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Religious Chants & Facts -धार्मिक तथ्य एव मंत्र आदि

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

We will share some exclusive religious chants & facts related to various religions in this topic.

M S Mehta
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देव भूमि बद्री-केदार नाथ11 hours ago On your profile ·
शनि  महराज की गाथा       
 शनि ही भय मुक्ती दाता      
 शनि की महीमा अप्रमपर       
 शनि  ही लगाये बेडा पार        
 शुभ प्रभात उत्तरखंड
 शनि महिमा सबसे निराली
 राज रंक रंक राजा पल मै होता भाई है
 ॐ शनिचरय भगवान की जय बद्री-केदार
 
 
 शनि देवता
 वैदूर्य कांति रमल:,प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत: . अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद: .
 भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है,तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है,तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है,ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं.
 शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं.शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है.लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक,अशुभ और दुख कारक माना जाता है.पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं.लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है,जितना उसे माना जाता है.इसलिये वह शत्रु नही मित्र है.मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है.सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है,और हर प्राणी के साथ न्याय करता है.जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं,शनि केवल उन्ही को प्रताडित करता है.
 शनि स्तोत्रम
 
 नम: कृष्णाय नीलाय शिति कण्ठ निभाय च.
 नम: कालाग्नि रूपाय, कृत-अन्ताय च वै नम:..
 नम: निर्मांस देहाय दीर्घ श्म्श्रु जटाय च.
 नम: विशाल नेत्राय शुष्क उदर भायाकृते..
 नम: पुष्कल गात्राय स्थूल रोम्णे अथ वै नम:.
 नम: दीर्घाय शुष्काय काल्द्रंष्ट नम: अस्तु ते..
 नमस्ते कोटरक्षाय ,दुर्निरीक्ष्याय वै नम:.
 नम: घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने..
 नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुख नम: अस्तु ते.
 सूर्य पुत्र नमस्ते अस्तु भास्करे अभयदाय च..
 अधो द्रष्टे ! नमस्ते अस्तु संवर्तक नम: अस्तु ते.
 नमो मन्द गते तुभ्यम नि: त्रिंशाय नम: अस्तु ते..
 तपसा दग्ध देहाय नित्यं योग रताय च.
 नम: नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:..
 ज्ञान चक्षु: नमस्ते अस्तु कश्यप आत्मज सूनवे.
 तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत क्षणात..
 देवासुर मनुष्या: च सिद्ध विद्याधरो-रगा:.
 त्वया विलोकिता: सर्वै नाशम यान्ति समूलत:.
 प्रसादं कुरु मे देव वराहो-अहम-उपागत:.
 एवम स्तुत: तदा सौरि: ग्रहराज: महाबल:..
 पदमपुराणानुसार यह महाराजा दसरथकृत सिद्ध स्तोत्र है.इसका नित्य १०८ पाठ करने से शनि सम्बन्धी सभी पीडायें समाप्त हो जाती हैं.तथा पाठ कर्ता धन धान्य समृद्धि वैभव से पूर्ण हो जाता है.और उसके सभी बिगडे कार्य बनने लगते है.यह सौ प्रतिशत अनुभूत है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:




अकृत्वा दर्शनं वैश्वय केदारस्याघनाशिन:।
 यो गच्छेद् बदरीं तस्य यात्रा निष्फलतां व्रजेत्।।केदारखण्ड में द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंग में आने वाले केदारनाथ दर्शन के सम्बन्ध में लिखा है कि जो कोई व्यक्ति बिना केदारनाथ भगवान का दर्शन किये यदि बद्रीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है, तो उसकी यात्रा निष्फल अर्थात व्यर्थ हो जाती है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
काशी विश्वनाथ बाबा की जय.........
 
 ‘वेद: शिव: शिवो वेद:’ वेद शिव हैं और शिव वेद हैं अर्थात् शिव वेद स्वरूप हैं। यह भी कहा है कि वेद नारायण का साक्षात् स्वरूप है-‘वेदो नारायण: साक्षात् स्वयम्भूरिति शुश्रुम।’ इसके साथ वेद को परमात्म प्रभु का नि:श्वास कहा गया है। इसीलिये भारतीय संस्कृति में वेद की अनुपम महिमा है। जैसे ईश्वर अनादि-अपौरुषेय हैं, उसी प्रकार वेद भी सनातन जगत् में अनादि-अपौरुषेय माने जाते हैं। इसीलिये वेद-मन्त्रों द्वारा शिवजी का पूजन, अभिषेक, यज्ञ और जप आदि किया जाता है।
 
 ‘शिव’ और ‘रुद्र’ ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं। शिव को रुद्र कहा जाता है- ये‘रुत्’ अर्थात् दु:ख को विनष्ट कर देते हैं- ‘रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्र:।’
 ऱुद्र भगवान् की श्रेष्ठता के विषय में रुद्रहृदयोपनिषद् में इस प्रकार लिखा है-
 
 सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
 रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:। यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।।
 ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।
 
 इसी प्रमाण के आधार पर यह सिद्ध होता है कि रुद्र ही मूलप्रकृति-पुरुषमय आदिदेव साकार ब्रह्म हैं। वेदविहित यज्ञपुरुष स्वयम्भू रुद्र हैं।
 
 भोले बाबा औघड़ दानी हैं। मुझे विश्वास है कि मेरे आमंत्रण को स्वीकार कर कल (५ मार्च, सोमवार) सोम प्रदोष को वे मेरी कुटिया में पार्थिव शिवलिंग-रूप में पधारे। मैं और मेरी पत्नी ने स्वागत कर रूद्र-मन्त्रों से उनका अभिषेक किया तथा सभी के कल्याण हेतु प्रार्थना की। सभी पर बाबा की कृपा हो.......

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
प्राचीन काल में हमारे मनीषी ऋषि -मुनियों ने दिव्य ज्ञान से सृष्टि के प्रत्येक अवयव का परस्पर प्रभाव का अनुभव किया .''या ब्रह्मांडे सा पिंडे ''के आधार पर उन्होंने आकाशस्थ ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति  के प्रभाव को जाना और समझा .इसी आधार पर ज्योतिष विद्या का सूत्रपात हुआ .
                     ग्रहों की सौरमंडल में गति ,स्तिथि व् प्रवृति का क्या प्रभाव भूमंडल के प्राणी भोगेंगे या भोग सकते है इसके लिए उन्होंने लोकहित को दृष्टि में रखकर अनेक ग्रंथो की रचना की .ज्योतिष शास्त्र के सभी मुख्य ग्रहों को समस्त सृष्टि की व्यवस्थाओं में इस प्रकार विभाजित किया जिससे संसार में किसी एक का अधिपत्य ही दृष्टि गोचर न हो बल्कि सभी की शक्ति प्रभाव का अनुभव किया जा सके .
                      इस वर्ष आकाशीय परिषद् में गठित दस पदों की सभा में शुक्र -चन्द्र -गुरु -शनि और सूर्य में ही पदों का विभाजन हुआ है .गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी शुभ ग्रहों के पास अधिक पदों का भार होने से शुभता के संकेत है .राजा -मंत्री जेसे मुख्य पदों पर शुक्र महाराज को अधिपत्य प्राप्त हुआ है .शुक्र अपनी भौतिक वादी प्रवृति व् भोग विलास के कारक होने से इस वर्ष में सर्वत्र सम्पन्नता के संकेत होंगे .शुक्र की शुभता से अन्न,उत्पादंता में वृद्धि ,नदियों के जल का सही उपयोग ,फलों के उत्पादन और वितरण में सामान व्यवस्था के संकेत हैं.
                       इस वर्ष  प्रकृति भीलोगो की समृद्धि में सहयोग करती नजर आएगी .अन्न का अधिपत्य चंद्रमा को प्राप्त होने से शुक्रदेव का कार्य और भी सरल होगा.शीतकालीन अन्न के स्वामी इस वर्ष शनिदेव है .शनिदेव वेसे तो न्यायप्रिय है किन्तु शुष्कता ,मंदता  का स्वाभाव होने से शीतकालीन फसलों की हानि होने की सम्भावना है.कहीं -कहीं समय पर आपूर्ति न होने से लोगो में आक्रोश बढेगा .
                       वृहस्पति मेघेश होने से इस वर्ष में सात्विक प्रकृति का सहयोग मिलेगा .वर्षा अनुकूल होगी.रसपति [रसेश ]मंगल होने से अपनी प्रवृति के अनुकूल कभी -कभी शासन प्रशासन ,बाहुबली व् धन से संपन्न लोग गरीब व्यक्ति व् उसके अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करेंगे .
                       नीरसेश सूर्य होने के कारण सोना चांदी के भाव में वृद्धि के संकेत हैं .फलेश गुरु होने से कुछ शुभता रहेगी शासन प्रशासन भले ही जन विरोधी रहे लेकिन प्रकृति लोगो के अनुकूल रहेगी .२२ मार्च २०१२ को चैत्र अमावस्या की समाप्ति तुला लग्न में होगी .
                        तुलालग्नेमध्यदेशेछत्र भंगश्चविग्रह:
                        धान्यस्य विक्रय :प्राच्यांछ्त्र्भंगमुपद्रव: 
तुला लग्न में वर्ष प्रवेश होने से मध्य देशों में उपद्रव ,विग्रह सत्ता परिवर्तन के योग बनते हैं .   

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Thanks & Regards
Acharya Vipin Krishna
Jyotishi, Vedpathi & Katha Vachak
Mobile- 09015256658, 09968322014

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