Author Topic: Chandra Singh Rahi Legendary Folk Singer of UK- चन्द्र सिंह राही लोक गायक  (Read 25277 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Manoj Istwal

लोकगायक चन्द्र सिंह राही नहीं रहे...!
रेडिओ और ऑडियो कैसेटों के माध्यमों से कई दशक उत्तराखंडी हृदयों में अपनी आवाज के बलबूते पर राज करने वाले सुप्रसिद्ध लोकगायक चन्द्र सिंह राही ने आज लम्बी बीमार के बाद प्रात: 2.20 आखिरी सांस छोड़ गए.
हिल्मा चांदी कु बटीणा...रैंद दिलमा तुमारी रटीणा, या सात समुद्र पार कि जाणा ब्वे जाज म जौलू कि ना, भाना हे रंगीली भाना, दुरु ऐजै बांज कटन, पार बौणा कु छई घसेरी, मालू ये तू मालू नि काटी, हिट बलदा सरासरी रे, तिन हाळमा जाणा रे, रूपैकी खजानी भग्यानी कनि छए, धार मा सी जून दिखेंदी जनि छइ,'फ्यूंलाडी त्वे देखि कि औंद ये मन मां, सहित सौली घुराघुर्र डगडिया सहित दर्जनों ऐसे गीत उन्होंने गाये हैं जो आज भी उन्हें हमारे बीच अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं.
उन्होंने देहरादून के टाउन हाल में सर्वप्रथम ढोलवाद्यों पर आधारित एक जुगलबंदी प्रस्तुत की जिसमें लगभग सभी चर्मवाद्य शामिल थे. उनकी आवाज की जीवटता या जीवन जीने की शैली ही कहेंगे की उनके मल्टीपल ऑर्गन फेल होने के बाद भी वे अपनी सांस्कृतिक विधा के प्रचार प्रसार में अपना धर्म निभाते रहे.
राही चौन्दकोट क्षेत्र के पट्टी मौन्दाडस्यूं के ग्राम गिंवाळी में 28 मार्च 1942 में जन्मे. उन्होंने अपनी पुरखों से मिली लोककला को ही अपना धर्म मानकर कार्य प्रारम्भ किया एवं शुरूआती दौर में स्व. बद्रीश पोखरियाल द्वारा दिल्ली के लोधी कालोनी में बनाई गई गढ़वाल भ्रात्री संघ के सांस्कृतिक प्रकोष्ट में अपनी सांस्कृतिक यात्रा की शुरुआत की. उस दौर में इस संस्था में स्व. सुदामा प्रसाद प्रेमी, स्व. कन्हैय्या लाल डंडरियाल, राजेन्द्र धस्माना, मोहन उप्रेती, डॉ. शिवानन्द नौटियाल,अवोधबंधू बहुगुणा, स्व. गिरधारी लाल थपलियाल कंकाल सहित कई नामी गिरामी लोग जुड़े जिन्होंने दिल्ली के विभिन्न स्थानों में कई गढ़वाली प्ले किये जिनमें वीर बधु देवकी व शकुंतला नृत्य नाटिका बहुत प्रसिद्ध हुए
