Author Topic: Water Crisis Rising In Uttarakhand - उत्तराखंड मे हो रही है पानी की समस्या  (Read 22661 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हरे पेड़ों के कटान के खिलाफ ग्रामीणों ने उठाई आवाजDec 09, 02:14 am

उत्तरकाशी। लोहारीनाग-पाला जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए हरे पेड़ों के कटान के विरोध में ग्राम पंचायत पाला ने भी कमर कस ली है। ग्रामीणों ने ऐलान किया कि पेड़ों के कटान को रोकने के लिए वे सामाजिक संगठनों का पूरा साथ देंगे।

लोहारीनाग-पाला जल विद्युत परियोजना निर्माण के लिए पेड़ों के कटान के विरोध में हिमालयी भागीरथी आश्रम मातली रक्षा सूत्र आंदोलन की महिलाओं ने जोरदार विरोध किया। विरोध के बाद कई अन्य सामाजिक संगठन भी इस मुद्दे को लेकर लामबंद हुए। ग्राम प्रधान पाला ने भी अब हरे पेड़ों के कटान के विरोध में कमर कस ली है। पाला के ग्राम प्रधान ने प्रभागीय वनाधिकारी को सौंपे ज्ञापन में उल्लेख किया है कि पाला गांव में हरे पेड़ों का कटान तत्काल रोका जाए अन्यथा ग्रामीण पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन चलाएंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर काटे जा रहे पड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे गए हैं और अब वे पेड़ नहीं कटने देंगे। रक्षा सूत्र की महिलाओं ने जिलाधिकारी को सौंपे ज्ञापन में उल्लेख किया है कि पाला-मनेरी जल विद्युत परियोजना की टेस्टिंग के बाद पाला गांव के शीर्ष पर स्थित पहाड़ी से दो सौ स्थानों पर भूस्खलन सक्रिय है। भूस्खलन से गांव कभी भी मटियामेट हो सकता है। उन्होंने जिलाधिकारी से मांग की कि गांव की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं।

पंकज सिंह महर

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बढ़ते चीड़ के जंगल, सूखते भूजल स्रोत

सूबे में तेजी से फैल रहे चीड़ के वनों को यदि समय रहते ही नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश प्राकृतिक जलस्रोत विहीन हो जाएगा। इतना ही नहीं चीड़ के इन वनों में प्रति वर्ष लगने वाली आग से जल संरक्षण करने वाले वनों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा और प्रदेश को पेयजल के लिए सरकारी पंपिंग योजनाओं के भरोसे ही रहना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार को आने वाली इस विपदा के बारे में चेताया न गया हो परंतु सरकार वर्षों बीतने के बाद भी इस आने वाले संकट से मुंह मोड़े हुए हैं। सूबे के गढ़वाल मंडल में 12 हजार वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र है इसमें से 4.2 हजार वर्ग कि.मी.चीड़ वन क्षेत्र है। इस चीड़ वन क्षेत्र में प्रति वर्ष गर्मियों में लगने वाली दावाग्नि से लगभग 8 हजार वर्ग कि.मी. मिश्रित वन क्षेत्र लगातार प्रभावित होकर घटता जा रहा है।

लगातार घटते इन वन क्षेत्र में चीड़ के वन प्राकृतिक रूप से पनप रहे हैं। जिसके कारण गढ़वाल मंडल के चीड़ वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हो रही है जोकि आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी है। वन विभाग व्दारा कई दशकों तक सूबे में चीड़ के वनों को विकसित किया गया क्योंकि चीड़ के वन एक बार विकसित होने के बाद प्राकृतिक रूप से दूर-दूर तक फैलने की क्षमता रखते हैं। जोकि वन विभाग के लिए बिना काम-दाम से फायदे का सौदा था। इस फायदे को देखते हुए वन विभाग तीन दशक तक उत्तराखंड में वन विकसित करने के नाम पर चीड़ के वनों का विकास करता रहा। अब यही चीड़ का वन प्रदेश के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। तेजी से फैल रहे इन चीड़ के वनों के कारण जहां एक ओर पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है वहीं दूसरी ओर चीड़ वनों के कारण प्राकृतिक जलस्रोत समाप्त हो रहे हैं। इतना ही नहीं चीड़ की सुईनुमा पत्तियों जिनको पिरूल कहा जाता है,दावाग्नि के लिए पेट्रोल का काम करती है।

