Poll

 क्या आप मानते है कि उत्तराखंडियो में एकता की कमी है ?

Yes
45 (72.6%)
No
13 (21%)
Can't Say
2 (3.2%)
No Comment
2 (3.2%)

Total Members Voted: 61

Voting closes: February 07, 2106, 11:58:15 AM

Author Topic: Do you Feel Uttarakhandi Lack of Unity- क्या आप मानते है उत्तराखंडियो एकता नहीं  (Read 12150 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दोस्तों,

वैसे जम्मू से कन्या कवारी तक और कल्कोता के गुजरात तक हिंदुस्तान एक है! हिंदुस्तान के हर राज्य की अलग की करीब -२ अलग भाषा एव अलग संस्कर्ती है फिर पूरा भारत एक है ! लेकिन कई बार देखा गया है कि किसी भी संस्कर्ती को बढावा देने ले लिए और अपने -२ राज्यों के विकास के लिए लोग आगे आते है !

लेकिन उत्तराखंड में यह कई बार देखा गया है कि लोग अपने लोगो एव संस्कर्ती के लिए एक जुट कम हो पाते है !

लेकिन अल्प समय में ही हम लोग नए -२ ग्रुप बना लेते है!  दिल्ली में ही देख लीजिय सेक्टर में उत्तराखंड के अलग-२ संगठन है! क्यों लोग एक संगठन में रह कर काम नहीं कर पाते !

Generally seen there are many social group form but they do not run long. This somewhere shows lack of unity.


मेरा मानना है किसी भी सामाजिक ग्रुप यहाँ तक राजनीतिक पार्टियों में जब तक विचार धरा एव उद्देश स्पस्ट ना हो, एक न एक दिन लोग उस पार्टी या संगठन से लोग अलग हो जायेंग !

मैंने उत्तराखंड के कई ग्रुप में देखा है जो ग्रुप में मुखिया एव मुख्य कार्यकर्ता होते है वो अपने को उत्तराखंड राज्य के मुख्य मंत्री के भाति समझते है और समाज सेवा की भावना उनमे एक दम ख़तम हो जाती है! में यहाँ पर दिल्ली एव मुंबई के कुछ हमारे उत्तराखंड के संगठनो की लिस्ट इस लिंक में दे रहा हूँ जो की सराहनीय काम कर रहे है, लेकिन मुझे कही ना कही लगता है हमारे सारी ताकत बिखरी हुयी है ! एक ही सेक्टर में कई प्रकार के ग्रुप देखता हूँ और लोगो की आपसी कलस भी !

            -     क्या उत्तराखंड ग्रुप में उलझ गया है ?
            -     क्या लोग अपने नाम के लिए ही ग्रुप चलते है ?
            -     नेकी कर दरिया में डाल भावना क्यों गायब है ?
            -     उत्तराखंड को लोग कुमाओं एव गडवाल में विभाजित करने की कोशिश में क्यों लगे रहते है ?

See the links of Uttarahandi social groups :

http://www.merapahad.com/forum/functions-by-uttarakhandi-organizations/name-of-uttarakhandi-social-groups/

इस प्रकार के तमाम प्रशन है, आएये खुल कर इस विषय में बात करे और हमारे बीच जिस प्रकार के खामिया है उनको दूर करके उत्तराखंड की नव निर्माण की सोच पैदा करे..  


