Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 51240 times)

Rajen

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Ahaa re!

kya yaad dila diya Hem Bhai, man pankh lagaa kar ud gaya  pahaadon kee ore.   Good topic.  Ye topic awashya hee most popular topics mein saamil ho jayega jaldee hee. 



 
घमपानि-घमपानि स्यालो को ब्या..
कुकुर-बिरालु बरयाति ग्या..
मैथे कूनान दच्छिना ल्या...


 
धनपुतली दान दे
सुप्पा भरी धान दे...

पंकज सिंह महर

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हेम दा, हमेशा उल्टे काम करते हो ::) 

रुला देते हो यार.....!

जिंदगी का असली मजा तो बचपने में ही है। यह मेरा दुर्भाग्य ही है कि मेरा बचपन एक कस्बे देवलथल में बीता, जो कि गांव से दूर तो नहीं पर गांव भी नहीं था। हां बचपन को मैंने जीया, अपने ननिहाल में।
मेरे ममेरे भाई और उसके दोस्तों के बीच  मैं देवलथले को उछ्याती के नाम से प्रसिद्ध था। यह उछ्यात हो सकता है, मैं इसलिये भी करता था कि मुझे ग्रामीण परिवेश पसंद है और मैं उससे वंचित था। मेरी शरारतें बताऊं-

बछड़ा खोल देना- वह सारा दूध पी जाता था।
बारिश हो तो, छत का पाथर खुसा देना (पानी अन्दर-गाली बाहर)
एक बगल में मामा जी थे, उनकी मुर्गियों को नमक खिलाना और फिर वह मामा की ही तरह झूमती थी। ;D ;D
इसके अलावा बहुत शरारतें मैं करता था।

स्कूल से आते समय कभी-कभी डिग्गी में नहाना भी मुझे बहुत पसंद था, जो मेरे पिताजी को बहुत नापसंद था। :D

खेलों में रामलीला और मैं रावण-सबको बहुत मारा, राम बेचारा रोते-रोते घर चला जाता था, पर मैं मरने का नाम ही नहीं लेता था।  ;D

स्कूल जाते समय पतले से रास्ते पर बरसात के दिनों में दोनों ओर की घास बांध देना मेरा मुख्य कार्य होता था। ;D  ;D

बहुत किस्से हैं................................!

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Bachpan main kyunki main bahut ziddi tha to mere Nanaji ne mera naam Bokia rakh rakha tha :)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Kaun kaun aisa karta tha bachpan main:


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Bachpan main school main parade:


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Master ji ki daant ke saath line main chalna:


पंकज सिंह महर

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Kaun kaun aisa karta tha bachpan main:




मैं करता था भाई.......यही नहीं स्कूल से आते या जाते समय गाय-बकरियों के साथ अगर कोई ग्वाला नहीं होता था तो उनको खेतों की ओर हका देता था ;D ;D ;D थोड़ी देर बाद होती थी महाभारत :D  ;)
ग्वाले और खेत वाले के बीच में। ;) ;)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हमारा .. ककडी चोरने का स्टाइल .. था..

एक लम्बी लकड़ी पर दराती को बाधो और उससे करो ककडी संहार.

Risky Pathak

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पंकज दा, बचपन में मैं  भी भोत उछियात करता था|

मेरे छोटे भाई जो डाल में होते थे उन्हें रौन से जगी लाकोड़(क्वेल) लेकर डराता था और कहता था "झी झी"|
बिराव जो हाथ में आया मेरे तो उसे तो में झकोर लफाता था|
द्याप्तान थान के घंटी, सांख, पंचपात्र, कुनी सब छाज के बाहर|
कोई देखता नही था तो छाज से फटक मार देता था|

पंकज सिंह महर

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उम्र बढ़ने के साथ शरारतें भी बढ़ जाती हैं, ककड़ी, पुलम, माल्टा, खुबानी आदि चोरना हमारा काम था, जब कि हमारे घर पर भी यह सब होता था। लेकिन चोर के खाने का मजा ही कुछ और था। इसके अलावा त्यौहार के समय में घट्ट गेहूं पीसने जाते थे....तो घट्ट से सबसे नजदीक थोड़ी बस्ती थी, हमने एक दिन वहां से रात में चोरी करने की सोची, और तो कुछ मिला नही, खेत में हो रहे थे आलू.... वहीं चोर दिये और एक दो सौल(शाही) के कांटे ढूंढ कर खेत में डाले और जगह-जगह उखेल (खोद० दिया। दूसरे दिन जब हम लौट रहे थे तो चाची सौल को गाली कर रही थी। ;D ;D ;D ;D

 

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