Author Topic: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख  (Read 93296 times)

dramanainital

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 171
  • Karma: +2/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #290 on: June 23, 2010, 01:20:24 PM »
राजेश जी ये लेख मैंने दैनिक जगरण के नैनीताल संस्करण २२ जून २०१० से जस का तस उद्धरित किया है.

dramanainital

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 171
  • Karma: +2/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #291 on: June 25, 2010, 10:03:08 AM »
शैलाश्रय है अल्मोड़ा का लखुउडियार Jun 25,   Dainikjagran(Nainital)
 
 नवीन बिष्ट, अल्मोड़ा। लखुउडियार के चित्र लोगों को अचंभित करने वाले हैं। हजारों साल पुराने इन चित्रों का रंग अभी भी खराब नहीं हुआ है। उत्तराखंड में अब तक के ज्ञात प्रागऐतिहासिक कालीन चित्रित शैलाश्रयों में लखुउडियार के चित्र सबसे प्राचीन व महत्वपूर्ण हैं। इन चित्रों की विशेषता है कि यह एक काल के नहीं बल्कि अलग-अलग कालों के मानव ने बनाए हैं।

एसएसजे परिसर के इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डा.विद्याधर सिंह नेगी का कहना है कि इसी शैली के शैलाश्रय मध्य प्रदेश के भीमवेटका, पंचमणि व उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मौजूद हैं। डा.नेगी ने बताया कि लखुउडियार में सबसे प्राचीनतम चित्रण में श्वेत रंग का प्रयोग किया गाया है। उसके बाद के काल में श्याम रंग से चित्र उकेरे गए हैं, जबकि तीसरे काल के चित्रों में गेरुवे रंग का प्रयोग किया गया है। यह बात तो निश्चित है कि चित्र इतने प्राचीन हैं कि उनमें अधिकांश चित्रों का फोटो नहीं आ पाते हैं लेकिन यह चित्र स्थल पर जाकर देखे जा सकते हैं।

डा.नेगी बताते हैं कि इन शैलाश्रयों पर उन्होंने लंबे समय तक काम किया। आज भी नया कुछ जानने के लिए अवसर मिलने पर वह लखुउडियार अवश्य जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक के अध्ययन से पता चलता है कि सर्वप्रथम उकेरे गए चित्र दब गए हैं। उनका मानना है कि अपने-अपने काल में कलाकारों ने प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया होगा। सबसे अंतिम काल में गेरुवे रंग का प्रयोग हुआ, यही कारण है कि इन चित्रों की बहुतायत लखुउडियार में देखने को मिलती है। यह मौके पर देखने से पता लगता है कि शैलाश्रय किसी जमाने में बहुत विशाल रहा होगा। 4 से 5 हजार साल पुराना यह शैलाश्रय अब धीरे-धीरे टूटता जा रहा है। मौजूदा दौर में इनकी ऊपरी छत भी टूट रही है। जल रिसाव से जगह-जगह चित्र खराब हो चुके हैं या धुंधले पड़ चुके हैं।

हालांकि इनकी देखरेख पुरातत्व विभाग कर रहा है लेकिन काल के थपेड़ों से यह कितने संरक्षित रह पाएंगे कहना मुश्किल है। बहरहाल सैकड़ों की संख्या में सैलानी, शोध छात्र व विशेषज्ञ अध्ययन के लिए यहां आते हैं। शैलाश्रय में उकेरे गए चित्र कहीं पर हस्तबद्ध मानव श्रृंखला के रूप में विद्यमान हैं तो कहीं लबादाधारी मानव का चित्र भी देखने को मिलते हैं। कहीं पर नृत्य मुद्रा में मानव श्रृंखला दृष्टिगोचर होती है जो यहां के लोक नृत्य 'झोड़ा' की भावाभिव्यक्ति करती जान पड़ती है। कई जगह पशुओं का अंकन है, जिनमें पूंछ, भारी शरीर वाले पशुओं की आकृति अंकित है।

