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Uttarakhand Film Industry - कब बनेगी उत्तराखंड की फ़िल्म इंडस्ट्री एव टीवी चैनल

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dataram Chamoli
* HNB Garhwal Universityरंगीली बैराट से रंग घाटी तकOctober 11, 2013 at 5:16pm

उत्तराखण्ड में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। यदि क्षेत्रीय फिल्में पर्यटन विकास को बढ़ावा देती हैं तो राज्य सरकार को उन्हें तहेदिल से प्रोत्साहित करना चाहिए।

अस्सी के दशक में गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ और कुमाऊंनी फिल्म ‘मेघा आ’ से शुरू हुआ उत्तराखण्डी फिल्मों का सफर इस वक्त संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। पहाड़ में सिनेमा घरों के कम होने और वीडियो, टेलीविजन एवं केबल टीवी के आने से बड़े पर्दे की फिल्मों के निर्माण पर गहरा असर पड़ा। नतीजतन आज उत्तराखण्डी सिनेमा सीडी के सहारे ही जीवित है। ऐसे समय में कोई निर्माता-निर्देशक उत्तराखण्डी फिल्म बनाता है तो निश्चित ही यह साहस का काम है। पिछले वर्ष दिल्ली अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हो चुकी  हिमाद्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘राजुला’ अब 18 अक्टूबर से दिल्ली के सिनेमा घरों में भी रिलीज होने जा रही है। दर्शक पीवीआर के सिनेमा घरों में इसका आनंद उठा सकेंगे।यह फिल्म दर्शकों को कितना आकर्षित कर पाती है। इसके लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा।लेकिन फिलहाल निर्माता-निर्देशक का प्रयास इस दृष्टि से सराहनीय कहा जा सकता है कि उन्होंने फिल्म के जरिये लोगों में जोहार के सांस्कृतिक और प्राकृतिक पर्यटन को जानने की इच्छा जागृत की है। जोहार के दृश्य देखकर दर्शकों में इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और यहां की संस्कृति को विस्तृत रूप से देखने की उत्सुकता पैदा हो सकती है। यही उत्सुकता पर्यटन और शोध की कई संभावनाओं को जन्म देती है।
जोहार क्षेत्र की अपनी एक विशिष्ट सभ्यता है। भाषा यहां भी कुमाऊंनी ही है। लेकिन ऊंचे कद-काठी के लोगों के चेहरे काफी हद तक लामाओं से मेल खाते हैं। पिथौरागढ़ से यहां पहुंचने वाले लोग ओगला, अस्कोट, बगड़ीहाट, जौलीजीवी आदि जगहों के सामाजिक,
सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिचित होते हैं। अस्कोट और सोर घाटी में थल केदार और ध्वज जैसे कई ऐतिहासिक मंदिर हैं। जिनके कपाट मंजीरकांडा के भट्ट ब्राह्मण खोलते रहे हैं। इसी तरह जौलजीवी न सिर्फ भारत-तिब्बत व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा, बल्कि मकर संक्रांति के मौके पर कभी यहां ‘गंगनान’ यानी धौली और काली के पावन संगम पर स्नान करने वालों का बड़ा मेला लगता था। कुमाऊं मंडल के दूर-दूर के लोग यहां पहुंचते थे। इसी जौलजीवी की बाईं ओर जोहार क्षेत्र पड़ता है। मुनस्यारी से ऊपर के इलाकों के  प्राकृतिक  दृश्य मन मोह लेते हैं। मिलम ग्लेशियर और पंचचूली घाटी का  प्राकृतिक  सौंदर्य दुनिया के जाने-माने पर्यटक स्थलों से किसी भी तरह कम नहीं है।
जौलजीवी से आगे बलुआकोट और वहां से 16 किलोमीटर की दूरी पर धारचूला पड़ता है। धारचूला से 17 किलोमीटर दूर नारायण नगर फिर तवाघाट और ताकलाकोट पड़ते हैं। इसके आगे तिब्बत शुरू हो जाता है। जोहार के बहाने जो लोग जौलीजीवी पहुंचेंगे उन्हेंनिश्चित ही यह जानने का अवसर भी मिलेगा कि धारचूला के आगे जोहार सभ्यता से अलग ‘रंग सभ्यता’ बसती है। जहां के लोग कद-काठी औरचेहरे से मंगोलियन लगते हैं। भाषा भी उनकी कुमाऊंनी से अलग है। नारायण नगर में प्रसिद्ध नारायण स्वामी मंदिर है,1902 में दक्षिण से यहां की यात्रा पर आए  संत नारायण स्वामी ने 1907 में इसकी स्थापना की थी।
कालीनदी के पश्चिमी तट पर स्थित कैलाश मनसरोवर के निचले इलाके को पर्वतराज का क्षेत्र माना जाता है। उसकी पुत्री पर्वती को भादौ की अष्टमी के दिन शिव (महेश्वर) के साथ विदा करने की परंपरा यहां की संस्कृति का अभिन्न अंग है। रंगीली बैराट से लेकर जोहर और रंग घाटी तक तीर्थाटन की परंपरा काफी समृद्ध थी। साधु-संतों का उस वक्त यहां काफी आवागमन था। बगड़ीहाट के नीचेकैलाश जाने वाले साधु-संतों का विश्राम स्थल है। संभवतः पहेल जोहार से भी कैलाश मानसरोवर के लिए कोई रास्ता जाता रहा हो। यह शोध का विषय है कि यह रास्ता कहां से रहा होगा?
बैराट के राजाओं के गुरु गोरखानाथ थे।साबर मंत्र इन्हीं की देन मानी जाती है। कहने का आशय यही है कि उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों को फिल्मों के माध्यम से दुनिया तक पहुंचाया जाता है, तो राज्य सरकार को तहेदिल से ऐसी फिल्मों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसी से उत्तराखण्ड फिल्म चैंबर्स आॅफ काॅमर्स ने गठन की व्यावहारिकता सार्थक हो सकेगी। यदि क्षेत्रीय स्तर पर अच्छी फिल्में बनती हैं तो इनके जरिये प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। बांग्ला, भोजपुरी, दक्षिण भारतीय फिल्मों से निकली कई प्रतिभाओं ने बाॅलीवुड में अपना लोहा मनवाया है। एक समय में उत्तराखण्ड में रामलीलाएं और रंग-मंच सशक्त था तो वहां की प्रतिभाएं रंगमंच और फिल्म जगत में उभरकर आईं। लेकिन आज वहां न तो ‘पन्ना धाय’, ‘पांखु’ जैसे अच्छे नाटक लिखे जा रहे हैं और न ही कोई फिल्म बनाने का साहस कर पा रहा है। ऐसे में प्रतिभा विकास पर बुरा असर पड़ना स्वाभाविक है।(दि संडेपोस्ट अंक 17, 20 अक्टूबर 2013)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
छोलिया नृत्य पर बनेगी 'छोलियार'

उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकनृत्य छोलिया पर छोलियार फीचर फिल्म बनेगी। गैरसरकारी संगठन दीया के बैनर तले निर्माणाधीन फिल्म की पटकथा छोलिया कलाकारों के संघर्ष, उनकी दिनचर्या, दिक्कतें व इतिहास पर आधारित है। फिल्म की शूटिंग दिल्ली में शुरू हो गई। उसके बाद शूटिंग नैनीताल के समीमवर्ती क्षेत्रों में होगी।

मंगलवार को नैनीताल क्लब में फिल्म निर्माता दीपक धामी व निर्देशक कमल मेहता ने पत्रकारों से वार्ता में कहा कि उनका उद्देश्य छोलिया नृत्य को बड़े स्तर पर दिखाने का है। फिल्म निर्माण से पूर्व छोलिया नृत्य पर चार साल शोध किया गया और इस नृत्य से जुड़े कलाकारों, उनके परिवार की सोच के बारे में जानकारी जुटाई गई। उत्तराखंड का छोलिया नृत्य वीरता का प्रतीक है, लेकिन यह समुदाय विशेष का बनकर रह गया है। इस मिथक को तोड़ने के लिए फीचर फिल्म तैयार की जा रही है। फिल्म के गीतकार नैनीताल के हेमंत बिष्ट, गायक चम्पावत के उदीयमान कलाकार पवनदीप राजन, नायक दीपक धामी, नायिका नैनीताल की ऋतिका दोसाद, रीना मेहरा, खलनायक मिथिलेश पांडे हैं। सीरियल 'सास भी कभी बहू थी', पहाड़ी फिल्म 'चेली' व हिंदी फिल्म 'गदर' के निर्माता कमल मेहता का कहना है कि जब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी डांडिया नृत्य कर सकते हैं तो उत्तराखंड के सीएम छोलिया क्यों नहीं। इस दौरान फिल्म की सह निर्देशक अनुशा, रितेश सागर, राजेश आर्य आदि मौजूद थे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
'बेटा उत्तराखंड पर फिल्म बनाओ' - तिग्मांशु धूलिया की मां सुमित्रा धूलिया की तमन्ना