चीड़ के वनों से आच्छादित वनभूमि में किसी अन्य प्रजाति की वनस्पति पनपने का प्रश्न ही नहीं होता है क्योंकि चीड़ की पत्तियाँ आसपास के क्षेत्र को पूरी तरह ढक देती है जिसके कारण वनभूमि की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। चीड़ के आक्रामक परिणामों को देखते हुए भारत सरकार के कृषि व सहकारिता मंत्रालय ने कई बार सूबे की सरकार को यह निर्देशित किया था कि प्रदेश में वन विभाग चीड़ उन्मूलन के कार्यों को भी अपने हाथों में ले जिसके तहत ग्रामीणों को उनके हकहुकूक की लकड़ी को देने में चीड़ के पेड़ों को प्राथमिकाता से आबंटित करे तथा जल संसाधन बढ़ाने के लिए नीला संवर्ध्दन कार्यक्रम पर भी विशेष ध्यान दें। लेकिन प्रदेश सरकार ने चीड़ उन्मूलन के दिशा-निर्देशों को ताक पर रख नौला संवर्ध्दन कार्यक्रम में बजट का प्रावधान किया गया था। लेकिन बिना चीड़ उन्मूलन के नौला संवर्ध्दन कार्यक्रम को चलाया जाना सरकारी धन का दुरुपयोग सिध्द हुआ। प्रदेश में जलस्रोतों से समाप्ति के कगार पर पहुंच जाने के बाद भी प्रदेश सरकार चेती नहीं है। गढ़वाल मंडल के लगभग 8 हजार वर्ग कि.मी. वन क्षेत्र जिसमें कि चौड़ी पत्ती वाले वन हैं, को विस्तारित करने दिशा में सरकार का ध्यान नहीं है। ऐसी परिस्थियों में वे दिन दूर नहीं जबकि प्रदेश से सभी प्राकृतिक जलस्रोत समाप्त हो जाएंगे। ऐसे में पहाड़ी प्रदेश में पेयजल के लिए चलाई जा रही हैंडपम्प योजना भी फ्लाप साबित हो जाएगी,क्योंकि पहाड़ों में हैंडपंप भी जमीन के पाए जाने वाले प्राकृतिक जलस्रोत से ही पानी खींचते हैं।
साभार: हिन्दुस्तान टाइम्स (नई दिल्ली), 24 Jun. 2005

पंकज सिंह महर

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चीड़ फैलता गया तो नहीं बचेगा पहाड़ों पर पानी
पहाड़ की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार चीड़ अब अभिशाप बन गया है। फायर सीजन में जंगलों में आग लगने के साथ-साथ पेयजल संकट और भूमि की ऊर्वरा शक्ति कम होते जाने की जड़ में भी चीड़ है। इसके बावजूद प्रदेश के काफी बड़े हिस्से में इसके वन हैं। अलबत्ता,अब चीड़ का प्लानटेशन बंद कर दिया गया है और वन विभाग देवदार,बांज उत्तीस जैसे जल संवर्ध्दन वाले पौधे लगा रहा है। राज्य में उम्दा चीड़ वन सोनी(रानीखेत),गागर (भवाली रेंज)रूसी,मंगोली,खमलेख (बेरीनाग),नलैना (नैनीताल),पिथौरागढ़ वन प्रभाग,खनस्यू(ओखलकांडा) व गढ़वाल में टाँस वैली में है। पिंडर वैली में भी उम्दा चीड़ वन है। नैनीताल में किलबरी,विनायक मताल),मुक्तेश्वर,बिनसर,लोहाघाट,चंपावत,पहाड़पानी और मोरनीला में चीड़ के शानदार वन हैं।

चंपावत के स्थानीय वन प्रभाग के आधे हिस्से में चीड़ के पेड़ हैं। इनकी पत्तियों के गिरने से पशुओं के फिसलने के अलावा घास उगना भी बंद होता है जिससे ग्रामीणों के सामने चारे की समस्या भी पैदा हो रही है। पिछले दो दशक में पिथौरागढ़ जैसे सीमांत जिले में जितने भी नए वन विकसित हुए,उनमें चीड़ वनों की संख्या ज्यादा है। 1995 में मध्य हिमालय की पहाड़ियों में गर्मी के मौसम में भीषण आग की घटना के बाद हुए अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि जिन स्थानों पर चीड़ वन हैं, वहाँ आग ज्यादा है। जिले में ल,बेरीनाग,ओगला,अस्कोट,घाट,अल्मोड़ा,स्वाला,झूलाघाट आदि में चीड़ के घने वन हैं।