एक विशिष्ट आकृति जो आज भी स्पष्ट है, वह है एक चौकोर घर। इसके सामने खड़ी है सुरक्षा की मुद्रा में मानव आकृति। इसके अलावा एक 14 पैरों वाले सरीसृप की आकृति विशेष आकर्षण का केंद्र है।

यही नहीं इस शैल चित्र में जहां लहरदार रेखाओं के जरिये जल की मौजूदगी दर्शाई गई है वहीं इंद्रधनुष की आकृति भी उकेरी गई है। पुरातत्ववेत्ता प्रो.एमपी जोशी लहरदार रेखाओं को जल का द्योतक बताते हैं।

इसके अतिरिक्त पुरातत्व विज्ञान के प्रतिष्ठित विद्वान प्रो.एमपी जोशी, प्रो.डीपी अग्रवाल का मानना है कि यह शैलाश्रय चित्रण मध्य पाषाण एवं ताम्र पाषाण कालीन हो सकते हैं। इन चित्रों में कहीं भी आखेट का दृश्य अंकित नहीं है। इसलिए इसे बनाने वाले नितांत अन्न संग्रहण व खानाबदोश जीवन व्यतीत करते होंगे। बहरहाल इन चित्रणों का उल्लेख समय-समय पर अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययन के अनुसार किया है जिनमें मुख्य रूप से पुरातत्ववेत्ता व इतिहासकार प्रो.एमपी जोशी, डा.डीपी अग्रवाल, डा.तारा चन्द्र त्रिपाठी, डा.यशोधर मठपाल सहित अनेक विद्वान शामिल हैं।

dramanainital

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 171
  • Karma: +2/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #292 on: July 02, 2010, 08:08:03 AM »
dainik jagran.nainital edition 2nd july 2010.

खतरे की जद में गर्जिया मंदिररामनगर: कुमांऊ और गढ़वाल के प्रवेश द्वार पर स्थित लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक मां गर्जिया देवी मंदिर पर इन दिनों संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे है। यदि जल्द इस ओर इसकी सुरक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो इस पौराणिक मंदिर का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। कोसी नदी के बीच तट पर स्थित इस मंदिर के टीले पर दरार आ चुकी है। बताते चलें कि मां गर्जिया देवी का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है। यदि इसकी सुरक्षा के प्रति उदासीन रवैया अपनाया गया तो इसके अस्तित्व को गंभीर खतरा पैदा हो जायेगा। सन् 2004 में जब गर्जिया मंदिर में पुल के शिलान्यास करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी आये थे तो उन्हें भी इस समस्या से अवगत कराया था। तब श्री तिवारी ने इस मंदिर की सुरक्षा के लिए 25 लाख रुपए की धनराशि आवंटित करने की घोषणा की थी। उसके बाद आईाआईटी रूड़की के विशेषज्ञों ने इसका निरीक्षण कर इसकी सुरक्षा के लिए 45 लाख रुपए खर्च होने की जानकारी दी थी। उसके बाद से आज तक इस मंदिर की सुरक्षा के प्रति शासन प्रशासन की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया गया। गर्जिया मंदिर समिति के अध्यक्ष मनमोहन जोशी और सचिव डा. डीडी दानी ने बताया कि मंदिर के मुख्य गेट पर जहां पर सीढि़यां प्रारंभ होती है वहां पर दो से तीन सूत मोटी दरार साफ दिखाई देती है। यदि इस दरार में पानी घुसता रहा तो यह कभी भी मंदिर को नुकसान पहुंचा सकता है। श्री जोशी ने बताया कि मंदिर के पिछले हिस्से में चोटी के पास से बार-बार मिट्टी गिरती रहती है जो मंदिर के लिए खतरा बन सकती है। समिति ने इस सम्बन्ध में बुधवार को मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर मंदिर की सुरक्षा की ओर ध्यान दिलाया।

Ajay Tripathi (Pahari Boy)

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 296
  • Karma: +3/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #293 on: July 03, 2010, 12:54:32 PM »
Life teaches u lessons!!!

