्कूल, पंचायत भवन समेत सरकारी सम्पत्तियों को भी बड़ा नुकसान पहुंचा है। गांवों में रास्ते चलने लायक नहीं हैं। हर तरफ दरारें बड़े भूस्खलन का संकेत दे रहे हैं।

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Rs. 500-crore relief for Uttarakhand NEW DELHI: Prime Minister Manmohan Singh o
« Reply #117 on: September 23, 2010, 07:49:08 AM »
Rs. 500-crore relief for Uttarakhand                                                                                                                                                                                                                                 NEW DELHI: Prime Minister Manmohan Singh on Wednesday announced   Rs.500 crore in assistance to the flood-affected Uttarakhand, a day   after Congress president Sonia Gandhi sought a liberal package.
The interim assistance will be in addition to the money given on   Tuesday to the State Disaster Response Fund, a release from the Prime   Minister's Office said. An inter-ministerial team was constituted to   visit the State to assess the damage. Based on its assessment, “further   assistance would be considered,” the release said. — PTI


http://www.hindu.com/2010/09/23/stories/2010092357770100.htm

VK Joshi

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दैवीय आपदाएं एवं उत्तराखंड
इस विषय में कुछ चर्चा करना आवश्यक है. हिमालय के किसी भी क्षेत्र को यदि हम यह माँ कर चले कि वह सुरक्षित है तो ऐसा सोचना गलत होगा. हिमालय का उदय होना और आज भी उनका निरंतर ऊपर उठना उनकी अस्थिरता का संकेतक है. जहाँ ढलान नगण्य होती हैं जैसे प्लेन्स में वहाँ पानी धीरे धीरे बहता है. जिस से अपरदन (इरोजन) की दर कम रहती है. पर जहाँ ढलान ही ढलान है वहाँ यह दर बहुत अधिक हो जाती है. तिस पर हमारे हिमालय तो अभि समस्त पर्वत श्रेणियों में युवा हैं. दूसरे शब्दों में अभी वहाँ की चट्टानों में कच्चापन है. ऐसे में बारिश का जल पहाड के भीतर चला जाता है और चट्टानों के जोड़ों और दरारों से होता हुआ अपने निकलने का मार्ग ढूँढता है. यदि निकासी का मार्ग खुला होता है तो कोई समस्या नहीं होती, जल निकल जता है और चट्टान अपनी जगह पर रहती है. पर यदि प्राकृतिक या मानवीय कारणों से यह मार्ग अवरुद्ध हो जाये तो चटानो पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है और वोह यकायक फट जाती हैं. और चालू हो जाता है भूस्खलन. पर ऐसा भारी वृष्टि के दौरान ही होता है-जैसा आजकल हो रहा है. आमतौर पर प्प्र्व्तीय ढलान एक स्थिरता प्राप्त कर लेते हैं-जिसे कहते हैं एंगल ऑफ रिपोज-जब तक यह स्थिर है सब ठीक रहता है, पर यदि प्राकृतिक या मानवीय कारणों से यह बदल जाये-जैसे बाढ़ से नदियों के किनारों की कटान से, सड़क बनाने दौरान पहाड को काटने से, आदि तो फिर थोड़ी सी बरसात भी भूस्खलन के लिए काफी होती है.
आज युग है विज्ञान और तकनीकी का. ऐसे में प्रकृति के इस प्रकोप को दैवीय आपदा माण कर सरकार से सहायता की प्रतीक्षा करने के बजाय, पूरे समाज को इस से मिलकर निपटना होगा.  जिसके लिए वाटर शेड प्रबंधन के विशेषग्य, भूवैज्ञानिक, अभियंता, आर्किटेक्ट सबको मिलकर क्षेत्र विशेष में समस्या से निबटने के तकनीकी उपाय ढूँढने होंगे और उनको लागू करना पडेगा. दूसरे लोगो को इस बात का महत्व समझाया जाये कि 'भ्योल' में घर बनाना आपदा को न्योता देना है. अपना घर तो जायेगा हे, ऊपर वाले का भी साथ में चला ए तो कोई ताज्जुब नहीं.
बातें तो बहुत सी बताने की, पर समय मिलने पर बताऊंगा. मुझे मालूम है कि यहाँ घर बैठ कर कम्पयूटर पर या सब टाईप कर बताना बहुत आसान है, बनिस्बत क्षेत्र में जाकर मुसीबतजदा लोगों की मदद करने के. पर यह बाते में आगे ऐसी घटनाओं से बचने के लिए अधिक लिखता हूँ. भगवान आपकी रक्षा करे.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जोशी जी जानकारी के लिए बहुत-२ धन्यवाद!

कही पर कुदरत ने कहर वरसाया है तो कही हम लोग भी इसके लिए जिम्मेवार है! प्रकर्ति से छेड़छाड़ और कई हम लोगो ने मकान भी एसे जगह पर बनाये है जो प्राकर्तिक आपदाओ की दृष्टि से अति संवेदनशील है!

बाकी कुदरत के आगे सब विवस है !


 

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