महाराज, उत्तराखण्ड में तो चारों ओर, डाडों काठों में, झरनों में, गाड़-गोधारों में, पेड़ों मे, खेत-खलिहानों में संगीत ही संगीत ठैरा। लेकिन उस संगीत से यहां के प्रतिभावान बालक/बालिकाओं को बिधिवत पढा़ने-सिखाने के लिये हमारे सरकार ने कुछ भी नही किया। क्या आप जैसे ऊंचे मुकाम पा चुके कलाकारों ने इस बिषय पर कभी आपस में बिचार-बिमर्स कर स्वयं ही कुछ करने के बारे में सोचा है?