Author Topic: Live Chat With Parashar Gaur(Father Of Uttrakhand Cinema) On 10 Sep 2008 10:00AM  (Read 30584 times)

Parashar Gaur

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Sir,




Here in india 1:18 right now. Some people are fearing the Scientist experiment.

log kah rahe the 12:30 dukha khatam lekin lagta hai bach gaye ha.ha. ha.


Sir,

What is your views on TV Channel ?

मेहता जी,
 आपने प्रशन किया की क्या उत्तराखंड में टी वी  होना चाहिए तो मेरा साफ़ सा और नापा तुला उत्तर है .. हां क्यों नही ! टी वी का होना हमे और हमारे प्रदेश के लिए उतना ही आवश्यक जितना आज इन्टरनेट ! टी वी के माध्यम से हम एक दुसरे से बहुत करीब से जुड़ जाते है ! हमारे इर्द गिर्द क्या कुछ होरहा है इस की जानकारी हमें और कौन दे सकता है केवल टी वी ! 


Parashar Gaur

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I missed it... But Gaud jee Ke Vichaaro Jaanke Bahot Achha Lgaa...

Pahaad se itni door rehte hue bhi, devbhoomi unke rag rag me basti hai.

Thanku patahk jee.. aap ka pyaar mita rahi yahi chaheye ...
parashar

Parashar Gaur

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आदरणीय गौर साहब,
         मेरे यह दो प्रश्न थे, जो को अनुत्तरित रह गये थे, इन पर आपका क्या विचार है, मैं प्रतीक्षारत हूं।



१-आंचलिक फिल्मों का महत्व तभी है जब वह क्षेत्र विशेष की सांस्कृतिक धरोहर, पहचान को दर्शकोम को रुबरु कराने में सक्षम हो। आपने कितनी उत्तराखण्डी फिल्मों में किसी घटना विशेष पर आधारित लोकगीत की पंक्तियों को रचते हुये, उन्हें गुनगुनाते हुये और लय में गाते हुये सुना है? कितने निर्देशकों ने छानी, ओबरों के क्लोज अप दिखाये हैं, और किसान के हाथों में बल्द का म्यालू, कंधे पर जू और जू  पर होल-जोल-निसूड़ा, उसकी पत्नी के सिर पर कल्यो की पोटली, कूटलू, दथुड़ो या गैंती, बरसात में सिर पर मालू के पत्तों से बने गोल छतरे को सिर पर रखे महिलाओ को गाय चराते हुये दिखाया है? हमने किसी फिल्म में घसयारियों की कमर में रस्सी बांधे हुये, एक हाथ में दांथी और दूसरे हाथ में रोटी-प्याज-गुड़ की पोटली थामे देखा है? कभी घसयारियों व गाय  चराने आये ग्वालों को नमक के साथ बुरांस और चीड़ के बीजों का स्वाद चखते देखा है? हाथ में तांबे के बंठे लेकर पानी के धारे की ओर बढ़्ती महिलायें, सिर पर घास और लकड़ी लाती महिलायें, जंदूरु में अन्न पीसती हुई, उरख्यलू? गंजल से अन्न कूटती औरतें, धान मांड़ते लोग, भोजन में छ्छया, फाणू, झंगोरा, बाड़ी, कण्डाली का साग, भवली, गिंजिड़ी, झुंगरियाल, गैथ, भट्ट, घी से लबालब मंडुवे की रोटी.......यह सब हमारी सांस्कृतिक धरोहरें हैं, और इन्हें फिल्म की पटकथा से जोड़कर सुरक्षित रखा जा सकता है और यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर, हमारी आंचलिक संस्कृति और परम्पराओं के मूल दर्शन से जुड़ी हैं।
      लेकिन दुर्भाग्य है कि आज के हमारे आंचलिक फिल्मकार इन सबको छोड़कर मुंबईया मसालों वाली फिल्में बना रहे हैं, जिसे अधिकाश दर्शक वर्ग अस्वीकार कर देता है......मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि आज कल की उत्तराखण्डी वी०सी०डी० फिल्मों को मैं अपने घर में परिवार के साथ बैठकर नहीं देख पाता।  यह फिल्में हमारा सांस्कृतिक अवमूल्यन ही कर रही हैं।
      इसलिये मेरा आप जैसे लोगों से अनुरोध है कि इस फिल्म जगत को आप जैसे लोग ही सुधार सकते हैं, इसलिये नेतृत्व आप अपने हाथ में लीजिये।.......फिर बहुत देर हो जायेगी।


२-मेरे मत में उत्तराखण्डी फिल्मों के सफल न होने के पीछे उनका पूर्ण व्यवसायिक हो जाना और इसमें सफल होने के लिये मुंबईया मसाले भरने की असफल कोशिश भी है। आपका इस बारे में क्या मत है?      