1. When the Snake is alive, the Snake eats Ants.
When the Snake is dead, Ants eat the Snake.
Time can turn at any time.
Don’t neglect anyone in your life…….. …

2. Never make the same mistake twice,
There are so many new ones,
Try a different one each day.

3. A good way to change someone’s attitude is to change our own.
Because, the same sun melts butter and also hardens clay!
Life is as we think, so think beautifully.

4. Life is just like the sea, we are moving without end.
Nothing stays with us, What stays with us are just memories of some people who touched us as Waves.

5.  Do you want to know how rich you are?
Never count your currency, just try to Drop a Tear and count how many hands reach out to WIPE that – that is true richness.

7. Never change your originality for the sake of others.
No one can play your role better than you.
So be yourself, because whatever you are, YOU are the best.

8.  A baby mosquito came back after flying the first time.
His dad asked him “How do you feel?”
He replied “It was wonderful, Everyone was clapping for me!”
Now that’s what is called “Positive Attitude”

dramanainital

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 171
  • Karma: +2/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #294 on: July 04, 2010, 10:43:43 AM »
 machchar gazab kaa hai.

dramanainital

  • Full Member
  • ***
  • Posts: 171
  • Karma: +2/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #295 on: July 04, 2010, 11:21:10 AM »
बलियानाला: बन सकता है आफत
dainik jagran,4th july 2010
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल:
नगर का सबसे संवेदनशील बलियानाला पिछले लम्बे समय से भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र है। लगभग 35 वर्षो से इसका उपचार चल रहा है। विभिन्न विभागों ने अब तक करोड़ों रूपये खर्च कर दिये हैं। इसका स्थाई इलाज नही हो सका है। पिछले 9 वर्षो में अकेले सिंचाई विभाग उपचार में 20 करोड़ रूपया खर्च कर चुका है। इस बार बरसात से पूर्व उपचार के कार्य नही हो पाने से हजारों की आबादी के सिर पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इस वर्ष शासन द्वारा कार्यो के लिए स्वीकृत 84 लाख रूपये सिंचाई विभाग को अवमुक्त नही हो पाये हैं। यहां बता दें कि नैनी झील से निकलने वाले पानी बलियानाला क्षेत्र से होकर गौला नदी में जाता है। लगातार कटाव के कारण यह भूस्खलन का केंद्र भी बन गया। वर्ष 1975 में अतिवृष्टि के कारण भारी भूस्खलन हुआ था। इसके बाद यहां नाले के आसपास बसे हरिनगर, कृष्णापुर, आलूखेत, कैलाखान क्षेत्र के इलाकों में भवनों व सड़कों का धंसने का क्रम शुरू हो गया। सन् 2001 तक लोक निर्माण विभाग द्वारा उपचार किया जाता रहा। बाद में यह कार्य सिंचाई विभाग को सौंप दिया गया। इसी वर्ष आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिक प्रो.भरत सिंह के नेतृत्व में भूवैज्ञानिकों की टीम ने इस पूरे इलाके का सर्वेक्षण किया तो पाया कि नाले की तलहटी व दोनों किनारों में भू-कटाव हो रहा है। इससे विस्तृत क्षेत्र में बसी आबादी में भू-धंसाव हो रहा है। इस टीम ने नाले की तलहटी, भूस्खलन प्रभावित ढलानों में उपचार करने के साथ ही वृहद पौधरोपण व संवेदनशील इलाकों में पुनर्वास की व्यवस्था करने का सुझाव दिया था। हालांकि इस कार्य के लिए 2001 से अब तक सिंचाई विभाग बीस करोड़ की राशि खर्च कर चुका है। इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए शासन सिंचाई विभाग को पचास लाख का बजट उपलब्ध कराता है। लम्बे समय से बलियानाला में कार्य कर चुके हाल ही में सेवानिवृत्त हुए सिंचाई विभाग के विभागाध्यक्ष व मुख्य अभियंता एबी पाठक का कहना है कि इस क्षेत्र में बसी अस्थायी आबादी से आने वाले पानी से समस्या का स्थायी इलाज नहीं हो पा रहा है। बलियानाला का उपचार कर रहे सिंचाई उपखंड नैनीताल के प्रशासनिक अधिकारी आरसी पांडे के अनुसार इस वर्ष शासन से लगभग 84 लाख रूपया बाढ़ नियंत्रण कोष से स्वीकृत किया गया था, लेकिन विभाग को अब तक अवमुक्त नहीं हो पाया है। कुल मिलाकर इस बार जहां भारी वर्षा की संभावनाओं को देखते हुए भूस्खलन की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं। सिंचाई विभाग के अलावा इस क्षेत्र में प्राधिकरण व वन विभाग भी कार्य कर रहा है। 2001 से पूर्व लोक निर्माण विभाग भी करोड़ों रूपये खर्च कर चुका है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इसके बावजूद यह क्षेत्र अब भी भूस्खलन की चपेट में है।

