एक बार एक पंडीत जी कही जा रहे थे, तो उनका पैर रास्ते मई गू (आदमी का मल) मै पड़ते पड़ते बचा. तो पंडीत जी बोले गु थूयु हो महाराज ठीक भयो खुट (पैर) न लाग्यो. यह कह कर पंडीत जी २-४ कदम चल दिए, फ़ीर उन्हें पता नही क्या हुआ की मुड़कर देखा वापस गु के पास आये और करीब से देखा और बोलो "हा गु ही थूयु, ठीक भयो खुट न लाग्यो".
पंडीत जी फ़ीर चल दिए लेकीन उनका मन फ़ीर नही माना, वापस आये झुक कर अच्छी तरह देखा और बोले "हां गु ही छ, ठीक भयो खुट न लाग्यो".
पंडीत जी चल दिए.. लेकीन महाराज मन कहा मानने वाला फ़ीर वापस आये कन्फर्म करने के लीये पास मै गए, बैठकर लकड़ी से हीलाया, लकड़ी नाक के पास लाये और सुघा.. फ़ीर बोलो "हरे राम राम गु ही छ, ठीक भयो खुट न लाग्यो"
ये सोचकर पंडीत जी चार कदम और चल दिए लेकीन पंडीत जी का मन फ़ीर से डगमगा गया (ye dil mage more), पंडीत जी वापस आये और करीब गए, ऊँगली से पहले हीलाया, नाक के पास लाये और सुघा अब भी मन नही माना तो जीभ मै लगा के टेस्ट करके देखा.. और जोर से बोले "महाराज पक्का गु ही छ, बची गयु आज, ठीक भयो खुट न लाग्यो"
(महाराज इतनी ही है हो कहानी अब ये मत expect करो की पंडीत जी फ़ीर वापस आ के ...................)
(पंडीत ही की मनोद्सा देखो जीभ मै लगा के टेस्ट कर गए फ़ीर भी कह रहे है बच गया पैर मै नही लगा)
महाराज ऐसा ही हुआ, ठीक भयो खुट न लाग्यो, पंडीत जी लक्की हुए.