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क्या आप सहमत है  की पहाडो मे छल - मसान पूजा बढ रही है ?

Yes - 100 %
25 (64.1%)
No
11 (28.2%)
Can't say
3 (7.7%)

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Author Topic: Evil Powers in Uttarakhand - क्या पहाडो मे छल/मसान पूजा बढ रही है?  (Read 24792 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Kamaal ki theory hai Himanshu bhai +1 karma aapko.

Chhal(Chhow) Pooja Bad rahi Hai ya Ghat Rahi Hai, Is Prashan ka uttar dena mushkil hai. Par Baat yhaa aayi hai ki Manne ya na manne par. To Jaisa Mere Bujurgo ne btaya hai, waisa hi aap sab ko btata hu.. Humara Uttrakhand Dev Bhumi Hai, Pavitra Bhumi Hai. Rishiyo, Muniyo ki janma or tapas thali Hai. Humara Jo ye Himalayan region hai Yha "Yaksh", "Gandharv", "Pariyo", "Kinnero", "Devtao" ka niwaas hai..   Or Inhi Me Se Kuch Elements Chhal, Baan, Masaan etc ke roop me niwaas karte hai... Haalaki Ab inki Tadaad Kaafi Kam ho gyi hai... Jyaadataar Himalayan ki aur Uppari Ilaake(Gufao, Kandrao) me Chale gye hai....

Mujhe Ye Theory Hi Best lagti Hai

No Arguments.

Thanks

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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mai dekh ke aaya hoon.. There is increase on chal pooja.in pahad.

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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मित्रो
जैसे जैसे लोगों का आर्थिक स्तर बढ़ रहा है, वैसे वैसे ये सब बातें बढ़ ही रही हैं क्योंकि यह आस्था का सवाल है| फर्क इतना है की जो लोग हमारे पहाडी भाई अपने आप को तथाकथित Educated कहते हैं वह पूजा और जागर छोड़कर SAI BABA, MATA KA JAGRATA or SHANI POOJA कराने लगे हैं या hi-tech ज्योतिषियों, वास्तु, फेंग सुई आदि अपनाने लगे हैं |  मैं समझता हूँ कि यह सब चीजें किसी न किसी रूप में हमारे समाज में मोजूद रहेंगी और यह हमारी संस्कृतिका हिस्सा हैं|  ऐसा नही है कि केवल हमारे समाज में ही ये सब बातें हैं अगर आप किसी भी समाज या संस्कृति को throughly study करेंगे तो ये सब हर जगह किसी न किसी रूप में मोजूद है चाहे वह समाज अपने आप को कितना ही उच्च या शिक्षित मानता हो| क्योंकि आस्था एक ऐसी चीज है जिसके बिना मानव जीवन सम्भव नही, क्योंकि मनुष्य का स्वाभाव है कि वह हमेशा कुछ सही या ग़लत सोचता और समझने कि कोशिश करता रहता है|  मुझे लगता है ये सब चीजें न घट रही हैं न बढ़ रही हैं पर मानव के तथाकथित विकास के साथ यह अपना स्वरूप बदलती रहती हैं|

Risky Pathak

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Hospitals ke abhaav me, logo ko phle "Puchhari" ke paass jaane ke alawa or koi raasta nahi bachtaa....

Chhal sirf UK me hi nahi balki.. UK ke baahar bhi logo ko pareshaan karte hai....

haan chhal pooja bad gayi hai.... 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanx.  Mahraj for sharing ur views.  This practice is alsot everywhere but in our side. this is somehwhat too much.

Hospitals ke abhaav me, logo ko phle "Puchhari" ke paass jaane ke alawa or koi raasta nahi bachtaa....

Chhal sirf UK me hi nahi balki.. UK ke baahar bhi logo ko pareshaan karte hai....

haan chhal pooja bad gayi hai.... 

खीमसिंह रावत

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छल लगना अब कम हो गया है एक छोटा सा उदाहरण है :- आज से ३०-३५ साल पहले तक गाव मे अगर कोई मर गया तो माँ-बाप अपने बच्चो को अन्दर से बाहर नही आने देते थे जब तक मरे हुए को ले नही जाते किंतु आज गाव मे कोई मर गया तो बच्चे वहां पर भीड़ लगा देते है/ शायद छल का डर उतना नही है/ 
लोगो का कुछ भ्रम भी टूट चुके है मेरे को कुछ ऐसा लगता की मान्यता भी कम हुई है जैसे हर नई फसल पर भूमिया को पूजते थे नही पूजे तो किसी अनहोनी की डर होती थी किंतु अब ये डर नही है जहाँ हर्ज्यु की धुनी है वहा हर साल एक्रती, तिरती, पच्रती, ग्यारी व बैसी देते थे अब जब अड़चन आती है तभी जतुरा लगते है/

आस्था कभी कम नही होतो चाहे उसका रूप बदल जाय/

khim

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Rawat Ji,

Thanx for sharing your views. But i have seen it personally that such cases are still at higher side.