वानिकी एवं वन पंचायत संस्थान के उप निदेशक राजेन्द्र सिंह बिष्ट के मुताबिक चीड़ वनों में जो दावाग्नि लगती है वह मूलतः पिरूल में लगती है। बागेश्वर जिले के 70 प्रतिशत भूभाग में चीड़ के वन हैं। इससे जंगल के करीब के खेतों की उर्वरा शक्ति पर भी बुरा असर पड़ने लगा है। अल्मोड़ा जिले में भी चीड़ के जंगलों के प्रसार से पहाड़ में पानी लगातार कम हो रहा है। प्रख्यात पर्यावरणविद और मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह का मानना है कि चीड़ पानी रोकने के बजाय खुद पानी सोख लेता है जिससे जल स्रोत सूख रहे हैं। नेचुरल रिसोर्सेस डाटा मैनेजमेंट सिस्टम (एनआरडीएमएस) के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर डा. जेएस रावत के मुताबिक जहां चीड़ होता है उस इलाके में भूमिगत जल रिचार्ज भी कम होता है। बांज तथा चौड़ी पत्ती के वनों में जहाँ बारिश का 23 प्रतिशत पानी रिचार्ज होता है वहीं चीड़ वन क्षेत्रों में सिर्फ 16 फीसद पानी रिचार्ज होता है। प्रमुख वन संरक्षक डा.बीएस बरफाल ने बताया कि राज्य में नए क्षेत्रों में चीड़ की जगह बांज और अन्य मिश्रित प्रजातियों के रोपण को तरजीह दी जी रही है।
अमर उजाला (देहरादून), 20 Jun. 2005

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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We are afraid there will a heavy shortage of water in uk. We must ensure that our natural treaure ramain there.

पंकज सिंह महर

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दूसरों की प्यास बुझाने वाला उत्तराखण्ड खुद प्यासा क्यों?

योजनाओं के प्रदेश में जल आपूर्ति परियोजनाओं की भले ही कमी ना हो परन्तु यह भी कटु सत्य है कि प्रदेश में आज भी पानी की कमी है| टिहरी बांध परियोजना की बात करें तो यह दिल्ली वासियों की प्यास बुझाएगी, जो भी हो उत्तराखण्ड के दूर दराज का ग्रामीण आज भी मीलों दूर से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर है|

पीने के पानी का उपयोग बडे पैमाने पर सिंचाई के लिए भी किया जा रहा है|
-नदी नालों और बांवडी तालाबों के प्रदेश में पानी की कमी आखिर क्यों होने लगी है? चिन्ता का विषय है|
-वनों के लगातार कटान के साथ साथ जल प्रबंधन में दोष का खामियाजा प्रदेश की आबादी का एक बडा हिस्सा झेल रहा है| हर घर में पानी की कमी बताई जा रही है|
-आज दूसरों की प्यास बुझाने वाले प्रदेश को यह भी सोचना होगा कि आखिर वह खुद क्यों प्यासा है
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पंकज सिंह महर

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We are afraid there will a heavy shortage of water in uk. We must ensure that our natural treaure ramain there.
मेहता जी,
आपको याद होगा जब चीड़ के पेड़ लगाये जा रहे थे, वनीकरण के दौरान, तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था कि चीड़ के पेड़ से हमारा भूजल सूख जायेगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना और आज पहाड़ का पानी सूख रहा है, चीड़ का पेड़ पानी ही नहीं सुखाता बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति को भी कम कर देता है.....इसलिये सरकार को चीड़ के पेड़ सिर्फ बंजर जमीन पर ही लगाने चाहिये, व्यवसायिक दृष्टि से चीड़ का पेड़ लाभ का स्रोत तो हो सकता है लेकिन उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? क्या किसी ने यह सोचा, आज लगभग पूरा पहाड़ चीड़ के पेड़ों से आच्छादित हो गया है, यह पेड़ अपने आस-पास अन्य पेड़ों को भी नहीं उगने देता,
        हमॆं भी जागरुक होना चाहिये कि हमें अपने भविष्य को तथा जंगल और पानी बचाने के लिये लीसा और तारपीन तेल से होने वाली कमाई की बलि देनी ही होगी और बांज, बुरांश, काफल, देवदार, फल्यांट आदि के पेड़ लगाने होंगे और चीड़ को उजाड़ना होगा, तभी भूजल बचेगा....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahar Ji,

I fully agree with your views. People should be educated on this through awareness programmes etc.


