Author Topic: Live Chat With Parashar Gaur(Father Of Uttrakhand Cinema) On 10 Sep 2008 10:00AM  (Read 30090 times)

Parashar Gaur

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I am elated to know that Parashar ji is on line to talk to the members of Mera Pahad. Parashar ji has rightly been termed as the Founder of Uttarakhandi Cinema. I was also in one way or the other associated with the first Kumaoni film, Megha Aaa. In fact I was associated with the film psychologically and tried to give a helping hand to the film, which was completed and was hailed by all. In fact we were highly enthusiastic on the making of a Uttarakhandi film. Every body tried to contribute to the making of the film and when the film was completed, every body felt the film as his own. I want to know whether the same sentiment still exists. Do the people cooperate and lend a helping hand. Is it not a community work still?

manayberjee  jesa mai kahatha ki vistar se chercha kenungaa .. aap iss pad lejeyegaa aur arth nekalker samjh le kim mai kya kahna cha raha hun
parashar

   उदघाटन परम्परा
   हमारा देश महान है हर बात के लिए !  खास कर नेतागिरी में तो पूछो नही ! वहा का बासिन्दा बिना इसके ना तो जी सकता है और नही मर सकता है. !  हिंदू रीत को अनुसार अगर कोई मर रहा हो तो मरने वाली की यही अन्तिम इच्हा होती थी या होती है की उसे गाया माता की पूंछ पकडवा दी जाय ताकि वो उसे के सहारे
बैतेरनी पार कर सीधे स्वर्ग जा सके , लेकिम अब ये काम बिना नेताजी के असंभव हो गाया है !  गाय तो अब 
ढूंड ने से भी नही मिलती अगर नेताओं को खोजो तो एक नही हजारो में  ...गलियो में ,  चौराहों में , बाजारों में
थोक की भाव में मिल जायेगे  !  हां देखने में भी आया है की बिना इसके उसे मरने वाले की ना तो गती ही संभव है और ना ही मुक्ती ही !  मरने वाली के दम तबतक नही जा सकते जब तक की नेता वहा पर आकर उसे व्यक्ती की बारे में मरने से पहले अपना भासन न दे  दे ! जैसे ही नेताजी का भाषण समाप्त हुवा नही  और तालियों की गडगडाहट हुई नही की  समझलो उसे ब्यक्ती को भी मुक्ती मिलगई या मिलचुकी है !

    मित्रो आपने अक्सर सुना या देखा होगा जब किसी दुकान माकन या कोई भी फंगसन होता है तो उस कार्यक्रम का उद्घाटन या तो कोई वडा आदमी .., वडे का मेरा मतलब पैसे वाले से है या फिर कोई नेताजी करते है !  वडे भी इन नेताओ के आगे अक्सर दुम हिलाते नजर आते है या देखे जा सकते है !

    नेता कलयुगी भगवन है ! अनदात्ता है !  ब्रह्मांड की गती रुक सकती है इसकी नही !  इसलिए तो इसे को ईशवर से भी उप्पर का दर्ज्ज़ा दिया जाता है ! अब जब वो सबके नजरो में भगवन है तो आप ही बताये फिर इसके बिना कोई कम हो सकता ही क्या ?  ना ही ,  ना ......!  हर एक यही चायेगा ना की वो हमारे घर आए , हमारे कर्याकर्मो का उद्घाटन करे ! एसा करने से उस मोहले में उस आदमी की भी जरा ताडी से हो जाते ही ! रॉब पड़ता  है उनपर !

     एक  बात मै यहाँ पर सप्स्ट कर देना चाहूँगा की आम आदमी की नेताओ के प्रती अच्छी धरनाये नही होती
है वो उनकी तुलना सीधे अपनी गली में घूमते आवारा  ......... से  करते है  जो जब चाहे , जिसे चाहिए काट डाले
वो भी विना बाझे ! गाली का वो कभी कभी अपना होजाता है लेकिन ये ...   इसका कोई भरोसा नही !  खैर ये तो रही आम आदमी की बात हम तो यहाँ पर इन महापुरश की बात कर रहे थे की आज का हर वडे छोटे कामो में इनका होना जरुरी है !

   अरे साहब गजब तो तब होवा जब नेताजी को एक रनवे का उद्घाटन करना था नेताजी को इस पट्टी के उद्घाटन हेतु वडे आदर के साथ वहा पर लाया गया था !  सुरक्षा कड़े इन्ताज़माते थे !  ये सब होने के बाबजूद वो कुत्ता जाने कहा से वहा सेंध मार कर जा घुसा !  जबतक नेताजी वहा पहुँचते , उद्घाटन करते ,  नेताजी से पहले हमरी गली की घूमते आवारा कुते के एक रिश्तेदार ने देश के इस रनवे का उद्घाटन कर डाला !  येसा करके उस कुते ने अखबारों में बड़े सुर्खीय बटोली !   मरे खुसी के वो रनवे वे पर जा लगा दौड़ने ! याने उसने इन साहिब से पूरब ही  उस पट्टी उद्घाटन कर डाला  !  सब देखतेरहगये और वो पट्टा ..., ये दौडा वो दौडा और दौड़ता ही चला गाया  ! एक नयी प्रथा की सुरवात कर के !