रेगार्ड्स,

एम् एस मेहता

Lalit Mohan Pandey

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मेहता जी ये बात बिलकुल सही कही है आपने, यदयपि हर कम्युनिटी वालू के बीच आपस मै मतभेद होते है, लेकिन बाहर वालू के बीच फिर भी वो अपने लोगु को महत्त्व देते है. जो सामाजिक रूप से उनके उत्थान का एक बहुत बड़ा कारन है. इसी लिए उनके समाज मै एकता है. अब अगर हमारे बीच क्यों नहीं इतनी एकता है, इनके पीछे क्या वजह है इसमें डिटेल मै जाया जे तो मुझे कुछ बिंदु नजर आते है जो निम्न लिखित है...
१) अगर हम इतिहास मै नज़र डाले, तो समाज उन्ही लोगु से बनता है, या फिर समाज के हिस्सेदार वही लोग बनते है, जिनकी समाज मै कुछ न कुछ dependency  होती है. हम एक ग्रुप तभी बनाते है जब हमें लगता है की हम अकेले मै सर्व समर्थ नहीं है. हम समाज से, ग्रुप से कुछ न कुछ in return expect करते है. इस मामले मै हमारा समाज (uttarakhandies) बहुत पीछे है, न तो हम अपने लोगु को सुप्पोर्ट करते है, न ही हम उन्हें आगे बड़ने मै कोई मदद करते है, जबकि Panjabies या फिर south indians  अपने लोगु का बहुत favor करते है.
२) और communities के कुछ socal gathering की परंपरा है, जबकि हममे कोए भी बड़े लेवल की gathering नहीं है. जैसे की gujratiyu mai garva, bangaliyu mai durga pooja etc etc... जहा पे पूरा समाज इक्कठा होता है. जबकि हमारी ramleelaye ab band hi ho chuki hai, holi bhi sirf jan pahchan walu se milne tak सीमित रह गयी है.
३) ज्यादातर communities के अपने स्कूल है जहा पे ज्यादा नहीं भी तो उनके बच्चू को कुछ favor जरुर मिलता है. इससे एक बड़ा फायदा ये भी होता है की बच्चे इन स्कूल्स मै पड़कर अपनी परम्पराऊ, culture, अदि के बारे मै जानते है. जो की अपने लोगु को जोड़ने / से जुड़ने के लिए बहुत जरुरी है.

मै एक बात यहाँ पे highlight करना चाहता हु, जब तक की as a समाज हम लोगु को कुछ मद्दत नहीं दे सकते, तो हम लोगु से ये भी expect नहीं कर सकते है वो हमसे जुड़ते जाये. हर उम्र, हर वर्ग, हर व्यक्ति की अपनी जरूरते होती है और समाज को उन सब की जरुरातु मै उनकी मदद को आगे आना होगा. अगर हम ये करने मै सफल रहे तो take my words ham bhi apne logu ko sath lane mai safal ho payenge.
ये १-२ साल पहले की बात है, हमारे कुछ group mail बनी है yahoo group मै, उनके किसी job consultency firm से daily ki 4-5 jobs se related mails ati thi.  Jiska ki jyadatar mambers ne virodh kiya tha or kaha tha ki in mails ko ban kiya jay. मैंने तब भी ग्रुप मै बहुत mails likhi thi logu ko ye batane ke liye ki hame apne young generation ki jaruratu ko samajhna chahiye.. jo log job search kar rahe hai unke liye ye mails bahut important hai. लेकिन लोगु का कहना था की ये group इस purpose से नहीं बना है. ये सिर्फ culture को बढावा देने के लिए बनी है आज ap sabhi log jante hai ki wo kitna culture ko badawa de rahe hai.
मै मेरापहाड़ को धन्यबाद देना चाहता हु की आपने लोगु की जरुरतु को समझते हुए, इन विषयु मै consultency शुरू कियी है. लेकिन जैसे की मै पहले भी लिख चुका हु की हर उम्र / हर वर्ग की अपनी अलग अलग जरूरते होती है और हमारे फोरम मै हर उम्र/ हर वर्ग के लोग जुडे हुए है इसलिए kindly future मै Health related consultency, property related consultency, investement related consultency etc etc bhi suru keeziye jaha pe ki jankar log bina kisi स्वार्थ ke logu ko sahi sahi राय de sake.

Dhanybad...
Lalit
09811656723   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pandey ji,

Thanks a lot for detailed views on this issue.

Actually, I have been observing this since long. I have made detailed of various social organizations of Uttarakhand who are no doubt doing great job. But the only question that every second a new group is formed. This is not understood.

However, I guess some people declare themselves as Chairman, Director etc of the group. This somewhere gives egoistic attitude to the Chairperson which later lead for separate of people from the group and forming new groups. It is seen that we people cannot work in any group and some people want to promote themselves.

I will give my details later on this subject.

Your other suggestion are very useful. We will defiantly invite people who want to social service by giving free consultancies.   


