राजुला - मालूशाही की प्रसिद्ध लोकगाथा का नायक मालूशाही , राजा धामदेव का ही पुत्र था | प्रसिद्ध गीत " तिलै धारू बोला " जो तिलोतमा पर विरमदेव के बलपूर्वक अधिकारकी गाथा को अपने गर्भ में लिये हुए है भी डोटी गढ़ से ही सम्बन्ध रखती हैक्यूंकि तिलोतमा दुलू पधानी और रिश्ते में विरम देव की मामी थी| विरमदेव और चन्द राजा विक्रम के बीच का जवाड़ी सेरा का युद्ध जिसमे विरम देव ने धामदेव के साथ मिलकर चन्द राजा के पुत्र की बारात जो की डोटी की राजकुमारी विरमा डोटियालणी का डोला ले कर आ रही थी जवाड़ी सेरा में लुट ली थी क्यूंकि विक्रम चन्द ने उसकी अनुपस्थिति में उसका गढ़ लखनपुर लुटा था और विरमदेव की सात वीरांगना पुत्रियाँ उससे युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी | विरमदेव विरमा डोटियालणी का डोला लुट कर लखनपुर ले आया था और युद्ध में चन्दराजा की हार हुई जिसका उल्लेख लोकगीतों में मिलता इस प्रकार से मिलता है
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"जै निरमा ज्यू को आल बांको ढाल बांको
तसरी कमाण बांकी -जीरो (जवाड़ी) सेरो बाको "
इतिहासकारों के अनुसार संन १७९० के गोरखा विस्तार के दौरान सेती नदी के तट का नरी डंग क्षेत्र में नेपाली सेना का और धुमाकोट क्षेत्र गोरखाली के विरुद्ध
डटी डोटी सेना का शिविर था