Author Topic: उत्तराखण्ड का इतिहास  (Read 7640 times)

BHAGWAN SINGH DHAMI

  • Newbie
  • *
  • Posts: 1
  • Karma: +0/-0
उत्तराखण्ड का इतिहास
« on: December 24, 2017, 03:34:11 PM »

 मैंने ये अनुभव किया है कि उत्तराखण्ड का इतिहास श्रोतों के अभाव में अभ्यर्थियों के लिए एक बहुत ही बड़ी समस्या बन के उभरता है। जहां तक इतिहास जानने की बात करें तो इतिहास का सामान्यतः अध्ययन तीन भागों में बांट के किया जाता है तथा उसके विभिन्न श्रोत होते है-

क्रमशः- भाग व श्रोत

1.प्रागैतिहासिक काल
2.आद्यऐतिहासिक काल
3.ऐतिहासिक काल

उत्तराखण्ड इतिहास के प्रमुख श्रोत-

(क). साहित्यिक श्रोत-ः साहित्यिक श्रोतों में उत्तराखण्ड का आद्यऐतिहासिक विवरण प्राप्त होता है।

▷उत्तराखण्ड का सबसे पहला उल्लेख ऋग्वेद में ‘देवभूमि या मनीषियों की भूमि‘ नाम से मिलता है।

▷ऋग्वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मण में ‘कुरूओं की भूमि या उत्तरकुरू‘ नाम से उल्लेखित है।

▷स्कंदपुराण में माया क्षेत्र (हरिद्वार) से हिमालय तक के क्षेत्र को ‘‘केदारखण्ड‘‘ तथा नन्दादेवी से कालागिरी पहाड़ी (चम्पावत) तक के क्षेत्र को ‘‘मानसखण्ड‘‘ नाम से जाना जाता है।

▷पालीभाषा के बौद्धग्रन्थों में उत्तराखण्ड को ‘‘हिमवंत‘‘ कहा गया है।

▷उत्तराखण्ड में प्रचलित लोक-साहित्य में लोकगाथाएं प्रचलित है जिन्हें स्थानीय भाषा में पँवाड़ा या भड़ौ तथा जागर कहा जाता है।

▷मिन्हास-उज-सिराज की पुस्तक तबकाते-नासिरी के अनुसार बलबन के समकालीन गढ़नरेश- राणा देवपाल

  विदेशी साहित्य-ः

▷चीनी यात्री युवान-च्वांङ (ह्वेनसांग) ने सातवीं सदी में अपने यात्रा वृतांत ‘‘सी-यू-की‘‘ में उत्तराखण्ड के विभिन्न शहरों का उल्लेख किया है यथा-

ब्रह्मपुर-         उत्तराखण्ड
शत्रुघ्न नगर-  उत्तरकाशी-हिमाचल के मध्य का क्षेत्र
गोविषाण-     काशीपुर
सुधनगर-       कालसी
तिकसेन-      मुन्स्यारी
बख्शी-         नानकमत्ता
ग्रास्टीनगंज-   टनकपुर
मो-यू-लो -     हरिद्वार

▷मुगल काल में आए पुर्तगाली यात्री जेसुएट पादरी अन्तोनियो दे अन्द्रोदे 1624 में श्रीनगर पहुंचे उस समय यहां के शासक श्यामशाह थे।

▷तैमुर की आत्मकथा मुलुफात-इ-तिमुरी के अनुसार गंगाद्वार के निकट युद्ध करने वाला शासकों का क्रमशः उल्लेख मिलता है- 1. बहरूज (कुटिला/कुपिला के राजा) 2. रतनसेन (सिरमौर का राजा)

▷फ्रांसिस बर्नियर ने हरिद्वार को शिव की राजधानी के रूप में उल्लेखित किया है।

केदारखण्ड या गढ़वाल का इतिहास-ः पाणिनी के अष्टाध्यायी, कालिदास के रघुवंशम व  मेघदूतम्, राजशेखर की काव्यमिंमासा महाकवि भरत के मानोदय काव्य तथा मोलाराम के गढ़राजवंश नामक पुस्तकों से इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है।

◈प्रारम्भ में गढवाल क्षेत्र को बद्रीकाश्रम, तपोभूमि, स्वर्गभूमि तथा केदारखण्ड नामों से जाना जाता था।