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
वो वनस्पतियाँ जो गंगा जल को अमृत बनाती हैं
Author: डॉ भगवती प्रसाद पुरोहित
गंगाजल कभी खराब नहीं होता है। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गौमुख से गंगोत्री तक की गंगायात्रा में हिमालय पर्वत पर उगी ढेर सारी जड़ी-बूटियां गंगा जल को स्पर्श कर अमृत बनाती हैं। साथ ही गंगा जल में बैट्रियाफौस नामक पाये जाने वाला बैक्टीरिया अवांछनीय पदार्थों को खाकर शुद्ध बनाये रखता है। और दूसरा बड़ा कारण है कि हिमालय की मिट्टी में गंधक होता है जो गंगा जल में घुलकर गंगा जल को शुद्ध बनाता है।

संस्कार और संस्कृति में हजारों सालों से गंगा को माँ और गंगाजल को अमृत मानने वाले उत्तराखण्ड में पीने के पानी की स्वच्छता पर परम्परागत रूप से विशेष ध्यान दिया जाता था। पानी को मस्तिष्क के लिए सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारक माना जाता है। इसलिए भी द्विज लोग सिर्फ अपने हाथ का स्वच्छ जल ही प्रयोग करते थे। खासकर बौद्धिक कार्य करने वाला ब्राह्मण वर्ग अपने उपयोग में लाने वाले जल को दूसरों को या बच्चों को छूने भी नहीं देता था। इस शुद्धता की महत्ता कृषि, व्यापार या युद्ध प्रिय व्यक्ति अथवा सेवक नहीं समझ सके। खान-पान की शुद्धता भी इसी आधार पर थी। रसोई पूरी तरह स्वच्छ रहे इसके लिए बच्चों तक को रसोई के पास फटकने नहीं दिया जाता था। आज यद्यपि कुछ सतही मानसिकता के लोगों द्वारा इसे मनुवाद के नाम से तिरोहित किया जा रहा है परन्तु इस शुद्धता का यह पक्ष भी देखा जाना अनिवार्य है कि आज भी नैतिकता या मर्यादा के विरूद्ध काम करने वाले व्यक्ति को पानी से अलग कर देते हैं। यह सबसे बड़ा सामाजिक दण्ड है। कहने का आशय यह है कि अपराधी कार्य करने वाला व्यक्ति समाज के साथ भी अपराध कर सकता है इसलिए ऐसे अपराधी से सबसे पहले जल की सुरक्षा करनी चाहिए। यह तथ्य इस बात का प्रतीक है कि प्राचीन समाज पानी की स्वच्छता के प्रति कितना संवेदनशील था।