राही जी ने लगभग 2000 गीतों का संग्रहण किया और लगभग 550 गीत उनके स्वरचित गीत थे, उन्होंने लोकसंगीत या कहें कि सांस्कृतिक विधा को जीवित रखें के लिए एक पुस्तक "रमछोळ" भी लिखी वह वर्तमान में बाजार तक आई कि नहीं मैं नहीं जानता. उन्होंने डौर, थाली के स्वर, हुड़की, ढोल, दमाऊँ, वीणा, शहनाई के स्वरों व तालों को संकलन करने का काम किया है और स्वयं इन वाद्य यंत्रों को बजाया भी। उनका कहना था कि उनके पिताजी ही उनकी शुरूआती पाठशाला थे क्योंकि पिताजी घड़ियाला बजाने का काम करते थे तो उन्हीं की सांगत में उन्होंने डौर, थाली, हुडके में सांगत सीखी. चार पुत्र और एक पुत्री के पिता रहे चन्द्र सिंह राही के जेष्ठ पुत्र बीरेंद्र नेगी जाने माने संगीतकार हैं जबकि अन्य सतीश तबला वादक व पुत्री विधोत्तमा अपने समय पर बहुत सुरीले कंठ की गायिका रही हैं. लोकभाषाओं के पक्षधर रहे राही का कहना था कि क्षेत्रीय भाषाओं, गढ़वाली, कुमाउँनी, जौनसारी, भोटिया आदि भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही लोकगीत, लोक परम्परायें, लोक संगीत, लोक वाद्य यंत्रों पर काम अवश्य होना चाहिये।
बीस बर्ष तक दिल्ली दूर संचार यानि टेलीफोन विभाग में कार्य करने के बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति इस लिए ले ली क्योंकि उनके राग राग में संस्कृति के वे मूल्य बसे थे जो उन्होंने अंतिम सांस तक जिए. इसके अलावा उन्होंने नाटक विधा में भी वर्तमान के कुछ साल पूर्व तक काम किया जिनमें जागर संस्था के माध्यम से दूरदर्शन के पूर्व समाचार सम्पादक राजेन्द्र धस्माना द्वारा लिखा गया नाटक "अर्द्धग्रामेश्वर व कफ़न काफी लोकप्रिय रहा.
इसी संस्था द्वारा लिखित प्ले "शकुंतला नृत्य नाटिका" को मैंने पिछली सदी के नब्बे के दशक में छोटे परदे पर उतारकर उसका लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारण करवाया था.
स्व. राही ने अपनी शुरुआत भी आकाशवाणी लखनऊ व बाद में आकाशवाणी नजीबाबाद से की. ऐसे पुरोधा को मेरी दिल से श्रधांजलि. प्रदेश की संस्कृति के इस नुक्सान की भरपाई असम्भव है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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राही जी के कुछ प्रसिद्ध गीत।  चन्द्र सिह राही ने कुमाउनी और गढ़वाली दोनों भाषाओं में गीत गाये। 

