Author Topic: Rajnikant Semwal, Singer's New Experiment- गायक रजनीकांत सेमवाल नया एल्बम  (Read 22133 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पंकज सिंह महर

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बीते दिनों फोरम पर नवोदित गायक श्री रजनीकान्त सेमवाल जी से लाईव चैट की गई। चैट कराने का कार्य मुझे दिया गया, चैट के दौरान उत्तराखण्डी संगीत के बारे में सेमवाल जी से मेरी विस्तृत चर्चा हुई। जिसके कुछ महत्वपूर्ण अंश मैं आप सबके समक्ष रखना चाहूंगा।
 
सेमवाल जी की रुचि संगीत में पहले से ही थी, २००७ के क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान भारतीय टीम के उत्साहवर्धन के लिये गाये गये गीत "जीत जायेंगे" में भी इनके सुर सजे हैं। उत्तराखण्डी संगीत की ओर रुझान के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके स्वर्गीय पिताजी श्री दिगम्बर प्रसाद सेमवाल जी की उत्तराखण्डी संगीत में बहुत रुचि थी और उन्होंने कई शोधपरक कार्य इस पर किये थे। २००६ में उनकी मृत्यु के बाद उनके एक डायरी रजनीकान्त को मिली, जिसमें पहाड़ी गीत-संगीत के बारे में उनके पिताजी ने काफी कुछ लिखा था, जिसे पढ़कर उन्होंने अपने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिये एक एलबम बनाने का फैसला लिया, जो बाद में टिकुलिया मामा के रुप में हमारे सामने आया।
 
रजनीकान्त का साफ कहना है कि मैं उस पीढ़ी को उत्तराखण्डी संगीत की ओर लाना चाहता हूं जो किसी और संगीत में मुग्ध होकर अपने संगीत से दूर होती जा रही है। पब या डिस्कोथेक में जाने वाली पहाड़ी पीढ़ी को वे पहाड़ी बोली में उनके मन माफिक संगीत देना चाहते हैं। इस एलबम में जो प्रयोग उन्होंने किया है, वह इसी पीढ़ी को उन्हीं के माध्यम और रुचि के अनुसार उत्तराखण्डी गीत-संगीत से जोड़ने का एक प्रयास है। उनका यह भी मानना है कि इससे पहाड़ी संस्कृति को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि एक तो हमारी संस्कृति बहुत समृद्ध है और दूसरा इसके संरक्षण के लिए कई महान लोग कार्य कर ही रहे हैं।
 
बकौल रजनीकान्त, उन्होंने जो अभिनव प्रयोग किया है, वह उत्तराखण्डी संगीत को एक वैश्विक पहचान बनाने में भी मदद करेगा। उनका कहना था कि जब साउथ अफ्रीका का वाका-वाका (जिसे शकीरा ने गाया) उत्तराखण्ड का बच्चा गुनगुनाने लगा है तो पहाड़ी ढोल-दमाऊं का "गेंदूं-केत्ता" क्यों नहीं गुनगुना सकता। वह इसे तब गुनगुनायेगा जब उसकी परवरिश के अनुसार, उसकी रुचि के अनुसार इसे गुनगुनाया जायेगा। उन्होंने अपने पौप गानों में इस पारम्परिक ढोल-दमाऊं के शब्द "गेंदू-केत्ता" का कई बार प्रयोग किया है, जिसे लोगों ने खासकर युवाओं ने पसन्द किया है। साथ ही "झुमेलो" "रासो" जैसे पारम्परिक शब्दों से नई पीढ़ी को परिचित कराने की भी वह प्रयास कर रहे हैं।
 
कुल मिलाकर रजनीकान्त सेमवाल का यह प्रयास तारीफे काबिल है और हम उनके इस पुनीत प्रयास में उनके साथ हैं।

पंकज सिंह महर

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रजनीकान्त का यह एलबम विशेषकर उत्तरकाशी जनपद के लोक गीत एवं संगीत (Folk) पर आधारित है, मैं इस एलबम के गीतों का एक लघु परिचय आपके सामने रख रहा हूं।

