Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 51248 times)

C.S.Mehta

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बचपन की यादें
आज भी याद हैं वो दिन,
जब हम पानी वाली कुल्फी खाते थे,
सब्जी में मिर्चें लगती थी,
और गोल-गप्पे सी-सी करके गटक जाते थे,
अंगीठी में साग बनता था,
और मक्की की रोटी की चूरी बनवाते थे,
मंदिर के भंडारे में जाकर,
कढ़ी-चावल हाथों से चटकारे लेकर खाते थे,
मम्मी के हाथों में जादू था,
और पापा की गोदी में झट से चढ़ जाते थे,
कभी-कभी मम्मी के पर्स से,
एक-दो रूपये भी चुरा लिया करते थे,
काम ना मिलने का बहाना करके,
सारा-सारा दिन साइकिल चलाया करते थे,
फिर काम पूरा ना होने पर,
स्कूल में मार भी खाया करते थे,
होली में खुद बचके,
सबको छत से भिगाया करते थे,
छुट्टी लेने के बहाने,
पेट-दर्द से शुरू हो जाते थे,
छुट्टियों के इंतज़ार में,
बेसब्री से दिन गिना करते थे,
हिंदी में कुछ आये ना आये,
अंग्रेजी शब्दों को हिंदी में रटा करते थे,
छोटी-छोटी बातों पर भी,
बहुत सारे मज़े किया करते थे |

अब तो जैसे सब कुछ फीका लगता है,
बड़ी-बड़ी खुशियों में भी कम तीखा लगता है,
जिंदगी में जैसे झोल पड़ गया है,
हंसी का भी जैसे मोल बढ़ गया है,
हंसने से पहले सोचना पड़ता है,
कोई देख ना रहा हो, देखना पड़ता है,
जो किया फक्र से, वो नहीं कर सकते हैं,
बड़े जो
हो गये हैं, दुनिया से अब डरते हैं ||

C.S.Mehta

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बचपन
एक मोहल्ला था अपना,
जहाँ था बीता बचपन अपना,
मिलता था बस अपनापन,
कटता था सुखद जीवन,
इंट-मिटटी से घर थे बने,
छतों की तरह दिल थे जुड़े,

इंटों की सड़क पे साइकिल चलाना,
सीखते-सीखते गिर पड़ना,
मिटटी से जख्मों को ढकना,
अमरुद के पेड़ से कच्चे अमरुद खाना,
अनार चुराना, दोपहरी में बेर खाना,
कंचे खेलना, फिर उन्हें छुपाना,

पडोसी के शीशे तोडना,
आंटी का शिकायत लेके घर आना,
मम्मी का सबकी क्लास लगाना,
सारा-सारा दिन घर ना आना,
छोटे-छोटे बहाने बनाना,
पढने बैठते ही नींद आ जाना,

छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार करना,
छुट्टियों के काम को स्कूल में ही ख़त्म करना,
कहीं जाने से पहले सबको बताना,
नये कपडे-खिलौने सबको दिखाना,
छोटी-छोटी खुशियों को समेटना,
ऐसा था हमारा बचपन,

कहाँ गया वो सुनहरा बचपन,
कहते हैं हम बड़े हो गये हैं,
लगता है जैसे सिमट गये हैं,
बड़ी खुशियाँ भी छोटी लगती हैं,
हर बात में कोई गोटी लगती है,
जिंदगी में सहजता नदारद है,

जिसके पीछे दौड़ रहे हैं,
क्या वही जीने का मकसद है||

C.S.Mehta

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C.S.Mehta

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Devbhoomi,Uttarakhand

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Kabhi Ham bhi Baitha karte the aise




Raje Singh Karakoti

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हे बचपन के दिनों  कहां तुम चले गए


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