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गढ़वाल लोक कला मंच (UK) : बूंखाल मेला पौड़ी गढ़वाल

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अन्नू रावत (9871264699):
धूम- धाम से मनाया गया "बूंखाल मेला" 01,Dec.2012,
पैठाणी (गढ़वाल)। तकरीबन चार सौ साल पुराना एतिहासिक बूंखाल मेला प्रशासन के लिए चुनौती बना हुआ था है।
लंबे समय से बलि रोकने के प्रयास आखिरकार सफल हो ही गया ।
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

This is welcome step i can say. In many temples, animal victimization has stopped after unanimous decision taken by the villagers.

MANOJ BANGARI RAWAT:
Date : 05 Dec 2013
जागरण प्रतिनिधि पौड़ी:
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निरीह पशुओं के खून से रक्तरंजित होने वाली बूंखाल की धरती पर अब वासंती रंग चढ़ने लगा है। मंदिर के पास जिन खेतों में पशुबलि होती वहां सरसों लहलहा रही है। यह सब कालिंका मंदिर बूंखाल में पशुबलि बंद होने से हुआ है। सात्विक पूजा में बजने वाली मंदिर की घंटी भी अब सुकून दे रही है। आगामी सात दिसंबर को यहां मेला लगेगा, लेकिन इस बार भी पशुबलि के बजाय सात्विक पूजा होगी।

दरअसल, विकासखंड थलीसैंण के तहत आने वाला बूंखाल कालिंका मंदिर में मेला लगता है, इस मेले में सैकड़ों की तादाद में नर भैंसों व हजारों बकरों की बलि दी जाती थी। यह सब खुद की रक्षा, सुख-समृद्धि की मनौती के लिए होता था, लेकिन बदलाव की बयार के साथ लोगों ने अब इस प्रथा से निकारा कर लिया है। पूर्व की बात करें तो बूंखाल में पशुबलि रोकने निजी संगठनों व सरकार की ओर से काफी प्रयास प्रयास हुए, लेकिन पिछले वर्ष यानी 2012 लोगों ने खुद ही इस कुप्रथा परित्याग कर दिया। पिछले वर्ष से मंदिर में पशुबलि नहीं हो रही है। इससे मंदिर परिसर के आसपास जिन खेतों में पशुबलि का क्रूर खेल होता था, वहां पर सरसों के पीले फूल खिलें हैं। अब इस वर्ष भी लोग सात्विक पूजा कर देवी से मनौतियां मांगेंगे।

वर्षो से चल रही किसी प्रथा को रोकना चुनौती होता है। बूंखाल कालिंका मंदिर में पशुबलि बंद कर क्षेत्रवासियों ने सराहनीय कार्य किया। सात दिसंबर को होने वाले मेले को लेकर स्थानीय लोगों व प्रशासन की बैठक में सात्विक पूजा का कार्यक्रम तय किया गया है।

जीआर बिनवाल, एसडीएम थलीसैण

MANOJ BANGARI RAWAT:
बूंखाल मेले की तैयारियां जोरों पर
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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013
PauriUpdated @ 5:44 AM IST
पौड़ी। राठ क्षेत्रवासियों की आराध्य देवी मां कालिंका बूंखाल में सात दिसंबर को लगने वाले बूंखाल मेले की तैयारियां जोरों पर है। गांवों से देवी मंदिर में लाई जाने वाली देवी-देवताओं की डोलियां सजने लगी हैं।
बूंखाल मेला पहले पशुबलि के चर्चित था। क्षेत्रवासियों, प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं के प्रयास से पिछले दो साल से मेले में पशुबलि बंद हो गई। मेले में पिछले साल से लोगों की ओर से देवी को चढ़ाने के लिए बागी के स्थान पर देवी-देवताओं की डोली लाई जा रही है। इस परंपरा की शुरूआत पिछले साल डांडी-कांठी संस्था की ओर से शुरू की गई। डांडी कांठी संस्था के राकेश खंकरियाल, सुरेंद्र नौटियाल, संजय नौटियाल, भूपेंद्र सिंह रावत, जितेंद्र नेगी ने बताया कि मेले को लेकर लोगों को काफी उत्साह है।

चैक पोस्ट बनाने का कार्य शुरू
बूंखाल मेले को शांतिपूर्वक तरीके से संपन्न कराने के लिए प्रशासन ने बूंखाल मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्रों में चैक पोस्ट बनाने शुरू कर दिए हैं। थलीसैण के उपजिलाधिकारी जीआर बिनवाल ने बताया कि इसके तहत बेला बाजार, पैठाणी, मुसांगली, पिठुंडी, चोपड़ा, नलई, मेलसैण समेत विभिन्न जगहों पर चैक पोस्ट स्थापित की जा रही हैं।

मेले में होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम
मेले में इस बार भी युवा कल्याण विभाग की पहल पर कलाकारों की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे। जिला युवा कल्याण अधिकारी केकेएस रावत ने बताया कि कार्यक्रम राजकीय इंटर कालेज चौंरीखाल में आयोजित होंगे। सांस्कृतिक कार्यक्रम में लोक गायक अनिल बिष्ट एवं साथी कलाकारों पर कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे।

अन्नू रावत (9871264699):
Thanks for sharing very useful information About Bunkhal Maa Kanlinka

Jai Mata Di

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