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महिला आरक्षण बिल, उत्तराखण्ड के सन्दर्भ में :Women Reservation Bill,Uttarakhand

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हेम पन्त:
वर्तमान कांग्रेसनीत सरकार ने संसद व विधायिकाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करने वाले बिल को राज्यसभा में पास करा कर इस बिल के प्रति अपनी गंभीरता प्रदर्शित कर दी है. भाजपा और अन्य कुछ विपक्षी दलों के समर्थन से लगता है कि सरकार इस मुद्दे पर कुछ और कदम आगे बढ सकती है. लेकिन लालू यादव, मुलायम और शरद यादव जैसे कुछ दिग्गज इस मसले को उलझाने में लगे हुए हैं.

आप इस बिल के विषय में क्या विचार रखते हैं?

उत्तराखण्ड में पंचायत स्तर पर (ग्राम, विकास खण्ड व नगर पालिका तक) पहले ही महिलाओं के लिये 50% आरक्षण लागू किया जा चुका है. और इसके कुछ अच्छॆ परिणाम भी सामने आये हैं. पिछले पंचायत चुनावों में महिलाएं उन सीटों पर भी भारी संख्या में जीत कर आईं जो Open Seat थी, अर्थात महिलाओं ने पुरुषों को हराकर भी सीटें जीती थीं.

लेकिन उत्तराखण्ड के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो गिनी-चुनी 2-4 महिलाएं ही अपने दम पर राज्य स्तर तक अपना दबदबा कायम कर पायी है. यह भी एक कटु सत्य है कि पंचायतों में चुनी गई अधिकांश महिलाओं के बदले हकीकत में उनके पति, पुत्र या अन्य परिजन ही सब काम संभालते हैं और इस तरह "प्रधान पति" या "ब्लाक प्रमुख पति" जैसे कई नये Designation प्रयोग में आने लगे हैं

तो महिला आरक्षण बिल को उत्तराखण्ड राज्य की राजनीति के सन्दर्भ में आप किस तरह देखते हैं? कृपया अपने विचार यहाँ जरूर व्यक्त करें....

हेम पन्त:
पिछले पंचायत चुनावों में चुनकर आई कुछ महिला जनप्रतिनिधियों की प्रतिक्रियाएं

Source : Dainik Jagran (http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5016612.html)

आजादी तो ठीक, मगर पति की सलाह जरूरी

नैनीताल: पंचायत के कार्यो में पतियों का दखल रोकने को सरकार भले ही कसरत में जुटी हो लेकिन महिला जिला पंचायत सदस्य पति की सलाह को जरूरी मानती हैं। महिला प्रतिनिधियों के अनुसार निर्णय लेने में आजादी अवश्य मिलनी चाहिए। महिलाओं ने बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि पंचायतों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण मिलने से समस्याओं का समाधान बेहतर तरीके से हो सकेगा। राज्य सरकार के इस निर्णय पर अधिकांश महिलाएं बेहद खुश नजर आई। अल्मोड़ा जिले की इड़ा सीट से जिला पंचायत सदस्य रीता नेगी व भगवती आर्या ने कहा कि पति का नैतिक समर्थन लोगों की सेवा करने में टानिक का काम करता है। उनका कहना था कि जब महिला-पुरुष साथ चलेंगे तभी विकास की हर बाधा पार होगी। अल्मोड़ा की ही विमला रावत की भी कमोवेश राय यही थी। पिथौरागढ़ जिले की बेरीनाग से रेनूका धानिक व डीडीहाट से मंजू डसीला का कहना था कि पहाड़ में महिलाओं को विकास का लाभ अब तक नहीं मिला है, अब वह बैठकों के अलावा अधिकारियों के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान करा सकती हैं। उत्तरकाशी जिले की चिन्याली सीट से सदस्य मालती राणा के अनुसार उनकी पहली प्राथमिकता पिछड़े क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना है। श्रीमती राणा ने कहा कि महिलाओं के आगे आने से समस्याओं के निस्तारण में तेजी आएगी और भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा।
 

हेम पन्त:
उत्तराखण्ड में पिछले चुनाव में कई महिलाएं पहली बार चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बनीं थीं. आशा की जा सकती है कि इनमें से कुछ महिलाएं आने वाले समय में महिला आरक्षण लागू होने पर, अपनी योग्यता के बल पर संसद व विधानसभा में भी प्रवेश करेंगी.

राजेश जोशी/rajesh.joshee:
संसद से बिल पास होने से आम महिलाओं को कोई लाभ होने वाला नही है, यह केवल उन राजनेताओ को अपनी राजनीति चमकाने में मदद करेगा जो पहले से राजनीति को सेवा की बजाय एक पुश्तैनी धन्धे की तरह कर रहे हैं।  इससे उनके परिवारों का राजनीति में प्रभुत्व और बढ़ जायेगा तथा महिला आरक्षित सीटों पर ऐसी ही महिलाऎं आगे बढ़ेगी जिनके परिवार के लोग पहले से ही राजनीति की दुकाम चला रहे हैं।  अगर राजनैतिक पार्टियों में महिलाओं को आगे लाने का साहस होता तो सीटों के आरक्षण की आवश्यकता ही नही है।  क्यों नही हर पार्टी अपनी पार्टी से ३३ से ५०% महिलाओं को टिकट देती हैं, अगर वह योग्य होंगी तो अपने आप चुन ली जायेंगी।  इसमें आरक्षण का मुद्दा कहा से आ गया, एक तरफ़ तो महिलाऎं अपने आप को पुरुषों के समकक्ष मानती हैं तो फ़िर चुनाव मैदान में आरक्षण की बैशाखी क्यों दी जा रही है?  पंचायतों में जहां महिलाओं को ५०% आरक्षण दिया गया है वहां अधिकतर महिलाओं की हालत यह है कि सारा काम उनके पति ही करते है, यह जनता के साथ मजाक से ज्यादा क्या है?  मुस्लिम महिलाओं के मामले में तो हालत यह है कि अखबारों में नाम महिला का और फ़ोटो उसके पति का दिया रहता है। यह कैसा महिला सशक्तिकरण और कैसा लोकतन्त्र है मेरी समझ से बाहर की बात है।  आंकड़ेबाजी के लिए जरुर विश्व की दूसरी महिला प्रधानमंत्री हमारे देश से हैं और इस समय हमारे देश की राष्ट्रपति भी महिला हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

What i have personally seen in Uttarakhand is that women are elected village ahead, block pramukh etc but they don't get chance to work independently. Always their husbands are looking after the work.

So what is the benefits of such reservations?

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