Author Topic: Religious Chants & Facts -धार्मिक तथ्य एव मंत्र आदि  (Read 45016 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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वन्दे शम्भुं उमा-पतिं सुर-गुरुं वन्दे जगत्कारणम्
वन्दे पन्नग-भूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्य-शशांक-वह्नि-नयनं वन्दे मुकुन्द-प्रियम्
वन्दे भक्त-जनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शंकरम् ॥

महाशिवरात्रि की हार्दिक मंगलमय शुभकामनायें ...हर हर महादेव .. जय भोलेबाबा ...

रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्रम् Written By Ravan

जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् ..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आयू रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी |
यश: कीर्ति च लक्ष्मी च धनं विद्यां च चक्रिणी ||

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे ‎" अथ अर्गलास्तोत्रम् "
 ॐ नमश्वण्डिकायै
 मार्कण्डेय उवाच ---------
 
 ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
 जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ।। १ ।।
 जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी  ।
 दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।। २ ।।
 मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः  ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। ३ ।।
 महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। ४।।
 धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। ५ ।।
 रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। ६ ।।
 निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रिलोक्यशुभदे नमः ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। ७ ।।
 वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। ८ ।।
 अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। ९ ।।
 नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे  ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १० ।।
 स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि  ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। ११ ।।
 चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १२ ।।
 देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। १३ ।।
 विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १४ ।।
 विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १५ ।।
 सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १६ ।।
 विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १७ ।।
 देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। १८ ।।
 प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे  ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। १९ ।।
 चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंसुते परमेश्वरि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। २० ।।
 कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। २१ ।।
 हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। २२ ।।
 इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। २३ ।।
 देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। २४ ।।
 भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि  ।। २५ ।।
 तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे ।
 रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। २६ ।।
 इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः ।
 सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम्  ।। २७ ।।
 
 " इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे अर्गलास्तोत्रं समाप्तम् "।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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महाशिवरात्रि पर विशेष, शिव तान्डव्सत्रोंतम
 जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
 गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
 डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं
 चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १..
 
 जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-
 -विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि .
 धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
 किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २..
 
 धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
 स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे .
 कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
 क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३..
 
 जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
 कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
 मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
 मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४..
 
 सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
 प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
 भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
 श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५..
 
 ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
 निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
 सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
 महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. ६..
 
 कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
 द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
 धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
 -प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७..
 
 नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
 कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
 निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
 कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८..
 
 प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
 -वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
 स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
 गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..
 
 अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
 रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .
 स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
 गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..
 
 जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
 द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
 धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
 ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..
 
 दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
 -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः .
 तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
 समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..
 
 कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
 विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
 विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
 शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..
 
 इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
 पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .
 हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
 विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४..
 
 पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
 शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे .
 तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
 लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५..Photo: महाशिवरात्रि पर विशेष, शिव तान्डव्सत्रोंतम जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १.. जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी- -विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि . धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २.. धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे . कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३.. जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४.. सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक: श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५.. ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम् सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. ६.. कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक -प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७.. नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत् कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८.. प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा- -वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् . स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९.. अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् . स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०.. जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस- द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट् धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११.. दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर् -गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः . तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२.. कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन् विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् . विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३.. इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् . हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४.. पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे . तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५.. height=403

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरुपम |
निजं निर्गुण निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम ||१||
निराकारओमकारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम |
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम ||२ ||
तुषाराद्रीसंकाशगौरं गभीरं
मनोभूतकोटिप्रभा श्री शरीरम |
स्फुरन्मौलीकल्लोलिनी चारूगंगा
लसदभालबालेन्दु कंठे भुजंगा ||३||
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नानन् नीलकंठं दयालम|
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||४||
प्रचण्डं प्रकृषटं प्रगल्भं परेशं
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशम |
त्रय:शूलनिर्मूलनं शूलपाणी
भजेहम भवानीपति भावगम्यम ||५||
कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी
सदा सज्जानानंददाता पुरारि:|
चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी:||६ ||
न यावद उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम |
न तावत्सुखं शान्तिसंतापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ||७||
न जानामि योगं जपं नैव पूजा
नतोहम सदा सर्वदा शंभु तुभ्यम |
जराजन्म दुखौघतातप्यमान
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||८||

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शंभु: प्रसीदति ||९||

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 यह देवी मंत्र सुबह उठ स्मरण किया जाना मंगलकारी होता है। किंतु पवित्रता के लिहाज से यथासंभव स्नान के बाद देवी की तस्वीर या मूर्ति की गंध, अक्षत, फूल व धूप, दीप लगाकर करना भी देवी कृपा देने वाला माना गया है-
 