खीमसिंह रावत

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‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश्

व्यक्ति और समाज एक दूसरे के पूरक हैं समाज में ही रह कर वह उन्नति की नई उच्चाईयों को छू सकता है जीवन के हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से समाज की भागीदारी होती है किन्तु एक के बिना दूसरे की कल्पना तक नही की जा सकती हैं। आज की बदली हुई स्थितियों नेें हम सभी को अपने अपनों से तो दूर किया ही है साथ ही साथ रीति-रिवाजों, परिवारिक संस्कारों, संस्कृति व सांस्कृतिक त्यौहारों से भी अलग थलग किया है। अस्तु।

पाष्चात्य संस्कृति ने भारतीय जीवन षैली केा तार तार करने में कोई कसर नही छोडी है जहाॅ भी देखो हर तरफ एक ही चीज दिखाई पडती है हर तरह से प्रभावित कर रही है और निरन्तर अपनी ओर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोडती जा रही है। इसका असर हम सभी पर साफ झलकता है। किन्तु हमारे पर्वतीय लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति गहरा लगाव रहा हैं दिल्ली व अन्य महानगरों में पहाड की अनेक सामाजिक संस्थाओं द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमं इसका पुख्ता प्रमाण हैं। नगरों,महानगरों व विदेषों में बसा उत्तराखण्डी व्यक्ति और परिवार आज से 15, 20 साल पहले की अपनी स्थिति से बेहतर स्थिति मे है, हर क्षेत्र में हम पहले से ज्यादा संम्पन हो गये हैं सब तरह से परिपूर्ण होने के बावजूद हमारे समाज ने ऐसी कोई पहचान नही बनाई जिससे हम सीधे तौर पर जाने जाय, जैसे छट पूजा पर बिहार, बैषाखी पर पंजाब, ओणम पर दक्षिण भारत, गणेष उत्सव पर महाराष्टन्न्, दुर्गापूजा पर बंगाल।

कम्पनी बाग फिर लालकिला के पास होली रंग के दिन 3 बजे से लगने वाला होई कौत्तिक (होली मेला) का ह्नश्र क्या हुआ। अगर जरा सा हमने ध्यान दिया होता तो आज हम अपनी सांस्कृतिक पहचान बना लेते। इसके लिए व्यक्तिगत स्वार्थो से ऊपर उठकर समाज के प्रति सर्मपित होने का जनून चाहिए। कुमाऊँ सांस्कृतिक कला मंच ने इस ओर दिल्ली के सन्तनगर बुराडी क्षेत्र में एक छोटा सा फिर से प्रयास किया है यह जानते हुए भी कि कई सालों में हम सफल नही हो सकते हेैं सफल होने के लिएं एक नही कई दषक लग सकते है। अगर समाज का सहयोग निरन्तर मिलेता रहे और इस मषाल को जलाये रखने का जज्वा बना रहा तो हो सकता है कई दषकों बाद हम अपनी पहचान को बनाने में कामयाब हो जायें। ‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश् को बनाने लिए कुमाऊँ सांस्कृतिक कला मंच हर वड्र्ढ जनवरी माह में उत्तरैणी (मकर संक्रान्ति) के अवसर पर उत्तरैणी कौत्तिक का आयोजन करती है तथा उत्तरांचल गीत माला के द्वारा लोगों का ध्यान इस ओर आकृड्र्ढित करने की कोषिष करती हैं। वर्तमान समय में ‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश् को बनाने लिए श्री देवेन्द्र जोषी जी, श्री नन्दनसिंह लटवाल जी, श्री किषनसिंह नेगी जी, दिवानसिंह नेगी जी, धर्मपालसिंह कुमई जी, दिनेष भट्ट जी, हरीष नेगी जी, व राजेन्दर प्रसाद तिवारी जी का सहयोग उल्लेखनीय रहा है। लेखनी के धनी सुश्री मुमताज जी ने समाचार पत्रों के माध्यम से अपना सर्मथन व सहयोग दिया है। सफलता की ओर बढे तो इन महानुभावों के परिश्रम के पसीने (वित्तीय व सकारात्मक सोच) का समाज आभारी रहेगा।

समाज के सभी वर्गो से अपील की जाती है कि ‘‘उत्तरैणी हमारी पहचानश् एक सामुहिक प्रयास है जितना भी हो सके अपना सार्थक योगदान अवष्य दें।

नव वड्र्ढ की षुभ कामनाओं सहित।

खीमंिसह रावत

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavad Lalit ji aapke vicharon ke liye. Hum log aapke dwara sujhae gaye vishayon ko Mera Pahad main add karne ka jarur prayaas karenge.

