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Aash Uttrakhandi Feature Film - आश उत्तराखंड की फीचर फिल्म

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Jeevan Rawat ‎1st Screening of Our Movie "AAS"
 Date-18-november-2012
 Timing- 4 PM
 place-Prayatan Bhawan, near fun Cinema, Vipin Khand, Gomti Nagar, Lucknow(U.P.)
 Contact -9450459843,9930225425 — with Manika Shah and 49 others.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
बलि प्रथा के खिलाफ बनी कुमाऊंनी फिल्म आस दर्शकों को इतनी भाई कि यह फिल्म बेस्ट ऑडियंस च्वाइस अवार्ड अपने नाम कर गई।

यह अवार्ड फिल्म निदेशक तिग्मांशु धूलिया ने दिया। अवार्ड देने के साथ ही उन्होंने मुंबई में ही इस फिल्म को देखने की इच्छा जाहिर की।

तिग्मांशु धूलिया के हाथों मिला अवार्ड
मंगलवार को दिल्ली में इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल के मौके पर इस फिल्म की स्क्रीनिंग की गई थी। फिल्म के निदेशक राहुल बोरा ने बताया कि इस फिल्म को सबसे अधिक लोगों ने देखा।

यही वजह रही कि फिल्म को बेस्ट ऑडियंस च्वाइस अवार्ड मिला है। तिग्मांशु धूलिया के हाथों यह अवार्ड दिया गया।

फिल्म में उत्तराखंड के दृश्य देख आयोजकों ने भी कहा कि भले ही उत्तराखंड में इतनी बड़ी तबाही आई हो फिर भी वहां कई ऐसे स्थल हैं, ऐसी सुंदरता है, जिन्हें लेकर काम किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि फिल्म में जिस तरह से गांव के बच्चों ने एक्टिंग की, उनकी सच्चाई और ओरिजनेलिटी के लिए ही यह अवार्ड दिया जा रहा है।

पहली बार दिखाई गई कुमाऊंनी फिल्म
फिल्म फेस्टिवल में अलग-अलग कैटेगरी में 40 देशों की 175 फिल्में दिखाई गईं। दुनिया भर की 700 फिल्मों में से इनका चयन किया गया। ‘आस’ को रीजनल कैटेगिरी में रखा गया था।

निर्देशक राहुल बोरा ने बताया कि फिल्म की शूटिंग रानीखेत में हुई, जिसमें वहीं के दो बच्चों जगदीश और दीपक को लिया गया।

इससे पहले पुणे, लखनऊ में भी फिल्म की स्क्रीनिंग हो चुकी है। प्रोडक्शन से जुड़े मुकेश खुगशाल ने बताया कि कोशिश है कि� देशभर में फिल्म को रिलीज किया जाए। इससे पहले राजुला फिल्म भी यहां दिखाई जा चुकी है।

बलि प्रथा रोकने का संदेश
यह फिल्म बलि प्रथा रोकने का संदेश देती है। फिल्म रानीखेत के पास गटोली गांव के दो बच्चों और एक मेमने के बीच दोस्ती की कहानी है। मेमना जब बड़ा होता है तो बच्चे के पिता उसे बलि के लिए बेच देते हैं। लेकिन, बलि से पहले दोनों बच्चे बकरी को मंदिर से चुरा लेते हैं। मंदिर में बाकर बलि किले दिनन यार, के भगवान ले बाकर बलि बे खुश होनि... (मंदिर में बकरे की बलि क्यों देते हैं यार, कौन सा भगवान बकरे की बलि से खुश होता है) फिल्म का यह संवाद बलि प्रथा पर बड़ा सवाल खड़ा करती हैं।

http://www.dehradun.amarujala.com/news/city-news-dun/kumaun-film-aas-best-audions-award/

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