आज भी उत्तराखण्ड में पानी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए परम्परागत उपायों को व्यवहार में क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए लम्बी रेशेदार हरी शैवाल कायी पानी को प्राणियों के पाने के अनुकूल बनाने में सहायक सिद्ध होती है और शैवाल से गुजरने वाला पानी मनुष्य आदि सभी जीव जन्तुओं के लिए कम हानिकारक होता है। यह विशेष प्रकार की शैवाल पांच हजार फिट से अधिक ऊँचाई पर पायी जाती है। जबकि इसकी अपेक्षा कम ऊँचाई पर पायी जानी वाली शैवाल कतिपय स्थानों पर खासकर मैदानों में जहरीली भी होती है। उत्तराखण्ड में ऐसी हजारों-हजार जड़ी बूटियां है जो पानी को साफ एवं स्वच्छ रखने में सहायक होती हैं। तुलसी, पुदीना, पिपरमेंन्ट, फर्न घास, बज्रदन्ती, बज आदि जड़ी-बूटियों को प्राचीन काल में लोग पेयजल स्रोतों के आस-पास लगाते थे। हमारे गांवों में आज भी ये जड़ी-बूटियां पेयजल स्रोतों के आस-पास प्राप्त होती है। लेकिन जब से प्राकृतिक स्रोतों को तोड़कर नेचुरल फिल्टरेशन की बात नजरंदाज कर सीमेंट आदि रसायनों से चैम्बरों का निर्माण किया गया तो प्राचीन अवधारणा ही नष्ट हो गयी। ध्यान रखने वाली बात यह है कि शैवाल प्राकृतिक स्रोतों से निकलने वाली बारिक रेत की रोकती है और जीवाणु तथा बारीक जन्तुओं को भी, जबकि पुदीना व पीपरमेन्ट जल से मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्वों को ग्रहण कर उसे उपयोगी और स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद बनाते हैं। इसी प्रकार दूब, ब्राह्मी व बज कीटाणु नाशक होने के साथ-साथ बुद्धिवर्द्धक एवं स्वास्थ्य बर्द्धक हैं। समोया सुगन्ध बाला आदि औषधियां जल में रूचिकर व विरेचक गुणों को उत्पन्न करती हैं जबकि फर्न घास पानी में विचरण करने वाले केकड़े, मेढ़क, मछली, सांप, आदि जीव जन्तुओं द्वारा छोड़े गये अवशिष्टों को ग्रहण कर पानी को ताजा व शुद्ध बनाये रखती है। तुलसी आदि वनस्पतियों के गुणों से तो सभी विज्ञ हैं।


गंगा जल को अमृत बनाने वाली/कुछ जड़ी-बूटियों की सूची

अतीस  जटामांसी  रतन जोत अमलीच  जोगीपादशाह  रूद्रवन्ती  अडूसा  जंगली इसबगोल
लालजड़ी अजगन्धा  जंगली कालीमिर्च  लांगली अजमोदा  जरूग (मत्ता जोड़)  लाटूफरण गरी
असगन्ध  जोंक मारी  सतावर  अपामार्ग  टिमरू  सर्पगन्धा  आक  टंकारी  शंख पुष्पी 
उस्तखट्टूस  जेलू आर्चा  सतवा  इन्द्रायण  दूब  समोया  इन्द्रजटा  दुधिया अतीस  सालम 
कण्डाली  दुग्ध फेनी  सालम मिश्री  कण्चकारी  धोय  कुणज  कपूर कचरी नीलकंठी  पुदीना
कुल्हाडकट्या  नाग दमन  पिपरमेन्ट  किलमोड़  धुप लक्कड़  ब्रह्मकमल  कुकड़ी  निर्विषी
 फेन कमल केदार कड़वी  पुनर्नवा  जंगली गेंदा कोल प्लेगहर बूटी  पित्तपापड़ा  चल
 कोल कन्द  पाषाण भेद  सरासेत  कैलाशी मिरधा  पीली जड़ी  गुलाब  कांथला
 बज  गुलदावरी  गिलोय  ब्रह्मी  वन अजवायन  गिंजाड़  गुग्गल  वन तुलसी  गोबरी विष
 वज्रदन्ती  मेदा महामेदा गोछी कोंच  बड़मूला  मूर मुरामासी चोरू रिखचोरू  वनफसा
 मकोय  चन्द्रायण  भैंसलो  मजीठा चिरायता  भमाकू माल कंगणी  चित्रक  ममीरा  सोमलता 
इन्हीं जड़ी बूटियों से हेकर गुजरने वाले पानी के स्वाद व गुणवत्ता का कोई जबाव नहीं है।

