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Wild Animal Menace In Uttarakhand-उत्तराखण्ड में जंगली जानवरों का आतंक

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Devbhoomi,Uttarakhand:
आतंक का पर्याय बना जंगली जानवर बाघ नहीं गीदड़

मानपुर, 17 जून, 2009 : यहां आतंक का पर्याय बना हिसंक जंगली जानवर वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार बाघ नहीं गीदड़ है। उन्होंने यह घोषणा बकायदा क्षेत्र की कांबिंग और हिंसक पशु के पंजों निशान देखने के बाद की। लेकिन ग्रामीण है कि वे यह बात मानने को तैयार नहीं। उनके अनुसार यह हिंसक पशु बाघ नहीं तो चीता अवश्य होगा।

इस जानवर का आतंक अचानक मंगलवार की रात ढाई बजे से क्षेत्र में फैल गया। इस में परसेहरा के मजरा मौजमपुर में सलीम के दरवाजे पर बंधे दो वर्ष के पड़वे पर हमला कर दिया। पड़वा छटपटाया और चिल्लाया भी लेकिन किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। दूसरे दिन सुबह परिवार तथा गांव के लोगों ने देखा कि पड़वा मरा पड़ा है और उसका पेट चीर कर कलेजा निकालकर खाया जा चुका है।
 तभी से लोगों ने इस हिंसक पशु को पेट फाड़कर कलेजा खाने वाला जानवर का नाम दे दिया और इसे बाघ या शेर कहने लगे। इस घटना की जानकारी गांव के प्रधान ने वन विभाग को दी और बुधवार को मौके पर वन क्षेत्राधिकारी यूपी सिंह, उपवन क्षेत्राधिकारी गंगाराम दल बल के साथ पहुंचे और घंटो काम्बिंग की। अधिकारियों की टीम के अनुसार पंजे तो गीदड़ के हैं।
पागल हो जाने पर गीदड़ गांव में धावा बोलता है ऐसी हालत में वह जानवरों के अलावा आदमियों पर भी हमला कर देता है। उन्होंने गांव वासियों को एक दो दिन तक घर के बाहर आग जलाने के लिए कहा। लेकिन गांव वाले वन अधिकारियों की बातों पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि गीदड़ अपने से दस गुने जानवर पर कैसे हमला कर सकता है।

पंकज सिंह महर:
जाखी जी,
      यह विषय उठाने के लिये धन्यवाद। चूंकि उत्तराखण्ड में बसावट जंगल के साथ-साथ ही है, इसलिये हमें इस समस्या से अक्सर ही दो-चार होना पड़ता है। उत्तराखण्ड में बाघ का ही आतंक नही है, बल्कि अन्य कई जंगली जानवरों के गुस्से का भी सामना हमें करना पड़ता है। जैसे भालू, सुअर, हाथी, बन्दर, शेही आदि। उक्त जानवर पहाड़ी गांवों की आबादी में घुसकर फसलों को भी क्षति पहुंचाते हैं और मानव जीवन को भी। आज उत्तराखण्ड के गावों की ६०-७०% जनता जंगली जानवरों के हमलों से परेशान है।
हरिद्वार, ऋषिकेश, कोटद्वार और हल्द्वानी-कालाढूंगी के जो इलाके राजाजी और कार्बेट नेशनल पार्क से जुड़े हैं, वहां पर जंगली हाथी अक्सर उत्पात मचाते हैं। न जाने कितनी की फसलों और जिन्दगियों को यह नुकसान पहुंचा चुके हैं। वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में बंदरों का उत्पात आम बात है, साथ ही झुण्ड के झूण्ड सुअर आकर खड़ी फसल को चौपट कर जाते हैं। बाघ तो पता नहीं क्यों इतनी संख्या में आदमखोर होते जा रहे हैं?

हमें यह भी पता लगाना चाहिये कि जंगली जानवरों का रुख आबादी की ओर क्यों हो रहा है? क्या कारण है कि वह अपने प्राकृतिक आवास को छोड़कर यहां आ रहा है। मेरे मतानुसार जंगलों में बढती मानवीय गतिविधि इसका मुख्य कारक है। आज जंगल खाले हो रहे हैं, जंगलों में चौड़ी पत्ती वाले मिश्रित जंगलों की बजाय चीड़ पनप रहा है, जहां बंदर, भालू जैसे जानवर निगालू के पत्ते और जंगली फलों पर ज्यादा निर्भर रहते थे, उन्हें अब वह चीजें जंगल में उपलब्ध नहीं हो रही हैं, या तो हमने उसे खत्म कर दिया है या हमारी गतिविधियों से उनके खाने-पीने के संसाधन समाप्त हो रहे हैं। इसलिये उनका झुकाव मानव आबादी की ओर हो रहा है। यह विषय बहुत गंभीर है, इस पर सभी को पहल करनी चाहिए और अपनी-अपनी ओर से पर्यावरण संरक्षण के लिये जो हो सके करना चाहिये।