मेहता जी ये बात बिलकुल सही कही है आपने, यदयपि हर कम्युनिटी वालू के बीच आपस मै मतभेद होते है, लेकिन बाहर वालू के बीच फिर भी वो अपने लोगु को महत्त्व देते है. जो सामाजिक रूप से उनके उत्थान का एक बहुत बड़ा कारन है. इसी लिए उनके समाज मै एकता है. अब अगर हमारे बीच क्यों नहीं इतनी एकता है, इनके पीछे क्या वजह है इसमें डिटेल मै जाया जे तो मुझे कुछ बिंदु नजर आते है जो निम्न लिखित है...
१) अगर हम इतिहास मै नज़र डाले, तो समाज उन्ही लोगु से बनता है, या फिर समाज के हिस्सेदार वही लोग बनते है, जिनकी समाज मै कुछ न कुछ dependency  होती है. हम एक ग्रुप तभी बनाते है जब हमें लगता है की हम अकेले मै सर्व समर्थ नहीं है. हम समाज से, ग्रुप से कुछ न कुछ in return expect करते है. इस मामले मै हमारा समाज (uttarakhandies) बहुत पीछे है, न तो हम अपने लोगु को सुप्पोर्ट करते है, न ही हम उन्हें आगे बड़ने मै कोई मदद करते है, जबकि Panjabies या फिर south indians  अपने लोगु का बहुत favor करते है.
२) और communities के कुछ socal gathering की परंपरा है, जबकि हममे कोए भी बड़े लेवल की gathering नहीं है. जैसे की gujratiyu mai garva, bangaliyu mai durga pooja etc etc... जहा पे पूरा समाज इक्कठा होता है. जबकि हमारी ramleelaye ab band hi ho chuki hai, holi bhi sirf jan pahchan walu se milne tak सीमित रह गयी है.
३) ज्यादातर communities के अपने स्कूल है जहा पे ज्यादा नहीं भी तो उनके बच्चू को कुछ favor जरुर मिलता है. इससे एक बड़ा फायदा ये भी होता है की बच्चे इन स्कूल्स मै पड़कर अपनी परम्पराऊ, culture, अदि के बारे मै जानते है. जो की अपने लोगु को जोड़ने / से जुड़ने के लिए बहुत जरुरी है.

मै एक बात यहाँ पे highlight करना चाहता हु, जब तक की as a समाज हम लोगु को कुछ मद्दत नहीं दे सकते, तो हम लोगु से ये भी expect नहीं कर सकते है वो हमसे जुड़ते जाये. हर उम्र, हर वर्ग, हर व्यक्ति की अपनी जरूरते होती है और समाज को उन सब की जरुरातु मै उनकी मदद को आगे आना होगा. अगर हम ये करने मै सफल रहे तो take my words ham bhi apne logu ko sath lane mai safal ho payenge.
ये १-२ साल पहले की बात है, हमारे कुछ group mail बनी है yahoo group मै, उनके किसी job consultency firm से daily ki 4-5 jobs se related mails ati thi.  Jiska ki jyadatar mambers ne virodh kiya tha or kaha tha ki in mails ko ban kiya jay. मैंने तब भी ग्रुप मै बहुत mails likhi thi logu ko ye batane ke liye ki hame apne young generation ki jaruratu ko samajhna chahiye.. jo log job search kar rahe hai unke liye ye mails bahut important hai. लेकिन लोगु का कहना था की ये group इस purpose से नहीं बना है. ये सिर्फ culture को बढावा देने के लिए बनी है आज ap sabhi log jante hai ki wo kitna culture ko badawa de rahe hai.
मै मेरापहाड़ को धन्यबाद देना चाहता हु की आपने लोगु की जरुरतु को समझते हुए, इन विषयु मै consultency शुरू कियी है. लेकिन जैसे की मै पहले भी लिख चुका हु की हर उम्र / हर वर्ग की अपनी अलग अलग जरूरते होती है और हमारे फोरम मै हर उम्र/ हर वर्ग के लोग जुडे हुए है इसलिए kindly future मै Health related consultency, property related consultency, investement related consultency etc etc bhi suru keeziye jaha pe ki jankar log bina kisi स्वार्थ ke logu ko sahi sahi राय de sake.

Dhanybad...
Lalit
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Risky Pathak

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मैं इस विचार से सहमत हूँ कि उत्तराखंड के लोगो में एकता की भावना की कमी है| महाराज एकता की बात तो थोडी दूर की बात है, यहाँ तो लोग खुद को उत्तराखंडी(पहाडी) कहने में ही शर्म महसूस करते है|  उत्तराखंड से बाहर और ऊँचे पद पर पहुँच कर तो व्यक्ति अपनी जड़ो को भूल जाता है| हम पलायन की बात करते है, पलायन की समस्या सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, बाकी कई अन्य राज्य भी झेल रहे है| पर उन सभी राज्यों के लोगों ने अपने राज्य से दूर रहकर भी अपनी अलग पहचान छोड़ी है, अपनी संस्कृति, अपने संस्कारों को नहीं भुलाया है| ऐसा एकता के बल पर ही इन लोगो ने संभव किया है|

