डा. ललित मोहन पन्त जी के सौजन्य से संवत्सर सुनिये।-
इस सम्वत्सर का नाम है पराभव इसके राजा होंगे देवगुरु और मंत्री शनि महाराज हर व्यक्ति की भविष्य के बारे में जानने की उत्सुकता होती है।लोग जानना चाहते हैं कि आगे आने वाला समय कैसा होगा।नया संवत आने वाला है।नया साल कैसा होगा, इसमें किस तरह की घटनाएं होंगी।सियासत में क्या उतार-चढ़ाव होंगे, आर्थिक परिदृश्य कैसा रहेगा, हर व्यक्ति यह जानने को आतुर होगा। हालांकि अभी नया संवत आने में कुछ समय शेष है, लेकिन हम जन उत्सुकता को देखते हुएपहले ही बताने जा रहे हैं कि नया साल किसके लिएशुभ रहेगा और किसके लिएमुश्किलों भरा।इतना ही नहीं, हरिद्वार के ज्योतिषाचार्य डा. प्रतीक मिर्शपुरी के इस आलेख में आपत्तियों से बचने के उपाय भी बताये गये हैं। विक्रमी संवत का नूतन साल कई सौगातों के साथ ही उठापटक लेकर भी आ रहा है। धार्मिक जगत में धर्म-अध्यात्म का रंग गाढ़ा रहेगा तो राजनीतिक क्षेत्र में उठापटक होगी। देवगुरु बृहस्पति और क्रूर ग्रह शनि के बीच मतभेद व मनभेद उठापटकों को जन्म देंगे। वजह यह है कि â??पराभवâ?? नाम के नव-संवत्सर के राजा देवगुरु बृहस्पति होंगे और मंत्री की कमान शनि महाराज के हाथों में होगी। पराभव नामक नव-संवत्सर 11 अप्रैल यानि चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होगा। यह संवत्सर-2070 होगा। चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानि 11अप्रैल को वर्तमान संवत्सर â??विश्वावसुâ?? का कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा। â??विश्वावसुâ??नामक संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों शुक्र हैं। अब 11 अप्रैल सेआकाशीय मंत्रिमंडल में राजा का पदभार बृहस्पति संभालेंगे तो धरा पर दैवीय शक्तियों का संचार बढ़ेगा। â??पराभवâ?? का अर्थ भी यही होता है कि दैवीय शक्तियों का संचार। बृहस्पति देवों के गुरु हैं और कल्याणकारी व मंगलकारी ग्रह भी। शनि महाराज को मंत्री का दायित्व सौंपा जा रहा है। प्रकृति व स्वभाव के हिसाब से शनि क्रूर, लेकिन न्याय के देवता भी माने जाते हैं। इस शुभ घड़ी में शुरू होगा नव-संवत्सर पराभव चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा यानि 11 अप्रैल को â??पराभवâ?? नामक नव-संवत्सर 2070 शुरू होगा। ज्योतिष गणना के अनुसार 11 अप्रैल दोपहर बाद 3 बजकर 5 मिनट पर रेवती नक्षत्र एवं वैधृति योग व सिंह लग्न में नव-संवत्सर शुरू होगा। इसके साथ ही राजा का दायित्व देव गुरु बृहस्पति और मंत्री का पदभार शनि संभालेंगे। इसके अलावा आकाशीय मंत्रिमंडल में अन्य ग्रहों को भी दायित्व सौंपा गया है। वित्त मंत्री चंद्रमा होंगे। सौम्य प्रकृति के चंद्रमा के वित्त मंत्री बनने से देश की आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता बनने के आसार हैं। कृषि मंत्री का दायित्व मंगल को सौंपा गया है। मंगल को भी क्रूर ग्रह ही माना गया है। लेकिन इस साल रोहिणी नक्षत्र का वास समुद्र में होगा जिससे इस साल फसलें लहलहाएंगी और अन्न के उत्पादन में वृद्धि होगी। रक्षा मंत्री शुक्र को मनाया गया है। शुक्र दैत्यों के गुरुहैं। लेकिन प्रेम का देवता भी इसी ग्रह को माना गया है। ज्योतिष आंकलन के अनुसार इस साल देश की सीमा पर विवाद की स्थिति बनेगी, लेकिन आपसी वार्ता से विवाद को सुलझा लिया जाएगा। खाद्य मंत्री सूर्य नारायण को बनाया गया है। सृष्टि को ओज व तेज प्रदान करने वाले सूर्य नारायण का ओज भी तेज रहेगा। जाहिर सी बात है कि अपने विभाग पर सूर्य नारायण विशेष ध्यान देंगे। ऐसे में खाद्य पदाथरें में बेहतरी होगा। कीमतों में कमी आएगी। जल मंत्री शुक्र को बनाया गया है। प्रेम के देवता हैं शुक्र। मेघों पर मेहरबान रहेंगे। जल-स्तर में वृद्धि होगी और बारिश का भरपूर लुत्फ देंगे। फलों का जमकर लीजिएगा लुत्फ â??