◈इतिहासकार हरिराम धस्माना, भजन सिंह तथा शिवांगी नौटियाल के अनुसार ऋग्वेद में उल्लेखित सप्तसैंधव प्रदेश वर्तमान गढ़वाल ही था।

◈चमोली के निकट स्थित नारद गुफा, व्यास गुफा, मुचकुन्द गुफाओं में वेदों की रचना वादरायण या वेदव्यास ने की थी।

◈पुराणों के अनुसार मनु का निवास स्थान तथा कुबेर की राजधानी अल्कापुरी(फूलों की घाटी) को माना जाता है।

◈वैदिक काल में गढ़वाल क्षेत्र में दो प्रसिद्ध विद्यापीठ थी- 1. बद्रीकाश्रम 2. कण्वाश्रम

◈लगभग 1515 में पंवार राजा अजयपाल ने इस क्षेत्र के 52 गढ़ों का एकीकरण किया अतः इस क्षेत्र का नाम गढ़वाल पड़ा।

मानसखण्ड या कुमाऊँ का इतिहास-ः पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चम्पावत के निकट कच्छप(कछुआ) की की पीठ आकृति के समान कानादेव या कान्तेश्वर पहाड़ी पर भगवान विष्णु का कुर्मावतार हुआ था अतः क्षेत्र का नाम कूमु पड़ा।

◈कुमु शब्द अपभ्रंश होकर हिन्दी में कुमाऊँ बना अतः क्षेत्र को में कुमाऊँ कहा जाने लगा।

◈कुमाऊँ शब्द का पहला उल्लेख अबुल फजल की पुस्तक आइने अकबरी में मिलता है। अभिलेखीय साक्ष्यों में नागनाथ के अभिलेख से मिलता है।

◈मुस्लिम इतिहासकारों ने चन्दों के राज्यों को कुमायुं कहा है।

◈तारीख-ए-मुबारकशाही के अनुसार 1380 में दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक द्वारा कटहर क्षेत्र में विद्रोहियों का दमन किया किन्तु ये विद्रोही भाग कर कुमाऊँ क्षेत्र आये थे।

◈वर्तमान उत्तराखण्ड के 6 जिले इस क्षेत्र में आते है।

(ख). अभिलेखीय श्रोत-ः इतिहास जानने का महत्वपूर्ण श्रोत होता है तात्कालिक अभिलेखित शैलखण्ड या ताम्रपत्र उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों से पाए गये अभिलेख निम्न है-

1.गोपेश्वर त्रिशुल-ः चमोली में स्थित रूद्रशिव के मंदिर परिसर से अभिलेखित त्रिशुल प्राप्त हुआ है जिसमें मुख्य रूप से दो अभिलेख मौजूद है- एक अभिलेख गणपतिनाथ का तथा दूसरा अभिलेख है अशोकचल्ल का है। इसमें नाग वंशीय शासकों स्कन्दनाग, विभुनाग, तथा अंशुनाग का उल्लेख मिलता है।

2.कालसी शिलालेख-ः अशोक ने उत्तरी सीमा पर 257 ई. में टोंस व यमुना नदी के संगम पर कालसी नामक स्थान पर शिलालेख स्थापित करवाया। इसकी विशेषताएं निम्न है-

◆इस अभिलेख की खोज 1860 में जॉन फॉरेस्ट ने की थी।
◆ यह लेख पाली भाषा में है इसमें ब्राह्मी लिपि में है।
◆इस अभिलेख में क्षेत्र को अपरांत कहा गया है।
◆क्षेत्र के लोगों को इसमें पुलिंद कहा गया है।
◆इस अभिलेख में सम्राट अशोक ने घोषणा की है कि उसने मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा की व्यवस्था कर दी है।
◆इसमें सम्राट ने अपील की है कि हिंसा त्याग कर अहिंसा को अपनायी जाय।

3.राजकुमारी ईश्वरा का अभिलेख-ः लाखामण्डल देहरादून के लाक्षेश्वर शिव मंदिर से 5वीं सदी का एक अभिलेख उल्लेखित प्राप्त हुआ है जो सम्भवतः यादव राजकुमारी थी। इसके अनुसार यमुना उपत्यका में यादवों का राज्य था।

