Garhwali Classes "गढ़वाली छुई"
गढवालि कोचिंग क्लास-
जंगल को यहां डाण्डा कहते,
बर्तनों को भाण्डा कहते हैं।
छोटे बच्चों को नौना कहते हैं,
बुजुर्गों को दाना कहते हैं।।
साथ को दगडा कहते हैं,
लड़ने को झगडा कहते हैं।
मोटे को तगडा कहते हैं,
भू-स्खलन को रगडा कहते हैं।।
छोटे भाई को यहा भुला कहते हैं,
किचन को यहा चुला कहते है।
ब्रिज को यहा पुल कहते है,
नहर को यहा कूल कहते है।।
पत्नी को यहा जनानि कहते है,
वहू को दुलैणि कहते है।
ब्याई भैंस को लैणि कहते हैं,
दूध दही को दुभैण कहते हैं।।
आदमी को यहा मैस कहते हैं ,
बफैलो को यहा भैस कहते है।
जीजा को यहा भिना कहते हैं,
अटौल को यहा किना कहते है।
सख्त को यहा जिना कहते है,
गोबर को यहा पिना कहते हैं।।
चावल को यहा भात कहते हैं,
सादी को बरात कहते हैं।
चौडे वर्तन को परात कहते हैं,
पित्र तर्पण को शराद कहते है।।
बाकी अगली बार-
कृपया प्रवासी पहाडी बच्चों को जरूर पहाडी
सिखाऐं वरना वो दिन दूर नहीं जब हमारी आने
वाली पीढ़ी कहेगी:-"ये गढवाली क्या होता है?"
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