पानी की गुणवत्ता को बढ़ाने वाली हिमालयी जड़ी-बूटियां एवं औषधियां

उत्तराखण्ड हिमालय में अनेकों वृक्ष भी हैं। जिनका न केवल जल भण्डारण में बल्कि जल की गुणवत्ता बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान है। इनमें मुख्य रूप से कुमकुम, सुराई, काफल, बॉज, बुरांश, पइयां दालचीनी, उदम्बर, उतीस व वेल प्रमुख हैं। कुमकुम की जड़ से निकलने वाला पानी धरती पर अमृत तुल्य है। यह जल इहलोक ओर परलोक में न केवल सद्वृत्तियों का विकास करता है बल्कि निरोग, गुणकारी, बुद्धि वर्द्धक, अमृत तुल्य देवताओं को भी दुर्लभ है। परन्तु आज कुमकुम का वृक्ष धरती से लुप्तप्राय हो रहा है ऐसे में कुमकुम का पेयजल की दृष्टि से भी संरक्षण आवश्यक है।

(सारणी-2) दूसरा महत्वपूर्ण वृक्ष सुराई है। सुराई की जड़ों से निसृत होने वाला पानी न केवल स्वास्थ्य वर्द्धक है बल्कि जिन गॉवों में भी पानी के स्रोतों पर सुराई का पेड़ हैं वहां के लोग गोरे-चिट्टे, साफ रंग, निरोग, सुन्दर, अधिकांश दोहरे बदन के सुडोल आकर्षक एवं दीर्घायु होते हैं। गेरी, पेरी, सुतोल, सणकोट, काण्डा, आदि गांवों में जहां पानी के स्रोतों पर सुराई के विशाल वृक्ष हैं वहां के लोगों को देखकर यह बात स्वयंसिद्ध हो जाती है, जबकि बॉज, बुरांश व काफल की जड़ों से निसृत होने वाला जल मधुर, सुपाच्य, भूख बढाने वाला निरोगी एवं स्वास्थ्यबर्द्धक तथा अत्यन्त गुणकारी होता है। उत्तराखण्ड हिमालय में ऐसे अनेकों वृक्ष एवं झाड़ियां हैं जो जल की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं।

पानी की गुणवत्ता को बढ़ाने वाली दुर्लभ मृदा प्रजातियां

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चाहे जड़ी बूटियां और वृक्षों के रोपण से पानी की गुणवत्ता सुधारी जाय या आधुनिक हाईजनिक फिल्टरों से लेकिन उपभोक्ताओं को मानकों के अनुरूप पेयजल उपलब्ध होना ही चाहिए। इस प्रकार जिन गांवों में पेयजल स्रोतों से जल उपलब्ध होता है वहां के लिए प्राकृतिक पद्धति एवं जिन गांवों में पेयजल की पाइप लाइन है वहां फिल्टर की व्यवस्था अत्यन्त आवश्यक है। लेकिन इसके ठीक विपरीत आज हो रहा है।