मान्यबर धौसिया जी,

       आपने उत्तरांचली फ़िल्म के प्रेपेक्ष में कई गंभीर सवाल उठाई है ! मै थोडा फ़िल्म व दकुमेंट्री में अन्तर     की बात करूंगा तत्पशत आपके प्रशन का उत्तर देनेकी कोशिश करूंगा !  मै ऐसा इसलिए कहा  रहा हूँ कि आपने
कहा कि हमारे उत्तरांचली फ़िल्म निर्माता फिल्मों मे वहा की जनजीवन विशेष कर संस्कृत रीति रिवाज़ को अनदेखा कर ( जिसमे आपने बहुत सारे बातो का जिक्र किया है)  फालतू का कचरा भर कर जनता पर थोपने   का प्रयाश करते है ! आप का कहना कही तक सत्या भी है ! मै स्वयम इसका घोर बिरोधी हूँ लकिन फ़िल्म मै ये सब बात जो आपने कही पुरे तरह से रखना या देखना सम्बभ नही होगा क्यूँकी फ़िल्म २.५ घंटे की होती है ! उसमे सब कुछ देखना होता है जो कहानी डिमांड करते हो ! हां कुछ जगहा जहा पर वो जिस के बारे मै आप बात कर रहे है उनको रखना या देखाना आवश्यक है तो उसको रखना चाहिये फिर कहूंगा मजबूरी नही है आवश्यकता होगी !

  अब रहा उनको प्रीजेर्वे करने का सवाल तो उसके लिए दकुमेंट्री बनाकर रखा जा सकता है  जो फ़िल्म से भी बढकर अहम् रोल अदा करेगी !

Parashar Gaur

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Sir,

What is your dream for Uttarakhand ?

Mehtaji,

 maine uttrakhand ke bare me dream dekhne lag-bahag band se kerde hai ..

why?

every time I dreamed about uttrakhand  it has been crashed by politician .  I dreamed we have to be our uttarkahnd which will be ours ,only ours ,after having  where is that ?

Haa .. ab dreamed dekhta hun ki, KAB  nijaat milegee hame in NETAO se... I have a dreamm .....


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,

We would like to know about your new film "Gaura".

could u please give some information on this.


Parashar Gaur

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गौरा..
     
     एक राजनैतिक व्यंगात्मक फ़िल्म है. जो गौरा के इर्द गिर्घ घुमती है !  गौरा मेरे पहाड़  की नारी का प्रतीक है राजनेता और राजनीती कितनी नीचे गिर गयी की वो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकती है..  गौरा उसी घिनौनी राजनीती का शिकार होती है   !   इस में जोड़े सबी तंत्र  जैसे एम् पी,  विधायक  जो राज सता के प्रतीक   बिलोक का बी डी ओ  व चोकी का पटवारी जो सरकारी तंत्र का प्रतीक है ! पंचम गौं का छोड़ भया नेता जो अपनी स्वार्थ  के लिए लूथी जैसे गरीब को अपना सिकार बना कर उनकी बनी बनाई जिंदगी को उजाड़ देते है !

     लूथी ने बिलाक से बैलो को खरीदने के लिए ६००० रुपये कर्जा लिए थे किसी कारन वो उन रुपये को वापस नही दे पाया ! गौं का पटवारी रबीदत्त विधयाक चट्टान सिंह का साल पंचुमु और बिलाक का बी डी ओ भवानी दत्त तीनो  मिलकर लूथी  की घरवाली गौरा को चौकी में बुलाते है..  उसके साथ घिनौनी  हरकत कर उसे मार कर पेड पर लटका देते है ताकि ये साबित हो जाए की गौरा ने "फांस"  खाई  है ना की उसको किसे ने मार है !

    पुलिस लूथी को सक के बेस पर बहुत तंग करती है. इसी बीच गौं का एक नौजवान  अजय जो गडवाल विश्व विधालय में ला कर रहा है जो छात्र संघ का अध्यक्ष भी है , उसे पत्ता चलता है की असल में दोषी वो नही  बल्कि रबिदुत्त , भवानी दत्त और पंचुमु है वो पुलिश से उनको पकड़ने को कहता है एसा न करने पर गडवाल बंद करने व आन्दोलोँ की धमकी देता है.. इधर एम् पी मथुरा दास और विधायक चटान सिंह में आपस में राजनीतिक रंजिश को लाकर रसा कस्सी चलती रहती है.. दोनों एक दुसरे को नीचा देखने के लिए कोई भी मौका हाथ से नही जाने देना चाहते !