गैग्स ऑफ वासेपुर से लाइम लाइट में आए तिग्मांशु धूलिया की मां सुमित्रा धूलिया की तमन्ना है कि वह उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति पर फिल्म बनाएं ताकि रुपहले परदे पर इस हिमालयी राज्य को भी पहचान मिले।

वह चाहती हैं कि यहां के कलाकारों के हौसलों को नई उड़ान मिल सके। वंसत विहार निवासी सुमित्रा धूलिया ने अमर उजाला को पर बताया कि बेटा अक्सर मार-धाड़ वाली फिल्में बनाता है। ऐसे मैं चाहती हूं कि वह उत्तराखंड में फिल्म बनाए। फिल्म में यहां के शहीदों के साथ खास विषयों को उठाए।

मुंबई पहुंचकर मां ने बेटे तिशु से इस मुद्दे पर गहन मंत्रणा की। मां की इस सलाह से प्रभावित तिग्मांशु ने भी अब उत्तराखंड में काम करने की इच्छा जताई है।

मां ने बेटे को थीम भी दे दिया
मां सुमित्रा धूलिया ने बेटे से कहा कि श्रीदेव सुमन पर फिल्म बनाई जा सकती है। रामी बौराणी, राजुला-मालूशाही सहित उत्तराखंड की ऐसी कई कहानियां हैं जिन पर काम किया जा सकता है। सुमित्रा ने उम्मीद जताई कि उनका बेटा जल्द यहां के किसी विषय पर फिल्म बनाएगा और स्थानीय कलाकारों को भी मौका देगा।

अक्सर भइया से कहती हैं
अम्मा तो अक्सर भइया से कहती है कि गढ़वाली विषयों को उठा, इन पर फिल्म बना। तिग्मांशु के वसंत विहार स्थित घर में काम करने वाले चंद्रशेखर ने बताया कि अम्मा अपने बेटे तिशु से कहती हैं कि तू कब उत्तराखंड पर फिल्म बनाएगा।

आंचलिकता को भी मिले मौका
रंगकर्मी अभिषेक मैंदोला का कहना है कि तिग्मांशु धूलिया की फिल्मों की कहानी अक्सर इलाहाबाद-कानपुर के आसपास घूमती है। यहां के कलाकारों को भी उनसे उम्मीद है कि गढ़वाली आंचलिकता को लेकर वह फिल्म बनाएं और स्थानीय लोगों को अभिनय का मौका दें। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 'फिल्मों के लिए उत्तराखंड है बेस्ट लोकशन'
मसूरी में आयोजित हो रहे विंटर कार्निवाल में प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने और फिल्म निर्माण के साथ ही लोकेशन पर पैनल डिस्कशन हुआ।

बेहतरीन लोकेशन
डिस्कशन में फिल्म निर्देशक तिग्मांशु धूलिया, फिल्म अभिनेता जिमी शेरगिल और पर्यटन सचिव उमाकांत पंवार ने कई पहलुओं पर गंभीर चर्चा की। पैनलिस्टों का मानना है कि उत्तराखंड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां फिल्मांकन के लिहाज से बेहतरीन लोकेशन हैं।

चर्चा को वरिष्ठ पत्रकार सतीश शर्मा ने कोआर्डिनेट किया। पालिकाध्यक्ष मनमोहन सिंह मल्ल, उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के सदस्य संदीप साहनी, कर्नल एस एस सिंह, अंजलि, पर्यटन विभाग के अधिकारी मौजूद थे।

