Author Topic: Water Crisis Rising In Uttarakhand - उत्तराखंड मे हो रही है पानी की समस्या  (Read 22857 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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मंत्री के पेयजल योजना की जांच के आदेश


Oct 16, 02:41 am

देहरादून। पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने हल्द्वानी क्षेत्र की कुसुमखेड़ा पुनर्गठन पेयजल योजना निर्माण की जांच के आदेश पूर्व अधीक्षण अभियंता से कराने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही पंचायती राज एवं ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग से संबंधित नैनीताल की पांच परियोजनाओं की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।

पेयजल मंत्री प्रकाश पंत के हल्द्वानी क्षेत्र के भ्रमण के दौरान पेयजल समस्या निवारण शिविर में जनप्रतिनिधियों ने विभिन्न योजनाओं के निर्माण में अनियमितता होने संबंधी शिकायत की। इस पर पेयजल मंत्री ने दमुवाढूंगा स्थित कुसुमखेड़ा पुनर्गठन पेयजल योजना का स्थलीय निरीक्षण किया। निरीक्षण में पाया गया कि दमुवाढूंगा में पांच लाख लीटर के टैंक का निर्माण कराया गया था, लेकिन इस टैंक तक पानी की आपूर्ति अभी तक नहीं हो पाई। पेयजल मंत्री ने इस मामले में तत्काल दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। इस योजना की जांच अब पूर्व अधीक्षण अभियंता से कराए जाने के आदेश हैं। इसके साथ ही पंचायती राज एवं ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग की पांच योजनाओं की जांच रिपोर्ट भी मांगी गई है। इन योजनाओं में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मौन का निर्माण, परिवार कल्याण उपकेंद्र कालाखेत का निर्माण, राजकीय प्रजनन उद्यान सतबुंगा में माली आवासों का निर्माण तथा ग्राम पंचायत लोद के सतबुंगा में सीसी सड़क का निर्माण आदि हैं। इन मामलों की जांच रिपोर्ट पेयजल मंत्री ने 30 अक्टूबर तक पेश करने को कहा है। जांच का जिम्मा पूर्व अधीक्षण अभियंता हरेंद्र सिंह भाकुनी को सौंपा गया है। पेयजल मंत्री ने विभाग के अधिकारियों को गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने के निर्देश भी दिए हैं। उन्होंने नानघाट पेयजल योजना में शिकायत प्राप्त होने पर जांच कराने की बात कही है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5867069.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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पानी के बिल जमा होंगे ऑन लाइन

 Oct 20, 02:11 am

देहरादून। सूबे में उत्तराखंड जल संस्थान के लगभग साढ़े तीन लाख उपभोक्ता जल्द ही पानी के बिल ऑनलाइन जमा कर सकेंगे। जल संस्थान जल्द ही अपने पूरे सिस्टम को ऑनलाइन करने की तैयारी में है। इसका सफलता पूर्वक परीक्षण भी कर लिया गया है। जल संस्थान के डाटा सिस्टम को आधुनिक बनाने के इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत फिलहाल सभी उपभोक्ताओं से संबंधित डाटा की एंट्री का काम चल रहा है।
 इसी के साथ जल संस्थान के कर्मचारियों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। डाटा एंट्री पूरी होते ही योजना साकार हो जाएगी। ई-गवर्नेस की दिशा में जल संस्थान की यह ठोस पहल है। बता दें कि फिलहाल जल संस्थान में बिल जमा करने का काम पारंपरिक मैन्युअल तरीके से होता है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5875124.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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तीन दिन से पेयजल को हाहाकार

पेयजल लाइन क्षतिग्रस्त होने से जिला मुख्यालय व आसपास के क्षेत्रों में तीन दिन से पेयजल की किल्लत बढ़ गई है। वैसे तो यहां आए दिन पेयजल किल्लत रहती है, लेकिन मुख्यालय के समीप मंडल मोटर मार्ग पर तीन दिन पूर्व पेयजल लाइन टूटने से पानी सड़क पर बह रहा है। इससे अधिक परेशानी हो रही है।

