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Hindi: Our Identity - हिन्दी : हमारी पहचान: आओ बढाये इसका मान

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Veer Vijay Singh Butola:
दोस्तो अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी के बारे मी अपने विचार इस थ्रेड मैं व्यक्त करे |

हिन्दी हमारी गरिमा है और हमें गर्व है की हम भारतीय हैं। भारतीय संस्कृति ने अनेकता में एकता या वसुधैव कुटुम्बकम की जो सूक्ति हमें प्रदान की है उसका  आधार  हिन्दी ही है। हम कहीं भी रहें, कम से कम इस सूत्र को नहीं छोड़ना चाहिए। यदि हम भारतीय है और विदेशों में भी रह रहे हैं तो भी अपने परिवार में, अपने बच्चों के साथ हिन्दी में बोलना, बात करना कोई शर्म बात नहीं है। अपनी माटी से जुड़े रहने का सबसे आसन तरीका है। अपनी मातृ भाषा का सम्मान और प्रगति कहीं न कहीं हमें सबकी नजरों में ऊँचा बनाती है।  

अंग्रेजी स्कूलों में पढाना और अंग्रेजी बोलना या सीखना बुरा नहीं है। ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती लेकिन वे माता-पिता जो बड़ी शान से कहते हैं की हिन्दी में कुछ कमजोर है, पब्लिक स्कूल में पढ़ता है न। आपके लिए यह गर्व की बात  हो सकती है लेकिन हमारे लिए यह शर्म की बात है। हिन्दी देश के बच्चों को ही क्यों शिक्षकों को भी लीजिये उन्हें कब आती है अच्छी हिन्दी। कम से कम बच्चों को सही वर्तनी और शब्दों का ज्ञान तो होना ही चाहिए। मैं लेखक या साहित्यकार बनने की बात नहीं कर रही, कम से कम देश के भावी कर्णधारों को प्रारंभिक ज्ञान तो होना चाहिए, यदि नींव अच्छी है तो हिन्दी लिखना या बोलना दुष्कर कार्य नहीं है। बस आवश्यकता है एक  संकल्प की , हम यहाँ रह कर उस मशाल को प्रज्जवलित रख  सकते हैं , जिसे विदेशों में हमारे भाई और बहनों ने जला रखी है और देश के लिए गौरव की बात है।  

हम अपनी हिन्दी को प्रदूषित कर रहे हैं। पब्लिक स्कूल की शिक्षा, मीडिया और चैनल वालों ने व्याकरण के नियमों को पढ़ा नहीं हैं। उन्हें लिंग भेद का ज्ञान नहीं हैं और क्रिया रूपों से उनका परिचय कम ही हैं। इसके उदाहरण  समय समय पर हम सब देखते रहते हैं। पत्रकारिता एक धर्म हैं और उस धर्म का निर्वाह भी पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए। लेकिन जब हम टीवी पर हिन्दी का ग़लत प्रयोग या ग़लत शब्दों का प्रयोग देखते हैं तो एक ग़लत परसर्ग या क्रिया रूप की प्रस्तुति हमें शर्मसार कर देता हैं।  इसके लिए हम ही दोषी हैं। "इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स" कराने जाते हैं। इसके विज्ञापन देखते हैं, पर क्या कहीं हमने "हिन्दी स्पीकिंग कोर्स" का विज्ञापन पढ़ा हैं या किसी को करते हुए देखा हैं, शायद नहीं? इसकी जरूरत ही नहीं समझी जाती हैं। हम बेकार ही अति आत्मविश्वास के शिकार होते हैं की हिन्दी तो आती हैं हैं। अपनी भाषा की गरिमा को हम अपमानित कर रहे हैं।

हमें जरूरत हैं अपनी गरिमा को बचने की, बस इस दिशा में एक दृढ निश्चय करने की कि यह अभियान अपने घर कि चहारदीवारी से ही शुरू करे, फिर चौखट से बाहर और समाज तक पहुँचे। उन्हें बतलाना हैं कि हमें सब आत्मसात करना हैं किंतु हमारी भाषा का आधार संस्कृत भाषा हैं और उसके नियमों का पालन आना ही चाहिए।

"मैंने जाना है" एक बहुत ही आम वाक्य हैं लेकिन इसका सही स्वरूप "मुझे जाना है", या फिर "मुझको जाना है"  होना चाहिए। मेरा उद्देश्य पाठ पढाना बिल्कुल भी नहीं है बस इतना निवेदन है कि भाषा का सही प्रयोग और उसकी गरिमा का सम्मान चाहे मीडिया हो या फिर चैनल सबको करना चाहिए।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:



Hame Hindi bhasa ka samman karna chahiye.. kyoki yah hamari matra bhasha hai.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय:
Welcome Butola ji to MeraPahad.

annupama89:
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और हमे इसका सम्मान करना चाहिए

और बाकि राय मै कल देती हूँ
ठीक है  :)

Risky Pathak:
हिन्दी  और अंग्रेजी के बीच संतुलन बना रहना चाहिए| हिन्दी हमारी माता है और अंग्रेजी हमारी बेटी है| आज के  समय मे दोनों का अपना स्थान है| बेटी के लिए माता का अपमान करना लज्जा के समान है| इसलिए दोनों की उपयोगिता को आजकल के नौजवानों को समझना  चाहिए |
 

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