We are afraid there will a heavy shortage of water in uk. We must ensure that our natural treaure ramain there.
मेहता जी,
आपको याद होगा जब चीड़ के पेड़ लगाये जा रहे थे, वनीकरण के दौरान, तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था कि चीड़ के पेड़ से हमारा भूजल सूख जायेगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना और आज पहाड़ का पानी सूख रहा है, चीड़ का पेड़ पानी ही नहीं सुखाता बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति को भी कम कर देता है.....इसलिये सरकार को चीड़ के पेड़ सिर्फ बंजर जमीन पर ही लगाने चाहिये, व्यवसायिक दृष्टि से चीड़ का पेड़ लाभ का स्रोत तो हो सकता है लेकिन उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? क्या किसी ने यह सोचा, आज लगभग पूरा पहाड़ चीड़ के पेड़ों से आच्छादित हो गया है, यह पेड़ अपने आस-पास अन्य पेड़ों को भी नहीं उगने देता,
        हमॆं भी जागरुक होना चाहिये कि हमें अपने भविष्य को तथा जंगल और पानी बचाने के लिये लीसा और तारपीन तेल से होने वाली कमाई की बलि देनी ही होगी और बांज, बुरांश, काफल, देवदार, फल्यांट आदि के पेड़ लगाने होंगे और चीड़ को उजाड़ना होगा, तभी भूजल बचेगा....


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Bilkul sahi kah rahe ho aap Mahar ji. Vyavsayikta ki is andhi daud main hum Vatavaran ka satyanash kar rahe hain.


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मेहता जी,
आपको याद होगा जब चीड़ के पेड़ लगाये जा रहे थे, वनीकरण के दौरान, तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था कि चीड़ के पेड़ से हमारा भूजल सूख जायेगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना और आज पहाड़ का पानी सूख रहा है, चीड़ का पेड़ पानी ही नहीं सुखाता बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति को भी कम कर देता है.....इसलिये सरकार को चीड़ के पेड़ सिर्फ बंजर जमीन पर ही लगाने चाहिये, व्यवसायिक दृष्टि से चीड़ का पेड़ लाभ का स्रोत तो हो सकता है लेकिन उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? क्या किसी ने यह सोचा, आज लगभग पूरा पहाड़ चीड़ के पेड़ों से आच्छादित हो गया है, यह पेड़ अपने आस-पास अन्य पेड़ों को भी नहीं उगने देता,
        हमॆं भी जागरुक होना चाहिये कि हमें अपने भविष्य को तथा जंगल और पानी बचाने के लिये लीसा और तारपीन तेल से होने वाली कमाई की बलि देनी ही होगी और बांज, बुरांश, काफल, देवदार, फल्यांट आदि के पेड़ लगाने होंगे और चीड़ को उजाड़ना होगा, तभी भूजल बचेगा....


पंकज सिंह महर

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Mahar Ji,

I fully agree with your views. People should be educated on this through awareness programmes etc.


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मेहता जी,
आपको याद होगा जब चीड़ के पेड़ लगाये जा रहे थे, वनीकरण के दौरान, तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया था कि चीड़ के पेड़ से हमारा भूजल सूख जायेगा, लेकिन किसी ने नहीं सुना और आज पहाड़ का पानी सूख रहा है, चीड़ का पेड़ पानी ही नहीं सुखाता बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति को भी कम कर देता है.....इसलिये सरकार को चीड़ के पेड़ सिर्फ बंजर जमीन पर ही लगाने चाहिये, व्यवसायिक दृष्टि से चीड़ का पेड़ लाभ का स्रोत तो हो सकता है लेकिन उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? क्या किसी ने यह सोचा, आज लगभग पूरा पहाड़ चीड़ के पेड़ों से आच्छादित हो गया है, यह पेड़ अपने आस-पास अन्य पेड़ों को भी नहीं उगने देता,
        हमॆं भी जागरुक होना चाहिये कि हमें अपने भविष्य को तथा जंगल और पानी बचाने के लिये लीसा और तारपीन तेल से होने वाली कमाई की बलि देनी ही होगी और बांज, बुरांश, काफल, देवदार, फल्यांट आदि के पेड़ लगाने होंगे और चीड़ को उजाड़ना होगा, तभी भूजल बचेगा....

sir, creative uttarakhand की ओर से इसमें पहल की जानी चाहिये

Rachana Bhagat

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Batai Myor Pahad wale kaise es mai pehal kaar sakte hain, we all will try our best.

 

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