वैसे देखा जाय तो एकता की नहीं बल्कि इस भाव की कमी है कि आओ मिलकर अपने पहाड़ के लिये कुछ करें, इस पहाड़ ने हमें बहुत कुछ दिया है।
इसी पहाड़ीपन ने पूरे देश और विश्व में हमें ईमानदारी का भाव दिया है, कर्तव्यनिष्ठा और अनुशासन का भाव दिया है। दुनिया की तो मैं बात नहीं करुंगा लेकिन आप पूरे भारत में कहीं जांये और अपना परिचय एक उत्तराखण्डी के रुप में दें तो उनका भाव यह होगा कि आप बहुत मेहनती, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हैं।
जहां तक एकता की बात है तो मैं तो यही कहूंगा कि हममें उक्त सब के अलावा एक और अच्छी (लेकिन आज के हिसाब से गलत) भावना है, वह है भावुक होना। कुछ संकीर्ण और स्वार्थी लोगों की बात पर हम भी भावुक होकर उनके पीछे चलने लगते हैं और यहीं से हमारी एकता विखण्डित होती है। हमें अपने राज्य की उन्नति के लिये सोचना चाहिये। जब से राज्य बना है, उसके मुख्यमंत्री की एक ही अपलब्धि छपती रहती है कि इस मुख्यमंत्री ने केन्द्र से इतना पैसा के लिया, इस वाले ने ज्यादा ले लियी, इस वाले ने कम ले लिया। उपलब्धि तब होती जब अपने बूते प्रदेश का आत्मनिर्भर बजट यहां की सरकार पेश करती।
एकता में कहीं पर अगर कमी है तो उसका प्रमुख कारण राजनीति और निजी स्वार्थ हैं, लोग इसके पीछे, पैसे के लिये ओरों को तो छोड़ो अपने आत्मसम्मान, स्वाभिमान तक को दांव पर लगा देते हैं। भाव होना चाहिये, हममें स्थानीयता Navitism का भाव होना चाहिये। इसी छोटी-छोटी स्थानीयता से ही समग्र राष्ट्रीयता होती है। एकता की कमी नहीं है, उसे जागृत करने की आवश्यकता है और उसे सही दिशा देने की जरुरत है।
यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तराखण्डियों में एकता की कमी है, कमी नहीं है बस इसे एक मोड़ देने की कमी है, इसे एक भाव देने की कमी है, जो वक्त आने पर स्वयं ही सही हो जायेगी। जब जरुरत पड़ती है तो सब सही हो जाता है। अभी उत्तराखण्ड का प्रारम्भ है, अभी तक जिस लाईन पर उत्तराखण्ड को कुशल राजनीतिज्ञों द्वारा चलाया गया, विखण्डन की नीति से काम किया गया, यह उसका क्षणिक प्रतिफल है। लेकिन आज आम आदमी भी बहुत विचारशील है वह अच्छा-बुरा सोच सकता है। ऐसे विघटनकारी ताकतों को एक दिन उत्तराखण्ड की जनता माकूल जबाब देगी।
अपनी ओर से संघर्ष जारी रखें, हम ऐसी भावना न पालें और इंटरनेट के माध्यम से भी लोग विखण्डन की काफ कोशिशें करते हैं, लेकिन जिसे करना है वह करता रहे। हम ऐसा न सोच सकते हैं, न कर सकते हैं। उत्तराखण्ड की एकता एक मिशाल थी, मिशाल है और मिशाल ही रहेगी, कोई भी इसे तोड़ नहीं सकता। क्षणिक नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन तोड़ नहीं सकता और हमारी एकता पर प्रश्न चिन्ह लगाने का सवाल भी मेरे नजर में फिजूल है।