   जब मथुरा दस को पता चलता है की चटान सिंह का साला इस केश में सामिल है बस फिर तो मथुरा दास  चटान की राजनैतिक हत्या करने पर जुगाड़ में अपनी गोटिया बीटाने में लग जाता है !  इधर भवानी दत्त मथुरा दस के पास पहुंचकर अपने को बचाने के लिए कहता है मथुरा दास उसे वो सरकारी गवाह बनाकर चटान को घेरने का पूरा पूरा खेल सुरु कर देता है  चटान चुप चाप सब कुछ देखता रहता है और सोचता है काश मथुरा दास की उस चाल की कोई काट की कोई जुगाड़ उसे मिलजाए की तभी मथुरा दस का लड़का भुवन जो कालेज में पड़ रहा है अब उसकी गर्ल फ्रेंड त्रिप्ती , जो कभी अजय की दोस्त होअया करती थी  वो उसके बचे की माँ बन जाती है  ! भुवन को जब पत्ता चलता है तो वो अपने दोस्त के कहने पर उसके अबोर्सशन के लिए शहर की जानी मानी डाक्टर इंदु जो की चटान सिंह की बहिन है  के पास जता है .. जब उसे पत्ता चलता है की वो मथुरा दस का लड़का है तो उससे सरे पेपर साइन करवाकर कल आने को बोलती है .. वो चट्टान को फ़ोन कर मिलाने को कहती है ! दोनों मिलते है वो उसे सारे प्रूफ़ देती है ! चट्टान सिंघको तो जैसे संजीवनी बूटी मिलगये थी  वो
मथुरा दास पर उलटा वर करता है  साथ में  धमकी देता है.. की अगर वो कल १० बजे तक उसके पास ना आया तो ये ख़बर वो प्रेस को देदेगा.. ! मथुरा दस उसके पास जाता हीवो  उससे कहता है .. तुम अगर प्रेस में जाते भो तो क्या होंगा?  जायद से जयाद,   दो चार दिन की बदनामी लकिन अगर  पंचुमु वाला केश कोर्ट में गया तो तुम्हरी बादाम के साथ साथ पंचुमु को ता जिन्दगी की सजा भी होसती ही ! और साथ में वो एक सनसनी बात खुलासा चटान सिंह से करता है .. उसके पास सरकारी मकानों के निर्माण  के दौरान उसके घपले की फाइल  जो अजय जो गडवाल विश्व विद्यालया के अध्यक्ष पास से उनको वो जब चाये मंगवा कर लाकर पुलिश में देकर तुमको जेल भिजवा सकता है.  चटान को एक सलाह देता है..  राजनीती में यहे अच्हा होंगा की तुम मरी पीठ खुजलाओ और मै तुमाहरी ! दोनों  आपस में समझोता कर लेते है. साथ में अध्यक्ष को उसके अगेंस्ट जाल बुनकर उसको त्रिप्ती की हत्या  जो कुछ दिन पूरब मथुरा के इशारों पर होई थी उसके के जुर्म में फसाने की कोशश करते है  !   म्क़ठुरा दस उससे भी समझोता करवा ललिता है की वो उसके बारे में अपना मुह बंद रखे  वरना टा जिन्दगी जेल में कटेगी ..! 
    कुल मिलाकर  .. कहानी गौरा  को लाकर शुरू होती है .. गौर और उसका मुदा कही  खो  सा जाता  है  सामने आता है घिनौनी राजनीती का घिनौना चेहरा !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanx a lot for the detailed informatoin.

We would like give you some positive feed back about the film.

Recently, a show was organized in Delhi where some of our membes had this movie.  They have rated exceptionally good movies.

Apart from cities, i think the movie should also reach to rurual areases also.


गौरा..
    
     एक राजनैतिक व्यंगात्मक फ़िल्म है. जो गौरा के इर्द गिर्घ घुमती है !  गौरा मेरे पहाड़  की नारी का प्रतीक है राजनेता और राजनीती कितनी नीचे गिर गयी की वो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकती है..  गौरा उसी घिनौनी राजनीती का शिकार होती है   !   इस में जोड़े सबी तंत्र  जैसे एम् पी,  विधायक  जो राज सता के प्रतीक   बिलोक का बी डी ओ  व चोकी का पटवारी जो सरकारी तंत्र का प्रतीक है ! पंचम गौं का छोड़ भया नेता जो अपनी स्वार्थ  के लिए लूथी जैसे गरीब को अपना सिकार बना कर उनकी बनी बनाई जिंदगी को उजाड़ देते है !

     लूथी ने बिलाक से बैलो को खरीदने के लिए ६००० रुपये कर्जा लिए थे किसी कारन वो उन रुपये को वापस नही दे पाया ! गौं का पटवारी रबीदत्त विधयाक चट्टान सिंह का साल पंचुमु और बिलाक का बी डी ओ भवानी दत्त तीनो  मिलकर लूथी  की घरवाली गौरा को चौकी में बुलाते है..  उसके साथ घिनौनी  हरकत कर उसे मार कर पेड पर लटका देते है ताकि ये साबित हो जाए की गौरा ने "फांस"  खाई  है ना की उसको किसे ने मार है !

