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How To Eradicate Casteism - जातिवाद (एक सामाजिक मुद्दा) कैसे को दूर करे

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पंकज सिंह महर:
जातिवाद का प्रमुख कारण और कारक है अशिक्षा..........।
जैसे-जैसे हमारा समाज शिक्षित होता जायेगा, जातिवाद जैसे असामाजिक मुद्दे स्वतः ही गौण हो जायेंगे। अशिक्षा मात्र जातिवाद के लिये ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि जनसंख्या वृद्धि, बेरोजगारी, विकास न होना, आदि सामाजिक मुद्दों के लिये भी उत्तरदायी है।
      जहां तक जातिवाद का प्रश्न है तो इस मुद्दे पर नेताओं और राजनैतिक दलों ने आज तक गैरजिम्मेदार राजनीति ही की है। इस मुद्दे को जानबूझ कर उलझाया जाता रहा है, आज के परिदृश्य को देखें तो जाति और धर्म के नाम पर लोगों की भावनायें भड़का कर राजनैतिक दल अपना वोट बैंक बनाकर भद्दी और भौंडी राजनीति ही कर रहे हैं। आज हम देख रहे हैं कि हर धर्म, हर समुदाय, हर जाति की अपनी-अपनी पार्टी बन गई है और ये लोग इसका चुनावी लाभ लेकर नेता बनना चाहते हैं, मैने ऎसे भी कई उदाहरण देखें हैं कि ऎसी राजनीति कर चुनाव जीते या सफल हुये नेतागण बाद में इन मुद्दों को भूल कर अपनी स्वार्थ पूर्ति में लग जाते हैं।

पंकज सिंह महर:
जातिवाद को दूर करने में सबसे बड़ी भूमिका उन्हीं जातियों के लोग निभा सकते हैं, पढ़-लिख कर अपना सामाजिक स्तर सुधारें। लेकिन समस्या यह है कि, मैने स्वयं देखा कि हमारे गांव में हरिजन लोग अपने बच्चों को मात्र कक्षा ८ तक ही पढ़ाते हैं और टीचर्स से सिफारिश करते हैं कि मास्साब, एक क्लास में दो साल लगने चाहिये, क्यों ??? इसलिये कि वहां तक वजीफा मिलता है, उसके आगे पढ़ाई को वे लोग जरुरी नहीं समझते हैं.........सरकार को इस सबके अतिरिक्त अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिये उनके गांव में प्रौढ़ शिक्षा की भी व्यवस्था करनी चाहिये, SCP और STP के तहत इसके लिये बजट की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्रौढ़ शिक्षा में उन्हें वर्तमान परिदृश्य और उन लोगों का सामाजिक उन्नयन और उन्हें मिल रही सुविधाओं के बारे में जागरुक किया जाये, ताकि वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करें।
      मैं एक उदाहरण दूं, मेरे गांव में एक सज्जन हैं, रमेश राम, उनके तीन बच्चे हैं, बड़ा लड़का ५ में पढ़ता है और वह स्कूल कभी-कभी जाता था, मैने रमेश को बुलाकर कहा कि अपने लड़के को स्कूल भेजा कर, सरकार ने इतनी योजनायें बनाई हैं, पढ़-लिख जायेगा तो नौकरी मिल जायेगी.....लेकिन उसने कहा- मैंने नहीं पढ़ा तो क्या मैं खा नहीं पा रहा? जो इसकी किस्मत में होगा, वही होगा, इतने लोग एम०ए० बी०ए० करके घूम रहे हैं, ये पढ़ेगा और इसे नौकरी नहीं मिली तो ये न फिर दमुवा बजा पायेगा, मतलब, न घर का रहेगा ना घाट का......इसलिये मैं उसे पढ़ने के लिये फोर्स नहीं करता, नहीं पढ़ेगा को इसे दमुवा बजाने में भी शर्म नहीं आयेगी।
     इसके तर्क वास्तव में आज के परिप्रेक्ष्य में अकाट्य हैं, बेरोजगारी और आज के प्रतिस्पर्धात्मक दौर में वास्तव में दिक्कत है, लेकिन कोशिश न करना भी तो वेवकूफी है। मैने उसे काफी समझाया, तब आज वह उसे स्कूल पहुंचाने खुद जाता है, कल ही उसका रिजल्ट निकला वह ७० % मार्क्स से पास हुआ है। तो जरुरत माता-पिता को समझाने की भी है।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड में हरिजन जाति का सामाजिक व्यवस्था में एक अहम स्थान है। दुःख-सुख, हर काम में इस वर्ग के लोगों का विशिष्ट महत्व है। इस समाज के लोगों के पास हमारे देवी-देवताओं की जागर से लेकर वाद्य कला का अलिखित विशाल भण्डार है, जो पीढी दर पीढी मौखिक रुप से आज तक चला आ रहा है। जिसे अब संरक्षित किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि नई पीढ़ी इसे लेकर अब बहुत उत्साहित नहीम है।
हमारे यहां जातिवाद बहुत बड़ी समस्या नहीं है, इस समाज के लोगों को आज भी हम "दा" बड़ा भाई कहकर बुलाते हैं, थोड़ी-बहुत रुढियां बच गई हैं, जो समाज के शिक्षित और विकसित होने के बाद स्वतः समाप्त हो जायेंगी।

Devbhoomi,Uttarakhand:
"दोस्तों कभी कभी तो लगता है की जाती वाद और क्षेत्र वाद इस देवभूमि उत्तराखंड को ले डूबेगा"

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