जल वर्द्धक एवं जल शोधक जड़ी बूटियों की सूची (सारणी-2)
वृक्ष-
 अखरोट  चीड़  मजनू  चम्पा  करोंदा आम  च्यूरा  मेहल  मवा  कूंजा अमलतास  च्यूला
 रक्त चंदन  सेंरू  कूरी अयांर  जामुन  रागा  दालचीनी  गढ़पीपल अर्जुन  डेंकणा  रीठा
 किरकिला  जंगली मटर आडू  ढाक  लोद  संतरा  तुंगड़ा  आंवला  तिमला  बरगद
 बड़ा  धौला  मोरू  सागौन  गोभी  बांस  इमली  तुन  साल  यमखड़ीक  बेर  उतीस  थुनेर  सिरान  ऐरीकेरिया  मालू
ओंगा देवदार  सिंवाली  गुलमुहर  रामबांस  अंगू  नासपाती  सुबबूल  हड़जोत  रिंगाल  क्वेराल  नींबू सुराई  सेमल  हिंसोल 
करील  नीम  शीशम  शहतूत  किलमोड़  काकड़ा  पांगर  पीपल  पापड़ी  चाम  काफल  बबूल
 हरड़  पइयां  केला कीकर  बहेड़ा  बेल  कलमिन्डा  कुणज  कैल  खड़ीक  बांज  कुमकुम
   खर्सु  बेडू  कपासी  बुरांश  खैर  फनियांट  भमोरा  अमरूद गूलर  गेंठी  भीमल  लीची
   चिनार  बदाम  लुकाट

उपयोगी जड़ी बूटियों झाड़ियों एवं वृक्षों की कमी के कारण कतिपय स्थानों पर सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। ऐसे स्थानों पर वनस्पति के नाम पर राजस्थानी, मरूस्थली या शुष्क क्षेत्रों की तरह नागफनी, लेन्टाना आदि कैक्टस प्रजाति की झाड़ियां उग रही हैं जिससे पानी के स्वाद व गुणवत्ता में लगातार कमी आ रही है। जल की गुणवत्ता समाप्त करने वाली कुछ मुख्य वनस्पतियों की सूची सारणी सं. 3 में देखा जा सकता है।

 यूकेलिप्टस   पौपुलस   सिल्वरओक  चीड़  नागफनी  मुल्ला  रिण्डा  अरिण्डा
  लेन्टाना  कालाबांस  गाजर घास  आंक  कनेर  सांखिया  ओक (एक विशेष प्रजाति)
  खिण्डा
उपरोक्त वनस्पतियां जो उत्तराखण्ड के मध्य हिमालय में पायी जाती हैं, उनमें यूकेलिप्टस, पौपुलस और सिल्वर ओक ही ऐसे वृक्ष हैं जो पानी वाले स्थानों में आसानी से उग जाते हैं शेष लगभग सारी वनस्पति शुष्क स्थानों में उगती हैं। प्रकृति की व्यवस्था देखिए शुष्क व वनस्पति विहीन क्षेत्रों में वह अंत में ऐसी वनस्पति उगति हैं जिन्हें मनुष्य व पशु हानि न पहुँचा सकें और बाद में इन्ही वनस्पतियों के सहारे उपयोगी वनस्पति भी उगनी प्रारम्भ होती है और प्रकृति पारिस्थितिकीय संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है।


hemant bangwal

  • Newbie
  • *
  • Posts: 9
  • Karma: +1/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #297 on: July 15, 2010, 07:25:59 PM »
Finally, the Rupee will have a symbol like the Dollar ($) or the Euro (€) or the Pound (£). The Cabinet today finalised the design for the Rupee.

IIT post-graduate Uday kumar's entry has been selected out of five shortlisted designs as the new symbol for the Indian Rupee.

The government had organised a symbol design competition with prize money of Rs 2.5 lakh. Five designs were shortlisted from a competition and all new notes will bear the design finally approved.

The growing influence of the Indian economy in the global space is said to have prompted this move that will result in the Indian rupee joining the select club of global currencies like the US dollar, the British Pound, European Euro and Japanese Yen that have unique symbols.

The abbreviation for the Indian Rupee, 'Re' or 'Rs' is used by India's neighbours Pakistan, Nepal and Sri Lanka.