१- पहला गीत है टिकुलिया मामा, टिकुलिया मामा उत्तरकाशी क्षेत्र का एक प्रचलित लोक व्यक्तित्व है। जो कि बहुत नटखट थे और पेशे से पंडित जी थे, नाथ-पोखरी उनका गांव था और वे चुपके-चुपके किसी लड़की से भी प्यार करते थे, लेकिन बेचारे इजहार नहीं कर पाये थे।
 
२- हे रमिये- यह गीत रवांई क्षेत्र का लोक गीत है, जिसमें युवक पात्र पटवारी का चपरासी है, जिसे उस क्षेत्र में चाकर कहा जाता है। वह किसी गांव में जाता है तो एक लड़की उससे पूछ रही है कि तू कौन है, तेरा नाम क्या है और तेरा गांव कहा है।
 
३- दयारा झुमेलो- उत्तरकाशी के प्रसिद्ध बुग्याल दयारा, छोटे-बड़े अन्य बुग्याल और तालों की सुन्दरता का वर्णन इस गीत में किया गया है। इस गीत में गांव के लोगों से ही अभिनय कराया गया है। इस गीत का फिल्मांकन इतना बढ़िया किया गया है कि मुझे आज तक के उत्तराखण्ड के वीडियोज में यह सर्वश्रेष्ठ लगा।
 
४- पुराणू मेरो दरजि -यह गीत भी उत्तरकाशी के टकनौर इलाके का लोकगीत है, जिसमें नायिका को जौनपुर के मेले में जाना है और उसके लिये उसे नई कुर्ती सिलानी है, जिसके लिये वह अपने पुराने दर्जी के पास जाकर अच्छी कुर्ती सिलने का अनुरोध कर रही है।
 
५-आपु दे सजाई मां- यह एक भजन रुपी लोकगीत है, जिसमें नायिका अपनी ईष्ट देवी से शादी की कामना कर रही है। यह गीत सुश्री प्रमिला जोशी ने गाया है।
 
६- लूण भरी दूंण- यह शब्द समूह एक प्रकार की लोकोक्ति है, नैटवाड़-रवांई इलाके में यह कहावत प्रचलित है। दूंण का अर्थ है एक मात्रा को समाहित करने वाला बर्तन, जिसकी सीमा ४० किलो लगभग होती है। व्यंग्यात्मक रुप से इसे प्रयोग किया जाता है कि तुम्हारे पास ४० किलो सामान तो है, लेकिन वह नमक है। यह गीत भी नैटवाड़ और रवांई क्षेत्र का लोकगीत है, जिसमें अकबरु नाम का वीर भड़/पैक है और वह शौंली नाम की लड़की से प्यार करता है, इस गीत में उन दोनों के बीच का वार्तालाप है।
 
७- मेरि शुनिता- यह जौनपुर इलाके का प्रचलित लोकगीत है, जिसे रजनीकान्त ने इसके मूल स्वरुप में भी गाया है।
 
इस एलबम में कुछ पारम्परिक शब्दों का प्रयोग किया गया है। जैसे- गेंदूं केत्ता, रासौ और झुमेलो। गेंदू केत्ता इस क्षेत्र में बजने वाले ढोल-दमाऊं की एक ध्वनि है। रासौ का अर्थ रास से है, जिसमें गांव के महिला-पुरुष अलग-अलग समूहों में एक-दूसरे के हाथ में हाथ डालकर नृत्य करते हैं। इसी प्रकार से झुमेलो भी एक पारम्परिक नृत्य है।

हेम पन्त

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पौलैण्ड में मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए रजनीकान्त सेमवाल..