तीज-त्यौहार आदि किसी भी संस्कृति की धरोहर है| इन्ही में शामिल होकर लोग एक दूसरो को अच्छी तरह जानते है| लोगो में एकता का भाव उमड़ता है| ये तीज-त्यौहार ही लोगों के एक बंधन में बांधते है| पर हम लोग थोडा हटकर सोचते है| हमें अपने यहा कुछ रोचक नहीं लगता है| हम लोगो को "५ दिन के होली गायन", "हरेला के तिन्डो" व "भिटौली" में कुछ रास नजर नहीं आता| हम जानते है कि लोहडी, गणेश चतुर्थी व दुर्गा पूजा ने आज ग्लोबल फेस्टिवल का रूप ले लिया है| पर हम यह नहीं समझते कि यह उन राज्यों के लोगो की एकता व अपनी संस्कृति से प्यार का फल है|

ऐसा नहीं है की हम लोगो में जरा भी एकता की भावना नहीं है| एकता थी तभी तो हमने अपना राज्य पाकर ही दम लिया| हाँ, हम लोगो में एकता ज्यादा दिन तक टिकती नहीं है और दूसरी बात हमारी एकता एक समूह में ना होकर भिन्न-भिन्न समूह में विभाजित है| ८०-९० के दशक की बात करें तो पहाडी आदमी ने अपने को स्थापित करने के साथ साथ शहरों में उत्तराखंड सम्बंधित समूह बनाएं| पर जैसा रावत जी ने कहा व्यक्तिगत स्वार्थो के कारण ये समूह अपनी पहचान ज्यादा आगे तक नहीं पहुंचा सकें|

अब उस इन्टरनेट युग की बात करते है जिसके माध्यम से यहा हम सब अपने विचार प्रकट कर पा रहें है| यहाँ भी कुछ नया नहीं है| यहा भी आपको एकता की कमी नजर आएगी| प्रतिदिन नये नये ई-ग्रुप बन रहे है| ऐसा लगता है  इन ग्रुप के माध्यम से लोग उत्तराखंड की पहचान बनाने से पहली अपनी पहचान बनाना चाहते है|

मेरा मानना है कि अपनी संस्कृति के लिए हमें एकत्रित होना जरूरी है और एकता के लिए हमें अपनी संस्कृति के करीब जाना ही होगा| एकता और संस्कृति एक दुसरे के पूरक है| उत्तराखंड के बेहतर भविष्य की कामना के साथ लेख इधर ही समाप्त करता हूँ|

धन्यवाद

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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में सभी सदस्यों के विचारो से सहमत हूँ ! लेकिन मेरे हिसाब से उत्तराखंडी संगठनो में एकता कम होने का कराण निम्नलिखित हो सकते है :

    -     हमारे उत्तराखंड के बहुत सारे लोगो तो बुधि जीवी लोग है बहुत सारे लोग रुदिवादी एव संकीन विचारो के भी है तो उत्तराखंड को केवल कुमाओं और गड़वाल के रूप में ही देखते है!और सदा इन दोनों क्षेत्रो में के बीच में दूरिया और बेमलतब विवाद पैदा करने की कोशिश में रहते है ! जो की उत्तराखंड की एकता के लिए बहुत बड़ा आघात है ! यहाँ तक की ये लोग नयी पीड़ी को भी कुमाओं गड़वाल का राग सिखाने में आतुर रहते है !
 
       -   बहुत से ग्रुप में लोग अपना नाम पाने के लिए ही आगे रहते है ना की "नेकी कर दरिया में डाल की " भावना! यही कारण है एक उत्तराखंड के बड़े-२ ग्रुप टूट २ के छोटे -२ होते जा रहे है !

      -    इन्टरनेट ग्रुप में भी मतभेद.. एक ग्रुप दुसरे ग्रुप के मेल approve नहीं करते है! कारन समझ में नहीं आता !

      -   यहाँ तक बहुत उत्तराखंडी अपनी पहचान छुपाने चाहते है, कारन पता नहीं ?
 
उत्तराखंड के लोगो को जरुरत है रुदिवादी लोगो एव अपने निजी स्वार्थ में ना आकर समाज एव राज्य के विकास ले लिए आगे आना चाहिए !   

