Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 52104 times)

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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बचपन में जब हम गाय भैंस चराने जाते थे तो सब ग्वाले चोरी का प्लान बनाते थे कभी सेव कभी नस्पतिऔर कभी ककड़ी आदि चोरी करने की बारी आती थी हर २ ३ दिन बाद No. पड़ जाता था, एक दिन की बात है हम ४ लोग सेव चोरने गए में उस दल में सबसे छोटा था जब पेड़ पर पहुचे तो सबसे पाहिले में पेड़ पर चढ़ गया और उसके बाद मेरे साथी जैसे ही हमने अपने फचिने (चुन्नी को कमर से बाँध कर थैला नुमा ) भर लिए अब उतरना शुरू हो गए तो देखा की बगीचे के मालिक गोकुला नन्द जी आ रहे हैं चुकी मेरे साथी पेड़ के जड़ की तरफ थे जल्दी से उतर कर भाग गए में रंगे हाथ चोरे हुए सेवो के साथ पकड़ा गया में हक्का बक्का रह गया दर के मारे मेरे पसीने छुट गए हाथ पांव कांपने लग गए गोकुला नान जी बड़े ही सज्जन पुरुष मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गए पानी पिलाया और २ सेव खाने के लिए दिए और फिर प्यार से एक घंटा समझाया की चोरी करना बुरी बात है चोरी के बहुत से उदहारण भी दिए और फिर bhat  खिला कर भेज दिया मेरे सांथी सोच रहे थे की खूब मार खा कर आएगा लेकिन एसा नहीं हुवा हाँ तब से मेंne  कभी भी चोरी नहीं की .

हेम पन्त

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बच्चो, इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
ककड़ी, सेव आदि की चोरी उसी आदमी के घर पर करो जो सीधा-साधा हो.  :D   ;D   ;D   ;D


बचपन में जब हम गाय भैंस चराने जाते थे तो सब ग्वाले चोरी का प्लान बनाते थे कभी सेव कभी नस्पतिऔर कभी ककड़ी आदि चोरी करने की बारी आती थी हर २ ३ दिन बाद No. पड़ जाता था, एक दिन की बात है हम ४ लोग सेव चोरने गए में उस दल में सबसे छोटा था जब पेड़ पर पहुचे तो सबसे पाहिले में पेड़ पर चढ़ गया और उसके बाद मेरे साथी जैसे ही हमने अपने फचिने (चुन्नी को कमर से बाँध कर थैला नुमा ) भर लिए अब उतरना शुरू हो गए तो देखा की बगीचे के मालिक गोकुला नन्द जी आ रहे हैं चुकी मेरे साथी पेड़ के जड़ की तरफ थे जल्दी से उतर कर भाग गए में रंगे हाथ चोरे हुए सेवो के साथ पकड़ा गया में हक्का बक्का रह गया दर के मारे मेरे पसीने छुट गए हाथ पांव कांपने लग गए गोकुला नान जी बड़े ही सज्जन पुरुष मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गए पानी पिलाया और २ सेव खाने के लिए दिए और फिर प्यार से एक घंटा समझाया की चोरी करना बुरी बात है चोरी के बहुत से उदहारण भी दिए और फिर bhat  खिला कर भेज दिया मेरे सांथी सोच रहे थे की खूब मार खा कर आएगा लेकिन एसा नहीं हुवा हाँ तब से मेंne  कभी भी चोरी नहीं की .

हलिया

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हां हो शैलेश ज्यू, पथरी तो क्या ये तो आंतडि‌-भुणि भी गला देगा – न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ( न रहेगी आंत न होगी पथरी) । ;D 8) :D     तो महाराज, गुटखा तो खाना बेकार है।  बुबू वाला मंतर ठीक हुआ – मिटा दो। 8) ;D :D 8)


   हेम दा उस हिसाब से तो गुटखा पेट के लिए दवाई का काम भी कर सकता है , जिन लोगों को पथरी है उनकी पथरी गला सकता है और पेट के कीड़े भी ........

सुबह पेपर पढने पर पता चला कि आज (31 मई 2010) को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस (World No Tobacco Day) है.

आजकल पहाड़ों में छोटी उमर से ही बच्चे तम्बाकू, गुटका, शराब और धूम्रपान करने लगते हैं यह आने वाली पीढी के लिये एक चिन्ताजनक सन्देश है. गुटका से सम्बन्धित बचपन की एक छोटा सी घटना याद आ रही है.