1. हिल्मा चांदी कु बटीणा...रैंद दिलमा तुमारी रटीणा,
2. सात समुद्र पार कि जाणा ब्वे जाज म जौलू कि ना,
3. भाना हे रंगीली भाना, दुरु ऐजै बांज कटन,
4. पार बौणा कु छई घसेरी, मालू ये तू मालू नि काटी,
5. हिट बलदा सरासरी रे, तिन हाळमा जाणा रे,
6. रूपैकी खजानी भग्यानी कनि छए,
7. धार मा सी जून दिखेंदी जनि छइ,'
8 फ्यूंलाडी त्वे देखि कि औंद ये मन मां,
9. जाण दे सुवा ग्वालदम की गाडी मा

Sunita Sharma Lakhera

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भुल्लू उत्तराखंड मेरो प्राण च , मेरो जीण कु आधार च , अपरी माटी वास्ता जतगा भी करो कम च , जै माट माँ जल्म लियुं च वींकी उद्धार हम अपरि -अपरि स्थिति -परिस्थिति अनुसार करदा और तुम किले पैथर छवा | लेख्यवार कुई छुट्टु बडु नि होंदन ,आप अपरी  नन्ही कलम उठाओ त ज़रा , माँ भगवती का चरणो मा धरी कण अपरी जल्मभूमि वास्ता समर्पित हुए जावा त | आदरणीय भैजि आप मेरी प्रेरणा , सदैनी मिठी झिड़की .....अब कण मा सुणलु ...... यक़ीन करण मुश्किल च ...बहुत मुश्किल च ...  आपकी इच्छा क़ि आजकल  लोकसंगीत पिछड़ना च .... भोंडे गीतों कु प्रचलन मा नई पीढ़ी भटकना छन ...यीं दिशा मा  भारी ध्यान दीण की जरुरत च .... हाँ भैजि हमर पूरी कोशिश रैली आपक सुपन्यों पण कार्य करला .... आपकू उत्तराखंड कला संस्कृति  वास्ता करियु  हर कार्य सदैनी अमर राल ....|
माँ भगवती आप्थैं अपरी चरणो माँ जगह देली यीं  विश्वास का साथ
अंतिम प्रणाम .....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Vinay KD with Ajay Joshi and 3 others.
42 mins ·
श्रद्धांजलि....
"जब लोक बचेगा तो विधाएं भी बचेंगी। लोकभाषा बचेगी तो परंपरा भी बचेगी। लोक में कुछ जुटता है और कुछ छूटता है। लोकगीत तभी है जब लोकधुन है। और इसके संरक्षण के लिये हम सबको मिलकर आगे आना होगा..."।
वर्ष 2014 में दैनिक जागरण द्वारा आयोजित सम्मान समारोह "स्वरोत्सव" में ये शब्द कहने वाले लोकगायक श्री चंद्रसिहं राही जी का एक लंबी बीमारी के बाद का जाना उत्तराखण्ड संस्कृति जगत के लिये एक अपूरणीय क्षति है। हिल्मा चांदी कु बटणा... रैंद दिलमा तुमारी रटीणा, सात समुद्र पार कि जाणा ब्वे जाज म जौलू कि ना, भाना हे रंगीली भाना, दुरु ऐजै बांज कटन, सौली घुराघुर्र डगडिया, मैणा घस्येरी जैसे गीतों के जरिये राही जी सदैव हमारे बीच जीवित रहेंगे...
कौथीग-2014 में अखिल गढ़वाल सभा देहरादून के मंच से एक सांस्कृतिक संध्या में राही जी की प्रस्तुति...

Pawan Pathak

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Pawan Pathak

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Pawan Pathak

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Chandra Singh Rahi ji has made great contribution to Uttarakhandi Folk Music. He was only singer in Uttarakhand who sang folk songs in both the languages kumoani and garhwali .

We are hopeful that new generation artiest will learn a lot from Rahi ji's heritage. He will be remembered since long.

