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Religious Chants & Facts -धार्मिक तथ्य एव मंत्र आदि

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 ‎'SHUBH+PRABHTAM TO EACH ONE+EVERY ONE. HAVE ANICE SHUBH SOMSHIV DAY.**शिव ईश्वर का रूप हैं। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं । वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं।
 
 शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में की जाती है । भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है ।भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं।नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्करय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधिपतिर्ब्रम्हणोधपतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।। तत्पुरषाय विद्म्हे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।। भगवान शिव को सभी विध्याओ के ग्याता होने के कारण जगत गुरु भी कहा गया है।** 
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हलिया:
मंत्रों का जप कैसे करें?   
 
मंत्र का मूल भाव होता है - मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप का विधान धर्मग्रंथों में बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। इनके अभाव में मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरुरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है। (आसन की जानकारी के लिए देखें इस वेबसाईट का योग सेगमेंट)
यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ ओर जरुरी नियम बताए जा रहे हैं। जो मंत्र और कार्यसिद्धी के लिए बहुत जरुरी है -
- मंत्र जप के लिए उचित समय बहुत आवश्यक है। इसके लिए ब्रह्म मूर्हुत यानि लगभग ४ से ५ बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानि दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।
- अगर यह समय भी संभव न हो तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
- मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।
- एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें।
- मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की १०८ दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।
- कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।
- जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।
- किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
- मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।
- मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे कोई मंदिर या घर का देवालय।
- मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।
- माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।
- माला घुमाते समय माला के सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।

हलिया:
मंत्र जप से जागती है आंतरिक शक्ति

जप किसी शब्द अथवा मंत्र को दोहराने की क्रिया ही नहीं है। यह पूजा-पाठ की परंपरा का हिस्सा है तो विज्ञान भी। जब हम किसी शब्द को बार-बार दोहराते हैं तो उसे जप करना कहते हैं। पूजा पद्धति में जप के माध्यम से ईश्वर के स्वरूप पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा, हनुमान आदि देवताओं के जप की परंपरा मिलती है। जप के माध्यम से भीतरी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। आइए, जानें जप से किस तरह हम नई ऊर्जा से भर सकते हैं...।
जप करने के तीन तरीके हैं-
वाचिक- जब किसी शब्द या मंत्र को आवाज के साथ दोहराया जाता है।
उपांशु- मुंह से आवाज नहीं निकालते हुए जीभ (जुबान) से शब्द को दोहराना।
मानसिक- केवल मन ही मन किसी शब्द या मंत्र को दोहराना। 

जप का प्रभाव
जप करने से हमारे अंदर सोई हुई आध्यात्मिक शक्ति जागती है। जिससे पूजा में होने वाली अनुभूति को अधिक निकटता से अनुभव किया जा सकता है। ईश्वर की अनुभूति के नजदीक पहुंचने के लिए सभी धर्मों-संप्रदायों में जप का तरीका अपनाया गया है।

हलिया:
क्यों करते हैं मंत्रोच्चार?
 
 
 
 
हिंदू धर्म में मंत्रों को महिमा बताई गई है। निश्चित क्रम में संगृहीत विशेष वर्ण जिनका विशेष प्रकार से उच्चारण करने पर एक निश्चित अर्थ निकलता है, मंत्र कहलाते हैं। शास्त्रकार कहते हैं-मननात् त्रायते इति मंत्र:। अर्थात मनन करने पर जो त्राण दे, या रक्षा करे वही मंत्र है।
मंत्र एक ऐसा साधन है, जो मनुष्य की सोई हुई सुषुप्त शक्तियों को सक्रिय कर देता है। मंत्रों में अनेक प्रकार की शक्तियां निहित होती है, जिसके प्रभाव से देवी-देवताओं की शक्तियों का अनुग्रह प्राप्त किया जा सकता है। रामचरित मानस में मंत्र जप को भक्ति का पांचवा प्रकार माना गया है। मंत्र जप से उत्पन्न शब्द शक्ति संकल्प बल तथा श्रद्धा बल से और अधिक शक्तिशाली होकर अंतरिक्ष में व्याप्त ईश्वरीय चेतना के संपर्क में आती है जिसके फलस्वरूप मंत्र का चमत्कारिक प्रभाव साधक को सिद्धियों के रूप में मिलता है।
शाप और वरदान इसी मंत्र शक्ति और शब्द शक्ति के मिश्रित परिणाम हैं। साधक का मंत्र उच्चारण जितना अधिक स्पष्ट होगा, मंत्र बल उतना ही प्रचंड होता जाएगा।वैज्ञानिकों का भी मानना है कि ध्वनि तरंगें ऊर्जा का ही एक रूप है। मंत्र में निहित बीजाक्षरों में उच्चारित ध्वनियों से शक्तिशाली विद्युत तरंगें उत्पन्न होती है जो चमत्कारी प्रभाव डालती हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
.ज्योतिषशास्त्र कहता है कि हमारे जीवन पर ग्रहों का सीधा प्रभाव होता है. ग्रह अगर हमारी कुण्डली में कमज़ोर अथवा नीच स्थिति में हैं तो वह हमारे जीवन पर विपरीत प्रभाव डालते रहते हैं. इस स्थिति में कमज़ोर और नीच ग्रहों का उपाय करना आवश्यक होता है.

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों के उपाय (Remedies for Planets) : 1
सूर्य के उपाय (Remedies for Surya)
सूर्य ग्रह की शांति के लिए दान
आपकी कुण्डली में सूर्य अगर नीच का है अथवा पीड़ित अवस्था में है तो सूर्य की शांति के लिए आप दान कर सकते हैं. गाय का दान अगर बछड़े समेत करें तो इससे ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. गुड़, सोना, तांबा और गेहूं का दान भी सूर्य ग्रह की शांति के लिए उत्तम माना गया है. सूर्य से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए. सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में 40 से 50 वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए. सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है.

अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहत मिल सकती है.
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Thanks & Regards
Acharya Vipin Krishna
Jyotishi, Vedpathi & Katha Vachak
Mobile- 09015256658, 09968322014

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