Parashar Gaur

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Namashkar Parashar ji main Anubhav Mera Pahad ki aur se aapka swagat karta hun.
dear anuvhavji
 Thanks for having me and giving me an apprtunity be part of this web site.

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Sir yeh to humara saubhagya hai ki apne humein samay diya. Mera Pahad parivaar ki taraf se main aapko dhanyavaad deta hun aur aasha karta hun ki aap aise hi humein guide karte rahenge.

Namashkar Parashar ji main Anubhav Mera Pahad ki aur se aapka swagat karta hun.
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Parashar Gaur

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anubhavji
how to laod photgrabh  in web could let me line wise cuz iam naushekheya in this field.

Parashar Gaur

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Sir,

Apart from a Director and you had also composed several poems and Uttarakhandi songs which were broadcasted in AIR Delhi,

A few lines u please quote here on pahad ?

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In 1967 when he was 20 years old he wrote his first Garhwali Full length Drama called “Aunsi Ki Raat” which was staged on theatre for the first time On 28th February 1969 under the banner “Pushpanjali Rangshala” . Since than he has written more than a dozens plays among them such as Choli, Gaway, Rehershal, Timla ka timla Khtya and were repeated more than 10 times in theatres in and around Delhi.

As a poet he has written more than 60 songs which were broadcast by AIR, Delhi. His has also written more 300 Garhwali poems which have been published in different newspapers and magazines.

===============================================-------------
मेहता जी ....
नेगी जी का एक गीत क्या फिट बैठता मुझपर "क्वा ढुंगी ने पुजी मिन , कई डंडा नि ग्युओ मी "
    एक हो तो बताऊ ... जो सबसे वड़ा फैक्टर था , वो था पैसा !  उस ज़माने में ८ १० लाख का जुगाड़ करना  या लगाना बहुत वडी बात और समस्या थी ! खैर दोस्तों व चाहनेवालों से एक पैसा एकटा किया तब जाके "जग्वाल" बनी !
एक और बात इस फिल्ड में नए नए थे अनुबभ भी नही था !  मुम्बे जाते ही गीध की तरह मंडराने लगी थे इस इंडस्ट्री से जुड़े कुछ चालू लोग ! मजे की बात  टीम बने के बाद क्या हुआ उनलोगों ने जग्वाल को हिन्दी में  "प्रतीक्षा " बनाने का पक्का जोर डालना सुरु कर दिया और एक गीत आशा जी से भी रिकॉर्ड करवा दिया ! इतना सब होने के बाबजूद फिर सोचा की ये मई क्या केर रहा हूँ  क्यूंकि हिन्दी में तो मुझे बनानी ही नही थी  सो लौटा आया गड्वाली में !
       सुरवाती दौर में जग्वाल बनाने में हम चार पेर्मोटर थे ! उनमेसे  एक ने तो हाद करदी ! वो महाराज जी हेरोइन को लेकर चंपत और हम मुह ताकते रह गए ! हताश होकर  फिर मैंने अलग से अपना बैनर बना डाला  " आंचलिक फिल्म्स " के नाम से और बना डाली जग्वाल 


 

Parashar Gaur

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Dear Ashokji

wow kya baat hai... aakher mulakaat hoyee gaee.. dhnya kerdiya merepahadwalon ne,  ki aap jese vyaket se rubaroo kerwake... mere durbhyagya thaa ki mujhe India chodna pada...shayed ager waha rahtaa to aur kuch kertaa ... khair, perbhu jo kerta hai achaa hi kerta hai.
   Aap kese hai. Umeed hai filmo ka peryash jari hogaa.. yadapi cinema hall to hai nahi sath me CD ne filmo ki yeshe taise kerde hai.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,


Thanx for sharing this information with us.

Secondly, has anybody from UK thought / discuss about UK's film industry and TV channel issue with u?


Sir,

Apart from a Director and you had also composed several poems and Uttarakhandi songs which were broadcasted in AIR Delhi,

A few lines u please quote here on pahad ?

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In 1967 when he was 20 years old he wrote his first Garhwali Full length Drama called “Aunsi Ki Raat” which was staged on theatre for the first time On 28th February 1969 under the banner “Pushpanjali Rangshala” . Since than he has written more than a dozens plays among them such as Choli, Gaway, Rehershal, Timla ka timla Khtya and were repeated more than 10 times in theatres in and around Delhi.

As a poet he has written more than 60 songs which were broadcast by AIR, Delhi. His has also written more 300 Garhwali poems which have been published in different newspapers and magazines.