पराभवâ?? नामक नव-संवत्सर में फलों का रिकॉर्ड उत्पादन होने का ज्योतिषीय आकलन है। उत्पादन के लिए ही सुलभ बाजार भी उपलब्ध होगा। वजह, फलों के उत्पादन और विपणन का अतिरिक्त दायित्व संवत्सर-2070 के राजा देवगुरु बृहस्पति को ही सौंपा गया है। ऐसे में फल उत्पादकों के लिए यह साल फायदेमंद रहेगा। धीरे-धीरे होगा लक्ष्य हासिल नव-संवत्सर 2070 में लक्ष्य की प्राप्ति धीरे-धीरे होगी। लक्ष्य के लिए अडिग रहने वालों को मंजिल जरूर मिलेगी। शॉर्ट-कट से लक्ष्य हासिल करने वालों के लिए यह साल ठीक नहीं है। शॉर्ट-कट तरीके से लक्ष्य की प्राप्ति इस साल संभव नहीं है। पराभव नामक नव-संवत्सर का वाहन कछुवा है जो नाम के अनुरूप धीरे-धीरे चलता है। नव-संवत्सर का राशियों पर प्रभाव पराभव नामक नव-संवत्सर का सभी बारह राशियों पर प्रभाव पड़ेगा। कई राशियों पर शनि की नजर टेढ़ी रहेगी तो कइयों पर राहु की वक्रदृष्टि। अलग-अलग राशियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा। शनि से प्रभावित रहेंगी ये राशियां कर्क- शनि की ढैया से शारीरिक व मानसिक कष्ट होगा। व्यापार में हानि भी हो सकती है। कन्या- उतरती साढ़े साती से परेशानियां व व्याधियां हो सकती हैं। तुला- इस राशि पर भी शनि का प्रभाव रहेगा। लेकिन तुला शनि की अपनी उच्च राशि है। इससे तुला राशि के जातकों को फायदा होगा। व्यापार में प्रगति, अधूरे कायरें की पूर्णता और पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। वृश्चिक- इस राशि पर चढ़ती साढ़े साती शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुंचा सकती है। मीन- शनि की ढैया से शारीरिक कष्ट, व्यापार में उतार-चढ़ाव और दांपत्य जीवन में कटुता आने के आसार हैं। उपाय उक्त सभी राशियों पर शनि का प्रभाव रहेगा। लिहाजा इससे बचने के लिए हर रोज सुबह शनि मंत्र का जाप करें और शनि स्त्रोत का पाठ अवश्य कराएं। इसके अलावा शनिवार को व्रत रखें साथ ही मंगलवार को बजरंगी के निमित्त व्रत रखकर भी शनि के प्रभाव को कम किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य डॉ. प्रतीक मिर्शपुरी के अनुसार शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे दीप प्रज्ज्वलित कर और काली वस्तुओं का दान करने से भी शनि का प्रभाव कम होता है। मेष- इस राशि के जातकों को शारीरिक कष्ट हो सकता है। वृष- इस राशि के जातकों को धन और पद-प्रतिष्ठा का लाभ होगा। मिथुन- मिथुन राशि के जातक सालभर आशंकित और भयभीत रहेंगे। मानसिक तौर पर परेशान रहने का ज्योतिषीय आकलन है। धनु- इस राशि के जातकों के मान-सम्मान में वृद्धि होगी। कुंभ- कुंभ राशि के जातकों को भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। उपाय- देवगुरु बृहस्पति से जिन जातकों पर कुप्रभाव पड़ रहा है, ऐसे जातकों को हर रोज केले का दान करना चाहिए और बृहस्पतिवार को व्रत रखकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। मकर- मकर राशि के जातकों पर भी राहु की नजर टेढ़ी रहेगी। इससे दुर्घटना होने के आसार हो सकते हैं। उपाय- राहु मंत्र का जाप करें, मछलियों को आटे की गोलियां खिालएं और नारियल का दान करें। सिंह- इस साल देवगुरु की कृपा बरसेगी। चौतरफा प्रगति का योग है। पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और आर्थिक स्तर में प्रगति होने के पूरे-पूरे योग हैं। दो सूर्य ग्रहण और एक चंद्र ग्रहण नव-संवत्सर 2010 में तीन ग्रहण पड़ेंगे। इसमें दो खग्रास सूर्य ग्रहण और एक चंद्र ग्रहण हैं। पहला सूर्य ग्रहण दस मई और दूसरा 3 नवंबर को पड़ेगा। लेकिन ये दोनों भारत में नहीं दिखाई देंगे, जबकि 25 अप्रैल की रात्रि को चंद्र ग्रहण पड़ेगा, जो भारत में दृश्यमान होगा। सियासत में रहेगी खींचतान पराभव नामक संवत्सर-2070 में सियासी पारा गरम रहेगा। सियासी खींचतान चरम पर होगी। कई राजनीतिक दलों के दिग्गज दल बदल कर सकते हैं। कई मुद्दों पर सियासत गरमाएगी और एक-दूसरे को घेरे की रणनीति बनाकर अमल में लाई जाएगी। राजा बृहस्पति और मंत्री शनि के बीच मतभेद और मनभेद होने से ऐसा होगा।