4.बागेश्वर शिलालेख-ः बागेश्वर के शिव मंदिर से कत्यूरी राजा भूदेव का लेख प्राप्त हुआ जिसमें 8 राजाओं के नाम लिखित है। इस शिलालेख के अनुसार प्रथम कत्यूरी शासक बसन्तदेव थे।

5.पाण्डुकेश्वर ताम्र लेख-ः बद्रीनाथ कि निकट पाण्डुकेश्वर मंदिर में चार ताम्र पत्र प्राप्त हुए है जिसमें कत्यूरियों की राजधानी कार्तिकेयपुर उल्लेखित है। एक ताम्रपत्र में लेखक गंगाभद्र का नाम है। इन ताम्रलेखों का उल्लेखन ललितसुर देव ने करवाया था।

6.धारशिल-शिलालेख-ः ऊखीमठ में स्थित पंवार शासक अनन्तपाल का अभिलेख।

7.कत्यूरी राजाओं के ताम्रपत्र-ः चम्पावत तथा बैजनाथ से प्राप्त इन लेखों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था का निम्न उल्लेख मिलता है-

▪पल्लिका- गाँव महत्तम- ग्राम शासक
▪प्रतिरक्षक- द्वार रक्षकगोफ्त- रक्षक
▪बलाध्यक्षक- सेनानयककुलचारिक- तहसीलदार
▪अक्षयपट्लिक- लेखापरीक्षकमहादंडनायक- प्रधान सेनापति

उपरोक्त अभिलेखों के अतिरिक्त समुद्रगुप्त के प्रयाग-प्रशस्ति तथा सहणपाल के बोधगया शिलालेख से भी उत्तराखण्ड का झलकता है।
◈समुद्रगुप्त के प्रयाग-प्रशस्ति में उत्तराखण्ड का नाम- कर्तपुर मिलता है।

(ग). प्राचीन मुद्रा श्रोत-ः उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों से प्राचीनतम मुद्राएं प्राप्त होती है जो कि उत्तराखण्ड की राजनैतिक शक्ति का उल्लेख प्राप्त होता है-

कुणिन्द मुद्राएं-ः उत्तराखण्ड के कई क्षेत्रों जैसे- अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार सहारनपुर इत्यादि स्थानों से कुणिन्द कालीन मुद्राएं प्राप्त होती है। प्रमुख मुद्राएं-
◈अमोघभूति की मुद्राऐं- अल्मोड़ा, देहरादून, तथा हरिद्वार क्षेत्र से प्राप्त चांदी तथा तांबें की मुद्राएं जिनमें खरोष्ठी लिपि में ‘‘कुणिन्दस्य अमोघभूति महरजसः‘‘ उल्लेखित है।

✓इन मुद्राओं से अमोघभूति के सबसे प्रतापी कुणिन्द शासक होने का विवरण प्राप्त होता है।

✓अमोघभूति की चाँदी की मुद्राओं का भार 31-38 ग्रेन है जबकि तांबे की मुद्राओं का भार 52 ग्रेन है।

◈अल्मोड़ा की मुद्राऐं- 1914 में अल्मोडा 119-327 ग्रेन वजनी कुणिन्द मुद्राएं प्राप्त होती है जिनमें शिवदत्त, शिवपालित, हरिदत्त तथा शिवरक्षित की मुद्राएं प्राप्त हुई है।
✓इन मुद्राओं में नारी, मृग, स्वास्तिक, चक्र, नाग, छत्रयुक्त छः पर्वत, नन्दी, वृक्ष, कलश, इत्यादि के चित्र अंकित है।

◈छत्रेश्वर की मुद्राएं- ब्राह्मी लिपि में ‘‘भगवत् चतेश्वर महास्तमनः‘‘ उत्कीर्ण ताम्र मुद्राएं सहारनपुर से प्राप्त हुई है। ये कुणिन्द राजा छत्रेश्वर की है। इन मुद्राओं का भार 131-291ग्रेन है।

प्रागैतिहासिक काल- प्राचीन शैल चित्रों, गुफाओं, कंकालों मृदभाण्ड तथा धातु उपकरणों द्वारा इस काल की जानकारी मिलती है।

मुख्य प्रागैतिहासिक श्रोत-

1. लाखु उड्यार- प्राचीन गुफा चित्र
स्थिति- दलबैण्ड, बाड़ीछीना अल्मोड़ा में सुयाल नदी के तट पर स्थित

