एक घटना है कि हमारे एक पहाडी भाई की शादी हुई, भाई दिल्ली में नौकरी करते थे, बीबी बेचारी एक तो पहाड की ऊपर से अनपढ़! तो दाज्यू बीबी को लेकर दिल्ली पहुंच गये, दोस्तों ने पार्टी की फरमाइश की तो दाज्यू ने पार्टी की तैयारी के साथ ही भाभी जी को ट्रेनिंग देना शुरु किया कि "जब औरतें खाना नहीं खा रही होंगी तो कहना खाओ बहन जी खाओ, ये आपका ही घर तो है" यदि उसके बाद भी नहीं खायें तो कहना "इसमें शरमाने की क्या बात है, खाओ बहन जी खाओ"
पार्टी के दिन बेचारी सीधी-सादी भाभी जी गजबजा गयीं, जब औरतें आयीं और उन्होंने खाना नहीं खाया तो भाभी जी ने भाई साहब के सिखाये अनुसार कहना शुरू किया " खाओ बहन जी खाओ, ये तुम्हारा घर नहीं है" फिर भी औरतों ने नहीं खाया तो भाभी जी ने कहा " शर्म तो तुमको है नहीं, खाओ बहन जी खाओ, ये तुम्हारा घर थोडी़ है"