मेरा परिवार मूलत: अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के एक गाँव में बसा हुआ था, लेकिन मेरा जन्म रांची में हुआ। दरअसल नौकरी के सिलसिले में मेरे पिता रांची आकर बस गए थे। इसी शहर में 7 जुलाई, 1981 को मेरा जन्म हुआ।
[बहुत पसंद था दूध]
बचपन में मुझे अगर कोई चीज सबसे ज्यादा पसंद थी तो वह था दूध। हम तीन भाई-बहन थे और पिताजी इस बात का खास ख्याल रखते थे कि हमको ताजा दुहा हुआ दूध पीने को मिले। पता है, वे इसको सामने खड़े होकर निकलवाते थे। आज भी मुझे दूध बहुत पसंद है। जब मैं बड़ा हुआ और क्रिकेट मैचों के सिलसिले में बाहर के शहरों में जाने लगा तो वहाँ मुझे पैकेटबंद दूध मिलता था। शुरुआत में मैं इसको पीने में बहुत नाक-भौं सिकोड़ता था, लेकिन बाद में आदत पड़ गई। अब भी जब कभी रांची में होता हूँ तो ताजा दूध पीने का मोह नहीं छोड़ पाता। नन्हे दोस्तों, तुमको एक राज की बात बताऊँ? दूध पीना बहुत जरूरी है, यह न केवल संपूर्ण आहार है, बल्कि इससे स्टैमिना भी मजबूत होता है।
[सबसे छोटा-सबका लाड़ला]
मेरे परिवार में हम सभी लोग मिल-जुल कर रहते थे। मैं सबसे छोटा और सबका लाड़ला था। खास तौर पर मेरी बहन जयंती और माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं। पिताजी बहुत अनुशासनप्रिय थे, लेकिन उनका प्यार भी कुछ कम नहींथा। अब भी मैं कोशिश करके दो माह में कम से कम एक बार रांची जरूर जाता हूँ। पता है, वहाँ पर मेरे दो प्यारे डॉग्स जारा और सैम भी हैं।
[पसंदीदा खेल था फुटबॉल]
आज तुम मुझे क्रिकेटर और टीम इंडिया के कैप्टन के रूप में पहचानते हो, पर पता है, बचपन में मैं बहुत सारे खेलों में रुचि रखता था। हमारे घर के बगल में ही स्टेडियम था और पिताजी बताते हैं कि मैं 5-6 साल की उम्र से क्रिकेट खेलने लगा था। खैर, मेरी रुचि बैडमिंटन में भी थी और मेरा सबसे पसंदीदा खेल था फुटबॉल। फुटबॉल में मैं स्कूल की टीम का गोलकीपर था। अब तुम सोच रहे होगे कि मैं क्रिकेट में कैसे आ गया? हुआ ये था कि जब मैं डीएवी जवाहर विद्यामंदिर में क्लास सेंवेंथ में था, तो स्कूल की क्रिकेट टीम को एक विकेटकीपर चाहिए था और कोई खिलाड़ी उपलब्ध नहीं था। हमारे पी.टी. टीचर बनर्जी सर को पता था कि मैं बढि़या गोलकीपिंग करता हूँ तो उन्होंने मुझे क्रिकेट टीम का विकेटकीपर बना दिया। यहीं से मेरा क्रिकेट करियर शुरु हुआ। 15 साल की उम्र में मैंने जीवन का पहला बड़ा क्रिकेट टूर्नामेंट सी.के. नायडू इंटरस्टेट स्कूल टूर्नामेंट खेला और आज यहाँ तक आ पहुँचा हूँ।
[मेहनत से मिलेगा मुकाम]
खेलकूद में बेहद रुचि के बावजूद मैंने कभी इसका असर पढ़ाई पर नहीं पढ़ने दिया। मैं क्लास में टॉपर तो नहीं था, पर हर बार फर्स्ट डिवीजन जरूर लाता था। मैं तुमसे भी यही कहना चाहता हूँ कि जिंदगी में संतुलन बनाकर चलो। खूब खेलो और खूब पढ़ो। मैं भी एक साधारण सा बच्चा था। अगर कड़ी मेहनत के बल पर मैं आज इस मुकाम तक पहुँच सकता हूँ , तो तुम क्यों नहीं?
[मनीष त्रिपाठी]
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