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मेहता जी ....
नेगी जी का एक गीत क्या फिट बैठता मुझपर "क्वा ढुंगी ने पुजी मिन , कई डंडा नि ग्युओ मी "
    एक हो तो बताऊ ... जो सबसे वड़ा फैक्टर था , वो था पैसा !  उस ज़माने में ८ १० लाख का जुगाड़ करना  या लगाना बहुत वडी बात और समस्या थी ! खैर दोस्तों व चाहनेवालों से एक पैसा एकटा किया तब जाके "जग्वाल" बनी !
एक और बात इस फिल्ड में नए नए थे अनुबभ भी नही था !  मुम्बे जाते ही गीध की तरह मंडराने लगी थे इस इंडस्ट्री से जुड़े कुछ चालू लोग ! मजे की बात  टीम बने के बाद क्या हुआ उनलोगों ने जग्वाल को हिन्दी में  "प्रतीक्षा " बनाने का पक्का जोर डालना सुरु कर दिया और एक गीत आशा जी से भी रिकॉर्ड करवा दिया ! इतना सब होने के बाबजूद फिर सोचा की ये मई क्या केर रहा हूँ  क्यूंकि हिन्दी में तो मुझे बनानी ही नही थी  सो लौटा आया गड्वाली में !
       सुरवाती दौर में जग्वाल बनाने में हम चार पेर्मोटर थे ! उनमेसे  एक ने तो हाद करदी ! वो महाराज जी हेरोइन को लेकर चंपत और हम मुह ताकते रह गए ! हताश होकर  फिर मैंने अलग से अपना बैनर बना डाला  " आंचलिक फिल्म्स " के नाम से और बना डाली जग्वाल 


 

पंकज सिंह महर

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आदरणीय गौर साहब,
         मेरे यह दो प्रश्न थे, जो को अनुत्तरित रह गये थे, इन पर आपका क्या विचार है, मैं प्रतीक्षारत हूं।



१-आंचलिक फिल्मों का महत्व तभी है जब वह क्षेत्र विशेष की सांस्कृतिक धरोहर, पहचान को दर्शकोम को रुबरु कराने में सक्षम हो। आपने कितनी उत्तराखण्डी फिल्मों में किसी घटना विशेष पर आधारित लोकगीत की पंक्तियों को रचते हुये, उन्हें गुनगुनाते हुये और लय में गाते हुये सुना है? कितने निर्देशकों ने छानी, ओबरों के क्लोज अप दिखाये हैं, और किसान के हाथों में बल्द का म्यालू, कंधे पर जू और जू  पर होल-जोल-निसूड़ा, उसकी पत्नी के सिर पर कल्यो की पोटली, कूटलू, दथुड़ो या गैंती, बरसात में सिर पर मालू के पत्तों से बने गोल छतरे को सिर पर रखे महिलाओ को गाय चराते हुये दिखाया है? हमने किसी फिल्म में घसयारियों की कमर में रस्सी बांधे हुये, एक हाथ में दांथी और दूसरे हाथ में रोटी-प्याज-गुड़ की पोटली थामे देखा है? कभी घसयारियों व गाय  चराने आये ग्वालों को नमक के साथ बुरांस और चीड़ के बीजों का स्वाद चखते देखा है? हाथ में तांबे के बंठे लेकर पानी के धारे की ओर बढ़्ती महिलायें, सिर पर घास और लकड़ी लाती महिलायें, जंदूरु में अन्न पीसती हुई, उरख्यलू? गंजल से अन्न कूटती औरतें, धान मांड़ते लोग, भोजन में छ्छया, फाणू, झंगोरा, बाड़ी, कण्डाली का साग, भवली, गिंजिड़ी, झुंगरियाल, गैथ, भट्ट, घी से लबालब मंडुवे की रोटी.......यह सब हमारी सांस्कृतिक धरोहरें हैं, और इन्हें फिल्म की पटकथा से जोड़कर सुरक्षित रखा जा सकता है और यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर, हमारी आंचलिक संस्कृति और परम्पराओं के मूल दर्शन से जुड़ी हैं।
      लेकिन दुर्भाग्य है कि आज के हमारे आंचलिक फिल्मकार इन सबको छोड़कर मुंबईया मसालों वाली फिल्में बना रहे हैं, जिसे अधिकाश दर्शक वर्ग अस्वीकार कर देता है......मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि आज कल की उत्तराखण्डी वी०सी०डी० फिल्मों को मैं अपने घर में परिवार के साथ बैठकर नहीं देख पाता।  यह फिल्में हमारा सांस्कृतिक अवमूल्यन ही कर रही हैं।
      इसलिये मेरा आप जैसे लोगों से अनुरोध है कि इस फिल्म जगत को आप जैसे लोग ही सुधार सकते हैं, इसलिये नेतृत्व आप अपने हाथ में लीजिये।.......फिर बहुत देर हो जायेगी।


२-मेरे मत में उत्तराखण्डी फिल्मों के सफल न होने के पीछे उनका पूर्ण व्यवसायिक हो जाना और इसमें सफल होने के लिये मुंबईया मसाले भरने की असफल कोशिश भी है। आपका इस बारे में क्या मत है?       

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,

What is your dream for Uttarakhand ?

Risky Pathak

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I missed it... But Gaud jee Ke Vichaaro Jaanke Bahot Achha Lgaa...

Pahaad se itni door rehte hue bhi, devbhoomi unke rag rag me basti hai.

 

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