Merapahad pays homage to Chandra Singh Rahi ji..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Charu Tiwari
January 10 at 10:58pm ·
'लोक का चितेरा' नाम से स्व. श्री चन्द्रसिंह राही जी की पचास वर्षो की गीत यात्रा पर शीघ्र प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रंथ के संपादकीय का एक अंश-
-----लोक विधाओं पर बहुत सारे लोगों ने काम किया है। आकाशवाणी के जिन कार्यक्रमों का जिक्र किया गया है उनमें लोक के मर्मज्ञ केशव अनुरागी का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने लोक की अभिव्यक्ति का जो व्यापक मंच तैयार किया उसकी नींव पर हमारे गीत-संगीत की बहुत सारी प्रतिभाओं ने अपना रचना-संसार खड़ा किया। आदि कवि गुमानी, मौलाराम, गौर्दा, गोपीदास, कृष्ण पांडे, सत्यशरण रतूड़ी, शिवदत्त सती, मोहन उप्रेती, ब्रजेन्द्र लाल साह, नईमा खान, लेनिन पंत,
रमाप्रसाद घिल्डियाल ‘पहाड़ी’ के बाद घनश्याम सैलानी, डा. गोबिन्द चातक, डा. शिवानन्द नौटियाल, हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’, मोहनलाल बाबुलकर, अबोधबंधु बहुगुणा, कन्हैयालाल डंडरियाल, रतनसिंह जौनसारी, शेरदा ‘अनपढ़’, गोपालबाबू गोस्वामी, बीना तिवारी, चन्द्रकला, मोहन सिंह रीठागाड़ी, झूसिया दमाई, कबूतरी देवी, बसन्ती बिष्ट, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, नरेन्द्रसिंह नेगी, हीरासिंह राणा आदि ने सांस्कृतिक क्षेत्रा में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। लोक पंरपरा को आगे ले जाने वाली पीढ़ी भी तैयार है। जागर शैली और ढोल-दमाऊ को विश्व पटल तक पहुंचाने वाले जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण हैं तो जौनसार से रेशमा शाह, जागर शैली की हेमा करासी नेगी हैं तो विशु( लोक की आवाज लिये ‘न्यौली’ गाने वाली आशा नेगी भी। अभी लोकधुनों के प्रयोगधर्मी किशन महीपाल और रजनीश सेमवाल से भी लोगों का परिचय हुआ है।
लोक विधाओं पर संक्षिप्त में इतनी बातें हमारे लोक की समृ(ि को तो बताती हैं, लेकिन इससे बात पूरी नहीं होती। इस पर पूरी चर्चा भी कर लें तो समाप्त नहीं होगी। यह बात शुरू ही तब हो पायेगी जब इसमें लोक विधाओं के साथ जीने वाले एक व्यक्तित्व का नाम जोड़ा जायेेगा। वह नाम है- श्री चन्द्रसिंह ‘राही’। चन्द्रसिंह ‘राही’ का मतलब है उपरोक्त सभी लोक विधाओं का एक साथ चलना। उनको समझना। उस अन्र्तदृष्टि को भी जो लोक के भीतर समायी है। हम उन्हें अपनी लोक विधाओं का एक चलता-पिफरता ज्ञानकोश कह सकते हैं। वे लोक धुनों के धनी हैं। प्रकृति प्रदत्त आवाज के बादशाह भी। उनके गीतों में प्रकृति का माधुर्य है। संवेदनाएं हैं। भाषा का सौंदर्य है। बिम्ब जैसे उनके गीतों की विशेषता। शब्दों का बड़ा संसार है। उनके पास लोक की पुरानी विरासत है। नये सृजन के लिये खुले द्वार भी। लोक में बिखरी बहुत सारी चीजों को समेटने की दृष्टि भी। वे लोक गायक हैं। गीत लिखते और गाते हैं। संगीत से उनका अटूट रिश्ता है। लोक वाद्यों पर उनका अधिकार है। कोई लोकवाद्य ऐसा नहीं है जिसे उन्होंने न बजाया हो। वे उत्तराखंड के हर लोकवाद्य पर अधिकारपूर्वक बोल सकते हैं। ‘राही’ जी लोक विधाओं के अन्वेषी हैं। लगभग तीन हजार से अधिक लुप्त होते लोकगीतों का संकलन उनके पास है। गढ़वाली और कुमाउंनी भाषा पर उनका समान अधिकार है। इन सबके साथ ‘राही’ जी हमारी सांस्कृतिक धरोहर के सबसे प्रबल पहरेदार हैं। एक सरल इंसान। दरअसल ‘राही’ जी की अपनी खूबियां हैं।
