Author Topic: Lets Recall Our Childhood Memories - आइये अपना बचपन याद करें  (Read 51262 times)

पंकज सिंह महर

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बचपन की यादें ऐसी होती हैं, जो भुलाये नहीं भूलती हैं, जब हम बच्चे थे तो उन दिनों छपेलियों में एक जोड़ मशहूर था-

हरिया रुमाला, पीली मिठा छ,
झन रोये ब्योली, ब्योलो सिपा छ।


और एक गाना था, भाड़ में कदुवा से लेकर उसकी पैरोड़ी बनाकर हम लोग, हमारे गांव में जब किसी दीदी का ब्या होता था तो हम लोग दीदी के पास जाकर जोर-जोर से गाते-

भाड़ में कदुवा, भाड़ में कदुवा,
झन रोये ब्योली, ब्योलो पदुवा

सुधीर चतुर्वेदी

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aaj kafi dino kay bad form per baitha aur aap logo ki bachpan ki yaday padi bahut maja aaya .............

Devbhoomi,Uttarakhand

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मेरा बचपन


लोग कहते हैं
अब मैं ब़ड़ा हो गया हूँ

बच्चों सा
हँस और खिलखिला नहीं सकता
उनकी तरह
छलांगें भी नहीं लगा सकता
यहाँ तक कि
तुतली भाषा में बात भी नहीं कर सकता


और न ही
गेंद समझकर चाँद के लिए
जिद कर सकता हूँ
क्योंकि मैं ब़ड़ा हो गया हूँ

लेकिन मन कहता है नहीं
मैं सोचता हूँ क्यों नहीं

मन कहता है
मैं उस अवस्था में पहुँच गया हूँ
जहाँ वापस बचपन लौट आता है

यानी मेरे ब़ड़प्पन में बचपन
लौट आया है/जहाँ
मैं हँस सकता हूँ
खिलखिला सकता हूँ व
तुतला सकता हूँ

लेकिन छलाँगे नहीं लगा सकता
और न ही चाँद को पाने की
जिद कर सकता हूँ

तो क्या यहीं फर्क है
बचपन में और
बड़प्पन के बचपन मे?

पंकज सिंह महर

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एक मास्साब थे, मौर्या जी बनारस के उनका उच्चारण काफी हद तक मैदानी था। वे त्रिभुज क-ख-ग की बजाय के-खे-गे कहते थे, जिस पर हम लोगों को हँसी आ जाती थी। इस पर वे नाराज हो जाते थे, वे कद में छोटे थे तो उनका नाम हम लोगों ने मूसा रखा था। अपने कद का भी काफी काम्प्लेक्स उनको था कि मैं कद में छोटा हूं तो लड़के मुझे कुछ समझते नहीं हैं...इसलिये वे हम लोगों को डांटने का मौका तलाशते रहते थे और अक्सर मुर्गा बना देना या क्लास के आगे खड़ा कर देने में उन्हें मजा आता था। एक गलत बात भी उनकी थी कि "पहाड़ी लड़के कभी आगे नहीं बढ़ सकते, ये सिर्फ फौजी बनने के ही लायक हैं"  ये बात ऐसी चुभी कि मारने का मन हुआ, लेकिन गुरु भगवान का रुप है, ऐसा हमारे संस्कार कहते थे।
तो इलाज ढूंढा गया, कौंच (एक बेल की फली, जिससे ख्जली होती है)। कौंच की फली के झूस उनकी कुर्सी में लगा दिया गया, उसके बाद मूस मास्साब ने जो डांस किया.....माइकल जैक्सन भी नहीं कर पाया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 Bachpan Har Gam se Begana Hota hai
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Mujhe yaad hai, hum kis prakar se gaadi dekhne le liye bhi utsuk rahte the. Mera gaav jahan bahut yatayaat ke sadhan nahi thee. Saam ke samay Haldwani wali bus aati thee, hum log bus ko dekhane ke liye bhi pahaad ke door tapu mai baith jaate the.


Now life has quite changed.

Ek baar ek Helicopter bahut neeche udaan ud raha tha, shayad koi survey chal raha hoga.. Hamane us par patthar marne ki koshish ki.. lekin hamare paththar wahan tak bilkul pahuch rahe the.

Lekin haatho mai dard kaafi huwa.

Rajneesh

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Raah dekhi thi is din ki kabse,
Aage ke sapne saja rakhe the naajane kab se.
Bade utavle the yahaan se jaane ko ,
Zindagi ka agla padaav paane ko .

Par naa jane kyon …Dil mein aaj kuch aur aata hai,
Waqt ko rokne ka jee chahta hai.

Jin baton ko lekar rote the Aaj un par hansi aati hai ,
Na jaane kyon aaj un palon ki yaad bahut aati hai .

Kaha karte the …Badi mushkil se char saal seh gaya,
Par aaj kyon lagta hai ki kuch peeche reh gaya.