पंकज सिंह महर

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रोमांस, डांस और खुदेड़ गीतों का संगम हे रमिए  देहरादून, जागरण संवाददाता: पोलैंड के क्राको शहर के बाद शनिवार को दून में युवा गढ़वाली गायक रजनीकांत सेमवाल की ऑडियो सीडी हे रमिए. का विमोचन हुआ। सीडी में गढ़वाली व जौनसारी गीत पॉप, हिपॉप व रीमिक्स का ऐसा मिश्रण हैं, जिन पर न चाहते हुए भी पांव थिरकने लगते हैं। सीडी का विमोचन स्वयं गायक रजनीकांत सेमवाल ने किया। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी जरूरत अपनी अमूल्य लोक विरासत को नई पीढ़ी को सौंपना है। यह तभी हो सकता है, जब पुराने और वरिष्ठ लोग नवोदित पीढ़ी की पसंद को समझें। युवा पीढ़ी नई धुनों पर अपने लोकगीत सुनना चाहती है तो इसमें बुराई नहीं है। इसी बहाने लोक संगीत में नव प्रयोग का सिलसिला भी शुरू होगा। सीडी में लोक गीतों के साथ रोमांटिक, डांसिंग व खुदेड़ गीतों का अनूठा संगम है। पहला गीत पोस्तु का छुमा चोपती नृत्य पर आधारित है। दूसरा ऐला चाचा हिपहॉप स्टाइल में है। इसी स्टाइल ने नई पीढ़ी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। गीत हे रमिए एकल प्रेमव्यथा पर केंद्रित है तो तुमारी याद मा प्रेम के पावन संबंधों को उजागर करता है। मूखे मिलदी व नीलू ए जौनसारी प्रेमगीत हैं, जो उत्तराखंडी संगीत के उजले पक्ष की आशा बंधाते हैं। इस मौके पर साहित्यकार मुकेश नौटियाल, प्रदीप सिंह, अमेंद्र बिष्ट, विनीत उनियाल, सुशील, पामेष अग्रवाल, अमित विश्नोई, सुरक्षा रावत, प्रमिला जोशी, मधु ममगाई मौजूद थे।   स्रोत- दैनिक जागरण (५ दिसम्बर) 


Devbhoomi,Uttarakhand

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रजनीकांत जी को तिकुलिया मामा की सफलता के लिए बधाई,लेकिन रजनीकांत जी आपको अभी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी,और आपको सावधान भी रहना होगा,उन लोगो से जो की एक दुसरे को देखकर जलन करते हैं,उत्तराखंडी संगीत के बाज़ार में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि एक अछे उभरते हुए गायक को आगे आने किसी भी तरह से उनके रास्ते में बिडम्भ्नाएं पैदा करते हैं !

ऐसे लोगों से सभी उभरते हुए गायकों को सावधान रहना होगा,ऐसे भी लोग हैं इस उत्तराखंडी संगीत की दुनिया  में जो की गायकों से एल्बम तैयार करवा करके,भूल जाते है और पैसे तो दूर की बात है,उनकी एल्बम को दुसरे कम्पनियों को बेचकर गायब हो जाते हैं !और वो वेचारा गरीब केवल  सपने ही देखते रहा जाता है है की उसकी एल्बम जल्दी आने वाली है ,लेकिन  ये उसका एक सपना बनकर रह जाता है !

 सेमवाल जी ये कोई कहानी नहीं है में आपको और सभी लोगों एक हकीकत बता रहा हूँ ,जिसके मेरे पास पुक्ता सपूत भी हैं और उन गायकों को में जनता हूँ जिन्होंने अपनी गरीबी की कमाई  इस उत्तराखंडी संगीत के काले बाज़ार में लगा दी है और आज भी उसी सपने को देख रहे हैं की कभी तो होगा उजाला जब उनकी कमाई से बनी गीतों की एल्बम इस के गीत लोगों के कानें में सुनाई देंगें !

लेकिन ये तो सपना ही और इन काला बाजारियों ने उनके रस्ते में रोड़े अटका दिए हैं ,और कुछ उत्तराखंडी उभरते गायक ऐसे भी हैं जिनकी आवाज में  गजब की मिठास हैं लेकिन लेकिन क्या करें इन काला बाजारियों उस आवाजी मिठास को बंद कर दिया है ! इस लिए सभी उभरते गायकों से मेरी विनती है की सावधान रहो और अपने कदम बढाते जाओ !


जय देवभूमि उत्तराखंड




 

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