दिल्ली पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक, उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच के संरक्षक और मेरे मित्रा श्री विनोद बछेती ने श्री चन्द्रसिंह ‘राही’ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक पुस्तक निकालने की बात कही। जिसका संपादन उन्होंने मुझे सौंपा। इससे पहले भी वे उत्तराखंड के सुप्रसि( लोकगायक श्री नरेन्द्रसिंह नेगी और श्री हीरासिंह राणा पर इस तरह की पुस्तकों का प्रकाशन कर चुके हैं। मेरे लिये इससे बड़े सौभाग्य की बात और क्या हो सकती थी कि जिनके गीत हम सत्तर के दशक में बहुत छोटी उम्र में सुना करते थे आज उनके गीतों पर कुछ लिखने-कहने का मौका मिला। चन्द्रसिंह ‘राही’ जी से मुलाकात कब हुई यह कहना बहुत कठिन है। लगता है कि दशकों से एक-दूसरे को जानते हैं। उम्र का इतना बड़ा पफासला होने के बाद भी उन्होंने कभी उस अन्तर को प्रकट नहीं होने दिया। उनके साथ उस दौर में ज्यादा निकटता हो गयी जब मैं ‘जनपक्ष’ पत्रिका का संपादन कर रहा था। कभी भी, किसी भी समय उनका पफोन आ सकता है। वह सुबह पांच बजे भी हो सकता है, रात के 12 बजे भी। बहुत आत्मीयता से वे विशु( कुमाउंनी में वे बात करते हैं।
दो साल पहले अपने गृह क्षेत्रा द्वाराहाट के कपफड़ा में एक कार्यक्रम में शामिल होने गया। चन्द्रसिंह ‘राही’ भी साथ थे। पता चला कि वहां रामलीला भी हो रही है। आयोजकों ने कहा कि आप रामलीला का उद्घाटन कर दो। हमें भी रामलीला देखनी थी चले गये। लोगों को पता नहीं था कि मेरे साथ कौन हैं। मैंने मंच में जाकर घोषणा की कि रामलीला का उद्घाटन चन्द्रसिंह ‘राही’ करेंगे। और स्पष्ट करते हुए बताया कि ये वही ‘राही’ जी हैं जिन्होंने ‘सरग तारा जुनाली
राता...’, ‘हिल मा चांदी को बटना...’, जैसे गीत गाये हैं। पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। रामलीला तो छोडि़ये पहले गीतों की फरमाइश आ गयी। पुरानी पीढ़ी के लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि सत्तर के दशक में जिस गायक को रेडियो पर सुना था उसे कभी सामने भी देख पायेंगे। ऊपर से धारा प्रवाह कुमाउंनी बोलने से वे लोगों के चहेते बन गये। मैं उन्हें कई आयोजनों में अधिकारपूर्वक अपने साथ ले गया। वे जहां भी गये अपने गीतों से लोगों के दिलों में स्थान बना आये। राही जी को जौनसार से लेकर जौहार तक की लोक विधाओं में महारत हासिल है। चन्द्रसिंह ‘राही’ अब अस्वस्थ रहते हैं। उनका इलाज भी चल रहा है। हम सब की कामना है कि वे जल्दी स्वस्थ हों और उनकी आवाज हमें वर्षो तक मंचों पर सुनाई दे।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dinesh Dhyani
January 12 at 12:37pm
राही जी त अब चलिगैन
राही जी त अब चलिगैन
गीत लगौंदरा गीत लगावा
अपणि अपणि मन की सोच छ
भक्वैरि तुम हैंसि खेलि ल्यावा।
एक तरफ छै चिता सुलगणीं
हैंका तरफ तुम तान सुणौणा
ठुमका लगैकि हत्थ हिलैकी
लोग बाग बी खूब छा नचणां।
राही जी न कबि नि बोलि
मेरा खातिर शोक मनावा
मन उदास छौ जौन बोलि
यीं घडि कनक्वै गीत लगौंणा?
भौत मजबूरी छै तुम्हरि त
राही जी का बि गीत सुणौंदा
यीं सध्यां थैं भलु होंदु जो
राही जी थैं समर्पण करदा।
राही जी को काम समर्पण
जिजीविषा थैं याद त करदा
क्य बिगड़दु जो भयौं जरासी
यीं संध्या म खुटि नि हिलौंदा?
मनख्यों म मनख्यात चयेंदी
भावों मा बि सिजळु पराण
व न त कैल्या ज्या करणाया
जबरदस्ति कै थैं जि मनौण।
राही जी की याद सदानी
हमरा मन मस्तिष्क म राली
सौलि घूरली, जून धार की
सदन्नि राही जी कि याद दिलाली। दिनेश ध्यानी. 12 जनवरी, 2016

 

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