Author Topic: Today's Thought - पहाड़ के मुहावरों/कथाओं एवं लोक गीतों पर आधारित: आज का विचार  (Read 43263 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यकलु बानर

तू ले पहाडि
 मि ले पहाडि
 हमरी कहानि
 उलटी गंगा ज दिखणि
 हे पहाडि दब्याता
 कस भाग रचो
 ना घर क रयो
 ना परदेश क भयो
 चार दिन क छुट्टी
 फिर अण्यार रात गयो
 ना हँसी करो
 ना डाँड धरो
 सकुशल घर मे रोजगार दयो
 भल मति नेता लोगो
 पहाड मे दब्यता राज बनो
 सुख सम्पन घर परिवार गडो
 हँसणि मुखडि ईज (माँ) क रखो
 हे पहाडि दब्यता
 एक शराप लगो
 पहाडि नानतिण घर मे पनपो
 दूर देश बे झट दौडि ऐजो
 माँ क मुखडि खिलणि रेजो
 आँगण मा नान दौडि हेजो
 य विनती सुन ल्यु
 हे पहाडि दब्यता
 नेता क चषु
 भल बाटणि क खोलो
 
 ''यकलु बानर''
 copy right सुरक्षित नही
 हम खुद असुरक्षित है
 
 हे पहाडि दब्यता
 देखा ये धोखा
 नेता कि धोति
 हाथ कि लोटि
 फोड कपाई
 जनता कि रैलि
 
 ''यकलु बानर''
 copy right सुरक्षित नही
 हम खुद असुरक्षित है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दैणा हुयां,खोली का गणेशा...दैणा हुयां, मोरी का नरैणा.
दैणा हुयां,भूमि का भुम्याला ...दैणा हुयां,पंचनाम देवा .

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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प्रयाग पाण्डे
 
अलग उत्तराखंड बनने से पहले के वायदे और अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ की आम जनता को हासिल सुविधाओं को लेकर पेश है एक बहुत पुरानी लोकोक्ति -----

बात कैछ गजराज की ,दृष्टि दिखायी बैल |
पाणी पाड़ी कुकुड में ,हात लै च्यापो मैल ||

अर्थात -"आश्वासन दिया हाथी दान करने का ,सामने दिखाया बैल | संकल्प लेते समय मुर्गे के ऊपर पानी छिड़का और देते वक्त अपने हाथ का मैला निकलकर हाथ पर रख दिया |"इस राज्य में ऐसा ही कुछ यहाँ की आम जनता के साथ भी हो रहा है |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कुकर की लादोड़ी दिल्ली
भंगुला की पकोड़ी दिल्ली
सचेई भाई का सों
मानीख यख सोचदा..... कन्क्वे द्वी का दस कमों
ईं लौली निर्भी दिल्ली न गढ़वाल घुली याला
.................
चमोली choondi याला
तेहरी ठून्गारी याला
पौड़ी पतेडी याला
ईं लौली निर्भी दिल्ली न गढ़वाल घुली याला --- kishna bagoht---

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ता ता ताता गास त्वेन सुद्धि नि सळ कण
गिच्चू फुके जालू चुचा भईंत ह्वे जाली

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऊंचा डाना बटि, बाटा-घाटा बटि,
ऊंचा ढूंगा बटि, सौवा बोटा बटि,
आज ऊंणे छे आवाज,
म्यर पहाड़, म्यर पहाड़ !!
ऊंचा पहाड़ को देखो, डाना हिमाला को देखो,
और देखि लियो, बदरी-केदार
म्यर पहाड़ !
यांको ठंडो छू पांणि, नौवा-छैया कि निशानी,
ठंडी-ठंडी चली छे बयार
म्यर पहाड़ !
जय-जय गंगोतरी, जय-जय यमनोतरी,
जय-जय हो तेरी हरिद्वार
म्यर पहाड़ !
तुतरी रणसिंहा तू सुण
दमुआ नंगारा तू सुण
आज सुणिलै तू हुड़के की थाप
म्यर पहाड़, म्यर पहाड़ !!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घुघूती बासुती
हल्द बेचीं बलद लायु
मोटा भेर लाल हैरो ...
हल बान के पट. ....
हाय जमाना चल जमाना
हाय जमाना चल जमाना
त्वे जमाना देखि म्यार
दिल जै हैगो खट्ट

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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महान कवि सुमित्रा नन्द की कुमाउंनी कविता

                बुरुंश

   सार जंगल में त्वि ज केन्हाँ रे केन्हाँ
 फुलन छै बुरुंश! जंगल जनि जलि जन
 सल्ल छ , द्यार छ , पइं, अंयार च
 सबनाक फांगन में पुंगनक भारछ,
 पै त्वि में दिलैकि आग,त्विमें छ ज्वानिक फाग
 रगन में नई ल्वे छ प्यारक खुमारै छ
                सारि दुनी में मेरी सू ज , ल्वे क्वे न्हाँ
                   मेरी सू कैं रे त्योर फूल जैन अत्ती भां
 काफल , कुसम्यारु छ , आरू छ , अखोड़ छ
 हिसालू-किनमोड़ ट पिहल सुनुक तोड़ छ
 पै त्वि में जीवन छ , मस्ती छ , पागलपन छ ,
 फूलि बुरुंश ! त्योर जंगल में को जोड़ छ ?
                         सार जंगल में त्वि ज केन्हाँ रे केन्हाँ
                        मेरी सू कें रे त्योर फूलनक्म' सुहाँ

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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.
 जख गरूड़ू का पंख बि नि कैरी साका स्वां स्वां,
 तख हेलिकोप्टर करणान किरर्र ,किरर्र फुआं फ़ुआं. . .
 जनता का पैसों कु भूलों धुआं धुआं .
 अर लोग कन्न लग्याई ऊवाँ. . .ऊवाँ. . .

 - Dr.Balbir Singh Rawat

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भुर-भुर उज्याव जसि जाणी रात्ति-ब्याण
 भेकूवे  सेकड़ि कसि उड़ी जै निसाण
 खित्त कने हसण और झऊ कने चान...
 मिशिर हबे मीठि लागी, कार्तिके मौ छे तू!
 पूसकि पालनि  जसि, ओ खणयूँणी को छे तू !!

 

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