उत्तराखण्ड के लोक संगीत में पहले प्रेम-प्रदर्शन और प्रणय लीलाओं के बजाय, विरह, घर-खेत की बातें, विकास की चाह, पर्वतीय अंचल की सुंदरता का बखान, ऎतिहासिक गाथायें तथा सामाजिक मुद्दे होते थे, लेकिन आजकल ऎसा कुछ भी नहीं आ रहा। केवल इश्कबाजी का ही बखान अधिकतर एलबमों में होता है, जो कि बहुत खेद के साथ-साथ चिन्ता का विषय है। एक स्थापित कलाकार होने के नाते आप खालिश उत्तराखण्डी लोकसंगीत को बचाने के लिये अपनी ओर से क्या प्रयास करेंगे?