प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्वलाभां
सद्रलवन्मकरकुण्डलहारभूषाम्।।
दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां
रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम्।।
 
सरल शब्दों में मतलब है कि शरदकालीन चन्द्रमा की तरह पवित्र तेज वाली, श्रेष्ठ रत्नों से जड़े हुए हार व मकर कुण्डल से सजीं, सुन्दर नीले रंग के हजारों भुजाओं वाली, जिनमें कई तरह के अद्भुत अस्त्र-शस्त्र हैं, लाल कमल के रंग की तरह चरण वाली जगतजननी दुर्गा को मैं सुबह प्रणाम व वंदन करता हूं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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शाम को शिव की पंचोपचार पूजा दूध, गंध, अक्षत, धतूरा, बिल्वपत्र व नैवेद्य अर्पित कर करें। धूप व दीप लगाकर नीचे लिखे षडाक्षरी मंत्र यानी ऊँ नम: शिवाय मंत्र की भी महिमा प्रकट करने वाले अद्भुत स्त्रोत का ध्यान कर शिव की आरती करें। यह शिव षडक्षर स्त्रोत के नाम से भी प्रसिद्ध है।
 
ऊँकार बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव ऊँकाराय नमो नम:।।
नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणा:।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।
महादेव महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देव मकाराय नमो नम:।।
शिवं शातं जगन्ननाथं लोकानुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।
वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं वेदं वकाराय नमो नम:।।
यत्र तत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
यो गुरु : सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।
षडक्षरमिदं स्तोत्रं य: पठेच्छिवसंनिधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सौराष्ट्रे सोमनाथ च श्री शैले मल्लिकार्जुनम, उज्जयिन्या महाकाल, मोंधारे परमेश्वरम, केदार हिमवत्पृष्ठे, डाकिन्या भीमशंकरम वारासास्था च विश्वेश, त्र्यम्बक गौतमी तीरे, वैद्यनाथ चिता भूमौनागेश द्वारका वने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवाल्ये।
द्वादशेतानिनामानि प्रातरुत्थायय: पठेत, सर्व पापैर्विनिर्मुक्त: सर्व सिद्धि फल लभत्।

पुराणों के अनुसार शिवजी जहां-जहां खुद प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।

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    सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। :उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
    परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।:सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
    वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।:हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
    एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।:सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥

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Mantra of Goril, Gwill , Goria, Gol Deity

                            गोरिल, ग्विल्ल, गोरिया , गोल देवता का मन्त्र


                          (Mantra Tantra in Garhwal, Mantra and Tantra in Kumaun , Mantra and Tantra in Himalaya , Mantra Tanra in uttarakhand )

                            Presented by Bhishma Kukreti

                          ( Manuscript : Dharmma nand Pasbola, vill Naini, Banghat Paurigarhwal , Ramkrishn kukreti, vill Barsudi )

                           (Collected and edited by Dr Vishnu Datt Kukreti , vill. Barsudi, Langur Valla)

        नाथपंथ ने कुमाऊं  - गढ़वाल क्षेत्र को की देवता व मन्तर दिए है . इनमे एक मन्त्र ग्विल्ल , गोरिल देवता का सभी गाँव में महत्व है . यदि किसी पर ग्विल्ल/गोरिल का दोष लग जाय तो मान्त्रिक दूध , गुड, राख आदि को मंत्रता  है और यह मन्त्र इस प्रकार है :

                    ॐ नमो गुरु को आदेस

                  रिया : हंकार आऊ : बावन ह्न्तग्य तोडतो आऊ : हो गोरिया : कसमीर   से चली आयो : जटा फिकरन्तो   आयो,: घरन्तो आयो :गाजन्तो आयो : बजन्तो आयो : जुन्ज्तो आयो : पूजन्तो आयो : हो गोरिया बाबा : बारा कुरोड़ी क्रताणी : कुबन्द : नौ करोडी उराणी कुबन्द : : तीन सौ साट : गंगा बंद , नौ सौ नवासी नदी बंद : यक लाख अस्सी हजार वेद की कला बंध : रु रु बंद : भू भू बंद :   चंड बंद : प्रचंड बंद : टूना पोखर बंद : अरवत्त बंद : सब रत्त बंद :अगवाडा बंद का बेद बंदऊँ  : पीछे पिछवाडा को बेद बंदऊँ : महाकाली जा बन्दों : वन्द वन्द को गोरिया : हो  गोरिया : नरसिंग की दृष्टा बंद : युंकाल की फांस बंद : चार कुणे  धरा बंद : लाया तो भैराऊं बंद : खवायाँ चेडा  बंद : सगुरु विद्या कु बंद निगु

By - Bhishma Kukreti.

 

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