छल लगना अब कम हो गया है एक छोटा सा उदाहरण है :- आज से ३०-३५ साल पहले तक गाव मे अगर कोई मर गया तो माँ-बाप अपने बच्चो को अन्दर से बाहर नही आने देते थे जब तक मरे हुए को ले नही जाते किंतु आज गाव मे कोई मर गया तो बच्चे वहां पर भीड़ लगा देते है/ शायद छल का डर उतना नही है/ 
लोगो का कुछ भ्रम भी टूट चुके है मेरे को कुछ ऐसा लगता की मान्यता भी कम हुई है जैसे हर नई फसल पर भूमिया को पूजते थे नही पूजे तो किसी अनहोनी की डर होती थी किंतु अब ये डर नही है जहाँ हर्ज्यु की धुनी है वहा हर साल एक्रती, तिरती, पच्रती, ग्यारी व बैसी देते थे अब जब अड़चन आती है तभी जतुरा लगते है/

आस्था कभी कम नही होतो चाहे उसका रूप बदल जाय/

khim

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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2 saal pahle humare yahan Puja thi. Upar road pai Tauji ka ghar hai aur Puja neeche Gaanv ke ghar main thi. Sab log Tauji ke ghar main thahere hue the aur shaam ko neeche Gaanv ke liye nikle Puja ke liye. Shaam ko Nyole tak pahunchte hue andhera ho gaya meri 1 saal ki Beti achanak bahut jor se rone lag gai. Hum logon ko laga ki Nyole ke aas paas koi chhal lag gaya hai. Raat ko bhi woh roti rahi. Der raat ko Devta ka aashirvaad lene jab hum gaye to Meri beti pai unhone jor se chaawal waare aur uske baad woh thik ho gai. Ab aap log batao ki main kya samjhun? Main to kabhi gaanv main raha bhi nahi hun.

मदन मोहन भट्ट

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यह तो हर आदमी मानता है की उत्तराखंड देवभूमि हैं.  जहाँ देव रहते हैं वहीँ दूसरी शक्तियां भी रहती हैं. सबके स्थान नियत हैं.  भगवान शिव को तो हम सब भूतनाथ कहते हैं. बल्कि बारह ज्योतिर्लिंगों मैं से एक मैं तो श्मशान की राख से अभिषेक होता है.  मानने की परंपरा पहले ज्यादा थी क्योकि पहले लोग गाँव मैं ही रहा करते थे.  अपने गाँव के आसपास के बारे मैं जानते थे मसलन कहाँ जाना है कहाँ नहीं जाना है, कहीं कोई अपवित्र काम नहीं करना है.  लेकिन अब लोगों को यह सब मालूम ही नहीं है.  या तो वे गाँव से बाहर रहते हैं, गाँव आते भी हैं तो कोई यह सब बताने वाला नहीं है.  और यदि किसी ने कह भी दिया की भैय्या वहां मत जाओ तो बोल दिया अरे तो क्या हो जायेगा. या फिर गाँव मैं ही उन्हें किसी ने कभी बताया ही नहीं.  उदहारण के लिया बता दूं की हमारे गाँव से दूर जंगल मैं एक जगह ऐसी है की वहां चिल्लाना नहीं है. अगर कोई ऐसा कर दे तो वापस आवाज सुनाई देती हैं और वह व्यक्ति सुन्न हो जाता है. अब अनजान के लिए तो मसान पूजा करनी पद गयी न. बढ गयी न खामखाँ. 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thank u bhatt Ji for your views.

my personal exprience has been some what different. Whenver i go to my village, i hear the news of Masan Pooja..

Even women go for grass cutting in jungle (dhura) and other in case anyone had feared any abnormal sound then she will to pay for the fear. Means Masan attack.

यह तो हर आदमी मानता है की उत्तराखंड देवभूमि हैं.  जहाँ देव रहते हैं वहीँ दूसरी शक्तियां भी रहती हैं. सबके स्थान नियत हैं.  भगवान शिव को तो हम सब भूतनाथ कहते हैं. बल्कि बारह ज्योतिर्लिंगों मैं से एक मैं तो श्मशान की राख से अभिषेक होता है.  मानने की परंपरा पहले ज्यादा थी क्योकि पहले लोग गाँव मैं ही रहा करते थे.  अपने गाँव के आसपास के बारे मैं जानते थे मसलन कहाँ जाना है कहाँ नहीं जाना है, कहीं कोई अपवित्र काम नहीं करना है.  लेकिन अब लोगों को यह सब मालूम ही नहीं है.  या तो वे गाँव से बाहर रहते हैं, गाँव आते भी हैं तो कोई यह सब बताने वाला नहीं है.  और यदि किसी ने कह भी दिया की भैय्या वहां मत जाओ तो बोल दिया अरे तो क्या हो जायेगा. या फिर गाँव मैं ही उन्हें किसी ने कभी बताया ही नहीं.  उदहारण के लिया बता दूं की हमारे गाँव से दूर जंगल मैं एक जगह ऐसी है की वहां चिल्लाना नहीं है. अगर कोई ऐसा कर दे तो वापस आवाज सुनाई देती हैं और वह व्यक्ति सुन्न हो जाता है. अब अनजान के लिए तो मसान पूजा करनी पद गयी न. बढ गयी न खामखाँ. 

 

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