इससे मुख्यालय समेत आसपास के क्षेत्र में पेयजलापूर्ति नहीं हो रही है। पानी भरने को दूर-दूर भटक रहे हैं। विभागीय लापरवाही से बीते पिछले तीन दिन से बह रहे पानी ने लोगों की परेशानियों को और बढ़ा दिया है। पाइप लाइन के क्षतिग्रस्त होने से मोटर मार्ग का डामरीकरण भी क्षतिग्रस्त हो रहा है, जिससे यातायात में भी परेशानी उत्पन्न हो रही है। स्थानीय निवासी योगेश डिमरी का कहना है कि बीते कई दिनों से नगर के विभिन्न स्थानों पर पेयजल किल्लत बनी हुई है। उन्होंने विभाग से अविलंब पेयजल लाईन की मरम्मत करने की मांग की है। इधर, अधिशासी अभियन्ता जल संस्थान केपी जोशी से क्षतिग्रस्त लाईन के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि ऊपर से गिरे पत्थरों से लाइन क्षतिग्रस्त हो गई थी जिसे तत्काल ठीक करवाया जा रहा है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5878412.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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What are the reasons behind the water crisis in Uttarakhand ?

let us discuss on this .

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What are the reasons behind the water crisis in Uttarakhand ?

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बहुत ही बढ़िया सर , जैसा की हम जानते हैं कि- पानी कमी का मुख्य कारण है वनों कि कटाई ,ऋषियों के विर्क्ष काटना पाप है एवं लगाना पुन्य है अग्निपुराण मैं "दश्पुत्रो समोद्र्म" कहा गया है अर्थात दस पुत्रों को एक विक्ष के सम्मान माना गया है !

वैज्ञानिकों कि राय के अनुसार देह्स मैं या प्रदेश मैं कम से कम एक तिहाई भाग मैं वन हिने चाहए जो कि हमारे उत्तराखंड मैं थे लेकिन अब नहीं हैं!


 "जब ये वन थे तो पानी कि कोई समस्या नहीं थी लेकिन अब ये वन भी कट गए हैं और पानी भी घट गया है"


और दोस्तों प्रदेश के पर्वतीय भागों मैं कम से कम दो तिहाई भाग मैं वनों का होना पानी के लिया होना अनिवार्य है जो कि अब नहीं हैं!


 "हमारे पहाडों मैं तो दोनों तरफ से मुश्बत है वन बचाओ तो चुल्हा बुजाओ ,और चुल्हा जलाओ तो प्यास बढाओ"
जैसा कि अरुणाचल प्रदेश मैं ६१.६७%, तथा त्रिपुरा मैं ६०.११% भाग वनाच्छादित है , इस  लिए आवश्यक है कि -जहां जितने अधिक वन होंगे उतनी ही अधिक तीव्रता से पहाडों कि नदियों मैं पानी बहेगा और ये पानी कि जो उत्तराखंड मैं समस्या है खत्म हो जायेगी!



जय इन्द्रदेव
जय उत्तराखंड  

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jakhi Ji,

thanx for the detailed information.



I think deforestation is the major reason for water crisis. This is also resulting in global warming. The people are cutting trees is a very serious issues. I would suggest the following towards preserving the forest “-

-   An awareness programme is required to started in remote villages areas through the music, plays etc.
-   Villagers must be made aware of on importance of trees.
-   There should be some schemes on plantation which can generate interest on people.
-   Bio Gas should be provided in village areas this will reduce the trees cutting




What are the reasons behind the water crisis in Uttarakhand ?

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बहुत ही बढ़िया सर , जैसा की हम जानते हैं कि- पानी कमी का मुख्य कारण है वनों कि कटाई ,ऋषियों के विर्क्ष काटना पाप है एवं लगाना पुन्य है अग्निपुराण मैं "दश्पुत्रो समोद्र्म" कहा गया है अर्थात दस पुत्रों को एक विक्ष के सम्मान माना गया है !

वैज्ञानिकों कि राय के अनुसार देह्स मैं या प्रदेश मैं कम से कम एक तिहाई भाग मैं वन हिने चाहए जो कि हमारे उत्तराखंड मैं थे लेकिन अब नहीं हैं!


 "जब ये वन थे तो पानी कि कोई समस्या नहीं थी लेकिन अब ये वन भी कट गए हैं और पानी भी घट गया है"


और दोस्तों प्रदेश के पर्वतीय भागों मैं कम से कम दो तिहाई भाग मैं वनों का होना पानी के लिया होना अनिवार्य है जो कि अब नहीं हैं!


