Bachpan ki mithi yaden
बचपन की वो मीठी यादें ,
वो नन्हीं-सी अठखेलियां ,
याद आती है बहुत ,
वो भोली-सी नादानियां !
वो माँ का आँचल और
पापा की अंगुली थामें ,
चलना, गिरना और फिर संभलना !
वो नन्हीं हथेलियों से अपने चेहरे को छुपाना ,
फिर उन्हीं हथेलियों से झांक कर मुस्कुराना !
वो टिमटिमाते तारों को पकड़ने की आस में
आसमान को एकटक यूँ ही तकते रहना ,
और न पाकर उन्हें मायूस-सा हो जाना !
वो नन्हें हाथों से मिट्टी का घरोंदा बनाना ,
और लहरों का उसे अपने संग बहा ले जाना ,
लेकिन फिर भी मिट्टी के नए घरोंदे बनाना !
वो बारिश की फुहारों से ख़ुद को भिगोना ,
और घर आकर माँ की डांट खाना