रही बात बाघ के हमले की, तो मानव जीवन सबसे अमूल्य है...जैसे ही कोई बाघ किसी मानव पर हमला करता है या किसी मानव को अपना शिकार बनाता है तो उसे चिन्हित कर मारने की जो प्रक्रिया है, उसका सरलीकरण किया जाना बहुत जरुरी है। होता यह है कि कोई बाघ आदमखोर हो गया, तो उसे वन विभाग से आदमखोर घोषित कराना पड़ता है, फिर ही उसे मारा जा सकता है और तब तक वह २-४ और लोगों को शिकार बना चुका होता है। इसके लिये होना यह चाहिये कि संबंधित और संक्रमित क्षेत्र में यह अधिकार वहां की पंचायत और वन पंचायत को होना चाहिये। जो तत्काल निर्णय करे और उसे जितनी जल्दी मारा जा सके, उसका प्रयास कर सके। शिकारी को हायर करने के लिये भी ग्राम सभा के बजट में अलग से मद बनाई जानी चाहिये। ताकि जनहानि कम से कम हो।

पंकज सिंह महर:
सरकार को भी इस गंभीर समस्या के समाधान के प्रयास करने चाहिये, वनों की सुरक्षा के लिये नियुक्त कार्मिकों को जंगली जानवरों के व्यवहार, आचार के बारे में जानकारी देनी चाहिये और जरुरी हो तो वन्यजीव विशेषज्ञों के द्वारा इनके लिये समय-समय पर प्रशिक्षण तथा कार्यशालायें आयोजित करनी चाहिये। क्योंकि कोई भी जानवर एक-दो ही दिन में आदमखोर नहीं हो जाता या उन्मत नहीं हो जाता। इसके विषय विशेषज्ञों से परामर्श लेकर बीट कर्मियों को प्रशिक्षित करने से मैं समझता हूं कि इस समस्या से काफी हद से निपटा जा सकेगा।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड में यह समस्या बहुत ज्यादा है, जंगली जानवर अक्सर दुधारु पशुओं को भी अपना शिकार बना लेते हैं, यदि किसी हलिया के एक बैल को बाघ खा ले तो उसकी तो कमर ही टूट जाती है। सरकार को अपनी अनुदान राशि को बढ़ाकर व्यवहारिक और मार्केट रेट पर निर्धारित करना चाहिये। क्योंकि सरकार द्वारा गाय की जान जाने पर शायद ३००० रुपये का अनुदान दिया जाता है, जो कि बहुत कम है। क्योंकि आज २० हजार से नीचे कोई दुधारु गाय नहीं मिलती है।

इसके अतिरिक्त नील गाय का आतंक भी हरिद्वार-पौड़ी-नैनीताल जनपदों में बहुतायत है, यह भी झुण्ड में आकर खेती को नुकसान पहुंचाती हैं। इनके उन्मूलन के लिये भी सरकार को प्रयास करना चाहिये। मुख्य कार्य सरकार को यह करना चाहिये कि इन पशुओं के व्यवहार पर शोध कराये कि आखिर यह किस कारण से मानव आबादी का रुख कर रहे हैं। मेरी समझ के अनुसार तो यही है, कि जंगल में अवांछित मानवीय गतिविधि से इनके भोजन के मुख्य स्रोत कम हो गये हैं, जिस कारण ये मानव आबादी में आ रहे हैं।

लेकिन यह बहुत गम्भीर बात है, इससे ईकोसिस्टम भी प्रभावित होगा, जो प्रकृति के लिये कदापि उचित न होगा।

Devbhoomi,Uttarakhand:
जखोली : बाघ के बाद अब भालू का आतंक

जखोली क्षेत्र में आजकल जंगली जानवरों के आतंक ने लोगों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित कर दी है। एक ओर जहां गत दिवस पौंठी गांव में बाघ के नौ वर्षीय बालक को मौत के घाट उतारने की घटना के बाद अब ग्रामीण सहमे हुए हैं। वहीं क्षेत्र के कई गांवों में भालू का भय भी बना हुआ है।

जिले के अंतर्गत जखोली क्षेत्र के पौंठी सहित आस पास के गांवों में बाघ के आतंक से लोग खौफजदा हैं। गत पच्चीस अगस्त को पौंठी गांव में बाघ द्वारा एक नौ वर्षीय बालक पर किए गए जानलेवा हमले के बाद उसकी मौत हो गई थी। इस घटना ने अब ग्रामीणों के अंदर और अधिक भय पैदा कर दिया है।
 वहीं, दूसरी ओर जखोली क्षेत्र के बांगर, मुन्य घर सहित आसपास के गांव में भालू का आतंक भी बना हुआ है। गत दिवस भालू ने बांगर गांव में दो लोगों पर हमला कर दिया। ग्रामीणों के शोर-शराबे के बाद भालू वहां से भाग निकला।
इस घटना से अब लोग काफी दहशत में हैं। ज्येष्ठ प्रमुख अर्जुन सिंह गहरवार रोष जताया कि वन विभाग बाघ के आतंक को रोकने में पूरी नाकाम साबित हो रहा है। उन्होंने मांग की बाघ व भालू के आतंक को रोकने के लिए तत्काल प्रभावित क्षेत्रों में पिंजरे लगाए जाएं। वहीं डीएफओ सुरेन्द्र मेहरा का कहना है कि बाघ के आतंक से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की सुरक्षा का पूरा ध्यान दिया जा रहा है। प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा भी दिया जा रहा है।

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