खोज- 1963 में यशवंत सिंह कठौच (श्री कठौच ने उत्तराखण्ड का आधुनिक इतिहास पुस्तक लिखी)

विशेषता- मानव व पशुओं की लाल रंग में नृत्य करती आकृतियां

2. ग्वारख्या उड्यार- प्राचीन गुफा चित्र डॉ. मठपाल के अनुसार इसका नामकरण गोरखों के द्वारा लूट का माल छिपाने के कारण पड़ा था। किन्तु इस चित्रित गुफा में इतना स्थान नहीं है कि यहां सामान छिपाया जाय सम्भवतः इस स्थान के निकट गोरखों ने कैंप डाला था अतः लोगों में यह विश्वास हो गया कि इसमें चित्रों को गोरखों ने चित्रित किया था परन्तु यह पाषाणकालीन आकृतियां है।

स्थिति- डुंग्री गांव, चमोली जिले में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित

खोज- राकेश भट्ट द्वारा खोजे गए इसका अध्ययन यशोधर मठपाल ने किया

विशेषता- मानव भेड़ लोमड़ी बारसिम्हा आदि पशुओं की आकृतियां बनी है। डॉ. मठपाल के अनुसार यहां 41 आकृतियां है जिसमें 30 मानव, 8 पशु, तथा 3 पुरूषों की आकृतियां है। चित्रकला की दृष्टि से उत्तराखण्ड की सबसे सुन्दर आकृतियां मानी जाती है। यहां मनुष्य को त्रिशुल रूप में दर्शाया गया है। इस गुफा में चित्र का मुख्य विषय मनुष्य द्वारा पशुओं को हांका देकर घेरते हुए दर्शाना है।

3. किमनी गांव- शैल चित्रित गुफा
स्थिति- थराली विकासखंड चमोली में
विशेषता- यहां से हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए।

4. मलारी गांव- यहां से 5.2 किलो का सोने का मुखावतरण तथा लगभग 1000 से अधिक मृदभाण्ड प्राप्त हुए है।

स्थिति- तिब्बत से सटा मलारी गांव चमोली जिले में स्थित है।

खोज- 1956 में शवाधान की खोज। 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं द्वारा

विशेषता- पाषाणकालीन शवाधान जो हडप्पाकालीन माना गया है।

5. ल्वेथाप गांव- शैलचित्र जिसमें मानव को हाथों में हाथ डालकर दिखाया गया है।

स्थिति- अल्मोड़ा जिले में

विशेषता- मानव को शिकार करते हुए दिखाया गया है।

6. फलसीमा- शैलचित्र जिनमें मानव को नृत्य करती तथा योग करती हुई आकृतियां।

स्थिति- अल्मोड़ा में

विशेषता- मानव की योगाकृति

7. बनकोट- सम्पूर्ण गांव से ताम्र आकृतियां प्राप्त हुई है।

स्थिति- पिथौरागढ़ जिले का अंतिम गांव।

विशेषता- 8 ताम्र मानवाकृतियां।

8. हुडली- शैलचित्र

स्थिति- उत्तरकाशी

विशेषता- नीले रंग का शैलचित्र

9. पेटशाल- मानवाकृतियां
स्थिति- पूनाकोट गांव अल्मोड़ा
खोज- खोज यशोधर मठपाल द्वारा
विशेषता- कत्थई रंग के शैल चित्र

10. देवीधुरा की समाधियां- प्रागैतिहासिक समाधियां
स्थिति- चम्पावत जिले में
खोज- 1856 में हेनवुड द्वारा
विशेषता- बुर्जहोम कश्मीर के समान समाधियां

आद्यऐतिहासिक काल- उत्तराखण्ड के इस काल की जानकारी पौराणिक ग्रन्थों से मिलती है। अतः इस काल को पौराणिक काल कहा जाता है। इस काल को उपरोक्त श्रोतों के माध्यम से जाना जा सकता है।

ऐतिहासिक काल- उत्तराखण्ड के इस काल की जानकारी सिक्कों, अभिलेखों, ताम्रपत्रों के आधार पर प्राचीन काल से आधुनिक काल तक का इतिहास संजों कर प्रस्तुत किया गया है। सबसे अधिक प्रश्नोत्तरी भी इसी भाग से पूछी जाती है अतः इस काल का अध्ययन बहुत ही सटीकता से करना अनिवार्य है।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22