भट्ट जी प्रणाम,
आपने उत्तराखंड के फौजी जवानों के जीवन पर "सिपैजी" फिल्म बनाकर समाज के सामने प्रस्तुति की है. कैसा रहा आपका अनुभव और क्या भविष्य देखते हैं आप....उत्तराखंडी फिल्म जगत का. आशा करता हूँ आप समाज को सही दिशा, अतीत की झलक, अपनी भाषा के प्रसार का प्रयास फिल्मांकन के द्वारा करते रहेंगे. पहाड़ के लोग प्रवासी हो गए हैं.....आशा करता हूँ आप एक सुन्दर सी फिल्म "प्रवासियों की पीड़ा" पर आधारित बनाकर....फिल्मांकन करके.....हम प्रवासिओं को प्रस्तुत करेंगे.
"प्रवासियों की पीड़ा"
देश के महानगरों में,
उत्तराखंड के लाखों लोग,
झेल रहे हैं प्रवास,
प्यारे पर्वतों से दूर,
जहाँ चाहकर भी नहीं मिलता,
पहाड़ जैसा परिदृश्य,
जनु,
ठण्डु पाणी, ठण्डु बथौं,
हरीं भरीं डांडी,हिंवाळि कांठी,
बांज, बुरांश,घुगती,हिल्वांस,
मनख्वात, भलि बात,पैन्णु पात,
परिवार अर् दगड़्यौं कू साथ,
ढोल-दमौं, मशकबीन बाजू,
डोला पालिंग, रंगमता पौंणा,
औजि का बोल अर् ब्यौ बारात,
अर् झेल्दा छौं,
हो हल्ला, मंख्यों कू किबलाट,
मोटर गाड़ियौं कू घम्म्ग्याट,
जाम मा जकड़िक,
पैदा होन्दि झुन्झलाट,
सब्बि धाणी छोड़िक,
पराया वश ह्वैक,
ड्यूटी कू रगरयाट,
सोचा, यानि छ हम सब्बि,
"प्रवासियों की पीड़ा",
अपन्णु घर बार त्यागिक,
कनुकै ह्वै सकदन,
हमारा तुमारा ठाट बाट.
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
19.2.2009 को रचित