मानेश्वर महादेव
शिखर पर बना मंदिर काफी प्राचीन है चम्पावत शहर से करीब 7 किमी दूर चम्पावत – पिधौरागढ मोटर मार्ग से 1 किमी की दूरी पर प्राक़तिक सुषमायुक्त पर्वत शिखर पर बसा है कहावत है कि जब पांडव लोग अपने पितरो का श्राद्व करने मान सरोवर को जा रहे थे तब इस स्थान पर पहुचते –पहुचते श्रधा का दिन आ गया तब पांडव पुत्र् अर्जुन ने अपने गान्डीव से बाण मार चला कर जल धारा उत्तपन्न की व पितरों का श्राध तर्पण किया उसी वाण की गंगा से एक नौला वावली बना जो हमेशा जल से भरी रहती है इसका पानी अम़त तुल्य माना जाता है इस वावरी के जल से स्नान करने का अपना अलग ही आनन्द तथा महात्मय है यहां से चम्पावत शहर का द़श्य बहुत ही सुन्दर दि खाई देता है