हम लोग शायद 14-15 साल के रहे होंगे तब हमारे दोस्तों में 2-3 लोगों को गुटका (तब राहत और प्रिंस गुटका प्रसिद्ध था) खाना शुरू कर दिया था. मैने कहीं पेपर में पढा था कि गुटका लोहे को भी गला देता है. हम लोगों ने गुटका यह का घातक असर टेस्ट करने का प्लान बनाया. गरमी की छुट्टियों में सब लोग नौले नहाने जाते थे तो हमने एक गिलास पानी में गुटका डालकर उसमें एक कील डुबा दी. और यह गिलास एक जगह छुपा कर रख दिया. अगले दिन हमने देखा कि गुटके ने पूरी कील गला दी. पानी के अन्दर लोहे की उस कील का कोई निशान नहीं मिला. खैर मेरे दोस्तों में इस प्रयोग का कोई खास असर नहीं पड़ा वो तब भी गुटका खाते थे अब भी खा ही रहे हैं.

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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एक बार बचपन मे मेरी और मेरे कक्षा के एक साथी की आपस मे कुछ अन्य साथियो ने उकसा कर लड़ाई कराई हम दोने हाफ टाईम के समय आपस मे लड़े मैने उसे निचे जमीन पर गिरा दिया और सभी ने कहा कि मै जीत गया। वो लडका मुझे हराने के लिए आतुर था, कुछ दिनो बाद वो फिर लडने की बात कहने लगा तो सबने उससे कहा मत लड़ तु फिर हार जाएगा तो वह लडका कहने लगा नही हारुंगा सबने पुछा क्यों भाई

"कहता है कि आजतक हमारी भैस नही आई था अब हमारी भैस आ गई है."

(कहने का मतलब था कि अब मे दुध पि रहा हु)
सबने उसकी ईस बात पर ठहाके लगाये

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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सुंदर भाई भैस से डर गए फिर lade ही नहीं, मैं भी अपने पाठशाला मैं सबका चहेता था घर से भैस का दूध ले जाकर मास्टरों के लिए चाय भी बनता था और सुबह प्रार्थना मैं भी आगे से मैं और मेरे दोस्त ही गाते थे मैं सपथ भी पड़ता था ( भारत मेरा देश है वाला) और हर शनिवार को बालसभा होती थी मैं हमेशा ही सभापति बनाया जाता था बस वही मैंने सभापति का स्वाद चखा था अब तो न गाँव का बन सकता हु और न..........

सत्यदेव सिंह नेगी

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बचपन का एक किस्सा मुझे भी याद आता है । मेरे पास के गाँव के लड़के  बहुत शरारती थे एक बार उन्होने अखरोट चोरने का प्लान बनाया था । तवे का काला निकाल के सबने अपने चेहरे पर पोत दिया और बदन पर रामलीला के रावण के दूत  की तरह की शक्लें बना लीं फिर सारे मोहल्ले के दरवाजों की बाहर से कुण्डी लगा ली फिर पेड़ पर चढ़ गए । एक बुजुर्ग के घर का दरवाजा सर्कवां था मतलब की बिन कब्जे वाला उन्हों घर का दरवाजा सरकाया तो उनकी कुण्डी खुल गयी । फिर वे अखरोट के पेड़ की जड़ पे आके गलियां देने लगे की आज तुम सब चोरों को मै पकड़ के ही जाऊँगा । मगर किसी सरारती बच्चे ने जैसे देखा की ताऊ ऊपर  की तरफ देख रहें हैं तो पेड़ के ऊपर से ही निशाना लगा के पेशाब कर दी जिससे क़ि ताऊ क़ि आँखें जलन से बंद हो गयी । फिर सारे जो क़ि करीब १५ -२० क़ि संख्या में थे पेड़ से उतरे और ताऊ का नाम लेके दहाड़े खोल आँखें ताऊ को लगा क़ि सच में भूत ने पकड़ लिया और माफ़ी मांगते हुए भाग गए और सुबह सारे गाँव में उठ के ताऊ दावा करने लगे क़ि कल रात मैंने भूतों की सेना को देखा, कहते थे की वो तो नरसिंग का धगुला कलाई में था नहीं तो जान चली जाती । और छोकरे मुह छुपा छुपा कर हंसते थे

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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वह साथी भैस का दुध पिकर भी मुझसे हार गया अब मात्र दो दिन दुध पिकर कितनी ताकत आ जायेगी भला दरअसल वह लड़का दिल्ली से गांव पहुचा था और वह स्कुल मे नया नया भर्ती हुआ था.
दयाल जी

