Author Topic: Forgotten Pahadi Hilarious Sayings / भूले बिसरे पहाड़ी ठहाके  (Read 9576 times)

Anil Arya / अनिल आर्य

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यां हम पुरान किस्स, हँसी, मजाक वाली बात करुल.
Cool Cool .

We dedicate this topic to our friends who are far and away from home, but always feel nostalgic. Additionally, an effort to keep & maintain our rich culture.

Anil Arya / अनिल आर्य

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हरकु दा पैलि बखत मियाव दियखन ग्या . घर ऐ बेर वी थै गौ वाल पुछी कि... कि खा त्वैल वा ? वील कौ .
" द्वी पैसा का टियाड ब्याड ल्यान मिठि मिठि लैगि ग्ये निमडि ग्यान."
जलेबी खायी थी हरकुवा दा ने ..लेकिन नाम भूल गया बल .!
Disclaimer -
 इस टोपिक मै हरकू दा मेरे एक चरित्र है . मेरे "हरकू" चरित्र का किसी भी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है .

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एक यह याद आ रहा है :

   हरुआ चेला .. चमकनी
  शराब पी भे बमकानी

....

Anil Arya / अनिल आर्य

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और सुणा.. Maharaj
हरकु दा म.ए. पास छैं. M.A. पास kari बेरि बेर हरकु दा अपण घर गयी और कै दिये कि मियरि पडायी पुरि है ग्ये.. हरकु दा क बुबु लि पुछि कि कतुक जनेक पडि ह्य हो नाति  तुवैल  .
हरकु दा लि कौ . बुबु मैलि M.A. करि ह्य..
बुबु .. अरे पगला जब M.A. करि हा छ त B.A. लै करि लि यार नाति ..  ;D   

Anil Arya / अनिल आर्य

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रमदा बोज्यू क घुमोहू चोपाटि लि गय,.."दो बना ......बाबु जी की भेल में मिर्चा ज्यादा डालना " आर्डर दी ..... बोज्यू नाराज हे पड़ी..... रमदाल क .."किले तुमुल किशोर कुमारक गीत नि सुणो...चोपाटि जायेंगे भेल पूरी खायेंगे ...बोज्यूल कय ओहो मै समझुछी ...गुडेक भेली दगे पुरि खनाल .......
साभार - मनोज जोशी जी, मेरे फेसबुक दोस्त 

Anil Arya / अनिल आर्य

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हरकु दा यक दिन अपन घुवड चरोन बन जै रछी .. घुवड हिरै पडी. अब हरकु दा भुल्लक्कडै भै लेकिन दिमाग तेज भौ यार . हरकु दा लि कि करि कि यक हाथ मै दुब और दुसर हाथ मै घुवडक गुबर धरि बेर अपन गों क चक्कर मारी . अब सबु थै पुछन लैगि हो कैले यस खानि और यस गुबरनि दियेखि ...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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थोकदार -

यह भी हरुकू दा ही तरह एक काल्पनिक पात्र है ! यह पात्र बहुत ही भुकक्कड़ है! देखिये उनके कारनामे !

थोकदार  जीयु .... हर समय जल्दी में रहते है और थोड़ी-२ देर में उनको भूलने की आदत है !

एक बार सुबह-२ थोकदार जी ने अपने बल्द (बैल) खोले और चल दिए हल जोतने .. इनके कंधे में था हल और जुवा (दो बैलो के कंधो में रखा जाने वाला लकड़ी का यन्त्र)..

जल्दी में थोकदार जी को लगा.. इनका हुवा कही खो गया जगह खोजने लगे... बहुत परेशान होने के बाद खेत में बैलो को छोड़कर घर आये जुवा को खोजने..

जब... गोठ (जानवर बढ़ने वाला कमरा)  में गये.. तो जुवा.. जो पहले से इनके कंधे में था.. वह दरवाजे में टकराया.....

ही ही ही .. तब थोकदार जी को पता चला .. जुवा तो पहले से इनके कंधे में था..

तो .. भाई साहब इतने जल्दी में ... मत रहना.. कभी. थोकदार जी की तरह.

.

विनोद सिंह गढ़िया

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बचपन की बात है   घर में  जब भट के डुबके बनते थे और साथ में बड़ी (उड़द और मूली से बनी) की झोली (कड़ी)  भी बनती थी। तब हम बोलते थे :-

भटक डुबुक,बड़ी क साग।
नैनू कठि, पन्नू बाग़ ।।

हमारे पड़ोस में ही एक पान सिंह नाम के ताऊ रहते थे। उनका उपनाम 'पन्नू बाग' था। जब हम 'भटक डुबुक, बड़ी क साग, नैनू कठि पन्नू बाग' बोलते थे तब हमारी  ईजा (मम्मी)  हँसते हुए  बोलती थी - ऐसा मत बोलो, वो पन्नू ताऊ  सुनेंगे तो बुरा मानेंगे।
फिर हम और जोर जोर से बोलते ।

आज वो दिन याद आते हैं तो बहुत हंसी आती है।

C.S.Mehta

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मेहता जी थोकदार की एक बात और भी तो है ----
एक बार जब थोकदार जी हल जोतने के लिए सुबह उठे तो उनको लगा की आज में जल्दी हल जोत लेता हूँ
और जल्दी  कम निपट जायेगा 
थोकदार बैलो को खोलने के लिए गोठ में गया तो उसे  जल्दी बाजी में  दोनों बैलो को खोलने के बदले एक गाय और एक बैल को खोल कर ले गया
जैसे ही खेत में पहुचा तो उनकी घर वाली ने आवाज लगा कर बोला अरे
        तुम जस जे  यां रे गेए
        और म्यर जस  जे तां
तब जाके थोकदार को लगा की उसने बैल की जगह में गाय जो खेत जोतने के लिए ला गया और वह गाय को वापस badh कर आ गया और बैल को खोलकर हल जोतना सुरु किया
                                                    जल्दी करो पर जल्दी बाजी नहीं 

C.S.Mehta

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एक बचपन की बात ये भी है मेरे साथ -जब में कक्षा २ में पड़ता होगा
हमारे गांव में एक प्रा. स्कूल है जहा पर हम लोग पड़ने जाते थे तो रास्ते में एक माकन के दिवार में लिखा था                           "पाप से डरो लेकिन पापी से नहीं"
जिसका अर्थ है पाप करने से डरो लेकिन पाप करने वाले लोगो से नहीं
लेकिन हम लोग उसका अर्थ उसका ही बिपरीत समझा करते थे उसका अर्थ हम - 'पापा से डरो लेकिन मम्मी से नहीं' समझा करते थे  सोचते थे इसलिए तो लोग अपनी मम्मी से कम डरते  है और पापा से ज्यादा  आखिर ये सब बचपन की अकाल  है जब कभी याद आती है तो  अकेले में भी हसने का मन करता है

 

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