Pushp

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Garv karo ghamand nahi 
Garv karo ki hum uttarakhandi hain, ghamand nahi ki aaj hum kis position pur hai.

we all are a part of the community. We make community and community does not make us. The day we start thinking  outside of our shell, half of our problems will be over.
Inspite of being in US, I still see people promoting division being biased of Garwali or Kumaoni coomunity ?????????? What Gorkhas  and britishers did...we are not getting out of that shell.
Blame game is easy but how many of us try to get out of our shell. We still pride in saying we are Brahmin/Rajpoot. We are still racist and that restricts us to come out of our shell and that is the reason of small fights..usually

Also we all take care of our family and forget that if we donot improve our community, progress of family is not complete. We work tireless for the family and its welfare , which obviously is the priority but even if 10% of our effort if goes to community, we will see the difference. Everyone works for family but donot neglect community. Everyone should give back to the community.

First thing isto get out of the shell of selfpride of bragging what we are today. If you have not supported your community, you are no one. And if you are supporting community and need applaud for it, then you are not giving back..you are again taking. We cannot become Mother Terresa but we can tray to be atleast 1% of her and work towards commuity.


This was Just a quick note :-)  and really appreciate the efforts of all the members of Mera Pahad, Myor pahad and all the community volunteers. You all are true community leaders. Together you all are making difference. More people we bring under such effort, the wall of self pride will break and we all will have one ultimate goal of making our state proud of us....not in the sense of gaining name but in a sense of satisfaction of uplifting our community.


Pushp

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Something on what Lalit Mohan Said...a education forum was build by our community here too. That helps the kids to know the path of attaining a certain goal, like docto, engineer, lawyer, fasion,model etc. ANy adult already expert in that field tries to educate the kids with proper guidance, if they decide to go in the field of teir expertise. This way even the kid will have a feeling of helping others as they are being helped.
SOmething like that is always a great way to motivate people.

Devbhoomi,Uttarakhand

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एकता -सायद हम लोग एकता के म्याने भी भूल गए हैं की एकता क्या होती है ? हमने एकता दिखाई थी की हम अपना उत्तराखंड राज्य अलग करेंगे और वो हो भी गया वो थी एकता लेकिन उसके पीछे भी कुछ लोगों का स्वार्थ था और उसका फल भी उनको मिल रहा है
चलो इसी एकता के ऊपर इस कहानी पड़ना


एक बुढा आदमी जब मरने लगा, तो उसे अपने बच्चो के बारे बहुत फ़िक्र हुई,क्योकि, उस के पास पेसो की कोई कमी नही थी,लेकिन उस के चारो लडके आपस मे खुब लडते थे, ओर उस आदमी को यही फ़िक्र थी की उस के बाद यह लडके अपनी जिन्दगी बरवाद कर ले गे, तभी उस आदमी के दिमाग मे एक विचार आया,

 ओर उस ने अपने चारो लडकॊ को अपने पास बुलाया ओर अपने पास बिठाया, फ़िर उस आदमी ने एक एक लकडी चारो लडको को दी, ओर कहा देखे कोन इसे तोडता हे सभी लडकॊ ने उस लकडी को घुटने पर रख कर झट से तोड दिया, उस आदमी ने अपने लडको को शावाश दी, फ़िर चार लकडिया ईक्कटी बाधं कर उन्हे दी ओर कहा अब इसे बारी बारी से तोडो,

 लेकिन तमाम कोशिशो के बाद भी कोई लडका उसे तोड नही पाया,तब उस आदमी ने अपने बच्चो से कहा, देखो जब सब लकडिया अकेली थी तो तुम सब ने झट से उन्हे तोड दिया, क्योकि वो कमजोर थी,जब सब आपस मे मिल गई तो उन मे एकता होगई,

 एकता की ताकत आ गई इस लिये तुम उसे तोड नही पाये, इसी प्रकार यादि तुम लडते रहे तो कोई भी मेरे बाद तुम्हे मार ओर लुट सकता हे लेकिन जब तुम चारो मिलकर रहो गे तो कोई भी तुम्हारी ओर आखं भी नही उठा सकता,

तो मेरे उत्तराखंड  के लोगो हमे भी इन नेताओ,गुण्डो,ओर स्बार्थी लोगो के कहने पर आ कर लडना नही, बल्कि एकता मे रह कर इन्हे सीधा करना ओर देश कॊ बचाना हे



jai uttarakhand
devbhoomi

 

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