मेहता जी,
छल, मसान, ऎडी, परी सहित कई और भी पूजायें पहाड़ों में वर्तमान तक प्रचलित हैं, इन पूजाओं पर आधुनिकीकरण का कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और शायद उत्तराखण्ड राज्य के निवासी जिस तरह के आस्थावान हैं, उसे देखकर तो नहीं लगता कि कभी यह पूजायें बंद भी हो पायेंगी. आमतौर पर यदि पहाड़ों में देखा जाय तो बिमारी या कुछ भी अनहोनी होने पर आदमी सबसे पहले अपने इष्ट देवता के सामने उचैन रखता है कि भगवान सब सही कर दो, फिर पुछारी के पास जाता है, डाक्टर की जरुरत उन लोगों को प्रथम दृष्टया तो नही होती है. कई बार यह भी देखा गया कि तमाम इलाज के बाद भी स्थिति नहीं सुधरती, अंत में यह पूजायें करके ही काम सुधरता है......वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में दिमाग इस बात से सहमत नही होता लेकिन कुछ बीमारियां और संकट हमारे पहाड़ के लोगों को मानसिक भी होते है और उन मानसिक समस्याओं का इलाज वास्तव में किसी भी डाक्टर के पास नहीं है..इलाज पुछारी और पूजा ही है.....वास्तविकता में यह भी देखा गया कि बीमारी का डाक्टर से इलाज कराने के बाद भी यदि कोई छोटी बात भी हो तो लोगों को लगता है कि यह कोई ऊपरी चक्कर है, तो मेरा मानना है कि यदि हमें किसी चीज में पूर्ण मानसिक संतोष मिलता है तो उसे करने में हर्ज क्या है?......
वैसे एक बात और है यदि हम ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं तो हमें छल, मशान आदि को भी मानना ही होगा..............