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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जय हो ताऊ जी की

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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पहाड़ो मैं भूत / मशान क्या होता है अभी भी बहुत बड़ा रहस्य है। बात तब की है जब मैं यही लगभग ८ या ९ साल का होऊंगा, एक दिन मैं अपने घर से द्वाराहाट गया था मुझे शाम को ही वापस आना था घर से द्वाराहाट की दूरी २५ किलोमीटर है, २:३० बजे एक बस आती थी लेकिन उस दिन वह बस नहीं आये और ४ द्वाराहाट में ही बज गए। मैं रोने लगा तब एक सज्जन से कहा कि मुझे घर जाना है, उन्होंने पूछा, तुम्हारा घर कहां है तो  मैंने बताया की लोद जाना है। तो उसने कहा की चलो बिन्ता तक मैं आ रहा हूं, सांथ चलते हैं वहा से कोई और मिल जायेगा हम पैदल चलते हैं और हम राजुला वाले रस्ते ( शौर्ट रस्ते) से चल दिए अब हम बिन्ता पहुचे थे कि अँधेरा होने लगा और मेरे हमसफ़र भी अपने घर चल दिए फिर मैं अकेला रह गया। मैंने हिम्मत करके आने की ठान ले बिन्ता से लोद लगभग ८ किलोमीटर होता है तब आज की तरह न गाड़ियाँ थी ना मोबाइल फ़ोन और ना बिजली थी और ना ही इतनी जनसँख्या। मेरे रास्ते मैं एक श्मशान घाट भी पड़ता था, अब मैंने डरते डरते कदम आगे बढ़ाये मुझे हर एक झाडी भूत नजर आने लगी मैं बहुत डर गया चूंकि बात जाड़ो की दिनों की है ५ बजे से ही अँधेरा हो जाता है। डर के मारे मेरे रोंगटे खड़े हो गए और कंपकंपी भी आने लगी और लड़खड़ाई जुबान से हनुमान चालिसा गुनगुनाते आगे बढ़ने लगा। कुछ ही दूर गया था कि मुझे लगा एक व्यक्ति मेरे आगे जा रहा है इससे पहिले  मैं कुछ कहता वह बोला "अरे बेटा कहाँ जा रहे हो इतनी रात अँधेरे में, गाडी नहीं मिली क्या" मैंने कहा हाँ बुबू नहीं मिली। वह बोला "अच्छा हुआ मुझे भी देर हो गए तेरा साथ हो जायेगा, कहाँ जाना है लोद जाओगे" हाँ बुबू मैंने कहा अब मेरे जान मैं जान आ गए कि कोई तो मिल गया है वह व्यक्ति लचक-लचक के चल रहा था फिर हम आपस में बातें करते-करते आते रहे। वह लंगड़ा जरुर था लेकिन बहुत तेज़ चल रहा था मैं लगभग दौड़ते-दौड़ते उसके सांथ आ रहा था। डेढ़ घंटे का सफ़र हमने १ घन्टे में ही पूरा कर लिया, अब हम बस्ती में पहुंचने ही वाले थे कि उसने कहा "अब तो गाँव आ गया डर नहीं लगेगी मेरा भी घर आ गया, इससे आगे मेरा इलाका नहीं है तुम चले जाओ अभी लोग सोये थोड़े हैं" हाँ बुबू अब चला जाऊंगा मुझे डर नहीं लगती है मैंने कहा। अब मैं घर के पास आ गया था वहां पर हमारे गाँव कि एक दुकान थी मैं वहां पर रुका और अपनी कहानी दुकानदार को बताई तो वह एकदम से बोला "अरे वो तो डुण मशान होता है, वो लोगों की इसी तरह मदद करता है, कल उसको एक बीड़ी का बंडल दे के आना। जहां तक उसने छोड़ा, वहां पर एक पत्थर है, उसमें रख कर आना और हाथ जोड़कर धन्यवाद कहके आना, अब मुझे और भी डर लगने लगा कि मैं भूत के सांथ आया था। मैं दुकानदान के साथ ही घर तक आया , आज भी जब भी मैं वहां से गुजरता हूं तो डुण मशान को याद करता हूं और उसके मन्दिर में चढ़ावा चढ़ाता हूं।   

पंकज सिंह महर

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वो तो ठीक हुआ कि वह डुण मशाण था, किसी खतरनाक टैप के मशाण के हाथ पड़ते तो आज हमारा कन्वीनर कौन होता :D :D

 

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