 "हमारे पहाडों मैं तो दोनों तरफ से मुश्बत है वन बचाओ तो चुल्हा बुजाओ ,और चुल्हा जलाओ तो प्यास बढाओ"
जैसा कि अरुणाचल प्रदेश मैं ६१.६७%, तथा त्रिपुरा मैं ६०.११% भाग वनाच्छादित है , इस  लिए आवश्यक है कि -जहां जितने अधिक वन होंगे उतनी ही अधिक तीव्रता से पहाडों कि नदियों मैं पानी बहेगा और ये पानी कि जो उत्तराखंड मैं समस्या है खत्म हो जायेगी!



जय इन्द्रदेव
जय उत्तराखंड 


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मेहताजी मुझे नहीं लगता है की ग्लोबल वार्मिंग से उत्तराखंड मैं पानी की कमी हो रही होगी , पहाडों मैं पानी कमी के कारम हैं वनों की कटाई,सडको का निर्माण,भूकम्प का आना,अब तो कुछ अगर पाना है तो कुछ खोना भी पड़ता है,
 हम लोग कगते हैं की हमारे गांवों मैं सड़क और बिजली जानी चाहिए, अभी तक जिन गाँवों मैन्सद्कें और बिजली पहुंची है वहां फिर दूसरी समस्या शुरू हो जाती है और वो है !

पानी की समस्या,जब सड़कों का निर्माण होता है तो भूमि की कटाई होती है और किनते ब्लास्ट करने पड़ते है अगर ब्लास्ट वाले एरिया मैं अगर कोई पानी का स्रोत होगा तो वो गायब होने वाला ही है!

दूसरी बात ये भी है की अब तो पहले के जैसा बारिश भी समय-समय पर नहीं होती और बहुत ही कम मात्रा मैं होती हैं जिससे की पानी के स्रोत भी धीरे-धीरे सूखने लगते हैं !
सरकारी नालों मैं पानी तो आता है लेकिन सिर्फ जबे नल लगाये हाय हो तब से ६ महीने तक ही आपनी आयेगा बात मैं तो पता भी नहीं चलता है की यहाँ पर पानी पाइप लाइन थी पानी आना तो दूर की बात है

Devbhoomi,Uttarakhand

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आप जिस शहर,नगर,कसबे या गाँव में रहते हैं, वहाँ पीने के पानी की सप्लाई कैसी है? आपके क्या अनुभव हैं?

क्या विभिन्न राज्यों की सरकारें और नगर निगम पर्याप्त पानी की सप्लाई सुनिश्चित कराने के लिए क़दम उठा रहे हैं? पीने के पानी की समस्या का समाधान करने के लिए प्रशासन और जनता किस तरह के क़दम उठा सकते हैं?

Devbhoomi,Uttarakhand

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सैक बनाएगा वाटर रिसोर्स एटलस

SOURCE DAINIK JAGRAN

उत्तराखंड के ग्लेशियरों से देश की प्रमुख नदियां तो निकलती ही हैं। ये देश में साफ पीने के पानी के सबसे बड़े स्रोत हैं। हिमालय रहेगा तो पानी रहेगा, लेकिन जल संसाधनों का तभी सही उपयोग व संरक्षण हो सकता है जब उनकी स्थिति के बारे में पूरी जानकारी हो। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने उत्तराखंड के जल संसाधनों पर आधारित जल संसाधन एटलस बनाने का बीड़ा उठाया है।

जीआईएस, जीपीएस और सैटेलाइट आंकड़ों का मदद से बन रहे इस डिजिटल एटलस से प्रदेश में ग्लेशियरों, नदियों, झीलों, सरोवरों, तालाबों, चाल, खालों आदि की वर्तमान स्थिति के बारे में तो जाना ही जा सकेगा। यह भी पता लग सकेगा कि उत्तराखंड में भू-जल की क्या स्थिति है

और कौन से ऐसे इलाके हैं जहां पानी का बेहतर संग्रहण किया जा सकता है। एटलस से यूसैक के निदेशक डॉ. एमएम किमोठी का कहना है कि उत्तराखंड का लगभग एक चौथाई भाग बर्फ व हिमनदों से ढका है। यहां के हिमनद ही राज्य में बहने वाली सभी सदानीरा नदियों गंगा, यमुना, रामगंगा, टौंस, काली, गोरी के उद्गम स्थल हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन से हिमनदों के अस्तित्व पर संकट है।

