Dosto,
Though, Girda is not amongst us but his contribution will always be remembered. This is programme dedicated to Girda and highlight his work which is source inspiration for all of us.
We cordially invite to join the programme on 04 Feb 2012 as per the details give above.
Here is Girda's few poem
जैंता एक दिन तो आयेगा
इतनी उदास मत हो
सर घुटने मे मत टेक जैंता
आयेगा, वो दिन अवश्य आयेगा एक दिन
जब यह काली रात ढलेगी
पो फटेगी, चिडिया चह्केगी
वो दिन आयेगा, जरूर आयेगा
जब चौर नही फलेंगे
नही चलेगा जबरन किसी का ज़ोर
वो दिन आयेगा, जरूर आयेगा
जब छोटा- बड़ा नही रहेगा
तेरा-मेरा नही रहेगा
वो दिन आयेगा
चाहे हम न ला सके
चाहे तुम न ला सको
मगर लायेगा, कोई न कोई तो लायेगा
वो दिन आयेगा
उस दिन हम होंगे तो नही
पर हम होंगे ही उसी दिन
जैंता ! वो जो दिन आयेगा एक दिन इस दुनिया मे ,
जरूर आयेगा,
(वप्नदर्शी डा. सुषमा नैथानी)
------
कैसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न अक्षर कान उखाड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न भाषा जख़्म उघाड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां अंक सच-सच बतलाएं, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां प्रश्न हल तक पहुंचाएं, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न हो झूठ का दिखव्वा, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न सूट-बूट का हव्वा, ऐसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां किताबें निर्भय बोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
मन के पन्ने-पन्ने खोलें, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न कोई बात छुपाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न कोई दर्द दुखाये, ऐसा हो स्कूल हमारा
कैसा हो स्कूल हमारा
जहां न मन में मन-मुटाव हो, जहां न चेहरों में तनाव हो
जहां न आंखों में दुराव हो, जहां न कोई भेद-भाव हो
जहां फूल स्वाभाविक महके, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां बालपन जी भर चहके, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न अक्षर कान उखाड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहां न भाषा जख्म उघाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमारा
ऐसा हो स्कूल हमारा