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We will share some exclusive religious chants & facts related to various religions in this topic.
M S Mehta
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ11 hours ago On your profile ·
शनि महराज की गाथा
शनि ही भय मुक्ती दाता
शनि की महीमा अप्रमपर
शनि ही लगाये बेडा पार
शुभ प्रभात उत्तरखंड
शनि महिमा सबसे निराली
राज रंक रंक राजा पल मै होता भाई है
ॐ शनिचरय भगवान की जय बद्री-केदार
शनि देवता
वैदूर्य कांति रमल:,प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत: . अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद: .
भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है,तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है,तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है,ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं.
शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं.शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है.लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक,अशुभ और दुख कारक माना जाता है.पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं.लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है,जितना उसे माना जाता है.इसलिये वह शत्रु नही मित्र है.मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है.सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है,और हर प्राणी के साथ न्याय करता है.जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं,शनि केवल उन्ही को प्रताडित करता है.
शनि स्तोत्रम
नम: कृष्णाय नीलाय शिति कण्ठ निभाय च.
नम: कालाग्नि रूपाय, कृत-अन्ताय च वै नम:..
नम: निर्मांस देहाय दीर्घ श्म्श्रु जटाय च.
नम: विशाल नेत्राय शुष्क उदर भायाकृते..
नम: पुष्कल गात्राय स्थूल रोम्णे अथ वै नम:.
नम: दीर्घाय शुष्काय काल्द्रंष्ट नम: अस्तु ते..
नमस्ते कोटरक्षाय ,दुर्निरीक्ष्याय वै नम:.
नम: घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने..
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुख नम: अस्तु ते.
सूर्य पुत्र नमस्ते अस्तु भास्करे अभयदाय च..
अधो द्रष्टे ! नमस्ते अस्तु संवर्तक नम: अस्तु ते.
नमो मन्द गते तुभ्यम नि: त्रिंशाय नम: अस्तु ते..
तपसा दग्ध देहाय नित्यं योग रताय च.
नम: नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:..
ज्ञान चक्षु: नमस्ते अस्तु कश्यप आत्मज सूनवे.
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत क्षणात..
देवासुर मनुष्या: च सिद्ध विद्याधरो-रगा:.
त्वया विलोकिता: सर्वै नाशम यान्ति समूलत:.
प्रसादं कुरु मे देव वराहो-अहम-उपागत:.
एवम स्तुत: तदा सौरि: ग्रहराज: महाबल:..
पदमपुराणानुसार यह महाराजा दसरथकृत सिद्ध स्तोत्र है.इसका नित्य १०८ पाठ करने से शनि सम्बन्धी सभी पीडायें समाप्त हो जाती हैं.तथा पाठ कर्ता धन धान्य समृद्धि वैभव से पूर्ण हो जाता है.और उसके सभी बिगडे कार्य बनने लगते है.यह सौ प्रतिशत अनुभूत है.