 जिसका सीधा असर पेयजल और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है। इसी के आकलन के लिए बर्फ व हिमनदों का 1:50,000 के पैमाने पर मानचित्रण किया जाएगा ताकि इस समस्या से निपटा जा सके। सैटेलाइट आंकड़ों से उनकी पूर्व की स्थिति, सिकुड़ने की गति, आयतन और उपलब्ध जल भंडार का भी आकलन किया जाएगा।

इस अध्ययन से राज्य के समृद्ध जलसंसाधनों के बेहतर प्रबंधन, नियोजन में तो मदद मिलेगी ही। राज्य की जल विद्युत परियोजनाओं के आकलन में भी मदद मिलेगी। एटलस के लिए राज्य की सभी नदियों का मानचित्र तैयार किया जा चुका है। इसी क्रम में हरिद्वार, उत्तरकाशी और देहरादून के भू-जल संभावित क्षेत्रों का भी चिह्निकरण किया गया है।

 इतना ही नहीं प्रदेश के जलाभाव वाले क्षेत्रों की चिह्नित कर वैकल्पिक जलापूर्ति व पारंपरिक जलसंरक्षण तकनीकों द्वारा जल संरक्षण कार्ययोजना पर भी काम जारी है। इतना ही नहींप्रदेश के जलग्राही क्षेत्रों का मानचित्रीकरण भी किया जा रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किन क्षेत्रों में जल का संग्रहण किया जा सकता है यानी कहां जलाशय बनाने की संभावनाएं हैं। डॉ. डिमरी का कहना है कि यह एटलस प्रदेश में जलसंकट से निपटने, जलस्रोतों के संरक्षण और जल प्रबंधन के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा।

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IS SAMAY YE HALAT HAIN TO GARMIYON MAIN KYA HOG IN HEND PAMPON KA

152 हैडपंपों से पानी की बूंद टपकना बंद



नैनीताल। शीतकालीन बरसात नहीं होने से कुमाऊं में सूखा के आसार बन गये हैं। लिहाजा हैडपंपों ने भी काम करना बंद कर दिया है। स्थिति यह है कि मंडल में 152 हैंडपंपों से पानी आना बंद हो गया है। इनमें कुमाऊं जल संस्थान ने तो 76 हैडपंपों को स्थाई रूप से बंद घोषित कर दिया है।

कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्र में पेयजल संकट का दर्द किसी से छिपा नहीं है। लेकिन इस साल शीतकालीन बरसात नहीं होने से रही-सही उम्मीदों पर भी तुषारापात होने लगा है। पूर्व सीएम एनडी तिवारी के कार्यकाल में पहाड़ों में गर्मियों के दिनों में पेयजल संकट से निपटने के लिए सड़क किनारे व आसपास के क्षेत्रों में बोरिंग कर ओडेक्स हैडपंप लगाए गए। इससे ग्रामीणों में पेयजल संकट से छुटकारा मिलने की उम्मीद जगी थी। लेकिन वक्त गुजरने के साथ ही ग्रामीणों की उम्मीदें धूमिल हो रही है। कई हैडपंपों के तकनीकी रूप से खराब होने व उनमें पानी निकलना बंद होने से जल संस्थान के समक्ष दोहरी चुनौती खड़ी हो गई है। कई हैडपंपों से आ रहे दूषित पानी ने तो पर्यावरण विशेषज्ञों के तक कान खड़े कर दिए है।

मंडल के अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर व चंपावत जिले में योजना आरंभ से अब तक 3343 हैडपंप लगाए गए है। इनमें एक हैंडपंप की लागत ढाई लाख के आसपास आयी थी। इनमें 3171 हैंडपंप चालू हालत में है,जबकि 76 हैडपंप स्थाई रूप से बंद हो चुके है, जबकि इतने ही मरम्मत योग्य है। औसतन हर साल कुमाऊं में दो सौ के करीब हैडपंप लगाए जा रहे है। हैडपंपों की स्थापना में योजना आरंभ से अब तक करीब 50 करोड़ की धनराशि खर्च की जा चुकी है। खराब हैडपंपों में 67 ऐसे है जो पूरी तरह ड्राई घोषित किए जा चुके है। लगातार खराब हो रहे हैडपंपों के कारण कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में भीषण पेयजल संकट का खतरा मंडराने लगा है। यही नहीं हैडपंपों के निचले क्षेत्रों के प्राकृतिक जल स्त्रोतों से संचालित पेयजल योजनाओं पर भी कुप्रभाव पड़ने की आशंका प्रबल हो गयी है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6208204.html

 

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