पहाड़ो मैं भूत / मशान क्या होता है अभी भी बहुत बड़ा रहस्य है। बात तब की है जब मैं यही लगभग ८ या ९ साल का होऊंगा, एक दिन मैं अपने घर से द्वाराहाट गया था मुझे शाम को ही वापस आना था घर से द्वाराहाट की दूरी २५ किलोमीटर है, २:३० बजे एक बस आती थी लेकिन उस दिन वह बस नहीं आये और ४ द्वाराहाट में ही बज गए। मैं रोने लगा तब एक सज्जन से कहा कि मुझे घर जाना है, उन्होंने पूछा, तुम्हारा घर कहां है तो मैंने बताया की लोद जाना है। तो उसने कहा की चलो बिन्ता तक मैं आ रहा हूं, सांथ चलते हैं वहा से कोई और मिल जायेगा हम पैदल चलते हैं और हम राजुला वाले रस्ते ( शौर्ट रस्ते) से चल दिए अब हम बिन्ता पहुचे थे कि अँधेरा होने लगा और मेरे हमसफ़र भी अपने घर चल दिए फिर मैं अकेला रह गया। मैंने हिम्मत करके आने की ठान ले बिन्ता से लोद लगभग ८ किलोमीटर होता है तब आज की तरह न गाड़ियाँ थी ना मोबाइल फ़ोन और ना बिजली थी और ना ही इतनी जनसँख्या। मेरे रास्ते मैं एक श्मशान घाट भी पड़ता था, अब मैंने डरते डरते कदम आगे बढ़ाये मुझे हर एक झाडी भूत नजर आने लगी मैं बहुत डर गया चूंकि बात जाड़ो की दिनों की है ५ बजे से ही अँधेरा हो जाता है। डर के मारे मेरे रोंगटे खड़े हो गए और कंपकंपी भी आने लगी और लड़खड़ाई जुबान से हनुमान चालिसा गुनगुनाते आगे बढ़ने लगा। कुछ ही दूर गया था कि मुझे लगा एक व्यक्ति मेरे आगे जा रहा है इससे पहिले मैं कुछ कहता वह बोला "अरे बेटा कहाँ जा रहे हो इतनी रात अँधेरे में, गाडी नहीं मिली क्या" मैंने कहा हाँ बुबू नहीं मिली। वह बोला "अच्छा हुआ मुझे भी देर हो गए तेरा साथ हो जायेगा, कहाँ जाना है लोद जाओगे" हाँ बुबू मैंने कहा अब मेरे जान मैं जान आ गए कि कोई तो मिल गया है वह व्यक्ति लचक-लचक के चल रहा था फिर हम आपस में बातें करते-करते आते रहे। वह लंगड़ा जरुर था लेकिन बहुत तेज़ चल रहा था मैं लगभग दौड़ते-दौड़ते उसके सांथ आ रहा था। डेढ़ घंटे का सफ़र हमने १ घन्टे में ही पूरा कर लिया, अब हम बस्ती में पहुंचने ही वाले थे कि उसने कहा "अब तो गाँव आ गया डर नहीं लगेगी मेरा भी घर आ गया, इससे आगे मेरा इलाका नहीं है तुम चले जाओ अभी लोग सोये थोड़े हैं" हाँ बुबू अब चला जाऊंगा मुझे डर नहीं लगती है मैंने कहा। अब मैं घर के पास आ गया था वहां पर हमारे गाँव कि एक दुकान थी मैं वहां पर रुका और अपनी कहानी दुकानदार को बताई तो वह एकदम से बोला "अरे वो तो डुण मशान होता है, वो लोगों की इसी तरह मदद करता है, कल उसको एक बीड़ी का बंडल दे के आना। जहां तक उसने छोड़ा, वहां पर एक पत्थर है, उसमें रख कर आना और हाथ जोड़कर धन्यवाद कहके आना, अब मुझे और भी डर लगने लगा कि मैं भूत के सांथ आया था। मैं दुकानदान के साथ ही घर तक आया , आज भी जब भी मैं वहां से गुजरता हूं तो डुण मशान को याद करता हूं और उसके मन्दिर में चढ़ावा चढ़ाता हूं।