    पुलिस लूथी को सक के बेस पर बहुत तंग करती है. इसी बीच गौं का एक नौजवान  अजय जो गडवाल विश्व विधालय में ला कर रहा है जो छात्र संघ का अध्यक्ष भी है , उसे पत्ता चलता है की असल में दोषी वो नही  बल्कि रबिदुत्त , भवानी दत्त और पंचुमु है वो पुलिश से उनको पकड़ने को कहता है एसा न करने पर गडवाल बंद करने व आन्दोलोँ की धमकी देता है.. इधर एम् पी मथुरा दास और विधायक चटान सिंह में आपस में राजनीतिक रंजिश को लाकर रसा कस्सी चलती रहती है.. दोनों एक दुसरे को नीचा देखने के लिए कोई भी मौका हाथ से नही जाने देना चाहते !

   जब मथुरा दस को पता चलता है की चटान सिंह का साला इस केश में सामिल है बस फिर तो मथुरा दास  चटान की राजनैतिक हत्या करने पर जुगाड़ में अपनी गोटिया बीटाने में लग जाता है !  इधर भवानी दत्त मथुरा दस के पास पहुंचकर अपने को बचाने के लिए कहता है मथुरा दास उसे वो सरकारी गवाह बनाकर चटान को घेरने का पूरा पूरा खेल सुरु कर देता है  चटान चुप चाप सब कुछ देखता रहता है और सोचता है काश मथुरा दास की उस चाल की कोई काट की कोई जुगाड़ उसे मिलजाए की तभी मथुरा दस का लड़का भुवन जो कालेज में पड़ रहा है अब उसकी गर्ल फ्रेंड त्रिप्ती , जो कभी अजय की दोस्त होअया करती थी  वो उसके बचे की माँ बन जाती है  ! भुवन को जब पत्ता चलता है तो वो अपने दोस्त के कहने पर उसके अबोर्सशन के लिए शहर की जानी मानी डाक्टर इंदु जो की चटान सिंह की बहिन है  के पास जता है .. जब उसे पत्ता चलता है की वो मथुरा दस का लड़का है तो उससे सरे पेपर साइन करवाकर कल आने को बोलती है .. वो चट्टान को फ़ोन कर मिलाने को कहती है ! दोनों मिलते है वो उसे सारे प्रूफ़ देती है ! चट्टान सिंघको तो जैसे संजीवनी बूटी मिलगये थी  वो
मथुरा दास पर उलटा वर करता है  साथ में  धमकी देता है.. की अगर वो कल १० बजे तक उसके पास ना आया तो ये ख़बर वो प्रेस को देदेगा.. ! मथुरा दस उसके पास जाता हीवो  उससे कहता है .. तुम अगर प्रेस में जाते भो तो क्या होंगा?  जायद से जयाद,   दो चार दिन की बदनामी लकिन अगर  पंचुमु वाला केश कोर्ट में गया तो तुम्हरी बादाम के साथ साथ पंचुमु को ता जिन्दगी की सजा भी होसती ही ! और साथ में वो एक सनसनी बात खुलासा चटान सिंह से करता है .. उसके पास सरकारी मकानों के निर्माण  के दौरान उसके घपले की फाइल  जो अजय जो गडवाल विश्व विद्यालया के अध्यक्ष पास से उनको वो जब चाये मंगवा कर लाकर पुलिश में देकर तुमको जेल भिजवा सकता है.  चटान को एक सलाह देता है..  राजनीती में यहे अच्हा होंगा की तुम मरी पीठ खुजलाओ और मै तुमाहरी ! दोनों  आपस में समझोता कर लेते है. साथ में अध्यक्ष को उसके अगेंस्ट जाल बुनकर उसको त्रिप्ती की हत्या  जो कुछ दिन पूरब मथुरा के इशारों पर होई थी उसके के जुर्म में फसाने की कोशश करते है  !   म्क़ठुरा दस उससे भी समझोता करवा ललिता है की वो उसके बारे में अपना मुह बंद रखे  वरना टा जिन्दगी जेल में कटेगी ..! 
    कुल मिलाकर  .. कहानी गौरा  को लाकर शुरू होती है .. गौर और उसका मुदा कही  खो  सा जाता  है  सामने आता है घिनौनी राजनीती का घिनौना चेहरा !


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,

It took a long time to u to make this film after first movie any reason sir ?

any future project. ?




हेम पन्त

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कनाडा में प्रसारित एक टी.वी. प्रोग्राम "बधाई हो" में पाराशर गौङ जी का साक्षात्कार
http://www.youtube.com/watch?v=C2ZBEFJB7Xw&eur

 

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