Read more at: http://beta.profit.ndtv.com/news/show/indian-rupee-finally-gets-its-symbol-82596?cp


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0

नई दिल्ली। अमरीकी मुद्रा डॉलर की भांति अब रूपए पर भी प्रतीक चिन्ह अंकित होगा। इस प्रतीक चिन्ह को उदय कुमार डिजाइन किया है, जिस पर पांच सदस्यीय कमेटी ने मुहर लगा दी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने गुरूवार को यहां कहा कि नया प्रतीक चिन्ह हमारी मुद्रा को दूसरे देशों की मुद्रा से अलग कर सकेगा।
यह भारतीय मुद्रा की पहचान है। इसकी सभी देशों में स्वीकार्यता होगी। उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी हम लोग इसे अपना लेंगे, तब इसे अपने देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित कर देंगे। मालूम हो कि भारतीय रूपए के चरित्र को बरकरार रखने के लिए इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दी गई है। आईआईटी पोस्ट ग्रेजुएट डी. उदय कुमार ने भारतीय रूपए को नई पहचान दी है। उन्होंने रूपए का सिम्बल तैयार किया है। रूपए का प्रतीक चिन्ह देवनागरी रा और रोमन शब्द आर का मिश्रण है। इसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। इसके लिए तीन हजार एंट्रीज आई थी, जिसमें पांच को चुना गया था। उसमें डी. उदय कुमार द्वारा बना गया सिम्बल चुना गया।

Ajay Tripathi (Pahari Boy)

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 296
  • Karma: +3/-0
Re: Share Informative Articles Here - सूचनाप्रद लेख
« Reply #299 on: July 17, 2010, 01:38:03 PM »
I went to a party Mom,
 I remembered what you said.
 You told me not to drink, Mom,
 So I drank soda instead.
 

 I really felt proud inside, Mom,
 The way you said I would.
 I didn't drink and drive, Mom,
 Even though the others said I should.
 
 
 
 I know I did the right thing, Mom,
 I know you are always right.
 Now the party is finally ending, Mom,
 As everyone is driving out of sight.
 
 
 
 As I got into my car, Mom,
 I knew I'd get home in one piece.
 Because of the way you raised me,
 So responsible and sweet.
 
 
 
 I started to drive away, Mom,
 But as I pulled out into the road,
 The other car didn't see me, Mom,
 And hit me like a load.
 
 
 
 As I lay there on the pavement, Mom,
 I hear the policeman say,
 "The other guy is drunk," Mom,
 And now I'm the one who will pay.
 
 
 
 I'm lying here dying, Mom....
 I wish you'd get here soon.
 How could this happen to me, Mom?
 My life just burst like a balloon.
 
 
 
 There is blood all around me, Mom,
 And most of it is mine.
 I hear the medic say, Mom,
 I'll die in a short time..
 
 
 
 I just wanted to tell you, Mom,
 I swear I didn't drink.
 It was the others, Mom.
 The others didn't think.
 
 
 
 He was probably at the same party as I.
 The only difference is, he drank
 And I will die.
 
 
 
 Why do people drink, Mom?
 It can ruin your whole life.
 I'm feeling sharp pains now.
 Pains just like a knife.
 
 
 
 The guy who hit me is walking, Mom,
 And I don't think it's fair.
 I'm lying here dying
 And all he can do is stare.
 
 
 
 Tell my brother not to cry, Mom.
 Tell Daddy to be brave.
 And when I go to heaven, Mom,
 Put "GOOD BOY " on my grave.
 
 
 
 Someone should have told him, Mom,
 Not to drink and drive.
 If only they had told him, Mom,
 I would still be alive.
 
 
 
 My breath is getting shorter, Mom.
 I'm becoming very scared.
 Please don't cry for me, Mom.
 When I needed you, you were always there.
 
 
 
 I have one last question, Mom.
 Before I say good bye.
 I didn't drink and drive,
 So why am I the one to die?
 
 
 
 Someone took the effort to write this poem. So please, forward this
 To as many people as you can. And see if we can get a chain going
 Around the world that will make people understand that
Don't mix drinking and driving.

PLEASE DO THE FAVOR.

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22