पिथौरागढ़। देश की आजादी के 60 वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रदेश में कई गांव ऐसे है, जहां न बिजली है नहीं पानी। शिक्षा के लिए जो व्यवस्था अंग्रेज कर गये थे गांव के लोग आज भी उसी पर निर्भर है। चिकित्सा व्यवस्था की बात तो कौन कहे। गांव के लोगों ने चुनावों के दौरान मतपेटियां पहुंचाने के लिए आने वाले हैलीकाप्टर तो देख लिये,लेकिन गांव के लोगों को रोड के दर्शन आज तक नहीं हुए।
हिमालय पर्वत श्रृखंलाओं के बीच करीब साढे़ आठ हजार फिट की ऊंचाई पर बसे नामिक गांव में 107 परिवार बसे हुए है। करीब सात सौ की आबादी वाले इस गांव में पानी, बिजली, चिकित्सा शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने इस गांव में एक जूनियर हाईस्कूल खोला था। आजादी के 60 वर्षो बाद भी इस विद्यालय का उच्चीकरण नहीं हो सका है। गांव के बच्चों को जूनियर हाईस्कूल से आगे की शिक्षा लेने के लिए कई किलोमीटर दूर स्थित विद्यालयों में जाना पड़ता है। करीब एक दशक पूर्व गांव को ऊर्जीकृत करने के लिए विद्युत लाइन बिछायी गयी थी, पांच वर्ष पूर्व आयी प्राकृतिक आपदा में यह विद्युत लाइन ध्वस्त हो गयी थी तब से आज तक इस लाइन को ठीक नहीं किया गया है। वर्तमान में गांव अंधेरे में डूबा हुआ है। दो दशक पूर्व गांव के लिए बनायी गयी पेयजल योजना भी वर्तमान में ध्वस्त पड़ी हुई है। योजना को ठीक करने के लिए भी अभी तक कोई पहल नहीं हुई है। गांव के लोग चार किलोमीटर दूर से पानी ढो रहे है।
नामिक के ग्राम प्रधान हयात सिंह परिहार का कहना है कि सीमांत गांव में सरकार ने चुनावों के दौरान हैलीकाप्टर उतार कर ग्रामीणों को हैलीकाप्टर तो दिखा दिया,लेकिन गांव को आज तक सड़क से नहीं जोड़ा है। गांव के लोगों को आज भी सड़क तक पहुंचने के लिए पच्चीस किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री और जिला प्रशासन को अलग-अलग पत्र भेजकर गांव के समस्याओं के समाधान की मांग की है।