Na bhoolne wali kuch yaadein reh gayi,
Yaadien jo ab jeene ka sahara ban gayi.

Meri taang ab kaun kheencha karega ,
Sirf mera sir khane kaun mera peecha karega.
Jahaan 2000 ka hisaab nahin wahaan 2 rupay ke liye kaun ladega,

Kaun raat bhar saath jag kar padega ,
KAUN MERI gaadi mujse pooche bina lejayega ,
Kaun mere naye naye naam banayega.
Mein ab bina matlab kis se ladoonga,
Bina topic ke kisse faalto baat karoonga ,

Kaun fail hone par dilasa dilayega,
Kaun galti se number aane par gaaliyaan sunayega .

Tapri mein Chai kis ke saath piyoonga ,
Wo haseen pal ab kis ke saath jiyoonga,

Aise dost kahaan milenge Jo khai mein bhi dhakka de aayein,
Par fir tumhein bachane khud bhi kood jayein.

Mere gaano se pareshaan kaun hoga ,
Kabhi muje kisi ladki se baat karte dekh hairaan kaun hoga ,

Kaun kahega saale tere joke pe hansi nahin aai ,
Kaun peeche se bula ke kahega..aage dekh bhai .

Movies mein kiske saath dekhhonga,
Kis ke saath boring lectures jheloonga ,

Bina dare sachi rai dene ki himmat kaun karega.


Achanak bin matlab ke kisi ko bhi dekh kar paglon ki tarah hansna,
Na jaane ye fir kab hoga .

Doston ke liye professor se kab lad payenge ,
Kya hum ye fir kar payenge,

Raat ko 2 baje poha khane station kaun jayega ,
Tez gaadi chalane ki shart kaun lagayega .


Kaun muje mere kabiliyat par bharosa dilayega,
Aur jyada hawa mein udne par zameen pe layege ,

Meri khushi mein sach mein khush kaun hoga ,
Mere gam mein muj se jyada dukhi kaun hoga…

KEH DO DOSTON YE DOBAARA KAB HOGA

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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दोस्तो
मै तो आप लोगो के बचपन के सुनहरे दिनो के पलो को पढते-पढते अपना सुनहरा बचपन ही भूल गया।

अपने बचपन के सुनहरे दिनो के पलो को कुछ इस तरहै पेश कर रहा हु।

कभी दिल उदास तो कभी आँखों के कोंने नम हो रहे है।
कोसीस कर रहा हु, बचपन याद करने की,
पर आपके ये सुनहरे लमहे, भुला दे रहे है।

हेम पन्त

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बाबा हो!! कौंच (Kaunch) तो भौती खतरनाक चीज ठैरी.. जहाँ लग जाये ऐसी खुजली पैदा कर देती है कि आदमी को क्या करूं? क्या करू? हो जाती है. नहालो या फिर कपड़े उतार के फेंक दो, फिर भी शरीर से खुजली नहीं जाती. वैसे स्कूलों लड़के में कौंच का दुरुपयोग भी बहुत करते हैं...
 
एक मास्साब थे, मौर्या जी बनारस के उनका उच्चारण काफी हद तक मैदानी था। वे त्रिभुज क-ख-ग की बजाय के-खे-गे कहते थे, जिस पर हम लोगों को हँसी आ जाती थी। इस पर वे नाराज हो जाते थे, वे कद में छोटे थे तो उनका नाम हम लोगों ने मूसा रखा था। अपने कद का भी काफी काम्प्लेक्स उनको था कि मैं कद में छोटा हूं तो लड़के मुझे कुछ समझते नहीं हैं...इसलिये वे हम लोगों को डांटने का मौका तलाशते रहते थे और अक्सर मुर्गा बना देना या क्लास के आगे खड़ा कर देने में उन्हें मजा आता था। एक गलत बात भी उनकी थी कि "पहाड़ी लड़के कभी आगे नहीं बढ़ सकते, ये सिर्फ फौजी बनने के ही लायक हैं"  ये बात ऐसी चुभी कि मारने का मन हुआ, लेकिन गुरु भगवान का रुप है, ऐसा हमारे संस्कार कहते थे।
तो इलाज ढूंढा गया, कौंच (एक बेल की फली, जिससे ख्जली होती है)। कौंच की फली के झूस उनकी कुर्सी में लगा दिया गया, उसके बाद मूस मास्साब ने जो डांस किया.....माइकल जैक्सन भी नहीं कर पाया।


Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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मेरे बचपन का हर वो लमहा कुछ कहना चाहता है।
कुछ इस तरहै जैसे, उसका हर पल सुनहरा होता है।

खयालो से जुदा हो सकते है,
मगर हदॅय से हो नही सकते।
जैसे वक्त की शाख से लमहे नही जुदा होते।

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

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वाह जी वाह देव भूमी आपने तो स्कूल की यादै ताजा कर दी धन्वाद हो भाई साहब।

 

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