Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 51249 times)

पंकज सिंह महर

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एक और याद आया, हमारे यहां नदी है, उसमें कुछ लोग जाल डालते थे और कुछ गोता(मछली पकड़ने का एक यंत्र, जो पतली-पतली लकडि़यों को आपस में बांध कर बनता है, एक तरह से छन्नी का काम करता है, पानी बह जाता है और मछली फंस जाती है}
जो भी व्यक्ति यह लगाता था, वह ४-५ बजे के पास मछली लाता था, पर हम ३-४ लड़के २ बजे रात ही ले आते थे, और वह परेशान कि
अछ्यालन माच्छा कम ह्वेग्यान। ;D  ;D  ;D

पंकज सिंह महर

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जब हम ३-४ में पढ़्ते थे तो उन दिनों हम बारातों का बहुत इंतजार करते थे, क्योंकि उन दिनों जब बारात वापस लौटती थी तो रास्ते में पड़्ने वाली सभी बस्तियों में खासतौर पर बच्चों को गुड़, टाफी या जलेबी दिया करते थे। ( यह अपनी खुशी में अनजान लोगों को भी शामिल करने का प्रयास था)  ब्योली देखते थे और वरज्यू नमस्ते कहा करते थे, कभी-कभी कोई वरज्य़ू पैसे भी दे देते थे। बड़ा मजा आता था, उन दिनो वरज्य़ू के हाथ में आईना भी होता था। बारात के अंत में एक आदमी के पासबड़े से झोले में हमारे लिये आईटम होते थे। वैसे हमें बारात का नहीं इसी आदमी का इंतजार रहता था। :D  :D  ;D :D :D
लेकिन यह रिवाज अब विलुप्त हो गया है। 

प्रहलाद तडियाल

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आज तो बचपन याद आ गया जींदगी के असली दिन वही है.........
बहौत सी सरारते है बचपन की......... ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D एक सुनना चाहुगा आपको...............

बचपन में हल जोतना बड़ा अछा लगता था पर परेसानी ये थी की हमे हल पर हात भी नहीं लगाने दिया जाता था........
अब एक दिन मोका मील पड़ा......एक गोवन के बुबू थे जिनके की बेल चरने को जाया करती थे ........उस दिन बुबू जी थे नहीं तो उनका लड़का था जो की उमर में  हमरे ही बराबर था हमारा दागडिया था..तो उस दिन बेलो को चरने की जीम्दारी उनपर थी........हमको पता चाल की आज बुबू जी है नहीं तुम सब ने कहा की आज हल चलने का टाइम अछा है.......बेलो को खेत में ले जाया गया वो भी मिर्च के खेत में.......और जुताई सुरु  कर दी............ ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D ;D जमकर हल चलाया और सारी मिर्च टूट गयी.....................

तब दुसरी दिन खेत वाले चाचा उनके घर पहूच गए..........और जमकर गाली दी हम तो चाचा  को १ महीने ताक नजर नहीं आये..........पर जब चाचा मीले तो उन्होंने ये कहा.....तुम्गी म्येरे पटो मील्चा हो बह हु...........>:( >:( >:( >:(ू 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Kya baat hai Prahalaad ji bahut shararti bachpan gujra hai aapka :)

प्रहलाद तडियाल

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अनुभव दाजु अभी तो बहौत सी शरारते है......... 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Post karte jaao hum wait kar rahe hain.

अनुभव दाजु अभी तो बहौत सी शरारते है......... 

Risky Pathak

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Bhot Badiya Team work.....

Aaj to mjaa aa gyaa.... ye Topic and Hasya Ghatnao waala..


Lage Rho.....  :)

हेम पन्त

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ककडी की चोरी करना पहाड के लडकपन का एक अभिन्न अंग है. कभी-२ ककडी की यह मार दाडिम, माल्टा, संतरे आदि पर भी पड जाती है.

रात को टार्च या इमर्जेंसी लाईट ले जाकर ८-१० दोस्तों के झुण्ड के साथ हमने काफी ककडी चोरी. ऐसा मौका भी लगता था कि दोस्तों के दवाब में आकर अपने ही खेतों में चोरी कर देते थे. एक बार तो इतनी चोरी की थी कि बोरों में गुप्त स्थान पर रख दी और कर एक हफ्ते तक फुटबाल के फील्ड पर ले जाकर खाते थे.

पूरे ग्रुप में उस आदमी को बिना चोरी किये ककडी खाने को मिलती थी जो धनिया और मिर्च वाला नमक घर से बना/चुरा कर लाता था.


दिन ढूंढता है फिर वही, फुर्सत के रात-दिन

Almoraboy_reborn

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बचपन में हम लोग फुटबाल, क्रिकेट जैसे सामान्य खेल तो खेलते ही थे. इसके अलावा पिड्डू, ठिणि-बाल्लि (गुल्ली-डण्डा), आइस-पाइस, धप्पी, विष-अम्रत जैसे खेलों में भी काफी रुचि लेते थे. (तब दूरदर्शन का प्रयोग "रामायण" देखने और समाचार सुनने तक ही सीमित था.)

पिड्डू में एक मुलायम गेंद (जुराब में पुराने कपडे भर कर) बनायी जाती है. एक टीम १२-१४ पत्थरों को गेंद से गिरा कर दुबारा उन्हेफ एक के ऊपर एक रखने की कोशिश करती है. इस बीच उन्हें दूसरी टीम द्वारा किये जा रहे बाल के प्रहार से बचना होता है. फसल कट्ने के बाद सीढीदार खेतों में इस खेल को खेलने का अलग ही मजा है.




even we have played this game in skool days.

Risky Pathak

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बचपन के वो दिन जब रोपाई, गोडाई  के दिनों में खेतो में रवात और चाय लेके जाना और वहा गाड़ के किनारे बैठ के खाना बहुत  याद आता है|

खेतो में जाकर मैल गाड़ से तैल गाड़ में कूद कूद के दौड़ लगाना| फ़िर थककर खेतो में हिसालू खाना|

 

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