बाद में आवास विकास और पेयजल सचिव एम एच खान, जिलाधिकारी बीवीआरसी पुरूषोत्तम, फिल्म अभिनेता विवेक ओबराय ने भी पर्यटन बढ़ाने के मुद्दे पर अनौपचारिक बातचीत की।

परिचर्चा में किसने क्या कहा
फिल्म निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने कहा कि गढ़वाली और कुमाउंनी में साल में कम से कम एक-एक अच्छी फिल्म बनाई जाए। इसमें सरकार को भी मदद करनी चाहिए। युवाओं के लिए वर्कशॉप के साथ यहां फिल्म सिटी और डुपलेक्स थियेटर बनाए जाएं।

धूलिया ने कहा कि वह अपनी फिल्मों की शूटिंग उत्तराखंड में करना चाहते हैं लेकिन बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से दिक्कत आती है। बताया कि वह फरवरी में उत्तराखंड भ्रमण कर फिल्मों के लिए लोकेशन की तलाश करेंगे।

पंजाब में रोजाना चलते हैं 700 शो
फिल्म अभिनेता जिमी शेरगिल का कहना है कि पंजाब में शुरुआती दौर में रीजनल फिल्में नहीं बनती थीं। अब हालत यह है कि प्रतिदिन यहां रीजनल फिल्मों के 700 शो चलते हैं।

बताया कि उनका मसूरी और उत्तराखंड से पुराना नाता रहा है। जिमी ने कहा कि तिग्मांशु जो भी फिल्म उत्तराखंड की बोली या हिंदी में निर्देशित करेंगे वह उसमें भूमिका निभाएंगे।

पर्यटन सचिव उमाकांत पंवार ने कहा कि भविष्य में अच्छे बजट की गढ़वाली और कुमाउंनी फिल्म का निर्माण किया जाएगा।

इसके लिए सरकार भी मदद करेगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में शीघ्र ही फिल्म नीति बनाई जाएगी जिसमें जाने-माने फिल्मकारों की सलाह ली जाएगी।

थियेटर निर्माण में भी सरकार मदद को तैयार है। उन्होंने माना कि आपदा के बाद जिस तेजी से पर्यटन व्यवसाय को ढर्रे पर लाने के लिए काम किया जाना चाहिए था, वह नहीं हुआ।http://www.dehradun.amarujala.com/news/dehradun-club/uttarakhand-has-best-location-for-bollywood/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

क्षेत्रीय फिल्म उद्योग को पुनर्जीवित करने की पहल

देहरादून : उत्तराखंड फिल्म एंड टीवी प्रोग्राम प्रोड्यूसर एसोसिएशन ने क्षेत्रीय फिल्म उद्योग को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। एसोसिएशन क्षेत्रीय फिल्म उद्योग की दशा और दिशा पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी, जिससे भविष्य का ठोस आधार तैयार किया जा सके। एसोसिएशन ने अपनी इस पहल के तहत विचार गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया है। नवंबर में होने वाली इस गोष्ठी में 'उत्तराखंड फिल्म परिदृश्य एवं फिल्म विकास' विषय पर मंथन होगा। साथ ही राज्य में फिल्मों के विकास के लिए ठोस नियमावली तैयार करने के लिए सुझाव भी दिए जाएंगे।

शनिवार को ईसी रोड स्थित एक होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में एसोसिएशन के अध्यक्ष शिव पैन्यूली ने बताया कि नवंबर के तीसरे सप्ताह में देहरादून में क्षेत्रीय फिल्म उद्योग से जुड़े विषयों पर गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। इसमें राज्य के प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता और टीवी कार्यक्रम निर्माता अपने कार्यो का प्रदर्शन भी करेंगे। साथ ही राज्य में क्षेत्रीय फिल्मों के विकास पर विचार-विमर्श किया जाएगा। फिल्म निर्माता अशोक चौहान ने बताया कि राज्य में क्षेत्रीय फिल्म निर्माताओं की संख्या तकरीबन 60 से 65 के बीच है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं। फिल्म निर्माता सुनील बडोनी ने कहा कि राज्य बनने के बाद क्षेत्रीय फिल्म उद्योग को प्रोत्साहित ही नहीं किया गया। इस अवसर पर फिल्म निर्माता देबू रावत, राम नेगी, कैलाश कंडवाल सहित अन्य कई लोग उपस्थित रहे। Dainik Jagran

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